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सुगाता मित्रा (Sugata Mitra) के स्वयं-शिक्षण में नए प्रयोग

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    यह कथन अपने आप में स्पष्ट है.
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    मैंने इस कथन से शुरुआत कुछ 12 साल पहले की थी,
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    और शुरुआत की थी
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    विकासशील देशों में,
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    पर आप लोग दुनिया के हर एक कोने से यहाँ आये हैं.
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    अगर आप अपने देश के मानचित्र को देखेंगे,
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    तो ये पायेंगे कि
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    धरती पर हर एक देश के लिए,
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    आप छोटे-छोटे क्षेत्र चुन सकते हैं,
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    "ये वो क्षेत्र हैं जहाँ अच्छे शिक्षक नहीं जाते."
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    ऊपर से,
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    ये ऐसी जगह हैं जहाँ अपराध पनपता है.
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    तो यह एक व्यांगिक समस्या है.
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    अच्छे शिक्षक उन्ही जगहों पर
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    नहीं जाना चाहते जहाँ उनकी ज़रुरत सबसे ज़्यादा है.
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    1999 में मैंने
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    एक प्रयोग द्वारा इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की,
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    जो बहुत ही साधारण सा प्रयोग था नई दिल्ली में.
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    मैंने नई दिल्ली की एक झोपड़-पट्टी में
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    दीवार में एक कंप्यूटर जड़वा दिया.
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    यहाँ के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे. उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी.
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    उन्होंने पहले कभी कंप्यूटर नहीं देखा था,
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    और उन्हें ये भी नहीं पता था कि इंटरनेट क्या होता है.
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    मैंने उसे उच्चतम इन्टरनेट से जोड़ दिया -- ये ज़मीन से लगभग तीन फीट ऊपर है --
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    कंप्यूटर चलाया और वहीँ छोड़ दिया.
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    इसके बाद,
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    हमने कुछ दिलचस्प चीज़ें देखी, जो आप भी देखेंगे.
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    पर मैंने इसे पूरे भारत में दोहराया
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    और उसके बाद
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    विश्व के एक बड़े हिस्से में,
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    और यह निष्कर्ष निकाला कि
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    बच्चे वो चीज़ें सीख जायेंगे
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    जो वो सीखना चाहते हैं.
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    यह हमारा पहला प्रयोग था --
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    आपके दाहिने ओर एक 8 साल का लड़का
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    एक 6 साल की लड़की को
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    browse (ब्राउस) करना सिखा रहा था.
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    यह मध्य भारत का लड़का --
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    राजस्थान के एक गाँव में,
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    यहाँ बच्चों ने अपना खुद का संगीत रिकॉर्ड किया
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    और उसे एक दूसरे को सुनाया,
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    और इस प्रक्रिया में,
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    बच्चों ने खूब मजे लिए.
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    उन्होंने ये सब केवल चार घंटों में कर लिया,
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    वो भी कंप्यूटर को पहली बार देखने के बाद.
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    दक्षिण भारत के एक और गाँव में,
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    इन लड़कों ने
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    एक विडियो कैमरा जोड़ लिया
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    और एक मधुमक्खी की तस्वीर लेने की कोशिश कर रहे थे.
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    उन्होंने इसे Disney.com (डिस्नी डाट कौम) या ऐसी ही कोई वेबसाईट
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    से डाउनलोड किया था.
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    यह उन्होंने गाँव में कंप्यूटर लगने के सिर्फ 14 दिन में कर लिया था.
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    आखिरकार,
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    हमने निष्कर्ष निकला कि बच्चों के समूह
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    अपने आप कंप्यूटर और इंटरनेट चलाना सीख सकते हैं,
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    चाहे वो कोई भी हों
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    या कहीं से भी हों.
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    इसके बाद, मैं थोड़ा और महत्वाकांक्षी हो गया
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    और ठान ली ये देखने की
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    कि बच्चे कंप्यूटर के साथ और क्या कर सकते हैं.
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    हमने हैदराबाद, भारत में एक प्रयोग से शुरुआत की,
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    जहाँ मैंने एक बच्चों के समूह को --
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    वे एक तगड़े तेलेगु उच्चारण में अंग्रेजी बोलते थे.
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    मैंने उन्हें एक कंप्यूटर दे दिया
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    जिसमें आवाज़ को लेखन में बदलने वाला सोफ्टवेयर था,
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    जो अब windows (विंडोस) के साथ आता है,
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    और उन्हें इसमें बोलने को कहा.
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    जब उन्होंने इसमें बोला,
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    तब कंप्यूटर ने बेमतलबी शब्द दिखाए
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    तो उन्होंने कहा, "यह कंप्यूटर हमारी कोई भी बात नहीं समझता."
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    तो मैंने कहा, "हाँ, मैं इसे दो महीने के लिए यहाँ छोड़ देता हूँ.
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    आप अपने आप को कंप्यूटर द्वारा
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    समझने लायक बनवाइए."
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    तो बच्चों ने कहा, "हम ये कैसे करें."
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    और मैंने कहा,
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    "असल में, मुझे नहीं पता."
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    (ठहाके)
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    फिर मैं चला गया.
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    (ठहाके)
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    दो महीने बाद --
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    और अब इसका दस्तावेज भी है
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    Information Technology (सूचना प्रोद्योगिकी) के
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    अंतर्राष्ट्रीय विकास पत्रिका में --
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    कि उनके अंग्रेजी उच्चारण बदल गए थे
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    और सामान्य ब्रिटिश उच्चारण के काफी करीब थे
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    जिसमें मैंने आवाज़ को लेखन में बदलने वाले यन्त्र को अभ्यास कराया था.
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    दूसरे शब्दों में, वे सब James Tooley (जेम्स टूली) की तरह बोल रहे थे.
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    (ठहाके)
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    मतलब वे अपने आप ऐसा कर पाए.
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    उसके बाद, मैंने कई और चीज़ों के साथ
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    प्रयोग करने शुरू किये,
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    चीज़ें जो वे शायद अपने आप करना सीख जायेंगे.
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    एक बार मुझे कोलम्बो से एक दिलचस्प फोन कॉल आई,
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    अब मृत Arthur C. Clarke (आर्थर सी. क्लार्क) से
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    जिन्होंने कहा, "मैं जानना चाहता हूँ आप क्या कर रहे हैं."
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    वे यात्रा नहीं कर सकते थे, तो मैं ही उनके पास गया.
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    उन्होंने दो दिलचस्प बातें कही,
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    "एक अध्यापक जिसका स्थान एक मशीन ले सके, उसे लेने देना चाहिए."
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    (ठहाके)
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    दूसरी बात --
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    "अगर बच्चे चाहें तो,
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    शिक्षा अपने आप मिल जाती है."
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    और मैं इसी बात पर अमल कर रहा था,
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    तो मैं जब भी इसे होते हुए देखता तो उनके बारे में सोचता था.
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    (विडिओ) आर्थर सी. क्लार्क: और ये बच्चे यक़ीनन लोगों
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    की मदद कर सकते हैं,
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    क्योंकि बच्चे जल्द ही यन्त्र चलाना और
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    उनकी मनपसंद चीज़ें ढूँढना सीख लेते हैं.
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    और जहां दिलचस्पी हो, वहाँ शिक्षा भी मिल जाती है.
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    मित्रा: मैं इस प्रयोग को दक्षिण अफ्रीका ले गया.
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    यह 15 वर्ष का एक लड़का है.
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    (विडिओ) लड़का: ... मैं खेल खेलता हूँ
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    मुझे जानवर पसंद हैं,
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    और मैं संगीत सुनता हूँ
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    मित्रा: फिर मैंने उससे पुछा, "क्या तुम ई-मेल भेजते हो?"
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    उसने कहा, "हाँ, और वे समुन्दर पार जाती हैं."
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    यह कम्बोडिया में है,
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    ग्रामीण कम्बोडिया --
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    एक साधारण सा गणित का खेल है,
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    जिसे कोई बच्चा कक्षा में या घर पर नहीं खेलेगा.
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    वे इस खेल को आप पर वापस फेंक देंगे.
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    कहेंगे, "ये दिलचस्प नहीं है."
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    अगर आप इस खेल को फर्श पर रख दें,
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    और सारे बढ़े कहीं और चले जाएँ,
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    फिर ये एक दूसरे को दिखाएँगे कि
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    ये क्या कर सकते हैं.
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    ये बच्चे यही कर रहे हैं.
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    ये गुना करने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे ख्याल से.
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    पूरे भारत में,
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    लगभग दो साल के बाद,
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    बच्चे अपने घर पे पाठ गूगल पर पूरे करने लगे थे.
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    फलस्वरूप, अध्यापकों ने बच्चों की
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    अंग्रेजी में विशाल सुधार देखे --
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    (ठहाके)
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    तेज़ सुधार और सभी किस्म के परिवर्तन.
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    उन्होंने कहा, "बच्चे गंभीर विचारक बन गए हैं, और फलाना फलाना."
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    (ठहाके)
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    और वास्तव में वो बन गए थे.
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    मतलब, अगर चीज़ें गूगल पर मिल जाएँ,
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    तो उन्हें अपने दिमाग में याद करने की क्या ज़रुरत है?
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    अगले चार सालों के अंत में,
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    मैंने पाया कि बच्चों के समूह शिक्षा पाने के लिए
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    इन्टरनेट अपने आप चला सकते हैं.
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    उस समय, बहुत सारा पैसा
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    न्यूकैसल विश्वविद्यालय में
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    भारत में शिक्षा सुधारों के लिए आया था.
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    तो न्यूकैसल ने मुझे कॉल किया. मैंने कहा, "मैं दिल्ली से काम करूंगा."
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    उन्होंने कहा, "किसी भी तरीके से आप दिल्ली में बैठे-बैठे
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    विश्वविद्यलाय के करोडों रूपए
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    खर्च नहीं कर सकते."
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    इसीलिए 2006 में,
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    मैंने एक भारी ओवरकोट ख़रीदा
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    और न्यूकैसल चला आया.
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    मैं इस पद्धति की सीमाएं
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    जाचना चाहता था.
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    न्यूकैसल से जो मैंने पहला प्रयोग किया
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    वो दरअसल भारत में किया गया था.
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    और मैंने अपने लिए एक नामुमकिन लक्ष्य तय किया:
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    क्या 12 -साल के
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    तमिल बोलने वाले,
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    एक दक्षिण भारतीय गाँव का बच्चे
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    अंग्रेजी में खुद को जीव-तकनीकी (biotechnology)
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    सिखा सकते हैं?
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    मैंने सोचा, "मैं बच्चों की परीक्षा लूँगा. वे फेल हो जायेंगे.
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    मैं उन्हें पढाई की सामग्री दूंगा, वापस आऊँगा और फिर उनकी परीक्षा लूँगा.
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    वे फिर फेल हो जायेंगे.
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    मैं भारत वापस जाऊंगा और कहूँगा, "हाँ, कुछ चीज़ों के लिए हमें अध्यापक चाहियें."
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    मैंने 26 बच्चों को बुलाया.
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    वे सब वहां आये, और मैंने उनसे कहा कि
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    इस कंप्यूटर पर कुछ बहुत कठिन पाठ्यक्रम है.
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    मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर आप कुछ भी समझ न पाएं.
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    सब कुछ अंग्रेजी में है, और मैं जा रहा हूँ.
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    (ठहाके)
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    तो मैंने उन्हें कंप्यूटर के साथ छोड़ दिया.
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    मैं दो महीने बाद लौटा,
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    और वो 26 बच्चे चुपचाप मेरे पास आये.
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    मैंने पूछा, "तो बच्चों, क्या तुमने कंप्यूटर पर कुछ देखा?"
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    उन्होंने कहा, "हाँ, हमने देखा."
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    "कुछ समझ में आया?" "नहीं, कुछ भी नहीं."
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    तो मैंने पूछा,
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    "यह निर्णय करने के पहले कि तुम्हे कुछ समझ नहीं आया
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    तुमने कितने समय तक अभ्यास किया?"
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    उन्होंने कहा, "हम इसे हर रोज़ देखते हैं."
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    तो मैंने पूछा, "दो महीने से आप एक ऐसी चीज़ देख रहे हैं जो आपको समझ नहीं आई?
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    इस पर एक 12 वर्ष की लड़की ने अपना हाथ उठाया और बोली,
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    सचमुच,
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    (अंग्रेजी में) "इसके अलावा कि डी.एन.ए अणु की अनुचित प्रतिकृति से
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    आनुवंशिक बीमारी होती है,
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    हमने और कुछ नहीं सीखा."
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    (ठहाके)
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    (अभिवादन)
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    (ठहाके)
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    मुझे इस परिणाम को प्रकाशित करने में 3 साल लगे.
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    हाल ही में इसे शिक्षा प्रोद्योगिकी की ब्रिटिश पत्रिका में प्रकाशित किया गया.
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    एक पंच, जिन्होंने इस लेख का मूल्यांकन किया, ने कहा,
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    "यह वास्तविक होने के लिए कुछ ज़्यादा ही अच्छा है,"
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    ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी.
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    एक लड़की ने खुद को
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    अध्यापक बनना सिखा दिया.
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    वो वहाँ पर यह लड़की है.
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    याद रखिये, ये बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ते.
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    मैंने विडियो का आखिरी अंश बदल दिया है जिसमें मैंने पूछा, "न्यूरोन कहाँ है?"
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    उसने बोला, "न्यूरोन? न्यूरोन?"
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    फिर मेरी तरफ देखा और ऐसे इशारा किया.
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    लेकिन उसके इशारे कुछ अच्छे नहीं थे.
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    इन बच्चों के अंक शून्य से बढकर तीस प्रतिशत हो गए थे,
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    जो कि इन हालातों में असंभव है.
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    लेकिन तीस प्रतिशत से कोई पास नहीं होता.
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    फिर मैंने पाया कि उनकी एक दोस्त है,
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    एक स्थानीय मुनीम, एक युवा लड़की,
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    और वे उसके साथ फुटबाल खेलते थे.
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    मैंने उस लड़की से पूछा, "क्या तुम इन्हें इतनी जीव-तकनीकी
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    सिखाओगी कि ये पास हो जाएँ?"
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    उसने कहा, "मैं ये कैसे करूंगी? मुझे तो यह विषय नहीं आता."
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    मैंने कहा, "नहीं, दादीमाँ का तरीका अपनाओ."
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    उसने पूछा, "और वो क्या है?"
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    मैंने कहा, "तुम्हे करना यह है कि
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    उनके पीछे खड़ी हो जाओ
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    और उनकी प्रशंसा करती रहो.
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    उन्हें बस ये कहो, "बहुत खूब. लगे रहो.
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    वो क्या है? क्या तुम इसे दोबारा कर सकते हो? क्या तुम मुझे थोड़ा और दिखा सकते हो?"
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    उस लड़की ने ऐसा दो महीने तक किया.
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    अब अंक 50 तक बढ़ गए,
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    जो कि नई दिल्ली के आलिशान स्कूलों में बच्चों को मिल रहे थे,
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    जहाँ काबिल जीव-तकनीकी के अध्यापक हैं.
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    मैं इन परिणामों के साथ
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    न्यूकैसल वापस लौटा
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    और मैंने पहचाना कि
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    यहाँ कुछ अलग हो रहा है
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    जो निश्चित ही गंभीर होता जा रहा है.
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    तो हर तरह की दूर-दराज़ जगहों पर प्रयोग करने के बाद,
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    मैं ऐसी जगह पर आया जो मेरी कल्पना में सबसे दूर-दराज़ में है.
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    (ठहाके)
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    दिल्ली से लगभग 8000 किलोमीटर दूर
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    गेट्सहैड नामक एक छोटा शहर है.
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    गेट्सहैड में, मैंने 32 बच्चे लिए,
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    और मैं अपनी तकनीक को तराशने लगा.
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    मैंने उन्हें चार-चार के समूहों में बाँट दिया.
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    मैंने कहा, "तुम खुद अपने चार-चार के समूह बनाओ.
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    हर एक समूह एक ही कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकता है, चार का नहीं."
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    आपको याद होगा - दीवार में जड़ा हुआ कंप्यूटर.
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    "आप समूह बदल सकते हैं.
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    अगर आपको अपना समूह पसंद न आये तो आप
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    कोई दूसरे समूह के पास जा सकते हैं.
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    किसी दूसरे समूह के पास जाकर आप झाँक कर देख सकते हैं कि वो क्या कर रहे हैं,
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    फिर अपने समूह में आकर दावा कर सकते हैं कि वह आपका खुद का विचार था."
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    मैंने उन्हें समझाया कि
  • 10:40 - 10:43
    आपको पता है? कितने ही वैज्ञानिक अनुसंधान इसी तरह किया जाते हैं.
  • 10:43 - 10:45
    (ठहाके)
  • 10:45 - 10:50
    (अभिवादन)
  • 10:52 - 10:54
    उन बच्चों ने उत्साहित होकर मुझसे पूछा,
  • 10:54 - 10:56
    "आप हमसे क्या करवाना चाहते हैं?"
  • 10:56 - 10:59
    मैंने उन्हें छह GCSE के सवाल दिए.
  • 10:59 - 11:01
    पहले समूह ने, जो सबसे अच्चा समूह था,
  • 11:01 - 11:03
    सारे सवाल 20 मिनट में हल कर दिए.
  • 11:03 - 11:06
    सबसे ख़राब समूह ने 45 मिनट लिए.
  • 11:06 - 11:08
    उन्हें जितना ज्ञान था उस सबका उन्होंने इस्तेमाल किया -
  • 11:08 - 11:10
    समाचार, गूगल, विकिपीडिया,
  • 11:10 - 11:12
    Ask Jeeves
  • 11:12 - 11:15
    अध्यापकों ने पूछा, "क्या यह गहन शिक्षा है?"
  • 11:15 - 11:17
    मैंने कहा, "चलो, परख लेते हैं.
  • 11:17 - 11:19
    मैं दो महीने बाद लौटूंगा.
  • 11:19 - 11:21
    हम उन्हें एक कागज़ी परीक्षा देंगे --
  • 11:21 - 11:23
    कोई कंप्यूटर नहीं, एक-दूसरे से बातचीत नहीं, फलाना, फलाना."
  • 11:23 - 11:25
    जब मैंने कंप्यूटर और समूहों के साथ यह किया तो औसतन अंक
  • 11:25 - 11:27
    76 प्रतिशत थे.
  • 11:27 - 11:29
    जब मैंने दो महीने बाद यह प्रयोग किया,
  • 11:29 - 11:32
    जब परीक्षा ली, तो उनके अंक
  • 11:32 - 11:35
    फिर 76 प्रतिशत थे.
  • 11:35 - 11:37
    बच्चों के दिमाग में तस्वीरों के रूप में
  • 11:37 - 11:39
    चीज़ें याद रह गईं,
  • 11:39 - 11:42
    शायद इसलिए क्योंकि बच्चे आपस में चर्चा कर रहे थे.
  • 11:42 - 11:44
    एक अकेला बच्चा कंप्यूटर के सामने बैठा हुआ
  • 11:44 - 11:46
    कभी ऐसा नहीं करेगा.
  • 11:46 - 11:48
    मेरा पास और भी परिणाम हैं,
  • 11:48 - 11:50
    अंकों के जो वक़्त के साथ बढ़ते हैं,
  • 11:50 - 11:52
    जो कि एक दम अविश्वसनीय हैं.
  • 11:52 - 11:54
    उनके अध्यापक बताते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि
  • 11:54 - 11:56
    प्रयोग ख़तम होने के बाद भी,
  • 11:56 - 11:59
    बच्चे गूगल का इस्तेमाल जारी रखते हैं.
  • 11:59 - 12:01
    मेरे कुप्पम प्रयोग के बाद, यहाँ ब्रिटेन में,
  • 12:01 - 12:03
    मैंने ब्रिटिश दादियों के लिए
  • 12:03 - 12:05
    इश्तेहार बटवाए.
  • 12:05 - 12:07
    आपको तो पता ही है,
  • 12:07 - 12:09
    ब्रिटिश दादियाँ कितनी व्यवसायिक होती हैं.
  • 12:09 - 12:11
    200 दादियाँ तुरंत आगे आ गईं.
  • 12:11 - 12:13
    (ठहाके)
  • 12:13 - 12:16
    समझौता यह था कि वे घर पर बैठे हुए
  • 12:16 - 12:18
    हफ्ते में एक दिन,
  • 12:18 - 12:20
    मुझे इन्टरनेट पर
  • 12:20 - 12:22
    अपना एक घंटा देंगी.
  • 12:22 - 12:24
    उन्होंने ऐसा ही किया.
  • 12:24 - 12:26
    और पिछले दो सालों के दौरान,
  • 12:26 - 12:28
    कुल 600 घंटों का शिक्षण
  • 12:28 - 12:30
    स्काइप (Skype) पर हुआ है,
  • 12:30 - 12:33
    इसके द्वारा जिसे मेरे छात्र दादीमाँ का बादल (granny cloud) कहते हैं.
  • 12:33 - 12:36
    दादीमाँ का बादल यहाँ बैठता है.
  • 12:36 - 12:39
    मैं इन दादियों को किसी भी स्कूल से जोड़ सकता हूँ.
  • 12:45 - 12:47
    अध्यापिका (अंग्रेजी में): तुम मुझे नहीं पकड़ सकते.
  • 12:47 - 12:50
    अब तुम बोलो.
  • 12:50 - 12:53
    तुम मुझे नहीं पकड़ सकते.
  • 12:53 - 12:56
    बच्चे (अंग्रेजी में): तुम मुझे नहीं पकड़ सकते.
  • 12:56 - 12:59
    अध्यापिका (अंग्रेजी में): मैं जिंजरब्रेड मैन हूँ.
  • 12:59 - 13:01
    बच्चे (अंग्रेजी में): मैं जिंजरब्रेड मैन हूँ.
  • 13:01 - 13:03
    अध्यापिका: शाबाश. बहुत अच्छे...
  • 13:09 - 13:11
    मित्रा: और पीछे गेट्सहैड में,
  • 13:11 - 13:13
    एक दस साल की लड़की 15 मिनट में
  • 13:13 - 13:15
    हिंदुत्व के केंद्र तक पहुँच गई.
  • 13:15 - 13:18
    इतनी गहराई में, जिसका मुझे कुछ अता-पता नहीं.
  • 13:21 - 13:23
    दो बच्चों ने एक TEDTalk देखी.
  • 13:23 - 13:25
    वो पहले फुटबाल खिलाडी बनना चाहते थे.
  • 13:25 - 13:27
    आठ TEDTalks देखने के बाद,
  • 13:27 - 13:30
    वो लिओनार्दो डा विन्ची बनना चाहता है.
  • 13:30 - 13:33
    (ठहाके)
  • 13:33 - 13:36
    (अभिवादन)
  • 13:36 - 13:38
    यह काफी सरल बात है.
  • 13:38 - 13:40
    मैं अब ऐसी चीज़ें बना रहा हूँ.
  • 13:40 - 13:43
    इन्हें SOLEs (सोल्स) या स्व-संगठित शिक्षा वातावरण कहा जाता है.
  • 13:43 - 13:45
    फर्नीचर इस तरह बनाया गया है कि
  • 13:45 - 13:48
    बच्चे समूहों में, बड़े पर्दों और तेज़ इन्टरनेट
  • 13:48 - 13:51
    के सामने बैठ सकें.
  • 13:51 - 13:54
    अगर वो चाहें, तो दादीमाँ के बादल को बुला सकते हैं.
  • 13:54 - 13:56
    यह न्यूकैसल में एक सोल है.
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    यह मांझी भारत से है.
  • 13:58 - 14:01
    तो हम किस हद तक जा सकते हैं? बस एक आखिरी बात.
  • 14:01 - 14:04
    मैन मई में ट्यूरिन गया.
  • 14:05 - 14:08
    मैंने सभी शिक्षकों को मेरे दस-साल के बच्चों से दूर कर दिया.
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    मैं केवल अंग्रेजी बोलता हूँ, वे केवल इतालवी,
  • 14:12 - 14:14
    हमारे पास बातचीत करने का कोई भी तरीका नहीं था.
  • 14:14 - 14:17
    मैंने ब्लैकबोर्ड पर अंग्रेजी सवाल लिखने शुरू कर दिए.
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    बच्चों ने उसकी तरफ देखा और कहा, "क्या?"
  • 14:20 - 14:22
    मैंने कहा, "इसे हल करो."
  • 14:22 - 14:25
    उन्होंने उसे गूगल पर टाइप किया, इतालवी में उसका अनुवाद किया,
  • 14:25 - 14:27
    और फिर इतालवी गूगल पर वापस गए.
  • 14:27 - 14:30
    15 मिनट बाद...
  • 14:37 - 14:40
    अगला सवाल: कोलकाता कहाँ है?
  • 14:42 - 14:45
    इसके लिए उन्हें सिर्फ 10 मिनट लगे.
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    फिर मैंने एक बहुत कठिन सवाल चुना.
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    Pythagoras (पाइथागोरस) कौन थे और उन्होंने क्या किया?
  • 14:57 - 14:59
    कुछ देर के लिए ख़ामोशी थी,
  • 14:59 - 15:01
    और फिर वो बोले, "आपने गलत लिखा है.
  • 15:01 - 15:04
    Pitagora (पीतागोरा) होना चाहिए."
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    और फिर,
  • 15:10 - 15:12
    20 मिनट में,
  • 15:12 - 15:14
    समकोण त्रिकोण कंप्यूटर पर दिखाई देने लगे.
  • 15:14 - 15:17
    यह देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.
  • 15:17 - 15:19
    ये सिर्फ दस साल के बच्चे हैं.
  • 15:32 - 15:35
    और 30 मिनट में तो ये रिलेटिविटी के सिद्धांत तक पहुँच जायेंगे. उसके बाद क्या?
  • 15:35 - 15:37
    (ठहाके)
  • 15:37 - 15:46
    (अभिवादन)
  • 15:46 - 15:48
    मित्रा: क्या आप जानते हैं ये क्या हुआ?
  • 15:48 - 15:50
    मेरे ख़याल से हमने एक अपने आप
  • 15:50 - 15:52
    संगठित होने वाला प्रणाली खोज निकाली है.
  • 15:52 - 15:54
    एक स्व- संगठनीय प्रणाली वो होती है
  • 15:54 - 15:56
    जिसमें स्पष्ट बाहरी हस्तक्षेप के
  • 15:56 - 15:59
    बिना ही एक आकार नज़र आता है.
  • 15:59 - 16:02
    ऐसी प्रणालियाँ हमेशा उभारता भी दर्शाती हैं -
  • 16:02 - 16:04
    यह प्रणाली ऐसी चीज़ें करने लगती है,
  • 16:04 - 16:06
    जिसके लिए इसे कभी बनाया ही नहीं गया था.
  • 16:06 - 16:08
    इसीलिए आप इस तरह की प्रतिक्रिया कर रहे हैं,
  • 16:08 - 16:11
    क्योंकि यह असंभव लगता है.
  • 16:11 - 16:14
    मेरे ख्याल से मैं अब एक अंदाजा लगा सकता हूँ.
  • 16:14 - 16:16
    शिक्षा एक स्व-संगठनीय प्रणाली है,
  • 16:16 - 16:18
    जिसमें सीखना एक उभरती घटना है.
  • 16:18 - 16:20
    मुझे इसे प्रायौगिक ढंग में साबित करने में कुछ साल लगेंगे,
  • 16:20 - 16:22
    पर मैं कोशिश करूंगा.
  • 16:22 - 16:25
    लेकिन इस बीच एक तरीका है.
  • 16:25 - 16:28
    100 करोड़ बच्चों के लिए हमें 10 करोड़ मांझी चाहियें --
  • 16:28 - 16:30
    इस धरती पर उससे कहीं ज्यादा हैं --
  • 16:30 - 16:32
    एक करोड़ सोल्स,
  • 16:32 - 16:35
    18 हज़ार करोड़ डॉलर और दस साल.
  • 16:36 - 16:38
    हम सब कुछ बदल सकते हैं.
  • 16:38 - 16:40
    धन्यवाद.
  • 16:40 - 16:51
    (अभिवादन)
Title:
सुगाता मित्रा (Sugata Mitra) के स्वयं-शिक्षण में नए प्रयोग
Speaker:
Sugata Mitra
Description:

शिक्षा वैज्ञानिक सुगाता मित्रा शिक्षा की सबसे कठिन समस्या - सर्वश्रेष्ट शिक्षक और स्कूल उन जगहों पर नहीं हैं जहां उनकी ज़रुरत सबसे ज्यादा है - को सुलझाने की कोशिश करते हैं. नई दिल्ली से लेकर दक्षिण अफ्रीका और इटली तक में उन्होंने कई वास्तविक प्रयोगों में, बच्चों को में इन्टरनेट की सुविधा पहुंचाई और ऐसे परिणाम देखे जो हमारे शिक्षा के बारे में सोचने के नज़रिए में क्रन्तिकारी बदलाव ला सकते हैं.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
16:53
Nimit Arora added a translation

Hindi subtitles

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