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शम्रिंदगी की कीमत

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    आपके सामने एक ऐसी औरत खडी है
    जो सार्वजनिक तौर पर दस साल से ख़ामोश रही।
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    ज़ाहिर है, वो ख़ामोशी टूट रही है,
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    और ये हाल में ही शुरु हुआ है।
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    तब से कुछ महीने बीत चुके हैं
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    जब मैने पहली बार सार्वजनिक रूप से कुछ बोला
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    फ़ोर्ब्स थर्टी अंडर थर्टी सम्मेलन में:
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    ३० साल से कम उम्र के १५००
    प्रतिभाशाली लोगों के सामने
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    अंदाज़ा लगाइये कि १९९८ में
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    इन में से सब से बडे लोग भी
    बमुश्किल 14 साल के रहे होंगे,
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    और सब से छोटे तो बस चार बरस के।
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    मैने मज़ाक में उन से कहा कि
    आप मे कुछ ने तो मेरा नाम सुना भी होगा
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    तो सिर्फ़ र्रैप गानों में।
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    जी हाँ-मैं रैप गानों में बकायदा मौज़ूद हूँ।
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    लगभग ४० रैप गानों में । (हँसी)
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    पर जिस रात मैनें वो भाषण दिया,
    एक अचरच भरी बात हुई।
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    ४१ साल की उमर में मेरे करीब आने की कोशिश
    की २७ साल के एक लडके नें ।
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    बाप रे! है न?
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    वो बहुत अच्छा था और
    मैं काफ़ी खुश महसूस कर रही थी,
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    मगर मैने बात वहीं खत्म कर दी।
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    पर पता है उसने मुझसे क्या कहा?
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    कि वो मुझे फिर से 22 जैसा महसूस करवाएगा।
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    (ठहाका) (अभिवादन)
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    मैने उस रात बाद में सोचा, कि शायद
    मैं ऐसी अकेली ४० साल के व्यक्ति हूँ
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    जो फिर से कभी २२ की नहीं होना चाहती।
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    (ठहाका)
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    (अभिवादन)
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    २२ साल की उम्र में,
    मुझे अपने बॉस से प्यार हो गया,
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    और २४ की उम्र में,
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    मैने उसके भयानक नतीज़े झेले।
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    क्या यहाँ बैठे लोगों में से
    वो शख्स हाथ उठायेंगे
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    जिनसे २२ की उम्र में कोई गल्ती नहीं हुई
    या ऐसा कुछ जिसका उन्हें पछतावा नही है?
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    बिलकुल। मैने ठीक सोचा था कि
    ऐसा कोई नहीं होगा।
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    तो मेरी ही तरह, २२ साल में,
    आप में कुछ लोग गलत मोडों पर मुडे होंगे
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    और गलत लोगों के प्यार में पडे होंगे,
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    हो सकता अपने बॉस के प्यार में।
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    लेकिन मेरी तरह शायद आपके बॉस
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    अमरीका के राष्ट्रपति नहीं रहे होंगे।
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    सच है कि ज़िंदगी अजूबों से भरी पडी है।
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    एक दिन भी ऐसा नहीं जाता जब मुझे
    अपनी गलती याद नहीं करायी जाती,
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    और मुझे अपनी गलती का भरपूर पश्चाताप भी है।
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    १९९८ में पहले मैं ऐसे रोमांस के भँवर में
    फ़ँसी जिसका अंत होना ही नहीं था,
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    और फिर ऐसे भयानक राजनीतिक,
    कानूनी और मीडिया के भँवर में फ़ँसी
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    जैसा मैने कभी न देखा था न सोचा था।
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    याद कीजिये, कि १९८८ से
    सिर्फ़ कुछ साल पहले तक ही,
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    समाचार सिर्फ़ तीन जगहों से मिलते थी:
  • 2:55 - 2:58
    अखबार या मैगज़ीन पढ कर,
  • 2:58 - 2:59
    रेडियो सुन कर,
  • 2:59 - 3:01
    या टीवी देख कर।
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    बस।
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    मगर मेरे भाग्य में कुछ और था।
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    इस स्कैंडल की खबर आप तक
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    डिजिटल क्रांति के ज़रिये आई।
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    इसका अर्थ ये था कि हम
    जानकारी पा सकते थे
  • 3:16 - 3:20
    जब हम चाहें, जहाँ हम चाहें,
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    और जब जनवरी १९९८ में ये खबर निकली,
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    तो वो ऑनलाइन निकली।
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    पहली बार ऐसा हुआ कि पारंपरिक मीडिया को
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    इंटरनेट ने पछाड दिया था
    एक बडी खबर को ले कर
  • 3:35 - 3:40
    एक क्लिक जो सारी दुनिया में गूँज उठी थी।
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    निज़ी तौर पर मेरे लिये इसका मतलब था
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    कि रातोंरात मैं पूरी तरह से
    गुमनाम व्यक्ति से
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    सारी दुनिया में बदनाम व्यक्ति में बदल गयी।
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    मैं पहली शिकार थी; अपनी सारी प्रतिष्ठा
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    सारे विश्व में एक क्षण में गँवा देने
    की इस नयी बीमारी की।
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    फ़ैसला सुनाने की इस दौड को टेक्नॉलजी
    ने और हवा दी।
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    वर्चुअल पथराव करने वालों की तो
    मानो भीड इकट्ठा हो गयी थी।
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    हालांकि तब तक सोशल मीडिया
    का ज़माना नहीं आया था,
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    मगर तब भी लोग ऑन्लाइन
    कमेंट कर सकते थे,
  • 4:17 - 4:23
    ईमेल में जानकारी और भद्दे कमेंट
    भेज सकते थे।
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    समाचार मीडिया नें मेरी तस्वीरों को
    हर जगह चिपका डाला
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    अखबार और ऑनलाइन बैनर
    विज्ञापन बेचने के लिये,
  • 4:30 - 4:32
    और लोगों को टीवी से चिपकाने के लिये।
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    आपको मेरी कोई ख़ास तस्वीर याद आती है,
  • 4:37 - 4:40
    वो बेरेट टोपी पहनी हुई?
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    देखिये, मैं अपनी गलती मानती हूँ
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    ख़ासकर उस टोपी को पहनने की।
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    मगर जो छीेछालेदर मेरी की गयी,
    इस खबर की नही,
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    बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरी,
    वो सच में ऐतिहासिक थी।
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    मेरी ब्रांडिग कर दी गयी - बदचलन,
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    आवारा, वेश्या, स्लट, वेबकूफ़,
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    और, ज़ाहिर है, "उस टाइप की औरत"।
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    बहुत लोगों ने मुझे देखा,
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    मगर बहुत कम ने मुझे जाना।
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    और मैं समझ सकती हूँ: बहुत आसान है
    ये भूलना कि
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    "उस टाइप की औरत" का एक वज़ूद था,
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    उसकी भी अत्मा थी, और एक ज़माने में
    वो ऐसी टूटी हुई बिखरी हुई नहीं थी।
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    जब १७ साल पहले मेरे साथ ये हुआ,
    इस के लिये कोई नाम नहीं था।
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    अब हम इसे साइबर-बुलीइंग और
    ऑन्लाइन उत्पीडन कहते हैं।
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    आज मैं आप के साथ अपने कुछ
    अनुभव बाँटना चाहती हूँ,
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    और उन अनुभवो की रोशनी में अपने
    कल्चर पर कुछ टिप्पणियाँ करना चाहती हूँ,
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    और बताना चाहती हूँ कि मैं कितनी आशा रखती
    हूँ कि इस के ज़रिये ऐसा बदलाव आयेगा जिस से
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    कुछ और लोगों के जीवन में कुछ
    परेशानी कम होगी।
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    १९९८ मे, मैने अपनी प्रतिष्ठा और
    आत्म-सम्मान खो दिया।
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    मेरा लगभग सब कुछ लुट गया था
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    और मैने अपनी जीवन भी लगभग खो ही दिया था।
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    मैं आप के लिये एक दृश्य रचती हूँ।
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    सितंबर १९९८ है।
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    मैं बिना किसी खिडकी वाले
    दफ़्तरनुमा कमरे में बैठी हूँ
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    इन्डिपेंडेट काउंसल के ऑफ़िस मे,
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    बजबजाती हुई ट्यूबलाइटों की रोशनी में
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    मैं अपनी ही आवाज़ सुन रही हूँ,
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    उन फ़ोन कॉल से आती मेरी आवाज़
    जो गुप्त रूप से टेप किये गये थे
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    मेरे एक तथाकथित दोस्त के द्वारा -
    लगभग एक साल पहले।
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    मैं वो सुन रही हूँ क्योंकि
    कानूनन मुझे उन्हें सुनना ही पडेगा
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    निजी रूप से २० घंटे लंबे उन टेपों की
    वैधता सुनिश्चित क्ररने के लिये।
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    पिछले आठ महीनों से
    इन टेपों में जमा सामग्री
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    मेरे ऊपर तलवार की तरह
    उल्टी लटक रही थी।
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    मतलब, कौन याद रख सकता है
    कि एक साल पहले उस ने क्या कहा था?
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    सहमी हुई और बेज्ज्त, मै सुन रही हूँ,
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    सुन रही हूँ उस दिन की आपाधापी;
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    सुन रही हूँ खुद को, राष्ट्रपति के प्रति
    अपने प्यार का इज़हार करते हुए,
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    और फिर अपने दिल टूट्ने का जिक्र करते हुए;
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    कभी कभी तेज-तर्रार, कभी बस नासमझी भरी
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    कभी खराब बर्ताव करती, कभी असभ्य;
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    सुन रही हूँ, अंदर तक, गहरे भीतर तक शर्मिंदा,
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    अपने सबसे खराब स्वरूप का सामना करती,
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    ऐसा रूप जिसे मैं पहचान तक नहीं पाती।
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    कुछ दिन बाद, संसद में स्टार्र रिपोर्ट पेश होती है,
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    और वो सारे टेप, वो चुराये गयी बातचीत,
    उसमें सम्मिलित हैं ।
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    ये डरावना है कि लोग उन सब बातों को
    पढ सकते हैं,
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    और कुछ हफ़्तों बाद, ,
  • 8:02 - 8:05
    वो ऑडियो टेप टीवी पर सुनाये जाते हैं,
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    और उस में ज्यादातार हिस्सा ऑनलाइन रिलीज़ होता है।
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    पब्लिक में होने वाला अपमान दर्दनाक था।
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    जीवन ढोया नहीं जाता था।
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    और १९९८ में ऐसे किस्से हरदिन नहीं होते थे,
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    और ऐसे किस्से का अर्थ है चोरी से - लोगों
    के निज़ी वार्तालाप और निज़ी क्रियाकलापो की
  • 8:32 - 8:34
    और फ़ोटो की,
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    और फ़िर उन्हें सार्वजनिक करने से --
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    बिना इजाज़त के सार्वजनिक करने से --
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    बिना किसी संदर्भ के सार्वजनिक करने से --
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    और बिना किसी संवेदना के सार्वजनिक करने से।
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    12 साल आगे चलते है 2010 में,
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    और एक नया सोशल मीडिया जन्म ले चुका है।
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    दुर्भाग्य से, मेरे साथ जो हुआ, वो आम
    बात हो चुकी है,
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    भले ही किसी ने कोई गल्ती की हो या नहीं,
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    भले ही ये पब्लिक फ़िगर हो या आम आदमी।
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    कुछ लोगो के लिये इस के नतीज़े बहुत
    ही ज्यादा बुरे साबित हुए हैं।
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    मैं अपनी माँ से फ़ोन पर बात क्रर रही था
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    सितंबर २०१० में,
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    और हम उस ख़बर का ज़िक्र कर रहे थे
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    रुट्गर यूनिवर्सिटी के
    फ़र्स्ट इयर के युवा छात्र,
  • 9:24 - 9:26
    टाइलर क्लेमेंटी के बारे में।
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    प्यारा, संवेदनशील और रचनात्मक टाइलर
  • 9:30 - 9:32
    का एक ऐसा वि्डियो उसके रूम मेट ने बना लिया
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    जिसमें वो एक और आदमी के साथ अंतरंग होता दिखता था।
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    जब ऑनलाइन दुनिया को इस वाकये की
    खबर लगी,
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    तो भद्दी बेज्जती और साइबर-बु्लींग
    का विस्फ़ोट हो गया।
  • 9:44 - 9:46
    कुछ दिन बाद,
  • 9:46 - 9:50
    टाइलर ने जार्ज वाशिंगटन पुल से
    छलांग लगा कर
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    जान दे दी।
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    वो महज़ 18 साल का था।
  • 9:56 - 10:00
    मेरी माँ अपना आपा खो बैठी थीं
    टाइलर और उसके परिवार के बारे में सोच कर।
  • 10:00 - 10:03
    और असहनीय दुःख से भर गयी थीं,
  • 10:03 - 10:07
    और पहलेपहल मुझे ये समझ नही आया
  • 10:07 - 10:09
    लेकिन धीरे धीर्रे मैने महसूस किया कि
  • 10:09 - 10:12
    वो १९९८ को फिर से जी रही थीं,
  • 10:12 - 10:16
    वो समय जब वो हर रात
    मेरे सिरहाने बैठ कर बिताती थीं,
  • 10:19 - 10:25
    वो समय जब वो मुझे बाथरूम
    का दरवाज़ा बंद नहीं करने देती थीं
  • 10:25 - 10:29
    और वो समय जब मेरे माता -पिता
    को हरदम डर लगता था कि
  • 10:29 - 10:32
    इतनी बदनामी मेरी जान ले कर रहेगी,
  • 10:32 - 10:34
    सचमुच।
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    आज, बहुत सारे माता-पिता
  • 10:39 - 10:43
    को ये मौका ही नहीं मिल पाता है कि
    वो अपने बच्चों को बचा पाये।
  • 10:43 - 10:47
    बहुत लोगों को अपने बच्चों
    की परेशानी का पता तब लगता है
  • 10:47 - 10:49
    जब बहुत देर हो चुकी होती है।
  • 10:50 - 10:55
    टाइलर की दुख्द, बेमतलब मौत
    मेरे लिये बहुत बडा क्षण बनी।
  • 10:55 - 10:59
    उस घटना ने मेरे अनुभवों
    को एक नया संदर्भ दिया,
  • 10:59 - 11:03
    और मैने अपने आसपास फ़ैले शोषण और
    ज़ोर-जबरदर्स्ती को महसूस किया,
  • 11:03 - 11:06
    और नए सिरे से देखना शुरु किया।
  • 11:06 - 11:12
    १९९८ में हमारे पास ये जानने का
    कोई तरीका नहीं था कि ये नयी तकनीक
  • 11:12 - 11:14
    जिसे हम इंटरनेट कहते थे,
    हमें कहाँ ले जायेगी ?
  • 11:14 - 11:18
    तब से, इंटरनेट ने लोगों को
    नये तरीकों से जोडा है,
  • 11:18 - 11:20
    बिछडे भाई-बहनों को मिलवाया है,
  • 11:20 - 11:24
    जाने बचायी है, आंदोलन शुरु करवाये हैं,
  • 11:24 - 11:29
    मगर जो अँधेरा, साइबर-बुलींग, और स्लट बता
    की गयी शमिंदगी मैने देखी,
  • 11:29 - 11:32
    वो कई गुना बढी है।
  • 11:33 - 11:38
    हर दिन, ऑनलाइन, खास तौर पर कम उम्र के लोग,
  • 11:38 - 11:41
    जो कि इस से निपटने के लिये
    तैयार तक नहीं हैं,
  • 11:41 - 11:43
    इतने शोषित और प्रताडित होते हैं
  • 11:43 - 11:46
    कि वो अगले दिन तक जीना भी नहीं चाहते,
  • 11:46 - 11:49
    और कुछ तो, सच में, जीते भी नहीं,
  • 11:49 - 11:52
    और ये ऑन्लाइन नहीं,
    असली दुनिया में होता है
  • 11:54 - 12:00
    यू.के. की एक संस्था जो कि कई तरह से
    युवाओं की मदद करती है, चाइल्डलाइन
  • 12:00 - 12:03
    ने पिछले साल एक तथ्य ज़ारी किया था:
  • 12:03 - 12:07
    २०१२ से २०१३ के बीच,
  • 12:07 - 12:10
    ८७ प्रतिशत बढत देखी गयी है
  • 12:10 - 12:15
    साइबर-बुलींग से जुडी ईमेल और फ़ोन कॉल में।
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    नीदरलैंड में की गयी एक जाँच में
  • 12:17 - 12:19
    पहली बार ये पता लगा
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    कि साइबर-बुलींग खुद्कुशी की बडी
    वजह बन रहा है,
  • 12:24 - 12:28
    ऑफ़्लाइन बुलींग के मुकाबले।
  • 12:28 - 12:32
    हालांकि इस में अचरच की बात नहीं हैं,
    लेकिन मुझे ये जान कर बडा झटका लगा कि
  • 12:32 - 12:36
    एक और जाँच ने पता लगाया कि
    प्रताडित किए जाने की भावना
  • 12:36 - 12:39
    को लोग ज्यादा महसूस कर रहे हैं
  • 12:39 - 12:43
    बजाये खुशी के, और बजाय गुस्से के।
  • 12:44 - 12:47
    दूसरों के प्रति निष्ठुरता
    कोई नयी बात नहीं है,
  • 12:47 - 12:54
    मगर ऑन्लाइन, तकनीकी तरीकों से
    करे जाने पर ये कई गुना बढ जाती है,
  • 12:54 - 12:59
    बेकाबू हो जाती है, और
    हर समय होती रहती है।
  • 12:59 - 13:05
    पहले तो शर्मिंदगी
    सिर्फ़ आस-पासपरिवार, गाँव,
  • 13:05 - 13:07
    स्कूल या नजदीकी समाज तक सीमित थी,
  • 13:07 - 13:11
    मगर अब ये ऑनलाइन भी होती है।
  • 13:11 - 13:14
    लाखों लोग, बिन जान-पहचान के,
  • 13:14 - 13:18
    आपको अपने शब्दों से छलनी करते हैं,
    और ये बहुत पीडादायी होता है,
  • 13:18 - 13:21
    और इसकी कोई बाउंडरी नही है कि
    कितने लोग
  • 13:21 - 13:23
    आपको देख सकते हैं,
  • 13:23 - 13:27
    और आप पर सार्वजनिक रूप से
    कमेंट कर सकते हैं।
  • 13:28 - 13:30
    बहुत निजी तौर चुकानी होती है
  • 13:30 - 13:32
    सार्वजनिक शर्मिंदगी की,
  • 13:33 - 13:39
    और इंटरनेट के चलते चुकाई गयी
    कीमत कई गुना बढ चुकी है।
  • 13:40 - 13:42
    लगभग पिछले दो दशकों से,
  • 13:42 - 13:46
    हम धीरे धीरे शमिंदगी और सार्वजनिक बेज्जती
    के बीज बोते आ रहे हैं
  • 13:46 - 13:52
    अपनी संस्कृति की ज़मीन मे
    ऑन्लाइन और ऑफ़्लाइन दोनो तरह से।
  • 13:52 - 13:57
    गप्प-गॉसिप वेबसाइट, पापारात्ज़ी कैमरा,
    रियलटी टीवी, राजनीति
  • 13:57 - 14:03
    समाचार मीडिया और कभी कभी हैकर भी,
    इस प्रताडना का हिस्सा बनते हैं।
  • 14:03 - 14:07
    संवेदन हीनता की इज़ाजत सी मिल गयी है
    ऑनलाइन दुनिया में
  • 14:07 - 14:14
    जिस से, दादागिरी, निजता के हनन, और
    साइबर-बुलींग को बढावा मिल रहा है।
  • 14:14 - 14:17
    इस से कुछ ऐसा पैदा हुआ है
    जिसे प्रोफ़ेसर निकोलस मिल्स
  • 14:17 - 14:21
    प्रताडना के कल्चर का नाम देते हैं।
  • 14:21 - 14:26
    पिछले छः महीनों के कुछ बडे
    उदाहरण ले कर देखिये।
  • 14:26 - 14:31
    स्नैप-चैट, एक ऑन्लाइन सर्विस
    जो ज्यादातर युवा इस्तेमाल करते हैं,
  • 14:31 - 14:34
    और जो संदेशों को मिटाने का दावा करती है
  • 14:34 - 14:36
    कुछ ही क्षणॊं में।
  • 14:36 - 14:39
    आप समझ सकते है कि
    किस तरह के संदेश वहाँ चलते होंगे।
  • 14:39 - 14:43
    एक तीसरी कंपनी जो स्नैप-चैटर के यूज़र
    को मैसेज सेव करने देती थी
  • 14:43 - 14:46
    हैक की गयी
  • 14:46 - 14:53
    और एक लाख निज़ी बातचीतें और फ़ोटो
    और विडियो ऑन्लाइन लीक हो गये
  • 14:53 - 14:57
    और अब वो सदा सदा के लिये
    सार्वजनिक हो गये हैं।
  • 14:57 - 15:01
    जेनिफ़र लारेंस और कई और फ़िल्म
    कलाकारों का आई-क्लाउड हैक हो गया,
  • 15:01 - 15:05
    और उनके निजी, नग्न फ़ोटो
    सारी इंटरनेट पर पब्लिक हो गये
  • 15:05 - 15:07
    बिना उनकी इजाजत के।
  • 15:07 - 15:11
    एक ग्प्प-गॉसिप वेबसाइट पर
    50 लाख बार हिट हुआ
  • 15:11 - 15:14
    सिर्फ़ इस एक खबर के लिये।
  • 15:15 - 15:19
    और सोनी पिक्चर की हैकिंग?
  • 15:19 - 15:22
    जिन दस्तावेजों को सबसे अधिक देख गया
  • 15:22 - 15:28
    वो निजी ईमेल था जिनमे सबसे
    ज्यादा शमिंदा करने की क्षमता थी।
  • 15:28 - 15:31
    मगर प्रताडना के इस कल्चर में,
  • 15:31 - 15:35
    सार्वजनिक शमिंदगी से प्राइस-टैग भी जुडे है
  • 15:36 - 15:39
    और ये प्राइस-टैग पीडित द्वारा चुकाई
    गयी कीमत को नही नापते,
  • 15:39 - 15:41
    जो टाइलर और कई और लोगों को,
  • 15:41 - 15:43
    खासकर, औरतो और अल्प-संख्यकोंको
    चुकानी पडती है।
  • 15:43 - 15:47
    और एल.जी.बी.टी.क्यू लोगों ने चुकाई है,
  • 15:47 - 15:52
    मगर ये प्राइस-टैग बखूबी नापता है
    इस से पैदा होने वाले मुनाफ़े को।
  • 15:53 - 15:57
    दूसरों पर किया गया हमला जैसे कच्चा माल है,
  • 15:57 - 16:03
    हमला जो क्रूर्ता और दक्षता से होता है,
    और पैकेज कर के मुनाफ़े में बेचा जाता है
  • 16:03 - 16:09
    एक बाज़ार विकसित हुआ है
    जहाँ सार्वजनिक शमिंदगी बिकती है
  • 16:09 - 16:12
    और प्रताडना एक इंडस्ट्री बन गयी है।
  • 16:12 - 16:16
    और पैसा बनता कैसे है?
  • 16:16 - 16:18
    क्लिक्स से।
  • 16:18 - 16:20
    जितनी शर्मिंदगी, उतने क्लिक्स।
  • 16:20 - 16:24
    जितने क्लिक्स, उतने विज्ञापनी डॉलर।
  • 16:25 - 16:28
    हम खतरनाक भँवरजाल में हैं।
  • 16:28 - 16:31
    जितना ही हम इस तरह की चीजों
    को क्लिक करेंगे,
  • 16:31 - 16:34
    उतना हे संवेदनशील हम होंगे,
    उन खबरों के पीछे छुपे इंसानों के प्रति,
  • 16:34 - 16:40
    और जितन हम संवेदना हीन हेगे,
    उतना ही हम क्लिक करेंगे।
  • 16:40 - 16:43
    और पूरे समय, कोई इस से पैसा कमा रहा होगा
  • 16:43 - 16:46
    किसी और के दुख परेशानी और
    उत्पीडन के ज़रिये।
  • 16:47 - 16:50
    हर क्लिक के ज़रिये हम एक विकल्प चुनते हैं
  • 16:50 - 16:53
    जितना ही हम अपने क्लचर को
    सार्वजनिक शमिंदगी से भरेंगे,
  • 16:53 - 16:55
    उतना ही स्वीकार्य ये होती जायेगी,
  • 16:55 - 16:58
    और उतनी ही साइबर-बुलींग हम देखेंगे,
  • 16:58 - 17:01
    उतनी ही हैकिंग, और धमकीगर्दी।
  • 17:01 - 17:04
    और ऑनलाइन उत्पीडन।
  • 17:04 - 17:11
    क्यों? क्योंकि इन सबके जडोंमें शर्मिंदगी है।
  • 17:11 - 17:16
    ये बर्ताव उस कल्चर का लक्षण है जो
    हमने रचा है
  • 17:16 - 17:18
    थोडा सोच कर देखिये।
  • 17:19 - 17:23
    बर्ताव में बदलाव शुरु होता है
    बदलते मूलोंसे।
  • 17:23 - 17:26
    हमने ये होते देखा है रेसिस्म, होमोफ़ोबिया,
  • 17:26 - 17:30
    और ऐसे ही कई और चीज़ोंमें , आज
    और इतिहास में।
  • 17:31 - 17:34
    और हमारे नज़्ररियों मे बदलाव आया है -
    सम-लैंगिक शादियों को ले कर।
  • 17:34 - 17:39
    ज्यादा से ज्यादा लोगों को
    बराबरी मिली है।
  • 17:39 - 17:41
    जब हम निरंतरता को तवज्जो देने लगते है,
  • 17:41 - 17:44
    ज्यादा से ज्यादा लोग कूडे को रिसाइकिल करने लगते हैं।
  • 17:44 - 17:47
    तो जहाँ तक हमारे कल्चर के प्रताड्ना वाले
    हिस्से का सवाल है,
  • 17:47 - 17:51
    हमे एक सांस्कृतिक आंदोलन की ज़रूरत है।
  • 17:51 - 17:55
    सार्वजनिक शमिर्द्गी का ये
    खूनी खेल बंद करना ही पडेगा।
  • 17:55 - 17:59
    और समय आ गया है कि इंटरनेट के
    कल्चर में हस्तक्षेप करने का।
  • 17:59 - 18:03
    शुरुवात किसी छोटी चीज़ से होगी, और ये
    आसान नहीं होगा।
  • 18:04 - 18:11
    हमें संवेदनशीलता और सहानुभूति की
    ओर वापस जाना होगा।
  • 18:11 - 18:14
    ऑन्लाइन दुनिया में, सहानुभूति और
    संवेद्ना की गहरी कमी है,
  • 18:14 - 18:16
    लगभग अकाल है।
  • 18:17 - 18:21
    शोधकर्ता ब्रेन ब्राउन का कहना है,
  • 18:21 - 18:25
    "प्रताड्ना संहानुभूति के सामने
    नहीं ठहर सकती।"
  • 18:25 - 18:29
    प्रताडना सहानुभूति के सामने नहीं ठहर सकती।
  • 18:31 - 18:34
    मैने अपने जीवन में कुछ बहुत खराब
    अँधेरे से पटे दिन देखे हैं
  • 18:34 - 18:40
    और ये मेरे परिवार, दोस्तों और साथियों की
    सहानुभूति और संवेदना ही थी,
  • 18:40 - 18:44
    और कभी कभी, अजनबियों की भी - कि मै बच सकी।
  • 18:46 - 18:49
    एक इंसान से आती सहानुभूति भी बडा
    फ़र्क ला सकती है।
  • 18:50 - 18:53
    माइनर्टी इन्फ़्लुएंस की थियरी,
  • 18:53 - 18:56
    सामजिक मनोविज्ञानी सेर्गे मोस्कोविसी द्वारा दी गयी है,
  • 18:56 - 18:59
    और कहती है कि बहुत कम संख्या में ही सही,
  • 18:59 - 19:01
    जब लम्बे समय तक कुछ चले,
  • 19:01 - 19:04
    तो बडा फ़र्क आ सकता है।
  • 19:04 - 19:07
    ऑन्लाइन दुनिया मे, हम
    इस माइनर्टी इन्फ़्लुएंस को ला सकते हैं
  • 19:07 - 19:09
    खिलाफ़त क्रर के।
  • 19:09 - 19:13
    खिलाफ़त करने का मतलब है
    चुपचाप खडे नहीं रह जाना।
  • 19:13 - 19:18
    हम किसी के लिये सकारत्मक कमेंट कर सकते है,
    साइबर बुलींग होती देख कर शिकायत दर्ज़ कर सकते हैं।
  • 19:18 - 19:23
    मेरा यकीन मानिये, सकारात्मक कमेंट
    से नकारात्मक्ता ख्त्म होती है।
  • 19:23 - 19:27
    हम एक खिलाफ़त का कल्चर भी ला सक्ते है
    उन संस्थाओं को सहारा दे कर
  • 19:27 - 19:29
    जो इन मुद्दो पर काम कर रही हैं,
  • 19:29 - 19:32
    जैसे कि यू.एस. की टाइलर क्लेमेंटी फ़ाउंडेशन
  • 19:32 - 19:35
    यू. के. में एंटी-बुलींग प्रो है,
  • 19:35 - 19:39
    आस्ट्रेलिया में, प्रोजेक्ट रोकिटहै।
  • 19:40 - 19:46
    हम अपने फ़्रीडम ओफ़ एक्स्प्रेश्न के बारे
    में अत्यधिक सचेत हो कर बात करते हैं
  • 19:46 - 19:48
    मगर हमें ये भी बात करनी होगी कि
  • 19:48 - 19:52
    फ़्रीडम ऑफ़ एक्स्प्रेशन के प्रति हमारे
    कर्त्व्य क्या हैं
  • 19:52 - 19:54
    हम सब चाहते हैं कि हमें सुना जाये
  • 19:54 - 19:59
    मगर उद्देश्य से बोलने में और
  • 19:59 - 20:02
    ध्यान आकर्षित करने के लिये
    बोलने में फ़र्क है
  • 20:04 - 20:07
    इंटरनेट अभिव्यक्ति का सुपर हाई-वे है,
  • 20:07 - 20:10
    मगर ऑन्लाइन, दूसरों के प्रति संवेदनशील होने से
  • 20:10 - 20:16
    हम सबका भला होगा, और
    एक बेहतर, सुरक्षित दुनिया कायम होगी।
  • 20:16 - 20:19
    हमें ऑन्लाइन बर्ताव में
    सहानुभूति लानी होगी,
  • 20:19 - 20:22
    समाचारों को संवेदना के साथ
    कनस्यूम करना होगा,
  • 20:22 - 20:24
    और सोच-समझ कर क्लिक करना होगा।
  • 20:24 - 20:29
    फ़र्ज़ कीजिये कि आप किसी
    और के हेड-लाइन में एक मील चल रहे हैं।
  • 20:31 - 20:34
    मै दिल की बात कह कर जाना चाहूँगी
  • 20:36 - 20:38
    पिछले नौ महीनों मे,
  • 20:38 - 20:41
    मुझ्से जो प्रश्न सबसे ज्यादा पूछा गया है
    वो है , "क्यो?"
  • 20:41 - 20:45
    अब क्यो? अब मैं अपना सर इतने
    साल के बाद क्यो उठा रही हूँ?
  • 20:45 - 20:48
    इन प्रश्नों में निहित बातों को
    आप समझ सकते है।
  • 20:48 - 20:52
    और मेरे जवाब का राजनीति से
    कोई लेना देना नहीं है।
  • 20:52 - 20:57
    मेरा एक ही जवाब है, और वो है
    कि - अब समय आ गया है।
  • 20:57 - 21:00
    समय आ गया है कि मैं अपने अतीत
    से छुप छुप कर भागना बंद करूँ:
  • 21:00 - 21:03
    अपमानित हो कर जीने का समय ख्तम हो गया है;
  • 21:03 - 21:06
    और समय आ गया है कि मैं
    अपनी कहानी पर वापस अपना अधिकार पाऊँ
  • 21:06 - 21:11
    और ये सिर्फ़ मेरे अकेले के बारे में नहीं है।
  • 21:11 - 21:15
    कोई भी जो शर्म और सार्वजनिक
    रूप से उत्पीडित है,
  • 21:15 - 21:17
    ये एक बात जान ले:
  • 21:17 - 21:20
    कि वो उस से लड सकता है
    और आगे बढ सकता है।
  • 21:20 - 21:23
    मुझे पता है कि
    ये बहुत मुश्किल है।
  • 21:23 - 21:27
    बहुत दर्द भरा, आसान
    बिल्कुल भी नहीं, और लम्बा सफ़र।
  • 21:27 - 21:31
    मगर आप अपनी कहानी
    को एक अलग अंत दे सकते हैं।
  • 21:31 - 21:35
    अपने प्रति सहानुभूति और संवेदना रख के।
  • 21:35 - 21:38
    हम सब संवेदना के पात्र हैं,
  • 21:38 - 21:44
    और ऑन्लाइन और ऑफ़्लाइन,
    संवेदनाशील दुनिया में रहने के हकदार हैं।
  • 21:44 - 21:46
    मेरी बात सुनने के लिये धन्यवाद।
  • 21:46 - 21:57
    (अभिवादन और तालियाँ)
Title:
शम्रिंदगी की कीमत
Speaker:
मोनिका लेविन्स्की
Description:

1998 में, मोनिका लेविन्स्की कहती हैं, "मैं पहली शिकार थी; अपनी सारी प्रतिष्ठा
सारे विश्व में एक क्षण में गँवा देने की इस नयी बीमारी की।" जो बर्ताव उनके साथ ऑनलाइन हुआ, वो आज आम बात हो चुका है, और निरंतर हो रहा है। साहस के साथ वो एक नज़र डालती हैं "शमिंदगी के कल्चर"पर, जिसमें ऑन्लाइन शर्मिदा कर के पैसा कमाया जा रहा है - और वो एक अलग तरह से जीने की माँग रखती हैं

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English
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Project:
TEDTalks
Duration:
22:26
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