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आर्ट पीटीएसडी के अदृश्य घावों का मरहम हो सकती है

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    आप सेना में सीनियर अफ़सर हैं
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    और आपकी अफग़ानिस्तान में पोस्टिंग है.
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    आप पर ज़िम्मेदारी है
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    सैकड़ों लोगों को सुरक्षित रखने की,
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    और आपके ठिकाने पर हमला हो गया है.
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    आपके आसपास बम और गोले फट रहे हैं.
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    आप धुएँ और धूल में घिरे देखने समझने
    की कोशिश कर रहे हैं,
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    आप अपने घायल सहायक की
    हर सम्भव मदद कर रहे हैं
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    और नज़दीक के बंकर तक घिसटते
    हुए पहुँचते हैं.
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    आप होश में है मगर बुरी तरह हिले हुए हैं,
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    आप एक करवट लेटते हैं
    और जो हुआ उसे समझने की कोशिश करते हैं.
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    जब आपको दिखना शुरू होता है,
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    आप खून से सना एक चेहरा देखते हैं,
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    जो आपको घूरता है.
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    ये आतंकित कर देने वाला दृश्य है,
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    मगर आप तुरत ख़ुद को बताते हैं
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    कि ये सच नहीं महज़ एक छलावा है.
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    यही ख़ूनी चेहरा आपको जागते सोते
    बार बार दिखता है.
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    आप ये किसी को नहीं बताते
    अपनी नौकरी खोने के डर से
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    या कमजोर समझे जाने के डर से.
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    आपने इस चेहरे का एक नाम रखा है,
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    बंकर वाला खूनी चेहरा
    (Bloody Face in Bunker)
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    और उसे शॉर्ट में बी.एफ.आई.बी. कहते हैं.
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    आपके अंदर छुपा बी.एफ.आई.बी.
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    आपको परेशान करता है,
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    अगले सात साल तक.
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    अब अपनी आँखे बंद कीजिए.
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    क्या आपको BFIB दिखा?
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    अगर हाँ, तो आप देख रहे हैं
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    युद्ध के उन अदृश्य घावों को,
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    जिन्हें अक्सर कहा जाता है
    पोस्ट-ट्रॉमैटिक-स्ट्रेस-डिसॉर्डर
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    या ट्रोमेटिक ब्रेन इंजरी.
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    हालाँकि मुझे पोस्ट-ट्रॉमैटिक-
    स्ट्रेस-डिसॉर्डर नहीं है,
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    मैं उस से अनजान भी नहीं हूँ.
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    जब मैं छोटी थी, मैं गर्मियों में
    अपने दादा-दादी के पास जाती थी.
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    अपने दादा को देख कर
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    मुझे पता लगा
    मन पर युद्ध के प्रभावों का.
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    मेरे दादा कोरियन लड़ाई में
    बतौर मरीन शरीक हुए,
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    एक गोली ने उनकी गर्दन को चीर कर
    उनके चीखने की क़ाबलियत को ख़त्म कर दिया.
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    वो देखते रहे जब एक साथी ने
    उन्हें अनदेखा कर दिया,
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    उन्हें मरा समझ कर,
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    वही मरने के लिए छोड़ दिया गया.
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    सालों बाद, जब उनके शारीरिक
    घाव भर चुके थे और
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    वो घर वापस आ चुके थे,
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    वो जागते समय कभी अपने इन
    अनुभवों को याद नहीं करते थे.
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    लेकिन रात को मैं उन्हें
    ज़ोर ज़ोर से गालियाँ देते सुनती थी
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    अपने कमरे के भीतर से.
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    और दिन में भी, उनके कमरे में
    बता के ही जाती थी,
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    कि कहीं वो चौंक न जाएँ.
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    उन्होंने जीवन के बाक़ी दिन
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    अलग-थलग और होंठ सी कर बिताए,
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    अपने को व्यक्त करने के तरीक़ों के बिना,
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    और मेरे पास उनकी मदद करने
    के कोई रास्ते नहीं थे,.
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    मेरे पास उनकी इस हालत के
    लिए कोई नाम भी नहीं था.
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    जब तक कि मैं बीस साल की न हुई.
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    आर्ट थेरपी में ग्रैजूएट डिग्री करते वक्त,
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    मेरा झुकाव सदमों की
    तरफ़ हुआ.
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    और जब क्लास में पोस्ट-ट्रॉमैटिक
    -स्ट्रेस-डिसॉर्डर के बारे में सीखा,
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    या शॉर्ट में PTSD
    (पी.टी.एस.डी.)
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    तो मेरे दादा जैसे फ़ौजियों की मदद
    का मेरा जज़्बा
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    बनता चला गया.
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    सदमे से होने वाले तनाव के लिए
    हमारा पास कई नाम रहे हैं
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    युद्ध के लम्बे इतिहास में:
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    घर की याद सताना,
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    सैनिक का घायल दिल,
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    धमाके का झटका,
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    हज़ार मील पर टिकी नज़र,
    उदाहरण के लिए.
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    और जब मैं डिग्री कर रही थी,
    एक नयी लड़ाई शुरू हो रही थी,
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    और आधुनिक कवच और
    नयी नयी मिलिटरी गाड़ियों के चलते,
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    लोग ऐसे भयंकर धमाकों में भी ज़िंदा बच
    रहे थे जिनमे पहले वो शर्तिया मारे जाते.
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    मगर उनके अदृश्य घाव भयानक
    स्तर पर घातक और मारक हो रहे थे,
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    और इसने मिलिटरी के डॉक्टर और
    शोधकर्ताओं को मजबूर किया कि वो
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    सच में ये ट्रोमेटिक ब्रेन इंजरी (TBI) को
    जानने समझने की कोशिश करें,
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    और दिमाग़ पर PTSD के असर को.
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    तकनीक और मेडिकल इमेजिंग
    में हुए विकास के कारण
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    हम अब समझते हैं की
    सदमा "ब्रोका" को शिथिल कर देता है
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    यानी दिमाग़ का उस हिस्से को जो भाषा
    और बोलने को नियंत्रित करता है.
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    शारीरिक संरचना में हुआ ये बदलाव,
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    जिसे अक्सर स्पीच-लेस टेरर कहते हैं,
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    साथ में मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक,
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    और भेदभाव के शिकार होने का डर,
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    या ग़लत समझे जाने का भय,
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    और साथ ही,
    नौकरी खोने की सम्भावना,
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    मिल कर हमारे मिलिटरी के स्त्री-पुरुषों को
    एक अदृश्य लड़ाई में अकेले झोंक देती है.
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    मिलिटरी वालों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी
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    चुप्पी की आदर ओढ़ कर
    बिना अपने अनुभव बताए ज़िंदगी बसर की है,
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    और अकेलेपन को झेला है.
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    मेरे पहली नौकरी में मेरा काम था
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    देश के सबसे बड़े मिलिटरी मेडिकल सेंटर
    पर आर्ट थेरपिस्ट के रूप में रहना,
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    वॉल्टर रीड सेंटर पर.
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    कुछ साल मनोचिकित्सा के
    लाक्ड-इन विभाग में काम के बाद,
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    मैं NICoE में ट्रांसफ़र हो गयी
    नेशनल इंट्रेपिड सेंटर ओफ़ एक्सलेन्स में,
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    जो TBI से जूझते कार्यरत फ़ौजियों की
    देखभाल करता है,
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    मेरा आर्ट थेरपी में अटूट विश्वास था,
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    लेकिन मुझे फ़ौजियों को
    इस के लिए राज़ी करना था,
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    मज़बूत, लहीम-सहीम,
    मर्दाना मिलिटरी वालों को
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    और कुछ ऐसी ही औरतों को भी,
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    कि वो आर्ट बनाने को
    एक थेरपी के रूप में इस्तेमाल कर के देखें.
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    और उस के नतीजे किसी
    चमत्कार से कम नहीं थे.
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    जीवंत और असलियत बयान करती आर्ट
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    अब फ़ौजी पुरुष और महिलाएँ
    बनाते हैं,
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    और हर आर्ट का काम एक कहानी बयान करता है.
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    हमने ये पाया है कि आर्ट हमें
    उस अड़चन से बचती है
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    जो भाषा और बोलचाल की
    कमी से पैदा होती है.
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    आर्ट बनाना दिमाग़ के ठीक उस हिस्से को
    प्रभावित करता है जो सदमे को याद रखता है.
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    फ़ौजी आर्ट बना कर अपने अनुभवो का
    का धीरे-धीरे सामना करते हैं
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    एक सुरक्षित माहौल में.
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    फिर वो अपनी बनायी आर्ट में
    शब्द भी जोड़ सकते हैं
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    जिससे दिमाग़ के दाएँ और बाँए हिस्से
    फिर से साथ काम करना शुरू करते हैं.
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    ये असर हम हर तरह की
    कला में देख सकते हैं --
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    रेखाचित्र, पेंटिंग, कोलाज़ --
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    मगर सबसे ज़्यादा असरदार रहा है
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    मुखौटे बनाना.
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    क्योंकि इन अदृश्य घावों का
    अक्सर कोई नाम नहीं होता है,
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    बस चेहरे होते हैं.
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    और जब फ़ौजी
    इन मुखौटों को तैयार करते हैं,
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    उन्हें अपने सदमे का सामना
    करने के तरीक़े मिलते हैं.
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    ये अद्भुत है कि अक्सर वो
    ऐसा कर पाते हैं कि
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    सदमे से आगे बढ़ कर
    ख़ुद को संजोएँ.
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    BFIB याद है?
    खूनी चेहरा?
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    वो मेरे एक मरीज़ का
    वास्तविक अनुभव था,
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    और जब उसने मुखौटा बनाया,
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    वो उस खूनी चहरे को छोड़ कर
    आगे बढ़ सका
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    शुरूवात में, ये मेरे फ़ौजी मरीज़
    के लिए बहुत कठिन था,
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    लेकिन धीरे धीरे वो उस खूनी चेहरे
    को एक मुखौटे की तरह देखने लगे,
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    न कि अपने अदृश्य घाव की तरह,
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    और जब वो मुझसे मिल कर जा रहे होते थे,
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    वो मुझे मास्क देते हुए कहते थे,
    "मलिसा, इस का ख़्याल रखना."
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    धीरे धीरे, हम ने उस खूनी चेहरे को
    एक बक्से में गिरफ़्तार कर दिया,
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    और जब वो NiCOe से गए,
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    वो उसे खूनी चेहरे को पीछे छोड़ गए.
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    अगले एक साल में, उन्हें वो खूनी
    चेहरा सिर्फ़ दो बार दिखा
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    और दोनो बार वो मुस्करा रहा था
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    और मेरे मरीज़ को उस से
    परेशानी नहीं हुई.
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    अब तो उन्हें जब भी पुराने अनुभव से
    कोई परेशानी होती है,
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    वो पेंटिंग में अपने को रमा लेते हैं.
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    हर बार जब वो किसी
    डरावनी याद की पेंटिंग कर देते हैं,
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    वो उन्हें दिखना कम या बंद हो जाती हैं.
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    फ़िलोसोफ़रो हमें हज़ारों सालों
    से बता रहे हैं कि
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    रचनात्मकता की शक्ति का
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    विध्वंस करने के शक्ति से बहुत
    क़रीबी रिश्ता है.
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    अब साइंस भी बताता है
    कि दिमाग़ का जो हिस्सा
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    सदमे को याद रखता है
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    वही हमें फिर से स्वस्थ रूप में
    गढ़ता है.
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    और आर्ट थेरपी हमें इस जोड़ को बनाने
    के तरीक़े दे रही है.
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    हमें अपने एक फ़ौजी से पूछा कि
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    मुखौटे बनाने ने उनके इलाज़ में
    क्या असर डाला,
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    और उन्होंने कहा,
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    फ़ौजी:
    आप बस इस मुखौटे में तल्लीन हो जाते हैं.
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    इसे बनाने में खो जाते हैं.
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    ये मुझे अपनी रुकावटों से आगे ले गया,
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    और इसलिए मैं उसे बना सका.
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    और फिर जब दो दिन बाद
    मैंने उस मुखौटे को देखा, तो मुझे लगा,
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    "हे भगवान, यही तस्वीर तो है,
    यही इस पहेली की चाबी है,"
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    और वहाँ से बस मैं आगे बढ़ता गया.
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    मतलब, वहाँ से, जहां मैं ठीक होने के
    बारे में सोच भी नहीं सकता था ,
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    क्योंकि वहाँ वो कहते थे
    कर्ट!, फिर क्या हुआ? बताओ!.
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    और 23 साल में पहली बार,
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    मैंने असल में खुल कर इस अनुभव
    पर किसी से भी बात कर सकता हूँ.
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    मैं इस क्षण भी आपसे
    उस बारे में बात कर सकता हूँ,
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    क्योंकि अब वो पहेली नहीं रही.
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    ये आश्चर्यजनक है.
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    इसने 23 साल पुराने मेरे PTSD
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    और TBI को ऐसी जगह पहुँचाया है
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    जहां से लगता है कि ये कभी हुआ ही नहीं.
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    माफ़ कीजिए!
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    मेलिसा: पिछले पाँच साल में,
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    हमने 1000 से भी ज़्यादा मुखौटे बनाए हैं,
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    ये बहुत सुखद है, है ना?
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    धन्यवाद.
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    (तालियाँ)
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    काश मैं अपने दादा के साथ भी
    आर्ट थेरपी का काम कर पाती,
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    मगर मुझे पता है कि वो खुश होंगे
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    कि हम नए तरीक़े निकाल रहे हैं
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    आज के और भविष्य के
    फ़ौजियों के इलाज़ के लिए,
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    और ख़ुद उनके अंदर की ताक़त का इस्तेमाल
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    कर के उन्हें ख़ुद को
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    स्वयं ठीक करने के तरीक़े.
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    धन्यवाद.
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    (तालियाँ)
Title:
आर्ट पीटीएसडी के अदृश्य घावों का मरहम हो सकती है
Speaker:
मेलिसा वॉकर
Description:

रचनात्मक आर्ट थेरपिस्ट मलिसा वॉकर कहती हैं की सदमा लोगों को चुप्पी की चारदीवारी में क़ैद कर देता है मगर आर्ट लोगों को युद्ध में हुए तमाम अदृश्य मानसिक घावों से बरी कर सकती है. इस प्रेरित करने वाले टॉक में, वो बताती हैं कि मुखौटे बनाने की कला ने कैसे फ़ौजी पुरुषों और महिलाओं को अपने घावों का सामना करने की ताक़त दी - और उन से निज़ात दिलवायी.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
09:48
Abhinav Garule approved Hindi subtitles for Art can heal PTSD's invisible wounds
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for Art can heal PTSD's invisible wounds
Vatsala Shrivastava accepted Hindi subtitles for Art can heal PTSD's invisible wounds
Vatsala Shrivastava edited Hindi subtitles for Art can heal PTSD's invisible wounds
Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for Art can heal PTSD's invisible wounds

Hindi subtitles

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