क्यों आपको लगता है कि आप सही हो - जब की आप गलत हो
-
0:00 - 0:03कल्पना कीजिए
-
0:03 - 0:06कि आप एक सैनिक है
जो एक घमासान युद्ध लड़ रहे है -
0:07 - 0:10आप रोम के पैदल सिपाही हो सकते है
या फिर प्राचीन काल के धनुर्धर -
0:10 - 0:12शायद आप एक ज़ुलू योद्धा है
-
0:12 - 0:16वक्त और जगह चाहे जो भी हो,
कुछ चीज़े कभी नही बदलती -
0:16 - 0:18आपके चौकन्ना हुए होश
-
0:18 - 0:23और आपके सतर्क चेतना से उत्पन्न
हो रहे आपके कर्म -
0:23 - 0:28आपकी सजगता के दो मकसद हैं,
अपना और अपने पक्ष की रक्षा करना, -
0:28 - 0:29और दुशमन को शिकस्त देना।
-
0:31 - 0:34अब फ़र्ज़ कीजिए, कि आप एक अलग
किरदार निभा रहे है, -
0:34 - 0:36और वो है स्काउट का।
-
0:36 - 0:39स्काउट का काम हमला करना
या हिफ़ाज़त करना नही है -
0:39 - 0:42स्काउट का काम है जानना, समझना
-
0:42 - 0:44स्काउट वो है जो अपने शिविर से निकलता है,
-
0:44 - 0:48इलाके का नक्शा बनाता है,
और संभावित बाधाओं को पहचानता है। -
0:48 - 0:52और उसकी यह उम्मीद होती है कि
वो कुछ सीखेगा, -
0:52 - 0:54जैसे नदी के किनारे
उपयुक्त जगह पर पुल का होना -
0:54 - 0:57वह सकाउट जितनी निश्चितता से हो सके
उस स्थान के बारे में -
0:57 - 0:59जानना चाहता है।
-
1:00 - 1:05और वास्तविक सेना में स्काउट और सिपाही,
दोनो का होना आवश्यक है -
1:05 - 1:11परंतु हम दोनो किरदारों को
दो मानसिकताऔं के रूप में देख सकते हैं -
1:11 - 1:14यह उपमा है यह दर्शाने के लिए
कि हम अपने दैनिक जीवन में जानकारियों -
1:14 - 1:16व विचारों को कैसे समझते है
-
1:16 - 1:20मेरा तर्क यह है, कि विवेक की भावना होना,
-
1:20 - 1:23सही अनुमान बनाना, उचित निर्णय लेना
-
1:23 - 1:26यह सब आपकी मानसिकता तय करता है।
-
1:27 - 1:30अब इन दो मानसिताओं
की कार्यकारी दर्शाने के लिए -
1:30 - 1:33मैं आपको उन्नीसवी सदी
के फ़्रांस में ले चलती हूँ। -
1:33 - 1:36जहाँ एक महत्त्वहीन लगनेवाले
कागज़ के टुकड़े ने -
1:36 - 1:39एक बहुत बड़े राजनीतिक कांड को अंजाम दिया।
-
1:40 - 1:44१८९४ में फ़्रेंच के जनरल स्टाफ़
के अफ़सरों ने इसकी खोज की थी -
1:45 - 1:47वो कागज़ कचरे के डिब्बे में फटा पड़ा था।
-
1:47 - 1:49लेकिन उन टुकड़ों को जब जोडा गया,
-
1:49 - 1:51तब पता चला कि उन्हीं में से कोई आदमी
-
1:51 - 1:54जर्मनी को अपनी फौज के राज़ बेच रहा है
-
1:54 - 1:57इसलिए एक बहुत बड़ी तहक़ीक़ात
का आयोजन किया गया -
1:57 - 2:01और शक की सारी सुइयाँ एक ही आदमी पर जा रुकी
-
2:01 - 2:02अल्फ्रेड ड्रेफस
-
2:03 - 2:04उसका अभिलेख काफी दिलचस्प था
-
2:04 - 2:08न गलत कामों का कोई जिक्र,
न ऐसा जुर्म करने की कोई ज़ाहिर वजह -
2:08 - 2:13किंतु सेना में उस पद पर
ड्रेफस इकलौता यहूदी अफसर था -
2:13 - 2:18और बदकिस्मती से उस दौरान
फ्रेंच सेना यहूदियों के सख्त खिलाफ़ थी -
2:18 - 2:21उन्होंने ड्रेफस के हस्तलेख को
उस कागज़ की लिखावट से मिलाया -
2:21 - 2:23और तय किया कि
दोनों लिखावटों में मेल हैं -
2:23 - 2:26लेकिन यह भी हकीकत है कि
-
2:26 - 2:28हस्तलेख के पेशेवर इस नतीजे से
पूर्णतः सहमत नही थे -
2:28 - 2:30पर कोई बात नही
-
2:30 - 2:32ड्रेफस के घर की छान-बीन की गई,
-
2:32 - 2:33उनहें जासूसी के सबूत की तलाश थी
-
2:33 - 2:36ड्रेफस के हर फ़ाइल को छाना गया,
किंतु उससे कुछ हासिल नही हुआ -
2:36 - 2:40इससे उनका यकीन और मजबूत हुआ -
न सिर्फ ड्रेफस गुनगार है -
2:40 - 2:43बल्कि शातिर भी है, क्योंकि
उसने अफसरों के हाथ लगने से पहले ही -
2:43 - 2:45सारे सबूत को गायब कर दिया
-
2:45 - 2:48इसके बाद उन्होंने ड्रेफस के
निजी अतीत की जाँच की -
2:48 - 2:50इस आशा में कि उन्हें उसके,
खिलाफ जानकारी मिलेगी -
2:50 - 2:52ड्रेफस के शिक्षकों से बात करने पर
-
2:52 - 2:55उन्हें पता चला कि उसने
पाठशाला में विदेशी भाषाएँ सीखी थी -
2:55 - 2:59जिससे उसके आगे चलकर विदेशी सरकारों के साथ
साज़िशें रचाने के इरादे -
2:59 - 3:00साफ़ ज़ाहिर हुए।
-
3:00 - 3:06ड्रेफस के शिक्षकों ने यह भी बताया कि
वह अपनी अच्छी याद्दाश्त के लिए मशहूर था -
3:06 - 3:08बहुत ही संदेहास्पद बात है, है ना?
-
3:08 - 3:11आखिरकार जासूसों को
काफ़ी चीज़ें याद रखनी पड़ती है -
3:12 - 3:16तो मामला कचहरी तक पहुँचा
और ड्रेफस गुनहगार साबित हुआ -
3:17 - 3:20फिर ड्रेफस को बीच बाज़ार ले जाया गया
-
3:20 - 3:24और उसकी वर्दी पर से बिल्ला निकाला गया
-
3:24 - 3:26उसकी तलवार को दो हिस्सों में तोड़ा गया
-
3:26 - 3:28इसे "ड्रेफस की ज़िल्लत" का नाम दिया गया
-
3:29 - 3:31और उसे को डेविल्स आयलंड,
अर्थात शैतान का टापू, -
3:31 - 3:34नामक स्थान पर
आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया -
3:34 - 3:37जो कि दक्षिण अमेरिका के तट से दूर
ठहरी एक बंजर चट्टान है -
3:38 - 3:41तो वह वहाँ गया और
उसने न जाने कितने रोज़ तन्हाई में बिताए -
3:41 - 3:44और उसने फ्रेंच सरकर को अनगिनत खत लिखे
इसी दलील के साथ -
3:44 - 3:47कि वे उसके मुकदमें को फिरसे लड़े
ताकि उसकी बेगुनाही साबित हो -
3:48 - 3:51लेकिन फ्रांस के लिए
यह मामला खत्म हो चुका था -
3:51 - 3:56ड्रेफस के मामले मुझे
सबसे दिलचस्प बात यह लगी थी -
3:56 - 3:59कि उन अफसरों को कितना यकीन था
-
3:59 - 4:01कि ड्रेफस कसूरवार है
-
4:02 - 4:04ऐसा मालूम होता है
कि उसे जान-बूझकर फसाया जा रहा है, -
4:04 - 4:06और साज़िश का शिकार बनाया जा रहा है।
-
4:06 - 4:09पर इतिहासकारों का ऐसा मानना नही है।
-
4:09 - 4:10हमारी जानकारी के अनुसार,
-
4:10 - 4:14वे सच में मानते थे कि ड्रेफस के खिलाफ
उनका मुकदमा मज़बूत था -
4:14 - 4:17और इस बात से आपको ताज्जुब होता है;
-
4:17 - 4:19कि यह मनुष्य के मन के बारे में
क्या बताता है -
4:19 - 4:21यही कि इतने बेबुनियाद सबूतों के बिनह पर
-
4:21 - 4:23हम किसी को दोषी साबित करते है
-
4:24 - 4:28वैज्ञानिक ऐसे मामलों को
"प्रेरित तर्क" कहते हैं -
4:29 - 4:32इस स्थिति में हमारी अचेत प्रेरणाएँ,
-
4:32 - 4:34हमारी कामनाएँ और आशंकाएँ,
हमारे जानकारी समझने के -
4:34 - 4:36तरीके को प्रभावित करती है
-
4:36 - 4:40कुछ जानकारी, कुछ विचार हमे अपने से लगते है
-
4:40 - 4:42हम उन्हे जिताना चाहते हैं,
उनकी वकालत करना है -
4:42 - 4:45और बाकी की जानकारी या विचार
हमे दुश्मन सी लगती हैं -
4:45 - 4:47हम उन्हें खत्म करना चाहते हैं
-
4:47 - 4:51इसलिए मैं प्रेरित तर्क को
"सैनिक मानसिकता" बुलाती हूँ -
4:52 - 4:55शायद आप में से किसी ने भी
-
4:55 - 4:57एक राज-द्रोही फ्रेंच-यहूदी फौजी पर
-
4:57 - 4:59ज़ुल्म नही किए,
-
4:59 - 5:04लेकिन शायद खेलों में या राजनीति
में आपने देखा होगा -
5:04 - 5:08अगर रेफ़री आपके चहेते टीम को
"फाउल" सुनाता है -
5:08 - 5:09तब
-
5:09 - 5:12आप उस रेफरी को
गलत ठहराने के लिए उतावले हो जाते है -
5:12 - 5:16पर अगर दूसरे टीम को
"फाउल" मिल जाए - बहुत बढ़िया! -
5:16 - 5:18यह फिर भी ठीक है,
इस पर चर्चा नही करते -
5:19 - 5:21या फिर आपने कही लेख पढ़ा होगा
-
5:21 - 5:24जो किसी विवादास्पद नीति की जांच करता हो
-
5:24 - 5:25जैसे मृत्यु दंड
-
5:26 - 5:28और, जैसे शोधकर्ताओं ने दर्शाया है,
-
5:28 - 5:30अगर आप मृत्युदंड का समर्थन करते हो
-
5:30 - 5:32और वह लेख दर्शाता है कि
यह प्रभावशाली नही है -
5:32 - 5:35तब आप उस लेख के तमाम ऐब
-
5:35 - 5:38निकालने के लिए उत्सुक हो जाते है
-
5:38 - 5:40पर अगर वह दर्शाता है कि
मृत्युदंड काम करता है -
5:40 - 5:41तब तो वह लेख अच्छा है
-
5:41 - 5:44और इसके विपरीत स्थिति में भी वही होता
-
5:44 - 5:47हम जिसकी तरफ़ है, हमारे फैसले,
-
5:47 - 5:49जाने-अनजाने में, उससे प्रभावित होते है
-
5:50 - 5:52और यह हर जगह मौजूद है
-
5:52 - 5:55यह हमारे स्वास्थ्य, रिश्ते, मतदान,
किसी कार्य के प्रति नैतिकता, -
5:55 - 5:57इन से संबंधित
-
5:57 - 5:59विचारों पर असर करता है
-
6:00 - 6:03प्रेरित तर्क या फिर सैनिक मानसिकता की
-
6:03 - 6:04सबसे डरावनी बात है
-
6:04 - 6:05उसकी अचेत स्वाभाविकता
-
6:05 - 6:09हमे लगता है कि हम निष्पक्ष और न्यायी है
-
6:09 - 6:12और फिर भी एक बेकसूर की
ज़िंदगी तबाह कर देते है -
6:13 - 6:16पर, बदकिस्मती से, ड्रेफस के लिए,
कहानी खत्म नही हुई -
6:16 - 6:17अब आते है कर्नल पिकार्ट
-
6:17 - 6:20वह फ्रेंच सेना का एक और
ऊँचे पद का अफ्सर था -
6:20 - 6:23और बाकियों की तरह वह भी
ड्रेफस को अपराधी मानता था -
6:23 - 6:27और बाकी फौजियों की तरह
वह भी सामी विरोधी था -
6:27 - 6:31पर एक वक्त के बाद उसे शक होने लगा,
-
6:31 - 6:34"कहीं हम सब ड्रेफस के बारे
में गलत तो नहीं?" -
6:34 - 6:37हुआ यूं था कि, उसे कुछ सबूत मिला था
-
6:37 - 6:39ड्रेफस के कारावास में जाने बाद भी
-
6:39 - 6:41जर्मनी के लिए जासूसी चलती रही
-
6:42 - 6:45और उसे पता लगा कि फौज में एक और था
जिसकी लिखावट -
6:45 - 6:47उस कागज़ से हूबहू मेल खा रही थी,
-
6:47 - 6:50और ड्रेफस से भी ज़्यादा मेल खा रही थी
-
6:50 - 6:53तो उसने अपने शोध अपने वरिष्ठों को दिखाए
-
6:54 - 6:58लेकिन या तो उन्होंने उसकी परवाह नही की
-
6:58 - 7:01या फिर उन खोजों को समझाने के लिए
तरह-तरह की सफ़ाइयाँ दी -
7:01 - 7:07जैसे, "तुमने बस इतना दिखाया है, पिकार्ट,
कि एक और जासूस है, -
7:07 - 7:09जिसने ड्रेफस की लिखावट
की नकल करना सीखा है। -
7:09 - 7:13और ड्रेफस के बाद उसने
जासूसी की बागडोर अपने हाथ में ले ली -
7:13 - 7:15लेकिन ड्रेफस तो गुनहगार है ही"
-
7:16 - 7:19आखिरकार पिकार्ट ने ड्रेफस को
बा-इज्जत बरी करवा दिया -
7:19 - 7:20लेकिन इसमें १० साल लग गए
-
7:20 - 7:23और इतने वक्त के लिए
वह खुद कैदखाने में था, -
7:23 - 7:25फौज की तरफ़ बेवफ़ाई की जुर्म में
-
7:26 - 7:32कुछ लोगों का मानना है कि पिकार्ट को
इस कहानी का नायक नही होना चाहिए है -
7:33 - 7:37क्योंकि वह सामी विरोधी था,
जो कि बुरा है, मैं मानती हूँ -
7:37 - 7:42पर मेरे लिए उसका
यहुदी विरोधी होना उसके कार्यों को -
7:42 - 7:45और भी प्रशंसनीय बनाता है
-
7:45 - 7:48क्योंकि उसके पास भी पक्षपात
करने के वही कारण थे -
7:48 - 7:50जो बाकी फौजियों के पास थे
-
7:50 - 7:54पर उसकी सच जानने और उसे बनाए रखने
की प्रेरणा सबसे ऊपर थी -
7:55 - 7:56तो मेरे हिसाब से,
-
7:56 - 8:00पिकार्ट "स्काउट मानसिकता" का प्रतीक है
-
8:01 - 8:05यह किसी विचार को जिताने
या हराने की चाह नही है, -
8:05 - 8:07बस हकीकत देखने की चाह है
-
8:07 - 8:09और जितने सही तरीके से हो सके जानना
-
8:09 - 8:12चाहे वह हमें कितना भी
असुविधाजनक और नापसंद क्यों न लगे -
8:13 - 8:17इस मानसिकता को लेकर
मैं निजी तौर पर उत्साही हूँ -
8:17 - 8:22मैंने कुछ साल बिताए है
इस मानसिकता के पीछे की वजह -
8:22 - 8:24जानने का अभ्यास करने में,
-
8:24 - 8:27क्यों कुछ लोग, कभी कभार तो,
-
8:27 - 8:31अपने पक्षपातों से ऊपर उठ पाते हैं।
-
8:31 - 8:33और सच्चाई देख पाते है,
और सबूत को -
8:33 - 8:35निष्पक्षता से देख पाते हैं?
-
8:36 - 8:39जवाब जज़्बातों में है।
-
8:39 - 8:43जैसे सैनिक मानसिकता
-
8:43 - 8:46बचाव की भावनाओं से जुड़ी है
-
8:47 - 8:48उसी तरह स्काउट मानसिकता भी।
-
8:48 - 8:50अलग भावनाओं से जुड़ी है।
-
8:50 - 8:53जैसे, स्काउट जिज्ञासु होते हैं।
-
8:53 - 8:57वो ज़्यादातर यह कहेंगी कि
उन्हें मज़ा आता है -
8:57 - 8:59जब उन्हें नई जानकारी मिलती है
-
8:59 - 9:01या वो पहेली सुलझाने के लिए
बेचैन हो जाते है। -
9:02 - 9:05जब कोई बात उनकी अपेक्षाओं से विरुद्ध होती
-
9:05 - 9:07है तो उन्हे वह रोचक लगती है।
-
9:07 - 9:09स्काउट्स के संस्कार अलग होते है।
-
9:09 - 9:12वे ज़्यादातर यही कहेंगे कि
अपनी अास्था का परीक्षण करना -
9:12 - 9:14नेक बात है
-
9:14 - 9:18वे यह नहीं कहेंगे कि जो अपना मन बदलता है
-
9:18 - 9:19वह कमज़ोर है।
-
9:19 - 9:21और सबसे बड़ी बात,
स्काउट्स मौलिक होते है -
9:21 - 9:25अर्थात, स्वयं का व्यक्तिगत मूल्य
-
9:25 - 9:30उनके किसी विषय में सही या
गलत होने पर निर्भर नही है -
9:30 - 9:33तो वे मान सकते है कि
मृत्यु दंड काम करता है -
9:33 - 9:36अगर लेख बताते हैं कि ऐसा नही है,
तो वे कह सकते है, -
9:36 - 9:40"अरे, लगता है मैं गलत हूँ, इसका ये मतलब
तो नही कि मैं बुरा या बेवकूफ़ हूँ।" -
9:42 - 9:46शोधकर्ताओं के
और मेरे उपाख्यान के हिसाब से -- -
9:46 - 9:48ऐसी विशेषताएँ अच्छे निर्णयों का --
-
9:48 - 9:50अनुमान लगाती हैं
-
9:50 - 9:54और जाते-जाते मैं आपको यह बताना चाहती हूँ,
-
9:54 - 9:57कि यह गुण आपकी होशियारी से जुड़ी नही हैं
-
9:57 - 9:59और न ही आपके ज्ञान से
-
9:59 - 10:02असल में ये आपकी बुद्धि
से संबंधित ही नही हैं -
10:03 - 10:04ये आपकी भावनाओं से जुड़ी हैं।
-
10:05 - 10:09सेंट-एक्सुपेरी की कही एक बात है
जिसे मैं बार-बार याद करती हूँ। -
10:09 - 10:11वे "लिटिल प्रिंस" के लेखक है।
-
10:11 - 10:14उन्होंने कहा था, "यदि तुम
जहाज बनाना चाहते हो, -
10:14 - 10:19तो अपने आदमियों को
लकड़ियाँ इकट्ठा करने के आदेश मत दो -
10:19 - 10:20और काम को मत बाँटो।
-
10:21 - 10:25इसके बजाय उनको विशाल और असीम
समंदर के लिए तड़पना सिखाओ।" -
10:26 - 10:28अर्थात मेरा यह मानना है
-
10:29 - 10:32यदि हम अपने निर्णयों को
सुधारना चाहते हैं, व्यक्तिगत -
10:32 - 10:33और सामाजिक तौर पर,
-
10:34 - 10:37तो हमें तर्क में और शिक्षण
की ज़रूरत नही है -
10:37 - 10:41न वक्रपटुता में, न संभाव्यता में
और न अर्थशास्त्र में -
10:41 - 10:43भले ही यह सारी बातें भी महत्वपूर्ण हो।
-
10:43 - 10:46पर इन सिद्धांतों के सदुपयोग के लिए
हमें स्काउट मानसिकता की -
10:46 - 10:47ज़रूरत है,
और हमें चीज़ों को। -
10:47 - 10:49महसूस करने के तरीके को बदलना होगा।
-
10:50 - 10:54हमें यह सीखना होगा कि जब हम गलत होते हैं
-
10:54 - 10:56तो हमें उस बात की शर्म नही गर्व होना चहिए।
-
10:56 - 10:59हमें अति संवेदनशील होने के बजाय
जिज्ञासु होना सीखना होगा, -
10:59 - 11:04जब हमें अपने विश्वास से विपरीत
जानकारी मिलती है। -
11:05 - 11:07जाते-जाते मैं आपसे यह
सवाल पूछना चाहती हूँ : -
11:08 - 11:10आप सबसे ज़्यादा किस लिए तरसते हो?
-
11:11 - 11:13अपने यकीन का बचाव करने के लिए तरसते हो?
-
11:14 - 11:18या फिर इस संसार को सबसे स्पष्ट रूप से
देखने के लिए तरसते हो? -
11:18 - 11:20धन्यवाद।
-
11:20 - 11:25(तालियाँ)
- Title:
- क्यों आपको लगता है कि आप सही हो - जब की आप गलत हो
- Speaker:
- जूलिया गलेफ़
- Description:
-
यह व्याख्यान एक स्थानीय TEDx कार्यक्रम मे पेश किया गया था, यह TED संमेलन से स्वतंत्र रूप से बनाया गया है।
अपनी आस्था का परीक्षण करते समय दृष्टिकोण ही सब कुछ है। क्या आप सैनिक हो, जो किसी भी कीमत पर अपने विश्वास की रक्षा करने पर तुले हो, या फिर आप स्काउट हो, जो जिज्ञासा से प्रेरित हो ? इतिहास के दिलचस्प कहानी के द्वारा जूलिया गलेफ़ इन दो मानसिकताओं के पीछे की प्रेरणाओं का और किस तरह वह हमारे जानकारियों को समझने के तरीके पर प्रभाव करती है इसका परीक्षण करती है । जब आपकी पुख्ता राय पर सवाल उठता है, तब गलेफ़ पूछती है, "आप किस चीज़ के लिए सबसे ज़्यादा तड़पते हो ? अपने यकीन का बचाव करने के लिए तरसते हो ? या फिर इस संसार को सबसे स्पष्ट रूप से देखने के लिए तरसते हो ?" - Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 11:37
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