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दूसरों का उपकार करने के सिद्धान्त को कैसे अपना मार्गदर्शक बनाए

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    हम इंसानों के पास
    अच्छाई की विशेष क्षमता है|
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    लेकिन हमारे पास नुकसान पहुचाने
    की भी अत्यधिक शक्ति है|
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    किसी भी हथियार का उपयोग बनाने
    या नष्ट करने के लिए किया जा सकता है|
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    ये सब हमारी प्रेरणा पर निर्भर करता है|
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    इसलिये स्वार्थी भावना के बदले
    करुना की भावना को प्रोत्साहन देना
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    और भी ज़रूरी हो जाता है|
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    निस्संदेह हम आज के समय मे बहुत सी
    मुश्किलों का सामना कर रहे हैं|
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    ये मुश्किलें निजी हो सकती है|
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    हमारा खुदका मन हमारा सबसे अच्छा दोस्त हो
    सकता है या हमारा सबसे बड़ा दुश्मन|
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    मुश्किलें सामाजिक भी हो सकती है|
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    समृद्धि के बीच मे ग़रीबी,
    असमानता, लड़ाई, और अन्याय|
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    और फिर ऐसी भी मुश्किलें है जो नई हैं,
    जिनकी हमे बिलकुल भी उम्मीद नहीं होती|
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    दस हज़ार सालों पहले, धरती पे करीब
    ५० लाख लोग थे|
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    वो जो भी करते
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    धरती का पलटाव इंसान की गतिविधियों
    को जल्द ही स्वस्थ कर देता|
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    औद्योगिक और प्रौद्योगिकीय आमूल
    परिवर्तन के बाद,
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    ये स्तिथि पहले जैसी नहीं रही|
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    आज हम धरती पे होने वाले प्रभाव के
    प्रमुख एजेंट हैं|
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    हम अन्थ्रोप्रोसिन मे प्रवेश कर रहे हैं,
    मनुष्य का युग|
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    तो एक तरह से, अगर हम कहें कि,
    हमे यह अनंत बढ़त और अनंत
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    भौतिक संसाधन का उपयोग जरी
    रखने की ज़रूरत है,
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    तो वो यह कहने के बराबर है कि अगर यह इंसान-
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    और मैंने एक पूर्व राज्य के प्रधान को कहते
    सुना है, में उनका नाम नहीं लूँगा कि
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    "पांच साल पहले हम खड़ी चट्टान की
    कगार पर थे|
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    आज हमने एक बड़ा कदम आगे बढाया है|"
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    वैज्ञानिकों ने जो ग्रहों की सीमा की
    परिभाषण दी है
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    वह इस कगार के सामान्य है|
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    और उन सीमओं के अंदर,
    वे अनेक तत्व रखते हैं|
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    हम अभी भी उन्नति कर सकतें हैं, मानवजाति
    अभी भी १५०००० सालों तक उन्नति कर सकती है,
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    यदि हम जलवायु स्थिरता वैसे ही बनाएं रखें
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    जैसेः पिछलें दस हजार सालों से है|
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    परंतु यह स्वैच्छिक सादगी, गुण-संबंधी बढ़त
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    नाकि परिमाण-संबंधी बढ़त को
    चुनने पर निर्धारित है|
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    साल १९०० मे, जैसा कि आप देख सकतें हैं,
    हम सुरक्षा की सीमा के बहुत अंदर थे|
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    फिर, साल १९५० मे ज़ोर की तेज़ी आई|
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    अब अपनी सासों को रोक कर रखें, ज्यादा देर
    तक नहीं, यह सोचने के लिए कि आगे क्या होगा|
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    आज हम उन ग्रहों की सीमा के बहुत
    आगे निकल चुकें हैं|
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    जैव विविधता को लें तो, इस तेज़ी से
    अगर हम चलतें रहेंगे,
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    तो साल २०५० तक धरती से ३० प्रतिशत
    जातियां गायब हों जायेंगी|
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    अगर हम उनका डीएनए फ्रिज मे भी रखें,
    तब भी वह अपरिवर्तनीय रहेगा|
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    तो यहाँ में बेठा हूँ,
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    ७००० मीटर ऊंचाई पर, २१००० फुट
    हिमानी के आगें, भूटान मे|
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    तीसरे पोल मे २००० हिमानी तेज़ी से
    पिघल रहें हैं, उत्तरी ध्रुवी से भी तेज़|
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    तो इस स्थिति मे हम क्या कर सकतें हैं?
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    पर्यावरण का सवाल कितना भी कठिन हो,
  • 3:29 - 3:32
    राजनीतिक, आर्थिक या वैज्ञानिक रूप से,
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    अंत मे यह केवल एक सवाल पर रुक्ता है,
    दूसरोँ के लाभ की इच्छा या अपने लाभ की?
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    में ग्रुचो झुकाव का मार्क्सिस्ट हूँ|
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    (हँसी)
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    ग्रुचो मार्क्स कहतें हैं, “में आने वालीं
    पीढ़ी की चिंता क्यों करूँ?
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    उन्होंने मेरे लिए क्या किया?”
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    (हँसी)
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    दुर्भाग्य से मैंने लाखपति स्टीव फोर्ब्स
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    को बिलकुल यही चीज़ फॉक्स
    न्यूज़ पे कहते सुना|
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    उन्हें सागर की अधिकता के
    बारे मे बताया गया,
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    और उन्होंने कहा कि “जो घटना १०० साल
    बाद होने वाली है,
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    उसके लिए आज अपना व्यवहार
    बदलना मुझे बेतुका लगता है|”
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    तो अगर आपको आने वालीं
    पीढ़ियों की चिंता नहीं हैं,
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    तो ठीक है|
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    हमारे ज़माने की एक विशेष चुनौती
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    ३ समय सीमा के बीच मेल-मिलाप कराना है:
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    तुरंत आने वाला अर्थव्यवस्था का समय,
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    शेयर बाजार का उतार-चढ़ाव,
    साल के अंत का हिसाब-किताब;
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    मध्यावधि मे जीवन की गुणवत्ता --
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    अगले १०-२० सालों में, हमारे जीवन के हर पल
    की क्या गुणवत्ता है?
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    और लंबे समय मे पर्यावरण|
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    जब पर्यावरणविद् लोंग अर्थशास्त्रियोंसे
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    बातें करतें हैं, वह संवाद पागलपन के
    बराबर है, पूरी तरह से बेमेल|
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    वे अलग भाषओं मे बात करतें हैं|
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    अभ, पिछले १० सालों मे मैंने
    दुनिया के चक्कर कटे|
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    र्थशास्त्रीयो , वैज्ञानिकों,
    तंत्रिका वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों,
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    दार्शनिकों, विचारकों सें मिला,
    हिमालय मे, सभी जगहों में|
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    मुझे लगता है कि, एक ही ऐसा विचार है,
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    जो उन ३ समय सीमाओं का बीच
    मेल-मिलाप ला सकता है|
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    जो सीधे सभ्दों मे है कि ‘दूसरो का
    ज्यादा ख्याल करना’|
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    अगर आप दूसरों का ज्यादा ख्याल करतें हैं
    तो आपकी अर्थव्यवस्था बेहतर होगी,
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    जहाँ वित्त, समाज की सेवा मे होगी,
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    नाकि समाज वित्त की सेवा मे|
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    आप कैसिनो जाके वे पैसे
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    खर्च नहीं करेंगें, जो लोगों ने विश्वास से
    आपकों सोंपे हैं|
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    अगर आप अन्य लोगों का
    ज़्यादा ख्याल करतें हैं,
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    तब आप यह निश्चित करेंगें कि आप
    असमानता का उपाय निकाले,
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    कि आप समझ, शिक्षा,
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    नौकरी में भलाई लायें|
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    वरना ऐसे देश का क्या मतलब होगा, जो सबसे
    शक्तिशाली और अमीर हो
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    पर वहां के लोंग दुखी हों|
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    और अगर आपको ऑरों का ख्याल है,
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    तो आप धरती को नहीं लूटेंगे
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    और आज के गत्ती से चलें तो हमारे
    पास रहने के लिए ३ और गृह नहीं हैं|
  • 5:54 - 5:56
    सवाल यह है ,
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    माना कि अल्त्रुइस्म सिर्फ एक
    अच्छा सुझाव ही नहीं
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    पर क्या वह एक वास्तविक और उपयोगी
    हल बन सकता है?
  • 6:04 - 6:06
    पर उससे भी पहले, क्या सच्चा अल्त्रुइस्म
    मौजूद है?
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    या हम सभी स्वार्थी है?
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    कुछ दार्शनिक लोंग सोचते है कि,
    हम सब अपूरणीय स्वार्थी लोंग है|
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    पर क्या हम सच मे सिर्फ दुष्ट हैं?
  • 6:21 - 6:24
    क्या यह अच्छी बात है?
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    होब्बस जैसे कईं दार्शनिकों ने ऐसा कहाँ है|
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    पर हर इंसान दुष्ट नहीं दीखता|
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    या क्या एक इंसान बाकी इंसानों
    के लिए भेदिये जैसा है?
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    यह इंसान ज़्यादा बुरा नहीं लगता|
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    यह मेरा तिबेट का एक दोस्त है|
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    वो बहुत सज्जनतापूर्ण है|
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    हम सबको साथ मिलाकर काम
    करना अच्छा लगता है|
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    साथ मिलाकर काम करने से जो आनंद आता है,
    उससे अच्छा कोई और आनंद है क्या?
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    यह भाव सिर्फ इंसानों मे नहीँ है|
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    बेशक जिंदगी मे संघर्ष भी है,
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    सबसे योग्य का ही जीवित रह पाना,
    ‘सोशल दार्विनिस्म’|
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    परंतु विकास मे, जबकि औरो के
    साथ मुक़ाबला होगा,
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    सहयोग को और भी रचनात्मक बनना होगा जो
    ऊंचे स्तर के उलझन तक पहुँच सके|
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    हम सहयोग मे अव्वल हैं, पर हमे
    और भी आगे बढ़ना चाहिए|
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    उसके ऊपर आती है मानव संबंध की गुणवत्ता|
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    ‘ओईसीडी’ ने दस कारकों का सर्वेक्षण
    किया जैसे, आमदनी, इत्यादि|
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    लोगों के हिसाब से, उनकीं ख़ुशी का
    सबसे पहले उच्च कारण
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    सामाजिक रिश्ते है|
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    यह कारण सिर्फ इंसानों के लिए
    ही सच नहीं हैं|
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    इन परदादीयों को ही देख लिजिएं|
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    तो अब देखा जाए तो यह सोच की अगर
    हम गहराई से अपने अंदर देखें,
  • 7:44 - 7:47
    तो हम स्वार्थी हैं,
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    यह सोच मे कोई सचाई नहीं हैं|
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    ऐसी एक भी समाजशास्त्रीय या
    मनोवैज्ञानिक
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    जाँच नहीं है जो इस बात को
    सिद्ध कर सकती है|
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    बल्कि उसका उल्टा है|
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    मेरे दोस्त, डेनियल बॅट्सन ने अपनी
    सारी ज़िन्दगी निकाल दी,
  • 8:00 - 8:03
    लोगों को प्रयोगशाला मे डालने मे,
    बहुत जटिल स्तिथिओं मे|
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    हाँ, कभीकभार हम स्वार्थी होतें हैं, कुछ
    लोंग बाकि लोगों से ज़्यादा होतें हैं|
  • 8:07 - 8:10
    पर मेरे दोस्त ने पाया कि,
    चाहे कुछ भी हो जाएँ,
  • 8:10 - 8:13
    ऐसे काफी लोंग हैं
  • 8:13 - 8:17
    जो परोपकारिता से पेश आतें हैं,
    चाहे जो हो जाए|
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    अगर आप किसी को गहरी चोंट मे
    तड़पते हुए देखतें हैं,
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    तो शायद आप, उस पर दया खा कर,
    उसकी मदद कर दें --
  • 8:22 - 8:26
    आपसे वह दृश्य देखा नहीं जाएगा, तो आप उससे
    देखने से बेहतर उसकी मदद करना चाहेंगें|
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    हमनें इस सब की जांच की और अंत मे, मेरे
    दोस्त ने कहा की बेशक इंसान परोपकारी है|
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    तो यह एक अच्छी खबर है|
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    उससे आगे बढ़कर, हमे अच्छाई की
    साधारणता भी देखनी चाहिए|
  • 8:40 - 8:42
    आप यहाँ ही देख लीजिये|
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    जब हम बहार निलेंगे, हम यह नहीं कहेंगे कि
    कितना अच्छा है,
  • 8:44 - 8:49
    जब लोंग परोपकारिता के बारे मे सोच रहे थे
    तब कोई मारा-मारी नहीं हुई|
  • 8:49 - 8:51
    नहीं,वह तो अपेक्षित है ना?
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    अगर लड़ाई होती तो हम उसके बारे
    मे महीनो तक बात करते|
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    अच्छाई की साधारणता ऐसी चीज़ है जो आपका
    ध्यान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करती,
  • 8:58 - 8:59
    पर वो मौजूद है|
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    अब इसको देखिये|
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    जब में मनोवैज्ञानिकों से कहता हूँ
  • 9:12 - 9:15
    के में हिमालय मे १४० मानवीय
    परियोजनओं को चलता हूँ,
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    जिससे मुझें बहुत ख़ुशी मिलती हैं,
  • 9:18 - 9:21
    तब वे कहतें है कि, “अच्छा तो आप अपनी
    ख़ुशी के लिए यह करते हैं,
  • 9:21 - 9:24
    यह भावना परोपकारीक नहीं, हैं,
    आपको ख़ुद अच्छा लगता है|”
  • 9:24 - 9:27
    क्या आपको लगता है कि जब यह इंसान ट्रेन के
    आगे कूदा तब उसने सोचा,
  • 9:27 - 9:29
    “जब यह ख़तम हो जाएगा
    तब मुझे कितना अच्छा लगेगा?"
  • 9:29 - 9:30
    (हँसी)
  • 9:32 - 9:34
    बात यहीं ख़तम नहीं होती|
  • 9:34 - 9:36
    लोंग कहतें है, जब उससे पूछ-ताछ
    की गईं तब उस्सने कहाँ,
  • 9:36 - 9:40
    “मेरे पास और कोई इंतिख़ाब नहीं था,
    मुझें कूदना पड़ा|”
  • 9:40 - 9:43
    उसके पास और कोई विकल्प नहीं हाँ| स्वत:
    व्यवहार| यह नाही स्वार्थी है ना परोप्करिक|
  • 9:43 - 9:45
    कोई विकल्प नहीं था?
  • 9:45 - 9:48
    हाँ, यह इंसान आधे घंटे तक नहीं सोचेगा,
  • 9:48 - 9:50
    “में मदद करूँ या ना करूँ?”
  • 9:50 - 9:54
    पर वो सोचता है, उसके पास विकल्प है,
    बस वह स्पष्ट है, तुरंत है|
  • 9:54 - 9:56
    यहाँ भी उसके पास विकल्प है|
  • 9:56 - 9:59
    (हँसी)
  • 9:59 - 10:02
    ऐसे लोंग हैं जिनके पास विकल्प थे, जैसे
    पॅस्टर आंद्रे त्रोक्मे और उनकी पत्नी,
  • 10:02 - 10:05
    और फ्रांस के Le Chambon-sur-Lignon
    का पूरा गाँव|
  • 10:05 - 10:09
    दुसरे महायुद्ध के समय इन लोगों ने अनेक
    बाधाओं के बावजूद ३५०० यहूदीयों को बचाया,
  • 10:09 - 10:12
    उनकों शरण दी, उनकों
    स्विट्जरलैंड लेके आयें,
  • 10:12 - 10:15
    अपनीं और अपनें परिवार की जान
    को जोखिम मे डाल के|
  • 10:15 - 10:17
    परोपकारिता लोगों मे मौजूद है|
  • 10:17 - 10:19
    तो परोपकारिता क्या है?
  • 10:19 - 10:23
    वे एक इच्छा है कि, अन्य लोग ख़ुश रहें और
    ख़ुशी का कारण ढूंड सकें|
  • 10:23 - 10:28
    सहानुभूति एक भावात्मक या संज्ञानात्मक
    प्रतिध्वनि है जो आपको बताती है कि,
  • 10:28 - 10:31
    यह इंसान ख़ुश है,
    यह इंसान दुखी है|
  • 10:31 - 10:34
    किन्तु सहानुभूति अकेले ही काफी नहीं|
  • 10:34 - 10:37
    अगर आपका ओंरों की पीड़ा से सामना होता रहा,
  • 10:37 - 10:39
    तो आपके लिए वो पीड़ा सहन
    करना मुश्किल हो जाएगा,
  • 10:39 - 10:44
    इसलिए आपको सहानुभूति से बढ़कर
    प्यार और करुणा की ज़रूरत पड़ेगी|
  • 10:44 - 10:46
    तानिया सिंगर के साथ हमनें
    मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट
  • 10:46 - 10:52
    ऑफ़ लेइप्ज़िग मे दिखाया कि, हमारा दिमागी
    नेटवर्क, सहानुभूति और करुणा के लिए अलग है|
  • 10:52 - 10:54
    यहाँ तक सब ठीक है,
  • 10:54 - 11:00
    हमे यह भाव हमारी उत्क्रांति से, ममता से,
    माता पिता के प्यार से मिला है,
  • 11:00 - 11:02
    पर हमे इस भाव का विस्तार करना है|
  • 11:02 - 11:05
    यह भाव और जाति के प्राणियों की ओर
    भी बढ़ाया जा सकता है|
  • 11:05 - 11:09
    अगर हम ज़्यादा परोपकारी समाज चाहतें है,
    तो उसके लिए हमें २ चीज़ें लगेंगीं,
  • 11:09 - 11:13
    व्यक्तिगत बद्लाव और सामाजिक बद्लाव|
  • 11:13 - 11:15
    क्या व्यक्तिगत बद्लाव मुमकिन है?
  • 11:15 - 11:18
    २००० सालों की मननशील अध्ययन
    कहता है कि यह मुमकिन है|
  • 11:18 - 11:22
    तंत्रिका विज्ञान और एपिजेनेटिक्स के साथ
    १५ सालों का संबंध कहता है
  • 11:22 - 11:26
    हाँ, हमारा दिमाग बदल सकता है जब
    हम परोपकारिता का प्रशिक्षण करते है|
  • 11:26 - 11:31
    मैंने १२० घंटे एक एमआरआई मशीन मे गुज़ारे|
  • 11:31 - 11:33
    यह मेरे पहली बार जाने के २.५
    घंटे बाद की तस्वीर है|
  • 11:33 - 11:37
    इसका नतीजा कईं
    वैज्ञानिक पत्रिकों मे छप्पा है|
  • 11:37 - 11:41
    ये बिना किसी शंका के दिखाता है कि कैसे,
    परोपकारिता का प्रशिक्षण करने से
  • 11:41 - 11:45
    हमारे दिमाग मे संरचनात्मक और
    कार्यात्मक बद्लाव आता है|
  • 11:45 - 11:46
    एक नमूना दिखाऊँ तो,
  • 11:46 - 11:49
    ध्यानी जो बाएं ओर बेठा है, विश्रांत में
  • 11:49 - 11:53
    सहानुभूतिपूर्वक ध्यान लगते हुए,
    आप यहाँ हलचल देख सकतें हैं,
  • 11:53 - 11:55
    दूसरी तरफ आम इंसान,
    विश्रांत में और ध्यान लगते हुए,
  • 11:55 - 11:57
    यहाँ कुछ नहीं होता|
  • 11:57 - 11:59
    वे लोंग प्रशिक्षित नहीं है|
  • 11:59 - 12:04
    तो क्या आपको ५०००० घंटे ध्यान लगाने की
    ज़रूरत है?, नहीं|
  • 12:04 - 12:08
    ४ हफ़्तों के लिया, रोज़ २० मिनट का
    करुणा और सचेतन का ध्यान भी
  • 12:08 - 12:14
    दिमाग मे संरचनात्मक बद्लाव ला सकता है,
    आम इंसान के साथ तुलना हो तो|
  • 12:14 - 12:18
    सिर्फ रोज़ के २० मिनट, ४ हफ़्तों के लिए|
  • 12:18 - 12:21
    छोटे बचों पर भी काम करता है,
    रिचर्ड डेविडसन ने यह मैडिसन मे किया था|
  • 12:21 - 12:28
    ८ हफ़्तों के लिए, कृतज्ञता, करुणा,
    सहयोग, जागरूकता से सांस लेना|
  • 12:28 - 12:30
    शायद आप कहें, “पर वे तो सिर्फ बच्चें है|”
  • 12:30 - 12:32
    ८ हफ़्तों के बाद देखिए,
  • 12:32 - 12:34
    नीली रेखा उनके सामाजिक व्यव्हार में
    सुधर दिखाती है|
  • 12:34 - 12:39
    और फिर आती है सबसे परम वैज्ञानिक जाँच,
    ‘द स्टिकर टेस्ट’|
  • 12:39 - 12:43
    पहले आप सारें बच्चों के सबसे करीबी दोस्त,
    सबसे कम पसंदीदा दोस्त,
  • 12:43 - 12:47
    अंजान बच्चा एक बीमार
    बच्चा निर्धारित कर लीजिये,
  • 12:47 - 12:50
    और बच्चों को स्टिकर बांटने है|
  • 12:50 - 12:54
    प्रशिक्षण से पहले, बच्चें ज़्यादातर स्टिकर
    अपने सबसे अच्छे दोस्त को देते हैं|
  • 12:54 - 12:58
    ४-५ साल के बच्चें, २० मिनट हफ्ते मे ३
    बार प्रशिक्षण करतें हैं|
  • 12:58 - 13:01
    प्रशिक्षण के बाद कोई भेद भाव नहीं था :
  • 13:01 - 13:05
    सबसे करीबी दोस्त और सबसे कम पसंदीदा दोस्त,
    दोनों को एक समान स्टीकर दिएँ गए|
  • 13:05 - 13:08
    यह हमे दुनिया के सारे
    स्कूलों मे करना चाहिए|
  • 13:08 - 13:10
    अब आगे क्या?
  • 13:10 - 13:15
    (तालियाँ)
  • 13:15 - 13:17
    जब दलाई लामा ने यह सुना, उन्होंने रिचर्ड
    डेविडसन से कहाँ
  • 13:17 - 13:21
    "तुम १० स्कूल, १०० स्कूल, यूएन मे,
    पुरे देश मे जाओ|
  • 13:21 - 13:22
    फिर उसके आगे क्या?
  • 13:22 - 13:25
    व्यक्तिगत बद्लाव मुमकिन है|
  • 13:25 - 13:29
    अब क्या हम परोप्करिक जीन का इंसान मे पैदा
    होने का इंतज़ार करें?
  • 13:29 - 13:33
    उसमे, ५०००० साल लग जायेंगे,
    वातावरण के लिए इतनी देर रुकना मुमकिन नहीं|
  • 13:33 - 13:38
    सैभाग्यवश, संस्कृति का विकास हो रहा है|
  • 13:38 - 13:43
    विशेषज्ञों ने कहा है की संस्कृति मे इंसान
    की जीन से ज्यादा तेज़ी से बद्लाव आता है|
  • 13:43 - 13:45
    यह एक अच्छी खबर है|
  • 13:45 - 13:48
    पिछले कुछ सालों मे युद्ध के प्रति हमारे
    रवैया मे दूरतम बद्लाव आया है|
  • 13:48 - 13:53
    व्यक्तिगत बद्लाव और सांस्कृतिक परिवर्तन
    एक साथ चलते हैं,
  • 13:53 - 13:56
    हम एक ज्यादा परोप्कारी समाज बना सकतें हैं|
  • 13:56 - 13:58
    अब इसके भी आगे क्या?
  • 13:58 - 14:00
    में वापस पूर्व देश मे चला जाऊँगा|
  • 14:00 - 14:04
    अपने परियोजनाओं से हम साल मे
    १००००० रोगियों का इलाज करतें हैं|
  • 14:04 - 14:07
    हमारें स्कूलों मे २५००० बच्चें पढ़ते हैं|
  • 14:07 - 14:10
    कुछ लोंग कहते हैं,
    "आपका काम वास्तव मे चलता है,
  • 14:10 - 14:12
    पर क्या सिद्धांत मे चलता है?"
  • 14:12 - 14:15
    सकारात्मक विचलन हमेशा मौजूद है|
  • 14:15 - 14:18
    में वापस अपने आश्रम मे जाऊँगा
  • 14:18 - 14:21
    आंतरिक संसाधनों ढूँढने, जिसकी मदद से मे
    औरों की बेहतर सेवा कर सकूँ|
  • 14:21 - 14:24
    लेकिन हम वैश्विक स्तर पर
    क्या कर सकतें हैं?
  • 14:24 - 14:26
    हमे तीन चींज़े चाहिए|
  • 14:26 - 14:28
    सहयोग बढ़ाने:
  • 14:28 - 14:32
    पाठशाला में सहयोग की भावना के साथ
    सीखना नाकि मुकाबले की भावना से|
  • 14:32 - 14:36
    कंपनियों के भीतर बेहद सहयोग हो,
  • 14:36 - 14:40
    कंपनिया आपस मे थोड़ा मुकाबला
    कर सकतें हैं, पर अपने भीतर नहीँ|
  • 14:40 - 14:44
    हमें सतत एकता बनाएँ रखने की ज़रूरत है,
    मुझे यह शब्द बहुत पसंद है|
  • 14:44 - 14:46
    नाकि सतत विकास|
  • 14:46 - 14:50
    सतत एकता मतलब असमानता
    को कम करेंगे|
  • 14:50 - 14:54
    आगे से हम कम साधनो से ज़्यादा काम चलाएँगे,
  • 14:54 - 14:58
    हम गुणात्मकता से बढ़ते रहेंगें,
    नाकि मात्रात्मकता से|
  • 14:58 - 15:01
    हमें ध्यान रखने वाली
    अर्थशास्त्र की ज़रूरत है|
  • 15:01 - 15:06
    होमो एकोनोमिकस समृद्धि के बीच
    जीवित ग़रीबी,
  • 15:06 - 15:09
    साधारण सामान की दिकत,
    वातावरण, महासागर,
  • 15:09 - 15:11
    इन सब से नहीं जूज सकती|
    हमें ध्यान रखने वाली
  • 15:11 - 15:13
    अर्थशास्त्र की ज़रूरत है|
  • 15:13 - 15:15
    अगर आप बोलो किअर्थशास्त्र
    करुणामय होनी चाहिए
  • 15:15 - 15:16
    वो कहेंगे यह हमारा काम नहीं हैं
  • 15:16 - 15:20
    अगर आप कहें की उन्हें कोई
    परवा नहीं,वह सही नहीं होगा|
  • 15:20 - 15:23
    हमे, स्थानीय प्रतिबद्धता,
    वैश्विक जिम्मेदारी की ज़रूरत है|
  • 15:23 - 15:28
    हमे सरे १६ लाख़ जाति की ओर
    सहानुभूति बढ़ाने की ज़रूरत है|
  • 15:28 - 15:32
    सारे जीवित प्राणी इस दुनिया
    के सह नागरिक है,
  • 15:32 - 15:35
    और हमे परोपकारिता दिखने की
    हिम्मत करनी पड़ेगी|
  • 15:35 - 15:39
    परोपकारीक क्रांति की जय हो|
  • 15:39 - 15:43
    क्रांति की जय हो|
  • 15:43 - 15:49
    (तालियाँ)
  • 15:49 - 15:50
    शुक्रिया|
  • 15:50 - 15:52
    (तालियाँ)
Title:
दूसरों का उपकार करने के सिद्धान्त को कैसे अपना मार्गदर्शक बनाए
Speaker:
‍‌मैथ्हिउ रिकार्ड
Description:

ऑल्त्रट्रूइस्म (दूसरों का उपकार करने का सिद्धान्त) क्या है? सीधे शब्दों में कहें तो, ये एक ख्वाहिश है कि अन्य लोग खुश रहे| और ‍‌मैथ्हिउ रिकार्ड, ख़ुशी पे खोज करने वाले और एक बौद्ध भिक्षु, कहते है कि ऑल्त्रट्रूइस्म, फैसले लेने का एक बहुत अच्छा नजरिया है, दोनों छोटे और लम्बे समय के लिए, काम और ज़िन्दगी के फैसलों के लिए|

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English
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TEDTalks
Duration:
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