कल्पना कीजिए
कि आप एक सैनिक है
जो एक घमासान युद्ध लड़ रहे है
आप रोम के पैदल सिपाही हो सकते है
या फिर प्राचीन काल के धनुर्धर
शायद आप एक ज़ुलू योद्धा है
वक्त और जगह चाहे जो भी हो,
कुछ चीज़े कभी नही बदलती
आपके चौकन्ना हुए होश
और आपके सतर्क चेतना से उत्पन्न
हो रहे आपके कर्म
आपकी सजगता के दो मकसद हैं,
अपना और अपने पक्ष की रक्षा करना,
और दुशमन को शिकस्त देना।
अब फ़र्ज़ कीजिए, कि आप एक अलग
किरदार निभा रहे है,
और वो है स्काउट का।
स्काउट का काम हमला करना
या हिफ़ाज़त करना नही है
स्काउट का काम है जानना, समझना
स्काउट वो है जो अपने शिविर से निकलता है,
इलाके का नक्शा बनाता है,
और संभावित बाधाओं को पहचानता है।
और उसकी यह उम्मीद होती है कि
वो कुछ सीखेगा,
जैसे नदी के किनारे
उपयुक्त जगह पर पुल का होना
वह सकाउट जितनी निश्चितता से हो सके
उस स्थान के बारे में
जानना चाहता है।
और वास्तविक सेना में स्काउट और सिपाही,
दोनो का होना आवश्यक है
परंतु हम दोनो किरदारों को
दो मानसिकताऔं के रूप में देख सकते हैं
यह उपमा है यह दर्शाने के लिए
कि हम अपने दैनिक जीवन में जानकारियों
व विचारों को कैसे समझते है
मेरा तर्क यह है, कि विवेक की भावना होना,
सही अनुमान बनाना, उचित निर्णय लेना
यह सब आपकी मानसिकता तय करता है।
अब इन दो मानसिताओं
की कार्यकारी दर्शाने के लिए
मैं आपको उन्नीसवी सदी
के फ़्रांस में ले चलती हूँ।
जहाँ एक महत्त्वहीन लगनेवाले
कागज़ के टुकड़े ने
एक बहुत बड़े राजनीतिक कांड को अंजाम दिया।
१८९४ में फ़्रेंच के जनरल स्टाफ़
के अफ़सरों ने इसकी खोज की थी
वो कागज़ कचरे के डिब्बे में फटा पड़ा था।
लेकिन उन टुकड़ों को जब जोडा गया,
तब पता चला कि उन्हीं में से कोई आदमी
जर्मनी को अपनी फौज के राज़ बेच रहा है
इसलिए एक बहुत बड़ी तहक़ीक़ात
का आयोजन किया गया
और शक की सारी सुइयाँ एक ही आदमी पर जा रुकी
अल्फ्रेड ड्रेफस
उसका अभिलेख काफी दिलचस्प था
न गलत कामों का कोई जिक्र,
न ऐसा जुर्म करने की कोई ज़ाहिर वजह
किंतु सेना में उस पद पर
ड्रेफस इकलौता यहूदी अफसर था
और बदकिस्मती से उस दौरान
फ्रेंच सेना यहूदियों के सख्त खिलाफ़ थी
उन्होंने ड्रेफस के हस्तलेख को
उस कागज़ की लिखावट से मिलाया
और तय किया कि
दोनों लिखावटों में मेल हैं
लेकिन यह भी हकीकत है कि
हस्तलेख के पेशेवर इस नतीजे से
पूर्णतः सहमत नही थे
पर कोई बात नही
ड्रेफस के घर की छान-बीन की गई,
उनहें जासूसी के सबूत की तलाश थी
ड्रेफस के हर फ़ाइल को छाना गया,
किंतु उससे कुछ हासिल नही हुआ
इससे उनका यकीन और मजबूत हुआ -
न सिर्फ ड्रेफस गुनगार है
बल्कि शातिर भी है, क्योंकि
उसने अफसरों के हाथ लगने से पहले ही
सारे सबूत को गायब कर दिया
इसके बाद उन्होंने ड्रेफस के
निजी अतीत की जाँच की
इस आशा में कि उन्हें उसके,
खिलाफ जानकारी मिलेगी
ड्रेफस के शिक्षकों से बात करने पर
उन्हें पता चला कि उसने
पाठशाला में विदेशी भाषाएँ सीखी थी
जिससे उसके आगे चलकर विदेशी सरकारों के साथ
साज़िशें रचाने के इरादे
साफ़ ज़ाहिर हुए।
ड्रेफस के शिक्षकों ने यह भी बताया कि
वह अपनी अच्छी याद्दाश्त के लिए मशहूर था
बहुत ही संदेहास्पद बात है, है ना?
आखिरकार जासूसों को
काफ़ी चीज़ें याद रखनी पड़ती है
तो मामला कचहरी तक पहुँचा
और ड्रेफस गुनहगार साबित हुआ
फिर ड्रेफस को बीच बाज़ार ले जाया गया
और उसकी वर्दी पर से बिल्ला निकाला गया
उसकी तलवार को दो हिस्सों में तोड़ा गया
इसे "ड्रेफस की ज़िल्लत" का नाम दिया गया
और उसे को डेविल्स आयलंड,
अर्थात शैतान का टापू,
नामक स्थान पर
आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया
जो कि दक्षिण अमेरिका के तट से दूर
ठहरी एक बंजर चट्टान है
तो वह वहाँ गया और
उसने न जाने कितने रोज़ तन्हाई में बिताए
और उसने फ्रेंच सरकर को अनगिनत खत लिखे
इसी दलील के साथ
कि वे उसके मुकदमें को फिरसे लड़े
ताकि उसकी बेगुनाही साबित हो
लेकिन फ्रांस के लिए
यह मामला खत्म हो चुका था
ड्रेफस के मामले मुझे
सबसे दिलचस्प बात यह लगी थी
कि उन अफसरों को कितना यकीन था
कि ड्रेफस कसूरवार है
ऐसा मालूम होता है
कि उसे जान-बूझकर फसाया जा रहा है,
और साज़िश का शिकार बनाया जा रहा है।
पर इतिहासकारों का ऐसा मानना नही है।
हमारी जानकारी के अनुसार,
वे सच में मानते थे कि ड्रेफस के खिलाफ
उनका मुकदमा मज़बूत था
और इस बात से आपको ताज्जुब होता है;
कि यह मनुष्य के मन के बारे में
क्या बताता है
यही कि इतने बेबुनियाद सबूतों के बिनह पर
हम किसी को दोषी साबित करते है
वैज्ञानिक ऐसे मामलों को
"प्रेरित तर्क" कहते हैं
इस स्थिति में हमारी अचेत प्रेरणाएँ,
हमारी कामनाएँ और आशंकाएँ,
हमारे जानकारी समझने के
तरीके को प्रभावित करती है
कुछ जानकारी, कुछ विचार हमे अपने से लगते है
हम उन्हे जिताना चाहते हैं,
उनकी वकालत करना है
और बाकी की जानकारी या विचार
हमे दुश्मन सी लगती हैं
हम उन्हें खत्म करना चाहते हैं
इसलिए मैं प्रेरित तर्क को
"सैनिक मानसिकता" बुलाती हूँ
शायद आप में से किसी ने भी
एक राज-द्रोही फ्रेंच-यहूदी फौजी पर
ज़ुल्म नही किए,
लेकिन शायद खेलों में या राजनीति
में आपने देखा होगा
अगर रेफ़री आपके चहेते टीम को
"फाउल" सुनाता है
तब
आप उस रेफरी को
गलत ठहराने के लिए उतावले हो जाते है
पर अगर दूसरे टीम को
"फाउल" मिल जाए - बहुत बढ़िया!
यह फिर भी ठीक है,
इस पर चर्चा नही करते
या फिर आपने कही लेख पढ़ा होगा
जो किसी विवादास्पद नीति की जांच करता हो
जैसे मृत्यु दंड
और, जैसे शोधकर्ताओं ने दर्शाया है,
अगर आप मृत्युदंड का समर्थन करते हो
और वह लेख दर्शाता है कि
यह प्रभावशाली नही है
तब आप उस लेख के तमाम ऐब
निकालने के लिए उत्सुक हो जाते है
पर अगर वह दर्शाता है कि
मृत्युदंड काम करता है
तब तो वह लेख अच्छा है
और इसके विपरीत स्थिति में भी वही होता
हम जिसकी तरफ़ है, हमारे फैसले,
जाने-अनजाने में, उससे प्रभावित होते है
और यह हर जगह मौजूद है
यह हमारे स्वास्थ्य, रिश्ते, मतदान,
किसी कार्य के प्रति नैतिकता,
इन से संबंधित
विचारों पर असर करता है
प्रेरित तर्क या फिर सैनिक मानसिकता की
सबसे डरावनी बात है
उसकी अचेत स्वाभाविकता
हमे लगता है कि हम निष्पक्ष और न्यायी है
और फिर भी एक बेकसूर की
ज़िंदगी तबाह कर देते है
पर, बदकिस्मती से, ड्रेफस के लिए,
कहानी खत्म नही हुई
अब आते है कर्नल पिकार्ट
वह फ्रेंच सेना का एक और
ऊँचे पद का अफ्सर था
और बाकियों की तरह वह भी
ड्रेफस को अपराधी मानता था
और बाकी फौजियों की तरह
वह भी सामी विरोधी था
पर एक वक्त के बाद उसे शक होने लगा,
"कहीं हम सब ड्रेफस के बारे
में गलत तो नहीं?"
हुआ यूं था कि, उसे कुछ सबूत मिला था
ड्रेफस के कारावास में जाने बाद भी
जर्मनी के लिए जासूसी चलती रही
और उसे पता लगा कि फौज में एक और था
जिसकी लिखावट
उस कागज़ से हूबहू मेल खा रही थी,
और ड्रेफस से भी ज़्यादा मेल खा रही थी
तो उसने अपने शोध अपने वरिष्ठों को दिखाए
लेकिन या तो उन्होंने उसकी परवाह नही की
या फिर उन खोजों को समझाने के लिए
तरह-तरह की सफ़ाइयाँ दी
जैसे, "तुमने बस इतना दिखाया है, पिकार्ट,
कि एक और जासूस है,
जिसने ड्रेफस की लिखावट
की नकल करना सीखा है।
और ड्रेफस के बाद उसने
जासूसी की बागडोर अपने हाथ में ले ली
लेकिन ड्रेफस तो गुनहगार है ही"
आखिरकार पिकार्ट ने ड्रेफस को
बा-इज्जत बरी करवा दिया
लेकिन इसमें १० साल लग गए
और इतने वक्त के लिए
वह खुद कैदखाने में था,
फौज की तरफ़ बेवफ़ाई की जुर्म में
कुछ लोगों का मानना है कि पिकार्ट को
इस कहानी का नायक नही होना चाहिए है
क्योंकि वह सामी विरोधी था,
जो कि बुरा है, मैं मानती हूँ
पर मेरे लिए उसका
यहुदी विरोधी होना उसके कार्यों को
और भी प्रशंसनीय बनाता है
क्योंकि उसके पास भी पक्षपात
करने के वही कारण थे
जो बाकी फौजियों के पास थे
पर उसकी सच जानने और उसे बनाए रखने
की प्रेरणा सबसे ऊपर थी
तो मेरे हिसाब से,
पिकार्ट "स्काउट मानसिकता" का प्रतीक है
यह किसी विचार को जिताने
या हराने की चाह नही है,
बस हकीकत देखने की चाह है
और जितने सही तरीके से हो सके जानना
चाहे वह हमें कितना भी
असुविधाजनक और नापसंद क्यों न लगे
इस मानसिकता को लेकर
मैं निजी तौर पर उत्साही हूँ
मैंने कुछ साल बिताए है
इस मानसिकता के पीछे की वजह
जानने का अभ्यास करने में,
क्यों कुछ लोग, कभी कभार तो,
अपने पक्षपातों से ऊपर उठ पाते हैं।
और सच्चाई देख पाते है,
और सबूत को
निष्पक्षता से देख पाते हैं?
जवाब जज़्बातों में है।
जैसे सैनिक मानसिकता
बचाव की भावनाओं से जुड़ी है
उसी तरह स्काउट मानसिकता भी।
अलग भावनाओं से जुड़ी है।
जैसे, स्काउट जिज्ञासु होते हैं।
वो ज़्यादातर यह कहेंगी कि
उन्हें मज़ा आता है
जब उन्हें नई जानकारी मिलती है
या वो पहेली सुलझाने के लिए
बेचैन हो जाते है।
जब कोई बात उनकी अपेक्षाओं से विरुद्ध होती
है तो उन्हे वह रोचक लगती है।
स्काउट्स के संस्कार अलग होते है।
वे ज़्यादातर यही कहेंगे कि
अपनी अास्था का परीक्षण करना
नेक बात है
वे यह नहीं कहेंगे कि जो अपना मन बदलता है
वह कमज़ोर है।
और सबसे बड़ी बात,
स्काउट्स मौलिक होते है
अर्थात, स्वयं का व्यक्तिगत मूल्य
उनके किसी विषय में सही या
गलत होने पर निर्भर नही है
तो वे मान सकते है कि
मृत्यु दंड काम करता है
अगर लेख बताते हैं कि ऐसा नही है,
तो वे कह सकते है,
"अरे, लगता है मैं गलत हूँ, इसका ये मतलब
तो नही कि मैं बुरा या बेवकूफ़ हूँ।"
शोधकर्ताओं के
और मेरे उपाख्यान के हिसाब से --
ऐसी विशेषताएँ अच्छे निर्णयों का --
अनुमान लगाती हैं
और जाते-जाते मैं आपको यह बताना चाहती हूँ,
कि यह गुण आपकी होशियारी से जुड़ी नही हैं
और न ही आपके ज्ञान से
असल में ये आपकी बुद्धि
से संबंधित ही नही हैं
ये आपकी भावनाओं से जुड़ी हैं।
सेंट-एक्सुपेरी की कही एक बात है
जिसे मैं बार-बार याद करती हूँ।
वे "लिटिल प्रिंस" के लेखक है।
उन्होंने कहा था, "यदि तुम
जहाज बनाना चाहते हो,
तो अपने आदमियों को
लकड़ियाँ इकट्ठा करने के आदेश मत दो
और काम को मत बाँटो।
इसके बजाय उनको विशाल और असीम
समंदर के लिए तड़पना सिखाओ।"
अर्थात मेरा यह मानना है
यदि हम अपने निर्णयों को
सुधारना चाहते हैं, व्यक्तिगत
और सामाजिक तौर पर,
तो हमें तर्क में और शिक्षण
की ज़रूरत नही है
न वक्रपटुता में, न संभाव्यता में
और न अर्थशास्त्र में
भले ही यह सारी बातें भी महत्वपूर्ण हो।
पर इन सिद्धांतों के सदुपयोग के लिए
हमें स्काउट मानसिकता की
ज़रूरत है,
और हमें चीज़ों को।
महसूस करने के तरीके को बदलना होगा।
हमें यह सीखना होगा कि जब हम गलत होते हैं
तो हमें उस बात की शर्म नही गर्व होना चहिए।
हमें अति संवेदनशील होने के बजाय
जिज्ञासु होना सीखना होगा,
जब हमें अपने विश्वास से विपरीत
जानकारी मिलती है।
जाते-जाते मैं आपसे यह
सवाल पूछना चाहती हूँ :
आप सबसे ज़्यादा किस लिए तरसते हो?
अपने यकीन का बचाव करने के लिए तरसते हो?
या फिर इस संसार को सबसे स्पष्ट रूप से
देखने के लिए तरसते हो?
धन्यवाद।
(तालियाँ)