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न्यायिक जाँच से जुड़ा मानवशास्त्री जो लापता लोगों की अधूरी कहानी को अंत देता है

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    गौटेमला 36 साल लम्बी
    हथियारबंद लड़ाई से उबर रहा है.
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    ऐसे लड़ाई जो शीत युद्ध के समय चलती रही.
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    असल में ये एक छोटा सा
    लेफ़्टिस्ट विद्रोह था
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    जिसका सरकार ने दिल दहलाने वाला जवाब दिया.
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    नतीजा था दो लाख सिविलीयनो की बलि
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    उनमें से एक लाख साठ हज़ार
    बस्तियों में क़त्ल हुए
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    नन्हे बच्चे, मर्द, औरतें,
    यहाँ तक कि बूढ़े भी.
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    और उसके अलावा, चालीस हज़ार वो
    जिनका पता ही नहीं चला,
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    जिन्हें हम आज भी ढूँढ रहे हैं.
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    उन्हें हम "डेसापरेसिडोस " कहते हैं
    (हिंदी में लापता)
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    क़त्ल हुए लोगों में से 83 प्रतिशत मायन थे
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    वो जो वंशज थे
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    सेंट्रल अमेरिका के पहले वसियों के.
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    और 17 प्रतिशत क़त्ल हुए लोग यूरोपियनों
    के वंशज थे.
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    पर सबसे ज़रूरी बात ये है कि
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    जिन लोगों का काम हमारी रक्षा का था -
    - पोलिस, मिलिटरी -
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    ज़्यादातर अपराध उन्होंने ही किए.
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    अब पीड़ितों के परिवारों
    जानकारी चाहते हैं
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    वो जानना चाहते है कि क्या हुआ था.
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    उन्हें अपने प्रियजनों के शव चाहिए.
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    मगर सबसे ज़्यादा, वो चाहते हैं
    की आपको,
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    और सबको ये पता चले कि
    उनके प्रियजनो ने कुछ ग़लत नहीं किया था.
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    अब मेरे मामले में, ऐसा था कि मेरे पिता को
    1980 में जान से मारने की धमकी मिली.
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    और हम सब छोड़ के चले गए.
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    हम गौटेमाला छोड़ के यहाँ आ गए.
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    तो मैं न्यू यॉर्क में पाला बढ़ा,
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    असल में, ब्रुकलिन में, और
    न्यू अट्रेक्ट हाई-स्कूल में पढ़ा
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    और ब्रूक्लिन कॉलेज से ग्रैजूएट हुआ.
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    एक बात ये भी थी कि
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    मुझे गौटेमला की घटनाओं की
    जानकारी भी नहीं थी.
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    मैं उसके बारे में नहीं सोचता था,
    उसकी यादें बहुत दर्द भारी थीं.
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    जब मैंने इस बारे में कुछ करने का
    फ़ैसला किया, 1995 आ चुका था.
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    तो मैं वापस लौटा.
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    मैं गौटेमला गया,
    शवों को ढूँढने,
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    ये समझने कि वास्तव में क्या हुआ था,
    और ख़ुद के टुकड़ों को पाने.
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    हमारा काम है लोगों तक
    जानकारी पहुँचाना.
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    हम परिवार के लोगों से बात करते हैं
    और उन्हें मौक़ा देते हैं
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    हम उन्हें फ़ैसला करने देते हैं कि
    क्या वो अपनी आपबीती बताना चाहते हैं.
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    क्या वो बताना चाहते हैं
    जो उन्होंने होते देखा,
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    क्या वो अपने प्रियजनों के बारे
    में कुछ कहना चाहते हैं?
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    और उस से भी ज़रूरी,
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    हम उनसे उनका एक
    हिस्सा माँगते हैं.
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    उनके होने का सार,
    उनका अपना एक टुकड़ा.
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    और उनके डीo एनo एo का
    मेल करते हैं
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    कंकालो से मिले
    डीo एनo एo से
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    और ऐसा करने में,
    हम लाशों को ढूँढ रहे होते हैं
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    जो अब महज़ कंकाल बन चुकी हैं
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    इन में से ज़्यादातर अपराधों को
    हुए बत्तीस साल बीत चुके हैं
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    जब हमें कोई कब्र मिलती है,
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    तो हम मिट्टी निकाल कर, शव को साफ़ कर के,
    उसका रेकर्ड बना देते हैं
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    हम सच में गड़े मुर्दे उखाड़ने
    का काम करते हैं
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    जब हमें कोई शव मिलता है, हम उसे शहर
    में बनी अपनी प्रयोगशाला में लाते हैं ,
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    और उस से दो बातें पता
    करने की कोशिश करते हैं:
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    पहली ये कि मौत हुई कैसे?
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    जैसे कभी आपको गोली
    का घाव दिख जाता है
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    या धारदार हथियार का निशान.
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    दूसरी ये कि मरने वाला कौन था?
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    छोटा बच्चा,
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    या वयस्क.
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    आदमी या औरत.
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    मगर जब ये जाँच
    हो जाती है,
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    तो हम हड्डी का टुकड़ा लेते हैं
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    और उस से डीo एनo एo
    निकालते है.
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    उस डीo एनo एo को हम
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    तमाम परिवारों के डीo एनo एo
    से मिलाते हैं.
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    ये समझाने का बेहतर तरीक़ा है
    आपको दो उदाहरण देना.
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    पहला उदाहरण है
    मिलिटरी डायरी का केस.
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    ये दस्तावेज चोरीछिपे1999
    में कहीं से हासिल किया गया था.
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    और इसमें आप देख सकते हैं कि
    सरकार कुछ लोगों की निगरानी कर रही थी
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    ऐसे लोग, जो आपकी तरह, अपने
    देश को बदलना चाहते थे,
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    इस डायरी में सब लिखा है.
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    और उनमें से एक जानकारी है
    कि लोगों की हत्या कब की गयी.
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    इस पीले डिब्बे में
    आपको एक कोड दिखेगा,
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    ये एक गुप्त कोड है: 300.
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    और फिर आपको एक तारीख़ दिखेगी.
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    300 का मतलब है "क़त्ल" और तारीख़
    उस क़त्ल के दिन की है.
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    और इस की पूरे कहानी अभी साफ़ होगी
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    हुआ यूँ कि हमने 2003 में एक
    कब्र से एक शव बरामद किया था,
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    एक मिलिटरी ठिकाने से जहां हमें 53 क़ब्रों
    में दबी 220 लाशें मिली थीं
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    कब्र नम्बर नौ, सरगियो सोल लिनरेस
    के परिवार से मेल खा गयी.
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    सरगीयो एक विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे.
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    वो आयोवा विश्वविद्यालय के स्नातक थे
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    और अपने देश में बदलाव लाने के
    लिए गौटेमला लौटे थे.
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    उन्हें फ़रवरी 23, 1984 को
    बंदी बना लिया गया था.
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    और यहाँ आप देख सकते हैं, मार्च 29, 1984
    को उनकी हत्या कर दी गयी.
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    ये अभूतपूर्व था.
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    हमारे पास शव था, डीo एनo एo था,
    और परिवार की जानकारी थी,
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    और वो दस्तावेज भी, जिनसे हमें
    हक़ीक़त का पता भी चला.
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    और इस से भी अहम बात हुई
    दो हफ़्ते बाद ही,
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    हमें एक और व्यक्ति का पता लगा,
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    उसी कब्र से , अमानसियो विलियातोरो का.
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    उस शव का डीo एनo एo
    परिवार के डीo एनo एo से मेल खा गया.
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    और उस डायरी में हमें
    उनका भी ब्योरा मिला.
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    और ये रोंगटे खड़े करने वाला था की उनकी
    हत्या भी मार्च 29, 1984 को ही की गयी थी
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    तो हमने देखा कि उस कब्र में
    कितनी लाशें थीं?
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    छः
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    और फिर हमने देखा कि मार्च 29, 1984
    को कितने लोगों को मारा गया?
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    आप सही सोच रहे हैं, छः
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    ज़ुआन दे दियोस, हूगो, मोईसेस और जोईलो
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    उन सबको अलग अलग जगहों से ला कर
    उस दिन क़त्ल कर दिया गया था
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    अलग अलग समयों पर,
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    और सबको एक साथ दफ़न
    कर दिया गया था
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    अब हमें मात्र इन परिवारों के
    डीo एनo एo के ज़रूरत थी
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    तो हमने उनका पता लगाया
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    और उन शवों को उनके
    परिवारजनो तक पहुँचाया.
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    जिस दूसरे केस के बारे में
    मैं आपको बताऊँगा
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    वो है क्रेओमपाज (CREOMPAZ) नाम के
    एक मिलिटेरी ठिकाने का
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    इस का मतलब होता है "शांति में विश्वास"
    मगर इसका पूरा नाम है
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    रीजनल कमांड सेंटर फ़ोर
    पीस-कीपिंग ऑपरेशनस
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    और यहाँ ही गौतेमाला की मिलिटरी
    विदेशी शांति-सेनाओं का प्रशिक्षण करती है,
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    जो कि यूo एनo के
    साथ काम करती हैं.
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    और हैती या कांगो जैसे देशों
    में भेजी जाती हैं
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    और, हमारी पास गवाही है जिसमें
    कहा गया है कि इसी मिलिटरी ठिकाने में
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    वो लाशें और वो क़ब्रें मिली थीं.
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    तो हम कि सर्च वारंट लेकर वहाँ गए
    और दो घंटे के भीतर
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    हमने 84 क़ब्रें और उनमें दबी
    533 लाशें निकाल ली थीं.
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    अब इस पर अगर सोचा जाए तो
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    लाशों की छाती पर शांति सेना का प्रशिक्षण
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    एक विडंबना ही है.
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    और ये लाशें - औंधे मुँह पड़ी,
    हाथ पीछे बंधे हुए,
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    आँखों पे पट्टियाँ,
    हज़ारों तरह की यातनायें --
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    ये बेसहारा लोग थे जिन्हें
    बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया.
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    वे लोग जिनकी राह 533 परिवार देख रहे हैं.
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    तो हम कब्र नम्बर 15 की बात करते हैं.
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    हमने देखा कि कब्र पंद्रह औरतों और
    बच्चों की लाशों से पटी पड़ी थी,
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    63 लाशें.
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    और उसने तुरंत ही हमें
    ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि
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    हे भगवान! ऐसा नृशंस
    हत्याकांड कहाँ हुआ होगा?
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    जब मैं 1995 में गौतेमाला पहुँचा,
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    मैंने मई 14, 1982 में हुए
    एक नरसंहार का क़िस्सा सुना था,
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    जिसमें आर्मी आयी, सारे मर्दों को मार डाला
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    और बच्चों और औरतों को हेलिकॉप्टर
    में भर कर किसी अनजान जगह ले गयी.
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    और ज़रा सोचिए,
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    इस कब्र में मिले कपड़ों उस इलाक़े
    में पहने जाने वाले कपड़ों से मेल खाते थे
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    जहां से इन लोगों को अगवा किया गया था,
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    जहां से इन औरतों और बच्चों को
    जबरन उठा लिया गया था.
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    तो हमने डीo एनo एo जाँच की
    और क्या पाया?
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    हमने मार्टिना रोज़ास और
    मैनुअल चेन को पहचान लिया.
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    दोनो उस केस में लापता हुए थे
    और हम उस का सबूत ला सके.
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    हमारे पास ठोस सबूत था कि
    ये घटना वाक़ई हुई थी
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    और उन लोगों को इस मिलिटरी
    ठिकाने तक लाया गया था.
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    उस समय मैनुअल चेन महज़ तीन का था.
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    उसकी माँ उसे पड़ोसी के पास छोड़ कर
    नदी तक नहाने के लिए गई हुई थी.
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    बस तभी आर्मी आई
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    और उसे एक हेलिकॉप्टर में ले गयी
    और वो दोबारा तब तक नहीं दिखा
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    जब तक वो हमें कब्र नम्बर
    15 में नहीं मिला.
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    अब विज्ञान, पुरातत्व, मानव शास्त्र,
    और आनुवंशिकी विज्ञान के ज़रिए
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    हम बेआवाज़ रह गए लोगों
    को आवाज़ देने का काम कर रहे हैं.
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    हम उस से आगे भी कुछ कर रहे हैं.
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    हम इन मुक़दमों के लिए
    सबूत भी इकट्ठा कर रहे हैं,
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    जैसे के पिछले साल गौटेमला
    में चला नरसंहार का मुक़दमा
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    जहां जेनरल रीओस मांट को
    नरसंहार के लिए 80 साल की सजा हुई.
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    तो आज मैं यहाँ आपको ये बताने आया हूँ
    कि ऐसा हर जगह हो रहा है --
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    मेक्सिको में -
    आज़ हमारी आँखों के ठीक सामने --
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    और अब हम इसे और नहीं
    होने दे सकते हैं.
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    हमें साथ आना होगा और फ़ैसला करना होगा
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    कि अब हम और लोगों को
    लापता नहीं होने देंगे.
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    और लापता नहीं, दोस्तों!
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    ठीक है? और कोई लापता नहीं होगा.
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    धन्यवाद
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    (तालियाँ)
Title:
न्यायिक जाँच से जुड़ा मानवशास्त्री जो लापता लोगों की अधूरी कहानी को अंत देता है
Speaker:
फ़्रेडी पेक्केरेल्ली
Description:

गौतेमाला की 36 साल पुरानी लड़ाई दो लाख सिविलीयनों का क़त्ल-ए-आम देख चुकी है -- और चालीस हज़ार से भी ज़्यादा लोगों को लापता कर चुकी है. शीर्ष स्तर के न्यायिक मानवशास्त्री (फ़ोरेंसिक ऐन्थ्रॉपॉलॉजिस्ट) फ़्रेडी पेक्केरेल्ली और उनका दल डीo एनo एo, पुरातत्व और कहानी कहने की कला का इस्तेमाल कर के मृतकों के परिवारजनो तक उनके प्रियजनो के पार्थिव शरीर पहुँचा रहे हैं. ये एक गम्भीर काम है मगर कहीं ना कहीं शांति भी प्रदान करता है - और कभी कभी, न्याय भी.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
08:40

Hindi subtitles

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