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क्या आप पाँच लोगों को बचाने के लिये एक का बलिदान करेंगे? - एलेनोर नैल्सन

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    कल्पना कीजिये, कि आप एक बेकाबू रेल को,
    बहुत तेज़ी से, पटरी पर ऐसे पाँच मज़दूरों
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    की तरफ बढ़ता हुआ देख रहे हैं,
    जो वहाँ से भाग नहीं सकते।
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    आप उस बटन के पास खड़े हैं
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    जिससे रेल का रुख दूसरी पटरी
    की ओर मोड़ा जा सकता है।
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    अब, समस्या ये है कि,
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    दूसरी पटरी पर भी एक मज़दूर काम कर रहा है,
    लेकिन केवल एक।
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    तो आप क्या करेंगे?
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    क्या आप पाँच लोगों को बचाने के लिये
    एक व्यक्ति को कुरबान करेंगे?
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    इसे रेल समस्या कहते हैं,
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    नैतिक दुविधा का एक संस्करण जिसे
    दार्शनिक फिलिपा फुट ने १९६७ में बनाया था।
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    ये इसलिये प्रचलित है क्योंकि,
    ये हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है
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    कि अच्छे विकल्पों के अभाव में
    चुनाव कैसे किया जाए।
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    क्या हम सबसे अच्छे
    परिणाम वाले विकल्प को चुनें
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    या ऐसे नैतिक नियमों का पालन करें जो
    किसी की मृत्यु का कारण बनने से रोकते हैं।
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    एक सर्वेक्षण में, करीब ९०% लोगों ने कहा
    कि बटन दबा कर
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    पाँच मज़दूरों को बचाने के लिए एक की
    मृत्यु होने देना सही है,
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    कुछ और अध्ययनों में भी समान परिणाम मिले,
    जिनमें दुविधा का आभासी वास्तविकता में
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    सतत अनुकरण (वर्चुअल रियलिटी सिमुलेशन)
    भी शामिल है।
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    ये निर्णय उपयोगितावाद के
    दार्शनिक सिद्धांत से मेल खाता है,
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    जो कहता है कि सही नैतिक निर्णय
    वो होता है जिससे
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    ज़्यादातर लोगों का अधिकतम भला होता है।
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    पाँच जीवन का पलड़ा एक जीवन से भारी है,
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    फिर चाहे उस परिणाम को पाने के लिये
    किसी को मौत के घाट ही क्यों ना उतारना पड़े।
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    लेकिन लोग हमेशा उपयोगितावाद वाला
    दृष्टिकोण नहीं लेते,
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    जिसे हम इस रेल समस्या को
    थोड़ा बदल कर समझ सकते हैं।
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    इस बार आप पटरी के ऊपर बने
    एक पुल पर खड़े हैं
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    और बेकाबू रेल आगे बढ़ रही है।
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    इस बार दूसरी पटरी नहीं है,
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    लेकिन एक विशालकाय व्यक्ति
    पुल पर आपके पास खड़ा है।
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    अगर आप उसको धक्का दे कर गिरा दें,
    तो उसके शरीर से रेल रुक जाएगी,
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    जिससे पाँच मज़दूरों की
    जान तो बच जाएगी
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    लेकिन वो मर जायेगा।
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    उपयोगितावादियों के लिये
    यह निर्णय एकदम समान है,
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    पाँच जानों को बचाने के लिये
    एक का बलिदान दिया जाए।
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    लेकिन इस बार, केवल १०% लोगों ने कहा
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    कि उस आदमी को पटरी पर
    धक्का देना सही है।
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    हमारी प्रवृत्ति हमें बताती है कि
    जानबूझकर किसी की मृत्यु का कारण बनना
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    और किसी दुर्घटना के कारण
    उसकी मृत्यु होने देना, दो अलग बातें है।
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    ये कुछ ऐसे कारणों की वजह से गलत लगता है,
    जिन्हें समझाना कठिन है।
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    नैतिकता और मनोविज्ञान का मेल ही है
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    जो इस रेल समस्या का रोचक तत्व है।
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    ये दुविधा अपनी विविधता में ये दर्शाती है,
    कि हम जिसको सही या गलत सोचते हैं,
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    वो उसके फायदे और नुकसानों की तुलना
    से परे कारणों पर आधारित है।
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    जैसे, महिलाओं की अपेक्षा,
    अधिक सम्भावना है कि पुरुष
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    धक्का देने को सही मानेंगे।
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    जिन्होंने ऐसे मनोवैज्ञानिक परिक्षण करने
    से पहले कोई हास्य फिल्म देखा हो, वो भी।
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    और एक वर्चुअल रियलिटी के अध्ययन में तो,
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    लोग पुरुषों का बलिदान देने के लिये
    ज़्यादा तैयार थे, औरतों का कम।
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    शोधकर्ताओं ने उनके दिमाग की गतिविधी
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    का अध्ययन किया,
    जो दोनो स्थतियों के बारे में सोच रहे हों।
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    दोनों सस्थितियाँ दिमाग के ऐसे भागों को
    सक्रिय करती हैं, जो सचेत निर्णय लेने और
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    भावुक प्रतिक्रियाओं से सम्बन्धित हैं।
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    लेकिन पुल वाली स्थिति में
    भावुक प्रतिक्रिया ज़्यादा सबल होती है।
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    तो क्या दिमाग के एक भाग की गतिविधि
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    अन्दरूनी संघर्ष पर
    प्रतिक्रिया करने से सम्बन्धित है?
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    ये अंतर क्यों?
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    एक स्पष्टीकरण है कि किसी को उसकी मृत्यु की
    ओर धकेलना ज़्यादा व्यक्तिगत लगता है,
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    जो किसी की हत्या करने के लिये
    भावनात्मक घृणा को सक्रिय करता है,
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    पर हम दुविधा महसूस करते हैं क्योंकि हमें
    पता है कि फिर भी तर्कपूर्ण विकल्प वही है।
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    इस रेल समस्या की कुछ दार्शनिक और
    मनोवैज्ञानिकों ने आलोचना भी की है।
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    उनका तर्क है कि इसका आधार
    इतना अवास्तविक है कि
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    अध्ययन में भाग लेने वारे लोग
    उसको गम्भीरता से लेते ही नहीं।
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    लेकिन नई प्रौद्योगिकी, इस तरह के
    नैतिक विश्लेषण को
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    पहले से और भी ज़रूरी बनाती जा रही है।
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    उदाहरण के लिए, चालकहीन गाड़ी को
    दो विकल्पों का नियंत्रण करना पड़ सकता है
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    जैसे क्या वो एक बड़ी दुर्घटना को
    बचाने के लिए छोटी दुर्घटना होने दे।
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    इस दौरान, सरकारें स्वशासी फौजी ड्रोन
    की खोज कर रही हैं जिनको
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    ऐसे निर्णय लेने पड़ सकते हैं कि वो
    एक अहम शत्रु पर आक्रमण करने के लिये
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    आम नागरिकों के मरने
    का जोखिम लें या नहीं।
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    अगर हम चाहते हैं कि
    ये सारे काम नैतिक हों
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    तो हमें पहले से ये निर्णय करना पड़ेगा
    कि मानव जीवन का मूल्य क्या है
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    और अति-उत्तम भले को तय कैसे करें।
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    तो स्वशासी पद्धति का अध्ययन
    करने वाले शोधकर्ता
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    दार्शनिकों के साथ काम कर रहे हैं,
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    मशीनों में नैतिकता को प्रोग्राम करने की
    जटिल समस्या को सुलझाने के लिये,
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    जो ये दर्शाता है कि
    काल्पनिक दुविधाएँ भी
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    असली दुनिया से टकराने के
    रास्ते पर उतर सकती हैं।
Title:
क्या आप पाँच लोगों को बचाने के लिये एक का बलिदान करेंगे? - एलेनोर नैल्सन
Speaker:
एलेनोर नैल्सन
Description:

पूरा पाठ देखिये: http://ed.ted.com/lessons/would-you-sacrifice-one-person-to-save-five-eleanor-nelsen

कल्पना कीजिये, कि आप एक बेकाबू रेल को, बहुत तेज़ी से, पटरी पर पाँच मज़दूरों की तरफ बढ़ता हुआ देख रहे हैं। आप उस बटन के पास खड़े हैं जिससे रेल का रुख दूसरी पटरी की ओर मोड़ा जा सकता है। अब, समस्या ये है कि, दूसरी पटरी पर भी एक मज़दूर काम कर रहा है - लेकिन केवल एक। तो आप क्या करेंगे? क्या आप पाँच लोगों को बचाने के लिये एक व्यक्ति को कुरबान करेंगे? एलेनोर नैल्सन इस रेल समस्या की नैतिक दुविधा का विवरण करते हैं।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TED-Ed
Duration:
04:56

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