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कॉलेज डिग्री जो आपके पहुँच मे हो

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    मैं आप को बताना चाहता हूँ
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    उच्च शिक्षा का एक नया मॉडल,
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    ऐसा मॉडल जिसे बढावा मिले
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    तो वो उन तमाम लोगों की समझ को बढा सकता है
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    उन लाखों रचनात्मक और धुनी लोगों की समझ को
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    जो इस मॉडल के बिना पीछे छूट जायेंगे।
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    एक नज़र दुनिया पर डालिये।
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    कोई भी जगह चुन कर उसे ध्यान से देखिये।
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    आपको उच्च शिक्षा के लिये बेताब लोग मिलेंगे।
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    आइये उन में से कुछ से मुलाकात करें।
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    पैट्रिक।
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    पैट्रिक का जन्म लाईबेरिया में हुआ
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    २० बच्चों के परिवार में।
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    गृह युद्ध के दौरान, उन्हें और उनके परिवार को
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    भाग कर नाइजीरिया जाना पडा।
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    वहाँ, अपने हालातों के बावज़ूद,
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    उन्होंने हाई-स्कूल लगभग पूरे अंकों से पास किया।
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    वो अपनी शिक्षा जारी रख कर उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे,
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    मगर अपने परिवार के चलते,
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    जो कि गरीबी में डूबा था,
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    उन्हें जल्द ही दक्षिणी अफ़्रीका भेज दिया गया
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    कि जाओ, कमाओं, और पैसे भेजो
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    जिस से घर परिवार की रोटी चले।
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    पैट्रिक ने उच्च शिक्षा के अपने सपने को कभी नहीं छोडा।
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    काम के बाद, देर रात
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    उन्होंने इंटरनेट पर पढाई करने के तरीकों को ढूँढा।
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    डेबी से मिलिये।
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    डेबी फ़्लोरिडा की हैं।
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    उनके माता-पिता कभी कॉलेज नहीं गये,
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    और न ही उन के भाई-बहन।
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    डेबी ने सारी ज़िंदगी काम किया,
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    टैक्स भरे, और महीने दर महीने अपना खर्च चलाया,
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    अपने अमेरिकन ड्रीम के साथ जीते हुए,
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    ऐसा सपना जो कभी भी साकार नही होता
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    बिना उच्च शिक्षा के।
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    मगर डेबी कभी इतनी बचत नहीं कर सकीं
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    कि उच्च शिक्षा की कीमत चुका सकें।
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    वो फ़ीस देने में सक्षम नहीं थीं।
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    न ही वो अपनी महीने दर महीने की कमाई छोड सकती थीं।
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    वाएल से मिलिये।
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    वायल सीरिया से हैं।
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    उन्होंने करीबी से महसूस किया है
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    उस बेचारगी, डर और नाकामयाबी को,
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    जो उन के देश पर लाद दी गयी।
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    वो शिक्षा में गहरा विश्वास रखते हैं।
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    उन्हें पता था कि अगर उन्हें मौका मिले
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    उच्च शिक्षा ग्रहण करने का,
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    जीवन में आगे बढने का,
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    तो वो ज्यादा सक्षम होंगे
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    इस दुनिया के उतार-चढाव झेलने में।
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    उच्च शिक्षा के मौजूदा मॉडल ने
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    पैट्रिक, डेबी और वाएल को केवल निराश ही किया
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    ठीक वैसे ही जैसे कि
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    वो और लाखों होनहार छात्रों को निराश करता है।
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    लाखों लोग जो हाई स्कूल पास कर लेते है,
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    वो लाखों जिन्हें उच्च शिक्षा पाने का हक़ है,
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    वो लाखों जो आगे पढना चाहते हैं
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    मगर तमाम कारणों से नहीं कर सकते।
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    पहला कारण, पैसे की कमी।
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    हम सब जानते हैं कि यूनिवर्सिटी जाना किस कदर महँगा है।
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    दुनिया के ज्यादातर भागों में,
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    उच्च शिक्षा लगभग नामुमकिन ही है
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    एक आम आदमी के लिये।
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    ये शायद सबसे बडी समस्या है
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    हमारे समाज और दुनिया की।
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    उच्च शिक्षा सबका मौलिक अधिकार होने के बजाय
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    सिर्फ़ कुछ ही लोगों का विषेशाधिकार या बपौती बन चुकी है।
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    दूसरा कारण, सामजिक रूढियाँ
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    वो छात्र जो कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने लायक हैं,
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    खर्चा उठा सकते हैं, पढना चाहते है, वो भी नहीं कर सकते
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    क्योंकि ये उन के समाज की रीति नहीं हैं,
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    औरतों के लिये "उचित" नहीं है।
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    अनगिनत औरतों की यही कहानी है
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    अफ़्रीका में, मिसाल के तौर पर,
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    कि उन्हें उच्च शिक्षा से दूर रखा जाता है
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    क्योंकि सामाजिक तौर पर इसका रिवाज़ नहीं हैं।
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    और तीसरा कारण सुनिये:
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    यूनेस्को के अनुसार, सन 2025 में,
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    दस करोड छात्र
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    उच्च शिक्षा पाने से वंचित रह जायेंगे
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    सिर्फ़ इस लिये कि कॉलेजों में इतनी सीटें ही नहीं होंगी कि
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    उन सबको मौका दिया जाये।
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    वो प्रवेश परीक्षा देंगे,
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    वो प्रवेश परीक्षा पास भी कर लेंगे,
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    मगर फिर भी उन्हें मौका नहीं मिलेगा
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    क्योंकि इतनी जगह ही नहीं होगी।
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    यही वो कारण हैं कि
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    मैने यूनिवर्सिटी ऑफ़ पीपल की स्थापना की।
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    ये एक एनजीओ है - बिना कोई फ़ीस लिये
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    बाकायदा डिग्री देने वाली यूनिवर्सिटी,
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    जो एक रास्ता देती है
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    उन लोगों को जिनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है,
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    ऐसा रास्ता जो उनकी जेब के हिसाब से है
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    और जिसका विस्तार हो सकता है।
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    ऐसा हल जो कि हिला देगा
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    आज की शिक्षा व्यवस्था को,
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    और उच्च शिक्षा के दरवाज़े खोल देगा
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    हर सुयोग्य विद्यार्थी के लिये,
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    चाहे वो कितना भी कम कमाते हों , या दूर-दराज़ में रहते हों,
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    या फ़िर उनके समाज की रूढियाँ उन्हें रोकती हों।
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    पैट्रिक, डेबी और वाएल
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    ऐसे तीन उदाहरण हैं
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    उन 1700 चुने हुये विद्यार्थियों में से,
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    जो 143 विभिन्न देशों से आये हैं
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    हम --- (तालियाँ) ---धन्यवाद
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    हमें शुरुवात से कुछ नया बनाने की ज़रूरत नहीं पडी।
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    हमने देखा कि क्या चीज़ें काम नहीं कर रही हैं
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    और हम इंटरनेट की खूबियों का इस्तेमाल करके
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    कैसे उन्हें ठीक कर सकते हैं।
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    हम एक ऐसा मॉडल बनाने निकले
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    जो कि पैसे की ज़रूरत को खत्म कर देगा
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    उच्च शिक्षा पाने के लिये,
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    और वही हमने किया।
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    पहली बात ये कि बडी आलीशान बिल्डिंगों में बहुत धन लगता है।
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    ऐसे विश्व-विद्यालयों के बडे ऐसे खर्चे होते हैं
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    जो इंटरनेट-यूनिवर्सिटी में नहीं होते।
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    इसलिये हमें इन खर्चों के इंतज़ाम के लिये
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    विद्यार्थियों पर बोझ नहीं डालना पडता है।
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    क्योंकि वो खर्चे होते ही नहीं हैं।
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    हमें सीमित सीटों की संख्या से नहीं जूझना पडा
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    क्योंकि सीटों की कोई सीमा ही नहीं है
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    इंटरनेट-यूनिवर्सिटी में।
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    और तो और, किसी को भी
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    लेक्चर हॉल के पीछे वाली सीट पर नहीं बैठना पडता है,
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    पाठ्य-पुस्तकों को खरीदने की भी ज़रूरत
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    हमारे छात्रों को नहीं होती।
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    मुक्त रूप से उपलब्ध शिक्षा-साधनों के इस्तेमाल से,
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    और उन प्रोफ़ेसरों की दरिया-दिली से,
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    जो अपने ज्ञान और शिक्षा-सामग्री को
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    मुफ़्त में बाँटने को तैयार है,
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    हमे अपने विद्यार्थियों को पुस्तकें खरीदने के लिये बाध्य नहीं करना होता।
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    हमारी सारी पाठ्य-सामग्री मुफ़्त में मिलती है।
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    यहाँ तक कि प्रोफ़ेसर भी,
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    जो कि किसी भी यूनिवर्सिटी के खर्चे का सबसे बडा हिस्सा होते है,
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    हमारे छात्रो को मुफ़्त पढाने को राज़ी हैं,
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    अब तक करीब 3000 प्रोफ़ेसर जुड चुके हैं।
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    प्रेसीडेंट, वाइस-चांसलर,
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    प्रोफ़ेसर और अकादमिक सलाहकार
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    विश्व-स्तर यूनिवर्सिटियों से जैसे एन.वाई.यू (न्यू यार्क वि.वि.)
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    येल, बर्कली और ऑक्सफ़ोर्ड
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    से आ कर हमारे छात्रो की मदद के लिये तैयार हैं।
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    और सबसे बडी बात कि हम एक-दूसरे से सीखने में विश्वास रखते हैं।
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    हमे इस दुरुस्त भरपूर शैक्षणिक मॉडल का प्रयोग करते है
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    दुनिया भर के छात्रों को बढावा देने के लिये
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    कि वो साथ पढे और एक दूसरे से सीखें
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    और उस अवधि को कम करें
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    जो कि हमारे प्रोफ़ेसरों को गॄह-कार्य जाँचनें में लगानी पडती है।
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    जहाँ इंटरनेट ने दुनिया को एक गाँव बना दिया है,
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    वहीं ये मॉडल से भविष्य के कर्णधारों का विकास करेगा।
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    आइये देखें हम क्या करते हैं।
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    हम केवल दो ही डिग्री करवाते हैं:
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    बिजेनेस की और कमप्यूट्रर विज्ञान की।
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    ये वो दो डिग्रियाँ
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    जिनकी दुनिया में सबसे ज्यादा माँग है।
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    इन दो डिग्रियाँ को पाने पर
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    छात्रो की रोज़गार संभावना अधिकतम हो जाती है
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    एड्मिशन के बाद हमारे छात्रो को
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    एक छोटे क्लास में डाला जाता है
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    करीब 20 से 30 छात्रों का, जिस से कि
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    सब पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जा सके।
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    साथ ही, हर नौं हफ़्तों के कोर्स के बाद,
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    उन्हें एक नया साथी मिलता है,
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    छात्रो का एक बिलकुल नया ग्रुप
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    जो सारी दुनिया से आता है।
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    हर हफ़्ते, जब वे क्लास जाते हैं,
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    उन्हें उस हफ़्ते के लेक्चर की सामग्री मिल जाती है,
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    उनके गृह-कार्य और पाठ्य-सामग्री समेत,
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    विमर्श हेतु प्रश्न भी,
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    जो कि हमारी पढाई का मुख्य भाग होता है।
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    हर हफ़्ते, हर छात्र को
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    क्लास के इस विचार-विमर्श में भाग लेना ही पडता है,
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    और अपनी विचार बताने होते है,
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    साथ ही दूसरों के विचारों पर प्रतिक्रिया भी।
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    इस तरह, छात्रों की सोच का विस्तार होता है,
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    उनके मिजाज़ में सकारत्मकता आती है
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    अलग अलग विचारधाराओं के प्रति।
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    हफ़्ते के अंत तक,
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    छात्रों को एक छोटी परीक्षा देनी होती है,
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    अपना गृह-कार्य जमा करना होता है,
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    जो कि उनके साथियों द्वारा जाँचा जाता है
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    नियुक्त शिक्षकों के मार्ग-दर्शन में,
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    उन्हें ग्रेड मिलते है, और अगला हफ़्ता शुरु होता है।
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    कोर्स के अंत में वो एक फ़ाइनल परीक्षा देते हैं,
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    उन्हें ग्रेड मिलते है, और फिर अगला कोर्स शुरु होता है।
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    हमने उच्च शिक्षा के दरवाज़े खोल दिये हैं
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    हर विद्यार्थी के लिये जो उस के लायक है।
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    हर वो विद्यार्थी जो स्कूल उत्तीर्ण कर चुका है,
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    जिसे ज़रूरी अँग्रेज़ी आती है, और जिसके पास इंटरनेट है,
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    हमारे साथ पढ सकता है।
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    हम ऑडियो इस्तेमाल नहीं करते, वीडियो भी नहीं।
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    ब्रॉड-बैड भी ज़रूरी नहीं है।
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    दुनिया मे कहीं से भी, कोई भी छात्र
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    किसी भी तरह के इंटरनेट कनेक्श्न से
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    हमारे साथ पढ सकता है।
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    हम फ़ीस नहीं लेते।
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    हम अपने छात्रों से बस इतना चाहते हैं
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    कि वो परीक्षा का खर्चा वहन करें,
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    जो कि प्रति परीक्षा 100 डालर है।
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    फ़ुल टाइम बैचलर-डिग्री के छात्र
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    को 40 कोर्स लेने होगें,
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    और करीब प्रति वर्ष 1000 डॉलर खर्च करने होंगे,
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    पूरी डिग्री की कीमत करीब 4000 डॉलर होगी।
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    और जो इसका वहन भी नहीं कर सकते,
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    उन्हें हम कई प्रकार की छात्र-वृत्ति (स्कालरशिप)भी देते हैं।
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    ये हमारा लक्ष्य है कि कोई भी वंचित न रह जाये
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    सिर्फ़ पैसे की कमी के कारण।
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    2016 तक हम करीब 5000 छात्रों तक पहुँच चुके होंगे,
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    और ये मॉडल वाणिज्यिक रूप से भी सक्षम(फ़ायनेंशियली कामयाब) हो जायेगा
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    पाँच साल पहले, ये सिर्फ़ एक ख्वाब था।
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    आज ये एक सच्चाई है।
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    पिछले हफ़्ते, हमें अपने काम
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    का सबसे बडा इनाम मिला।
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    यूनिवर्सिटी ऑफ़ पीपल अब पूरी तरह से मान्यता-प्राप्त है।
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    (तालियाँ)
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    धन्यवाद
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    इस मान्यता-प्राप्ति के साथ ही
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    तेज़ी से विस्तार का समय आ गया है।
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    हमने ये दिखा दिया है कि ये मॉडल काम करता है।
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    मैं आमंत्रण देता हूँ यूनिवर्सिटियों को, और उस से भी ज्यादा,
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    विकासशील देशों की सरकारों को,
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    कि इस मॉडल को अपने यहाँ अपनायें
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    जिस से कि उच्च शिक्षा के द्वार
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    सभी के लिये खुलें।
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    एक नया ज़माना आ रहा है।
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    ऐसा ज़माना जो गवाह होगा
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    भारी बदलाव का, उच्च शिक्षा के मॉडल में
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    जैसा कि वो आज है।
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    केवल कुछ ही लोगों के लिये उपलब्ध अधिकार की जगह
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    उस के एक मौलिक अधिकार में बदलने का समय,
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    सबके लिये उपलब्ध और सब के बजट में उप्लब्ध होने का।
  • 10:30 - 10:32
    धन्यवाद।
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    (तालियाँ)
Title:
कॉलेज डिग्री जो आपके पहुँच मे हो
Speaker:
शाई रेशेफ़
Description:

इंटरनेट आधारित "यूनिवर्सिटी ऑफ़ पीपल" हर उस व्यक्ति को, जो कि स्कूल से उत्तीर्ण हो चुका है, बिज़नेस या कम्प्यूटर साइंस की डिग्री अर्जित करने के लिये क्लासे करने का मौका देती है -- बिना किसी ट्यूशन फ़ीस के, (परीक्षा शुल्क लगता है)। इस के संस्थापक, शाई रेशेफ़, उम्मीद रखते है कि उच्च शिक्षा केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार होने के बजाय सबका मौलिक अधिकार बनेगी - सब को उपलब्ध और सबके बजट के भीतर।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
10:52
Gaurav Gupta approved Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Omprakash Bisen accepted Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Omprakash Bisen edited Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Omprakash Bisen edited Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Omprakash Bisen edited Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree
Swapnil Dixit edited Hindi subtitles for An ultra-low-cost college degree

Hindi subtitles

Revisions