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फसल बीमा, एक बोने-लायक संकल्प

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    केन्या में, सन १९८४
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    'कटोरे-वाला साल' कहके पहचाना जाता है,
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    या गोरो-गोरो-वाला साल.
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    गोरो-गोरो उस बर्तन का नाम है, जिससे
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    बाज़ार में दो किलोग्राम मकई का आटा मापा जाता है,
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    और इस मकई के आटे से बनती है 'उगाली',
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    एक तरह की टिक्की (यूरोपी 'पोलेंटा' जैसी) जो सब्ज़ियों के साथ खाई जाती है.
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    मकई और सब्ज़ियाँ दोनों ही
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    केन्या के ज़्यादातर खेतों में उगाई जाती हैं,
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    जिसका मतलब यह निकला कि ज़्यादातर परिवार
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    अपने ही खेतों से खुद को खिला सकते हैं.
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    एक गोरो-गोरो तीन वक्त के खाने के बराबर है,
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    एक सामान्य परिवार के लिए,
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    और सन १९८४ में पूरी फसल
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    बस एक गोरो-गोरो को भर पाई.
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    वह जो सुखा पड़ा था, तब और अब भी सबसे बुरे अकालों में गिना जाता है
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    जो अब याददाश्त में हैं.
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    अब आज, मैं किसानों को उस कटोरे-वाले साल जैसे
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    सूखे के ख़िलाफ़ बीमा दिलाती हूँ,
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    या ख़ास तौर पर, वर्षा-बीमा दिलाती हूँ.
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    मैं जिस परिवार से आती हूँ, वह धर्म-प्रचारकों का है,
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    जिन्होंने इंडोनेशिया में अस्पताल बनवाए,
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    और मेरे पिताजी ने एक मनोवैज्ञानिक अस्पताल बनवाया
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    तंज़ानिया में.
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    यह मैं हूँ, पाँच साल की उम्र में, उस अस्पताल के सामने.
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    मुझे नहीं लगता कि उन्होने सोचा होगा कि मैं बड़ी होकर
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    बीमा बेचूंगी. (हंसी)
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    तो मुझे बताने दीजिये कि यह हुआ कैसे.
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    सन २००८ में,
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    मैं रवांडा के कृषि मंत्रालय में काम कर रही थी,
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    और तब ही जो मुझसे उच्च-पद पर थीं, वे पद-वृद्धि पाकर
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    मंत्री बनीं थीं.
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    उन्होंने एक महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की,
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    अपने देश में एक हरित क्रांति के आरंभ के लिए,
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    और बस मानिए हम तुरंत ही कई टनों की भारी मात्रा में
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    खाद और बीज का आयात कराने लगे थे,
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    और किसानों को बता रहे थे कि उस खाद को
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    बोने में कैसे अपनाया जाए.
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    दो हफ़्ते बाद,
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    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य हमारे पास आए,
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    और उन्होंने मेरी मंत्री से पूछा,
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    "मंत्रीजी, यह तो बड़ी ही अच्छी बात है कि आप किसानों को
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    खाद्य-सुरक्षा पाने की ओर सहायता दे रही हैं, मगर बारिश नहीं हुई तो ?"
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    मेरी मंत्री ने गर्व से
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    और ज़रा ललकार के स्वर में कहा,
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    "मैं बारिश की दुआ करूंगी!"
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    उसी से बहस ख़त्म हो गयी.
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    जब हम गाड़ी में मंत्रालय लौट रहे थे,
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    तब वे मेरी तरफ मुड़कर कहीं,
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    "रोस, पूंजी के मामलों में हमेशा तुम्हें दिलचस्पी रही है.
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    जाकर हमारे लिए कुछ बीमा ढूंढकर लाओ."
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    तबसे छह साल बीते हैं,
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    और पिछले साल मेरा यह सौभाग्य था
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    कि मैं एक ऐसी मंडली का भाग रही,
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    जिसने केन्या और रवांडा में एक लाख पचासी हज़ार से अधिक किसानों को
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    सूखे के ख़िलाफ़ बीमा दिलवाई.
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    उनके पास औसतन आधे एकर की ज़मीन थी,
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    और उन्होंने औसतन दो यूरो का बीमा-किस्त (प्रीमियम ) चुकाया.
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    यह लघु-बीमा है.
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    अब, व्यावहारिक तौर पर चली आ रही बीमा-पद्धति तो
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    दो या तीन यूरो के बीमा-क़िस्त से तो नहीं चलेगी,
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    क्योंकि परम्परागत बीमा खेतों की जांच के दौरों पर निर्भर है.
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    यहां जर्मनी के किसान के यहां खेत की जांच के दौरे आते हैं,
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    ऋतु के आरम्भ में, मध्य में,
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    और अंत में, और फिर एक बार अगर नुकसान हुआ हो तो,
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    घाटे का जायज़ा लेने.
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    अफ्रीका के मध्य में एक लघु-स्तरीय किसान के मामले में,
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    ऐसे दौरों का हिसाब
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    संभाला नहीं जा सकता.
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    इसलिए इसके बदले, हम तकनीक और आंकड़ों का सहारा लेते हैं.
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    यह उपग्रह यह पता लगवाता है कि
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    बादल थे या नहीं,
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    क्योंकि, ज़रा सोचिये:
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    अगर बादल हैं, तो थोड़ी वर्षा हो सकती है,
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    लेकिन अगर बादल नहीं हैं,
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    तो वास्तव में वर्षा असंभव है.
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    यह तसवीरें केन्या में इस साल के
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    बारिश के मौसम की शुरुआत दिखाती हैं.
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    आप देख सकते हैं कि ६ मार्च के आस-पास,
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    बादल प्रवेश करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं,
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    और फिर ११ मार्च के आस-पास,
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    बादल सचमुच में आने लगते हैं.
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    वे, और वे बादल,
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    ही इस साल के बारिश के मौसम की शुरुआत हैं.
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    इस उपग्रह की दृष्टि पूरी अफ्रीका पर है
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    और इसके द्वारा सन १९८४ से लेकर के मौसम की जानकारी उपलब्ध है,
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    और यह बहुत अहम है, क्योंकि जब आप जानते हैं
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    कि किसी जगह में पिछले तीस सालों में
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    कितने बार सुखा पड़ा था,
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    तब आप काफी अच्छा अनुमान लगा सकते हैं
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    कि भविष्य में अकाल की संभावनाएं क्या हैं,
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    और इसका मतलब यह है कि आप सूखे की जोखिम को
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    आर्थिक हानि के रूप में तोल सकते हैं.
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    सिर्फ आँकड़े काफी नहीं हैं.
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    हम कृषि-शास्त्र पर आधारित संगणकीय कलन विधियों की युक्ति करते हैं,
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    जो हमें बताती हैं कि किसी फसल को कितने
    बारिश की ज़रुरत है और किस समय में.
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    मिसाल के तौर पर, मकई को बोते समय,
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    आपको दो दिन की बारिश चाहिए
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    ताकि किसान बो सकें,
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    और उसके बाद हर दो हफ्ते बारिश की ज़रुरत है
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    ताकि फसल ठीक से उगे.
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    उसके बाद, हर तीन हफ्ते में बारिश होनी चाहिए
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    ताकि फसल के पत्ते निकलें,
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    और कलियाने के समय, और अक्सर बारिश होनी चाहिए
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    लगभग १० दिन में एक बार, ताकि पसल में भुट्टे बन सके.
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    और ऋतु के अंत में,
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    आप असल में बारिश नहीं चाहेंगे,
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    क्योंकि तब बारिश फसल को नुक्सान पहुंचा सकती है.
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    ऐसे बीमा आवरण की रचना तो कठिन है ही,
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    मगर असली चुनौती यह निकली की बीमा को कैसे बेचा जाए.
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    बीमा को कैसे बेचा जाए.
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    हमने खुद के सामने बहुत ही सामान्य लक्ष्य रखे,
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    कि ५०० किसान बीमा द्वारा सुरक्षित हों, हमारी पहली ऋतु के बाद.
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    दो महीनों के ज़ोरदार विज्ञापन के बाद,
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    हमनें कुल-मिलाकर
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    १८५ किसान भरती करवाए थे.
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    मैं निराशा और असमंजस में थी.
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    सब मुझे बताते रहे कि किसान
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    बीमा चाहते हैं,
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    मगर हमारे प्रमुख ग्राहक तो खरीद ही नहीं रहे थे.
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    वे रुके थे यह देखने कि होता क्या है,
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    बीमा उद्योगों पर भरोसा नहीं करते थे,
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    या सोचते थे, "इतने सालों से तो मैं संभालता रहा.
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    अब क्यों मैं बीमा खरीदूंगा?"
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    अब आप में से काफी लोग लघु-उधार (micro-credit) से परिचित हैं,
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    जो गरीब लोगों को छोटे क़र्ज़ प्रदान करने की प्रक्रिया है
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    जिसका आविष्कार किया था मोहम्मद यूनुस ने,
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    जिन्होंने नोबेल शान्ति पुरस्कार जीता था
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    ग्रामीण बैंक के साथ अपने काम के लिए.
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    वास्तव में, लघु-उधार बेचना
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    और बीमा बेचना एक जैसी बातें नहीं हैं.
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    उधार के लिए, एक किसान को बैंक के भरोसे को कमाने की ज़रुरत है,
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    और अगर कामयाबी मिली, तो बैंक उसे अग्रिम राशि देगी.
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    यह एक आकर्षक प्रस्ताव है.
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    बीमा के लिए, किसान को बीमा निगम पर
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    भरोसा करना पड़ता है, और बीमा निगम को
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    अग्रिम राशि के रूप में पैसा देना पड़ता है.
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    यह बहुत अलग मूल्यों पर आधारित प्रस्ताव है.
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    और इसलिए बीमा का जमाव काफी धीमा रहा है,
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    जिसमें अब तक सिर्फ ४.४ प्रतिशत अफ्रीकियों ने
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    सन २०१२ में बीमा को अपनाया,
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    और इस संख्या में से आधे एक ही देश से हैं,
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    दक्षिण अफ्रीका.
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    हमनें कुछ साल
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    बीमा को सीधे किसानों को बेचने की कोशिश की,
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    जिसके विज्ञापन के खर्च बहुत ज़्यादा थे
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    और सफलता बहुत सीमित थी.
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    फिर हमारे ध्यान में आया कि ऐसे कई संगठन हैं
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    जो किसानों के साथ काम कर रहे थे,
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    जैसे बीज उद्योग, लघु-उधार संस्थाएं,
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    मोबाइल फ़ोन उद्योग,
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    सरकारी संस्थाएं.
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    वे सब किसानों को क़र्ज़ प्रदान कर रहे थे,
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    और अक्सर, क़र्ज़ को पक्का करने से ठीक पहले,
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    किसान कहते,
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    "मगर बारिश नहीं हुई तो?
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    आप कैसे उम्मीद रख सकते हैं कि मैं क़र्ज़ चुका पाऊंगा?"
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    ज़्यादातर संस्थाएं
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    जोखिम खुद ही उठाए थे,
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    और बस इस उम्मीद पर कायम थे,
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    कि उस साल की हालत सबसे बदतर नहीं होगी.
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    मगर ज़्यादातर संस्थाएं
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    कृषि-क्षेत्र में अपना विस्तार सीमित ही रख रहे थे.
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    वे ऐसे जोखिम उठा नहीं सकते थे.
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    यही संस्थाएं हमारे ग्राहक बने,
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    और जब उधार और बीमा का समावेश किया जाए,
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    तो दिलचस्प चीज़ें होने लगती हैं.
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    मुझे आप एक कहानी सुनाने दीजिये.
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    फ़रवरी २०१२ की शुरुआत में पश्चिम केन्या में,
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    बारिश शुरू हुई, और जल्दी शुरू हुई,
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    और जब बारिश जल्दी शुरू होती है, तो किसानों को बढ़ावा मिलता है,
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    क्योंकि आम तौर पर इसका मतलब यह है कि मौसम अच्छा होने वाला है.
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    इसलिए वे क़र्ज़ निकालकर बोए.
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    अगले तीन हफ़्तों में,
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    एक बूँद बारिश भी नहीं हुई,
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    और जो फसल इतनी अच्छी तरह उगे थे,
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    मुरझाकर मर गए.
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    हमने कर्ज़ों पर बीमा लागू की थी, उस लघु-उधार संस्था के
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    जिसने क़र्ज़ दिए थे
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    उस इलाके के ६००० किसानों को,
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    और हमने उन्हे फ़ोन करके कहा,
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    "देखिए, हमें सुखे के बारे में पता है.
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    हम आपका साथ देंगे.
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    हम आपको इस ऋतु के अंत में २००,००० यूरो देंगे."
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    उन्होंने कहा, "वाह, बढ़िया है,
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    मगर ऐसे तो बहुत देर हो जाएगी.
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    क्या आप हमें अभी पैसे दे सकते हैं?
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    अगर ऐसा हो, तो किसान अभी भी वापस बीज बो सकते हैं
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    और इस ऋतु की फसल पा सकते हैं."
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    इसलिए हमने अपने बीमा-साझेदारों को राज़ी करवाया,
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    और कुछ समय बाद उस अप्रैल में, इन किसानों ने पुनः बीजारोपण किया.
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    इस वापस बीज बोने के सुझाव को हम एक बीज उद्योग के पास ले गए,
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    और उन्हे मनवाया कि वे बीमा के दाम को
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    बीज के एक बोरे के दाम में जोड़ लें,
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    और हर एक बोरे में हमने जमा किया एक कार्ड
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    जिसमे एक अंक था,
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    और जब किसान वह कार्ड खुलवाते थे,
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    वे उस अंक को SMS द्वारा भेजते थे,
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    और वह अंक असल में हमारे काम आता
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    उस किसान के ठिकाने का पता लगाने में,
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    और उन्हें उपग्रह-चित्र के उचित बिंदु में दर्ज करने में.
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    एक उपग्रह फिर आनेवाले तीन हफ़्तों की
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    वर्षा का अनुमान करता,
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    और अगर बारिश नहीं हुई,
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    तो हम उन्हें नए बीज मुआवज़े में दे देते थे.
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    पहले ही के कुछ ---
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    (तालियां) --- ज़रा रुकिए, मैं आखिर तक नहीं पहुँची!
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    इस पुनः बीजारोपण आश्वासन के पहले लाभ-भोगियों में से
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    एक थे बॉस्को म्विन्यि.
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    हमने उनके खेत का दौरा किया उसी अगस्त में कुछ समय बाद,
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    और काश मैं आपको उनके चहरे की मुस्कान दिखा पाती
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    जब उन्होंने हमें अपनी फसल दिखाई,
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    क्योंकि यह मुस्कान मेरे दिल को छू गयी
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    और मुझे यह एहसास दिलवाई कि बीमा बेचना
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    कितनी अच्छी चीज़ हो सकती है.
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    मगर आप देखिए, उन्होंने आग्रह किया कि
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    हम उनके पूरे फसल को तस्वीर में लाएं,
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    और इसलिए हमें काफी दूर से तस्वीर खींचनी पडी.
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    इस ऋतु में बीमा ने उनके फसल को सुरक्षित रखा,
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    और मैं मानती हूँ कि आज,
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    हमारे पास सभी साधन हैं जिनके सहयोग से अफ़्रीकी किसान
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    खुद के तक़दीर के मालिक बन सकते हैं.
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    फिर कभी 'कटोरे-वाले साल' नहीं आने चाहिए.
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    उसके बदले मैं, राह देख रही हूँ, किसी तरह,
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    'बीमा-वाले साल' की,
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    या 'शानदार फसल-वाले साल' की.
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    धन्यवाद.
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    (तालियां)
Title:
फसल बीमा, एक बोने-लायक संकल्प
Speaker:
रोस गॉस्लिंगा
Description:

अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान तले पूरे इलाके में, लघु-स्तरीय किसान ही वहां के स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्थाओं के आधार-शैल हैं - जब तक मौसम अविश्वसनीय होकर उनके फसल बिगड़ न जाए. इसका समाधान है बीमा, एक विशाल महाद्वीपी स्तर पर, और एकदम काम सस्ते दामों में. रोस गॉस्लिंगा, जो केन्या की नागरिक हैं, और उनकी मंडली ने एक अपरम्परागत प्रक्रिया का आविष्कार किया है जिससे उन किसानों को, जिनके फसल का जल्दी नुक्सान हुआ हो, एक दोबारा मौका मिले उपज के मौसम में.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
10:04
  • A fellow-translator, Nishant Mishra, was kind enough to review the translation informally and some edits he suggested were made here: https://docs.google.com/document/d/1xX_lprkV33INj-CNtlFlz_jutqqhfPTvvvI-fAGHSGI/edit
    Do consider incorporating those if found suitable and convenient.

Hindi subtitles

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