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आओ सैनिकों की घर वापसी की भी तैयारी कराएं

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    कार्लोस,
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    एक पूर्व सैनिक हैं
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    जिन्हें विएतनाम की लड़ाई में
    तीन अवसरों पर गोलियाँ लगी
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    उनके शरीर में कारतूस के
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    इतने छर्रे इकट्ठे हो गये थे
    कि १९७१ में उनको
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    सेवा निवृत्त कर दिया गया
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    अगले ४२ साल तक उन्हें
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    अकेलेपन उदासी और बेचैनी
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    का सामना करना पड़ा
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    उन्होने शराब का सहारा भी लिया
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    उनकी तीन बार शादी और तलाख भी हुआ
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    कार्लोस को पोस्ट ट्रमॅटिक
    सिंप्टम डिसॉर्डर था
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    एक मनोवैज्ञानिक होने के नाते मैं पिछले
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    १० सालों से पी.टी.एस.डी. से पीड़ित
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    मरीजों का इलाज़ कर रहा हूँ.
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    पी.टी.एस.डी. विज्ञान का एक नया विषय है
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    हमें इसके बारे में ज़्यादा नहीं पता था
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    कुछ मरीजों को हमने तेज़ दवाइयां दी
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    कुछ को अस्पताल में आम इलाज़ दिया
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    और कुछ को तोह बस यह कहा
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    की घर जाओ और सब भूलने की कोशिश करो
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    हाल ही में हमने इलाज के नए प्रयोग किये
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    जैसे मरीजों को सुंदर जगहों पे भेजना,
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    घर में पालतू जानवर रखना,
    लेकिन यह सब कारगर सिद्ध नहीं हुए
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    लेकिन अब हालात बदल गए हैं
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    और आज में आप सब से
    यही जानकारी बांटने
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    आया हूँ, की हम पी.टी.एस.डी से
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    कैसे निजाद पा सकते हैं
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    आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों से अब हम
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    पता लगा सकते हैं की कौन कौनसी
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    तरकीबें कारगर सिद्ध हो रही हैं
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    पी.टी.एस.डी ठीक करने में
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    वही तकनीकें काम आती हैं जो
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    युद्ध के प्रशिक्षण में इस्त्माल होती हैं
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    पारंपरिक रूप से
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    हम युद्ध की कला में माहिर रहे हैं
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    हम युद्ध पौराणिक काल से लड़ते आ रहे हैं
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    लेकिन तब से अब तक हमने युद्ध की तकनीकों
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    और अस्त्र-शस्त्र में बड़ी प्रगति की है
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    और इन अस्त्रों का उपयोग करने के लिए
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    हम अपने सिपाहियों को
    नवीनतम प्रशिक्षण देते हैं
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    हम युद्ध में माहिर हैं
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    हम प्रशिक्षण में माहिर हैं
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    लेकिन अगर हम युद्ध से
    लौटने वाले सैनिकों पर ध्यान दें,
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    हम उनको उनकी वापसी के लिए
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    उचित रूप से तैयार नहीं कर पाए हैं
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    आखिर क्यों?
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    हमारे प्राचीनकालीय पूर्वज
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    द्वंद्व वहीँ करते थे जहाँ वे रहते थे
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    इस ही कारण से,
    पहले कभी युद्ध से लौटने के
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    बाद के जीवन से सामना करने का
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    प्रशिक्षण किसी को नहीं दिया जाता था
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    लेकिन आजकल
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    आधुनिक तकनीकों के द्वारा
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    हम अपने अमरीकी सैनिकों को
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    लड़ने के लिए दुनिया में कहीं भी
    ले जा सकते हैं
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    और युद्ध पूरा होने पर
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    सुरक्षित देश वापिस
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    ला सकते हैं
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    पर सोचिये एक सैनिक पे
    क्या बीत ती होगी
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    कुछ पूर्व सैनिकों ने मुझे बताया की
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    उदाहरण के तौर पे
    किसी दिन वे अफगानिस्तान
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    में घमासान लड़ाई लड़ रहे थे,
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    और तीन दिन में घर वापिस आकर
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    बच्चों के स्कूल में जा कर
    उनका खेल देख रहे थे
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    यह पागलपन से कम नहीं था
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    (श्रोता काहकहाते हुए )
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    इस अनुभव का
    यह उचित वर्णन है
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    यह बिल्कुल सटीक हैं
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    हमारे सैनिक युद्ध में
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    प्रशिक्षित हैं, लेकिन कइयों को असैनिक
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    जीवन बिताने का भी प्रशिक्षण चाहिए
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    पी टी इस डी चिकित्सा को
    बार बार करवाना पड़ता है
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    सेना में
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    जब सैनिक भर्ती होते हैं
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    उन्हें विस्तार में प्रशिक्षण मिलता है
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    उन्हें बार बार है
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    कई तरह की परिस्थितियों का
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    प्रशिक्षण दिया जाता
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    जब तक वे शस्त्र और हथियार को
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    किसी भी परिस्थिति में पूरी सक्षमता से
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    इस्तिमाल करना ना सीख जाएँ
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    उनके इलाज में भी ऐसा
    ही कुछ करना पड़ता है
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    इन में सबसे पहले
    आती है संज्ञानात्मक चिकित्सा
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    यह मानसिक अंशशोधन की तरह है
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    जब पूर्व सैनिक घर लौट के आते हैं,
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    वह दुनिया और परिस्थितियों को एक
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    युद्ध स्थल की तरह ही भांपते हैं
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    उनके इस नज़रिये को साधारण अवस्था
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    में लाना आसान नहीं होता
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    उन्हें खतरा दिखता है
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    वे सब पे शक करते हैं
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    वैसे आम जीवन में खतरे होते हैं
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    लेकिन युद्ध के मुकाबले
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    आम जीवन में खतरों की
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    सम्भावना कम होती है
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    हम उनको अचानक बदलने को नहीं कहते
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    हम उन्हें उनकी स्थिति के हिसाब से
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    सतर्क रहने को कहते हैं
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    जैसे अगर आप सुनसान जगह पे हैं तोह
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    ख़ास सावधानी बरतें
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    लेकिन परिवार के साथ
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    खाने जाएं तोह चिंता ना करें
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    हम उन्हें विचारपूर्ण होना सिखाते हैं
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    ताकि वह खतरे के हिसाब से
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    ही सावधानी बरतें
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    अभ्यास करने से आदत दाल जाती है
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    अगला प्रशिक्षण, एक्सपोजर थेरेपी,
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    एक कारगर और
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    तेज़ तकनीक है
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    आपको कार्लोस याद होगा
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    उसने यही उपचार चुना था
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    हमने उसकी शुरुआत कुछ
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    चुनौतीपूर्ण अभ्यासों से करी, जैसे
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    दरवाज़े पर पीठ करे हुए
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    दुकान में खड़े रहना
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    या रेस्तरां में बैठना
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    और इस प्रकार के वातावरण
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    ज़्यादा समय बिताना
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    शुरुआत में वह कुछ घबराये
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    वह ऐसी जगह
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    बैठना चाहते थे जहाँ से वो
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    दरवाज़े और लोगों को देख सकें
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    यह उनके लिए कठिन था
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    सैनिक प्रशिक्षण का अनुभव होने के कारण
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    उन्होंने खुद को प्रोत्साहन दिया
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    धीरे धीरे करके
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    वह ऐसी स्तिथि
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    तक पोहोंच गए जहाँ वे
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    सार्वजनिक जगहों पर आराम
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    और इत्मीनान से बैठ पाएं
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    कई बार उन्होंने अपने युद्ध
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    अनुभव के रिकॉर्डिंग भी सुने
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    जब तक उन्हें सुनके
    कोई उत्तेजना ना महसूस हो
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    उन्होंने अपनी मानसिकता हो इतना बदला
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    की नींद में उन्हें युद्ध के सपने
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    आना बंद हो गए
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    जब मैं उनसे एक साल बाद मिला
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    उन्होंने कहा "डॉक्टर, ४३ सालों
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    में पहली बार मुझे अब
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    डरावने सपने नहीं आते"
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    यह यादाश्त मिटाने से अलग है
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    सैनिक युद्ध के अनुभव भुला तोह नहीं सकते,
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    लेकिन उनसे पोहोंचने वाले दुःख को
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    कम ज़रूर कर सकते हैं
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    अब वे उन अनुभवों से
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    मानसिक तनाव में नहीं आते
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    यह हमेशा आसान नहीं होता
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    सब पे कारगर भी नहीं होता
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    इसमें विश्वास बोहोत ज़रूरी है
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    मुझसे पुछा जाता है कि
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    "बिना युद्ध अनुभव के
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    आप यह कैसे कर लेते हैं"
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    लेकिन असैनिक जीवन पर शिक्षा
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    देने के लिए युद्ध अनुभव की ज़रुरत नहीं है
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    आप को बस यह पता होना चाहिए की
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    असैनिक जीवन कैसे जीना है
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    पिछले दस साल से हर रोज़
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    मैं युद्ध के कई
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    दर्दनाक किस्से सुन
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    चुका हूँ
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    यह आसान नहीं है
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    कभी कभी यह मेरी क्षमता
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    से बाहर हो जाता था
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    लेकिन इस प्रकार का प्रशिक्षण
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    और सैनिकों की बहाली बड़ा
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    संतोष प्रदान करता हैं
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    इससे लोगों का उद्धार हो जाता है
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    कार्लोस अब अपने बाल बच्चों के साथ
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    हंस खेल के घूम फिर सकते हैं
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    ताज्जुब की बात है की ४३ सालों की पीड़ा
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    १० हफ़्तों के प्रशिक्षण से ठीक हो गयी
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    मैं जब उनसे मिला, तो उन्होंने कहा
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    "मैं अपने ४३ साल तो
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    वापस नहीं ला सकता,
    लेकिन अपने बचे हुए दिन
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    शान्ति से बिता सकता हूँ
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    आशा करता हूँ की युवा सैनिकों को
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    ऐसी सहायता
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    समय पर मिल पायेगी
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    क्योंकि जीवन छोटा है,
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    और अगर आप युद्ध की
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    आपदाओं से गुज़र चुके हैं,
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    तोह बाकी जीवन सुख और शान्ति से
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    बिताना आपका अधिकार है"
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    लेकिन किसी को इस प्रशिक्षण के इंतज़ार में
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    नहीं बैठना चाहिए
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    सबसे बेहतर तोह यही होगा
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    की युद्ध न हो
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    लेकिन वो मंज़िल अभी दूर है
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    तब तक,
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    हम युद्ध से होने वाली
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    पीड़ा से अपने भाइयों और बहनो को निजाद
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    दिला सकते हैं
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    और अच्छा होगा अगर जितना विज्ञान और धन
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    हम युद्ध में लगाते हैं, उतना
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    लौटने वाले सैनिकों की खुशहाली में लगाएं
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    उनको घर वापसी में कम से कम परेशानी हो,
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    इस बात के हम ऋणी हैं
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    धन्यवाद.
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    (तालियां)
Title:
आओ सैनिकों की घर वापसी की भी तैयारी कराएं
Speaker:
हेक्टर गार्सिया
Description:

कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए सैनिकों को युद्ध में भेजने से पहले कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है. मनोवैज्ञानिक हेक्टर गार्सिया कहते हैं की, घर वापसी करने वाले सैनिकों को असैन्य जीवन जीने का प्रशिक्षण देना भी उतना ही ज़रूरी है. जिन तकनीकों का इस्तिमाल सैनकों को युद्ध के प्रशिक्षण में किया जता है, हेक्टर गरसिया उन्ही तकनीकों का उस्तिमाल करके पी टी इस डी से पीड़ित पूर्व सैनिको को एक सुखी असैनिक जीवन बिताने में मदद मर रहे हैं.

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
10:31

Hindi subtitles

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