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बर्लिन की दीवार का उदय तथा पतन।

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    १३ अगस्त १९६१ की सुबह-सुबह,
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    सैनिकों और पुलिस द्वारा सशक्त,
    पूर्वी जर्मनी के मज़दूरों ने
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    बर्लिन के सारे शहर में, तथा आस-पास,
    सड़कें तोड़ना और
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    अवरोध खड़े करना शुरू किया।
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    इस रात से इतिहास की सबसे कुख्यात
    विभाजन रेखा बनने की शुरुआत हुई,
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    जिसे बर्लिन की दीवार कहते हैं।
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    अड़ोस-पड़ोस को काटती हुई,
    परिवारों को अलग करती,
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    इस दीवार का निर्माण
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    एक दशक तक चलता रहा
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    जिसने न केवल जर्मनी को,
    बल्कि पूरे विश्व को विभाजित किया।
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    हम ऐसी स्थिति में पहुँचे कैसे
    यह समझने के लिए
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    हमें द्वितीय विश्व युद्ध में जाना पड़ेगा।
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    अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस ने
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    धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध
    सोवियत संघ के साथ सेना मिलाई।
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    नाज़ी जर्मनी को हराने के बाद,
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    सारे विजयी देशों ने
    उसके हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया।
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    यह विभाजन अल्पकालिक होना था,
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    लेकिन भूतपूर्व सहयोगो दलों के
    युद्ध के बाद
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    यूरोप के ऊपर दृष्टिकोण नहीं मिले।
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    जहाँ पश्चिमी शक्तियाँ
    उदार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती थी
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    सोवियत संघ खुद को आज्ञाकारी
    साम्यवादी राष्ट्रों से घिरा रखना चाहता था,
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    और इसमें दुर्बल हुआ जर्मनी भी शामिल था।
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    जैसे-जैसे इनके सम्बन्ध बिगड़ते गए,
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    पश्चिम में जर्मन संघीय गणराज्य बन गया,
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    जबकि सोवियत संघ ने पूर्व में
    जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य बना लिया।
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    सोवियत के उपग्रह देश पश्चिमी व्यापार
    और संचालन को प्रतिबंधित करते थे,
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    तो एक आभासी अगम्य सीमा बन गई।
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    इसको लोहे का परदा कहा जाने लगा।
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    जर्मनी की पूर्व राजधानी, बर्लिन में
    स्थिति विशेष रूप से जटिल थी।
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    जबकि यह पूरा शहर जर्मन लोकतांत्रिक
    गणराज्य के पूर्वी जर्मन क्षेत्र में आता था
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    युद्ध के पश्चात हुआ अनुबंध
    सहयोगी दलों को संयुक्त प्रशासन देता था।
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    तो अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने
    बर्लिन के पश्चिमी जिलों में
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    एक लोकतांत्रिक अन्तःक्षेत्र बना लिया।
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    जहाँ पूर्वी जर्मन लोगों का देश से निकलना
    सरकारी तौर पर प्रतिबंधित था,
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    बर्लिन में यह केवल थोड़ा पैदल चल कर,
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    या भूमिगत रेल, गाड़ी या बस से
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    पश्चिमी हिस्से में जा कर,
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    पश्चिमी जर्मनी या उससे आगे
    सफर करके किया जा सकता था।
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    यह खुली सीमा पूर्वी जर्मनी के
    नेतृत्व के लिए समस्या बनकर खड़ी थी।
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    उन्होंने हिटलर के विरुद्ध साम्यवादी
    प्रतिरोध के प्रतिनिधित्व के अधिकार का दावा
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    और पश्चिमी जर्मनी को नाज़ी शासन के
    विस्तार की तरह चित्रित किया था।
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    जहाँ अमेरिका और उसके मित्र-राष्ट्र पश्चिमी
    जर्मनी के पुनर्निर्माण में पैसा बहा रहे थे
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    वहाँ सोवियत संघ पूर्व से युद्ध की
    क्षतिपूर्ति के रूप में संसाधन ऐंठ रहा था,
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    जिससे उसकी आयोजित अर्थव्यवस्था और भी कम
    प्रतिस्पर्धात्मक होती जा रही थी।
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    पूर्वी जर्मनी में राज्य सुरक्षा मंत्रालय
    की चौकन्नी नज़रो के नीचे जीवन गुज़रता था
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    जो ऐसी गुप्त पुलिस थी जिसके वायरटैप
    और मुखबिर किसी भी द्रोह के संकेत के लिए
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    नागरिकों पर नज़र रखते थे।
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    जहाँ पूर्व में निःशुल्क चिकित्सा
    और शिक्षा मिलती थी,
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    पश्चिम उच्च वेतन,
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    अधिक उपभोक्ता वस्तुओं, और
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    अधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता
    पर छाती चौड़ी करता।
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    १९६१ तक, करीब ३५ लाख़ लोग,
    पूर्वी जर्मनी की लगभग २०% आबादी,
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    देश छोड़ चुकी थी,
    जिसमें बहुत से पेशेवर युवा भी शामिल थे।
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    और अधिक नुकसान से बचने के लिए
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    पूर्वी जर्मनी ने सीमा बन्द करने का
    निर्णय लिया और इस तरह बर्लिन की दीवार बनी।
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    बर्लिन में से ४३ किलोमीटर के
    विस्तार पर होते हुए,
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    और ११२ किलोमीटर पूर्वी जर्मनी में से
    आगे बढ़ता हुआ,
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    पहला अवरोध कांटेदार तार
    और जाली की बाड़ से बना था।
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    जर्मनी के कुछ लोग तार के ऊपर से कूद कर,
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    या खिड़कियों में से निकल कर भाग गए,
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    लेकिन जैसे जैसे दीवार का विस्तार हुआ,
    यह और अधिक कठिन हो गया।
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    १९६५ तक, १०६ किलोमीटर की,
    ३.६ मीटर ऊँची बजरी की आड़ बना दी गयी थी,
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    जिसके ऊपर कूदने से रोकने के लिए
    एक चिकना पाइप था।
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    आने वाले कुछ वर्षों में,
    इस आड़ को कीलों की पट्टियों,
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    पहरेदार कुत्तों
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    यहाँ तक कि बारूदी सुरंगों,
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    ३०२ पहरे की मीनारों और
    २० तहखानों से भी सशक्त किया गया।
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    पीछे अक्षांश बाड़ से १०० मीटर का क्षेत्र
    शुरू होता था जिसे मौत की पट्टी कहते थे।
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    वहाँ सारी इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया
    और ज़मीन को रेत से ढक दिया गया
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    ताकि सैंकड़ों पहरदारों को साफ़ दिख सके,
    जिन्हें,
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    किसी भी पार करने की कोशिश करने वाले को
    देखते ही गोली मारने के आदेश थे।
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    इसके बावजूद, १९६१ और १९८९ के बीच
    करीब ५००० लोग पूर्वी जर्मनी से
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    भागने में सफल हुए।
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    कुछ राजनीतिज्ञ या खिलाड़ी थे
    जो तब भाग गए जब वो विदेश में थे,
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    लेकिन बाकी लोग सामान्य नागरिक थे
    जो सुरंगें खोद कर,
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    नहरों में से तैर कर,
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    गरम हवा का गुब्बारों से उड़ कर,
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    और यहाँ तक कि एक चुराए हुए टैंक को
    दीवार में से मार निकाल कर भाग गए।
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    फ़िर भी जोखिम बहुत बड़ा था।
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    १३८ से भी ज़्यादा लोग
    भागने की कोशिश में मारे गए।
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    कुछ तो पश्चिमी जर्मनी के, मदद करने के लिए
    बेबस लोगों को, साफ़ दिखाई देते हुए मारे गए।
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    दीवार ने कार्यबल को जाने से रोक, पूर्वी
    जर्मनी की अर्थव्यवस्था को तो स्थायी किया।
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    लेकिन उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया,
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    जिससे वह साम्यवादी दमन का
    वैश्विक प्रतीक बन गया।
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    पूर्व के साथ सन्धि करने के अन्तर्गत,
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    १९७२ की बुनियादी सन्धि ने पूर्वी जर्मनी
    को व्यावहारिक रूप से मान्यता दी,
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    जबकि पश्चिमी जर्मनी ने अन्ततः
    एकीकरण होने की आशा को बरक़रार रखा।
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    जबकि पूर्वी शासन धीरे-धीरे परिवारों को
    मिलने की स्वीकृति देता रहा
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    कठिन सत्तावादी प्रक्रिया और उच्च शुल्क से
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    वह लोगों को यह अधिकार प्रयोग कर से
    हतोत्साहित करता रहा।
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    फिर भी, वह आवेदन पत्रों से अभिभूत था।
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    १९८० के दशक का अन्त होते होते,
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    अन्य पूर्वी गुटों के शासनों के
    उदारीकरण को वजह से
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    निःशुल्क यात्रा और लोकतंत्र की
    माँग के लिए सामूहिक प्रदर्शन हुए।
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    ९ नवम्बर १९८९ की संध्या को,
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    पूर्वी जर्मनी ने यात्रा की अनुमति मिलने को
    आसान बनाकर तनाव को शान्त करने की कोशिश की।
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    लेकिन यह घोषणा
    हज़ारों पूर्वी बर्लिन के लोगों को
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    दीवार में बने सीमा पार करने के
    स्थलों पर ले आई,
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    जिससे आश्चर्यचकित पहरेदारों को
    तुरन्त दरवाज़े खोलने पड़े।
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    जहाँ दोनों तरफ के लोग
    दीवार के ऊपर नाच रहे थे,
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    प्रसन्नता से भरपूर जनसमूह
    पश्चिमी बर्लिन में जैसे बह आया।
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    और बाकी लोग दीवार को, जो भी
    उपकरण मिला, उससे ध्वस्त करने लगे।
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    जबकि सीमा रक्षकों ने शुरू मे
    व्यवस्था बरक़रार रखने की कोशिश की
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    जल्द ही यह साफ़ हो गया कि
    विभाजन का समय अब अन्त पर था।
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    चार दशकों के बाद, १९९० में
    जर्मनी का आधिकारिक तौर पर पुनर्मिलन हुआ।
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    और उसके थोड़े ही समय में
    सोवियत संघ का विनाश हुआ।
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    दीवार के कुछ हिस्से आज भी खड़े हैं,
    यह याद दिलाने के लिए
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    कि स्वतन्त्रता को प्रतिबाधित करने के लिए
    हम जो भी अवरोध खड़े करें,
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    हम उन्हें तोड़ भी सकते हैं।
Title:
बर्लिन की दीवार का उदय तथा पतन।
Speaker:
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पेट्रियोन पृष्ट देखें: https://www.patreon.com/teded

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१३ अगस्त १९६१ को, पूर्वी जर्मनी के मज़दूरों ने बर्लिन में, सड़कें तोड़ना और अवरोध खड़े करना शुरू किया। इस रात से इतिहास की सबसे कुख्यात विभाजन रेखा बनने की शुरुआत हुई, जिसे बर्लिन की दीवार कहते हैं। अड़ोस-पड़ोस को काटती हुई, परिवारों को अलग करती, इस दीवार का निर्माण, एक दशक तक चलता रहा, जिसने न केवल, जर्मनी को, बल्कि पूरे विश्व को विभाजित किया।

कॉनरैड ह. जरायश्च बर्लिन की दीवार का इतिहास विस्तार में बताते हैं।

पाठ कॉनरैड ह. जरायश्च द्वारा, जीव-संचारण रेमस और कीकी द्वारा।

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English
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