डायना लाफ़ेनबर्ग: कैसे सीखें? गलतियों से।
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0:00 - 0:03मैं काफ़ी समय से पढा़ रही हूँ,
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0:03 - 0:05और ऐसा करते हुए,
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0:05 - 0:08बच्चों और सीखने की प्रक्रिया संबंधी ऐसा अनुभव का भण्डार इकट्ठा कर चुकी हूँ
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0:08 - 0:11जो कि मैं चाहती हूँ ज्यादा से ज्यादा लोग समझें
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0:11 - 0:14विद्यार्थियों की काबलियत और शक्यता के बारे में।
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0:14 - 0:16१९३१ में मेरी दादी --
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0:16 - 0:18निचली पंक्ति में बाँए तरफ़ --
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0:18 - 0:20ने आठवीं पास की।
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0:20 - 0:22वो जानकारी लेने विद्यालय जाती थी
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0:22 - 0:24क्योंकि जानकारी विद्यालय में ही होती थी।
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0:24 - 0:26ज्ञान किताबों मे होता था, जानकारी शिक्षक के दिमाग में बसेरा करती थी।
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0:26 - 0:29और उन्हें उसे ग्रहण करने के लिये वहाँ जाना ही होता था,
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0:29 - 0:31क्योंकि तब ऐसे ही सीखते थे।
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0:31 - 0:33सीधे एक पीढी बाद:
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0:33 - 0:35ये एक कमरे का विद्यालय है, ओक ग्रूव,
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0:35 - 0:37जहाँ मेरे पिता ने शिक्षा ग्रहण की।
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0:37 - 0:39और उन्हें भी स्कूल जाना होता था
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0:39 - 0:41अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त करने के लिये,
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0:41 - 0:44फिर उन्हें उसे अपने दिमाग में दर्ज करना होता था, जो कि उस समय का एकमात्र उपलब्द्ध पेन-ड्राइव था,
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0:44 - 0:46और तभी वे उसे अपने साथ ले जा पाते थे,
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0:46 - 0:49क्योंकि उन दिनों जानकारी को बाँटने का यही ज़रिया था
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0:49 - 0:52शिक्षक से विद्यार्थी को, और फ़िर दुनिया में इस्तेमाल होने के लिये।
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0:52 - 0:54जब मैं बच्ची थी,
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0:54 - 0:56हमारे घर में एक पूरा विश्वकोष था।
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0:56 - 0:58उसे उसी साल ख़रीदा गया जिस साल मैं पैदा हुई.
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0:58 - 1:00और वो असाधारण था,
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1:00 - 1:03क्योंकि मुझे फ़िर जानकारी के लिये पुस्तकालय जाने का इंतज़ार नहीं करना होता था;
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1:03 - 1:05जानकारी मेरे घर पर ही उपलब्द्ध थी
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1:05 - 1:07और ये ज़बरदस्त था।
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1:07 - 1:09ये बिलकुल ही अलग था
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1:09 - 1:11पिछली दो पीढियों के अनुभव से,
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1:11 - 1:13और उसने मेरे जानकारी इस्तेमाल करने के तरीकों को बदल डाला
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1:13 - 1:15भले ही कितने ही छोटे स्तर पर।
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1:15 - 1:17पर जानकारी मेरे निकट थी।
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1:17 - 1:19मैं कभी भी उसे प्राप्त कर सकती थी।
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1:19 - 1:21जो समय गुज़रा
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1:21 - 1:23मेरे हाई-स्कूल के ज़माने से ले कर
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1:23 - 1:25मेरे शिक्षक बनने के बीच,
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1:25 - 1:27उसमें हमने इंटरनेट का आगमन देखा।
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1:27 - 1:29ठीक जिस समय इंटरनेट
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1:29 - 1:31एक शिक्षण की विधा के रूप में उभर रहा था,
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1:31 - 1:33मैं विस्कोन्सिन से निकल कर
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1:33 - 1:35कान्सास आ गयी - कानसास के उपनगरीय इलाकों में,
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1:35 - 1:37जहाँ मुझे पढाने का अवसर मिला
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1:37 - 1:39एक छोटे, प्यारे से उपनगर में
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1:39 - 1:41ग्रामीण कान्सास के विद्यालय में,
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1:41 - 1:43जहाँ मैं अपना मनपसंद विषय पढा रही थी,
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1:43 - 1:45अमरीकी सरकारतंत्र।
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1:45 - 1:48मेरा पहला साल -- मस्तमौला मज़ेदार - अमरीकी सरकारतंत्र पढा़ने जाना,
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1:48 - 1:50और मेरा राजनीतिक उपक्रम से बेहद लगाव।
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1:50 - 1:52बारहवीं के बच्चे:
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1:52 - 1:54उतना कुछ खास उत्साहित नहीं थे
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1:54 - 1:56अमरीकी सरकार को समझने में।
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1:56 - 1:59दूसरा साल: कुछ चीज़ें सीखी -- अपने तरीके बदलने पड़े।
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1:59 - 2:01और मैनें उनके सामने एक असल अनुभव रखा
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2:01 - 2:04जो कि उन्हें खुद सीखने का मौका देता था।
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2:04 - 2:06मैने उन्हें नहीं बताया कि क्या और कैसे करें।
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2:06 - 2:08मैने बस उनके सामने एक समस्या रखी,
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2:08 - 2:11जिसमें उन्हें अपने आसपास के समुदाय में एक चुनाव करवाना था।
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2:12 - 2:14उन्होंने पर्चे छापे, कार्यालयों को फ़ोन किया,
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2:14 - 2:16समय-सारिणियाँ बनाईं, सचिवों से मुलाकातें कीं,
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2:16 - 2:18और फ़िर चुनाव की पुस्तिका निकाली
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2:18 - 2:20पूरे शहर को उनके उम्मीदवारों पर जानकारी देने के लिये।
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2:20 - 2:22उन्होंने सबको विद्यालय में बुलाया
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2:22 - 2:24एक शाम भर बातचीत करने के लिये
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2:24 - 2:26सरकार और राजनीति पर
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2:26 - 2:28और गलियाँ ठीक से बनीं थीं जैसी बातों पर भी,
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2:28 - 2:31और इस दौरान इन बच्चों ने सच में सुदृढ अनुभव-आधारित शिक्षा पायी।
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2:31 - 2:33पुराने शिक्षक -- जो कि ज्यादा अनुभवी थी --
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2:33 - 2:35मुझे देखते थे और कहते थे,
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2:35 - 2:38"देखो इसे। कितना प्यारी है। और ये वो ये सबकुछ करवाने की कोशिश कर रही है।"
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2:38 - 2:40(हँसी)
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2:40 - 2:42"इसे अंदाज़ा ही नहीं है कि इसके साथ क्या होने वाला है।"
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2:42 - 2:44मगर मुझे पता था कि बच्चे ज़रूर आयेंगे।
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2:44 - 2:46और इसमें मेरा दृढ विश्वास था।
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2:46 - 2:49और मैं उन्हें हर हफ़्ते बताती कि मेरी क्या अपेक्षा है।
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2:49 - 2:51और उस रात, सारे के सारे ९० बच्चे --
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2:51 - 2:54ढँग के कपडे पहने, अपना काम कर रहे थे, उसे अपना काम समझ कर।
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2:54 - 2:56मुझे सिर्फ़ बैठ कर देखना था।
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2:56 - 2:58वो उनका खुद का काम था। वो अनुभव-आधारित था। वो सोलह आने खरा था।
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2:58 - 3:00और वो उनके लिए मायने रखता था।
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3:00 - 3:02और वो आगे बढेंगे।
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3:02 - 3:05कान्सास से, मैं ख़ूबसूरत एरिज़ोना चली गयी.
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3:05 - 3:08जहाँ मैंने फ़्लैगस्टाफ़ में कई साल तक पढाया,
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3:08 - 3:10और इस बार माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को।
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3:10 - 3:12सौभाग्यवश, मुझे उन्हें अमरीकी सरकार के बारे में नहीं पढाना था।
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3:12 - 3:15मैं उन्हें भूगोल जैसा अधिक रोमांचक विषय पढा़ रही थी।
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3:15 - 3:18और फ़िर से, और सीखने को आतुर थी।
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3:19 - 3:21मगर दिलचस्प बात
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3:21 - 3:24एरिज़ोना में मिली इस नौकरी में,
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3:24 - 3:26ये थी कि मुझे एक सचमुच
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3:26 - 3:28असाधारण समझ वाले बच्चों के साथ काम करने को मिला
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3:28 - 3:30एक सचमुच के पब्लिक स्कूल में।
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3:30 - 3:33और हमें कुछ ऐसे क्षण मिले जिन्होंने हमें कुछ गजब के अवसर दिये।
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3:33 - 3:35और एक अवसर था
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3:35 - 3:38जाकर पौल रुसेसाबगिना से मिलना,
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3:38 - 3:40जो कि वही व्यक्ति हैं
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3:40 - 3:42जिनकी कहानी पर होटल रवांडा नाम की पिक्चर बनी थी।
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3:42 - 3:44वो हमारे बगल के हाई-स्कूल में बोलने आ रहे थे।
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3:44 - 3:46हम तो बस पैदल ही वहाँ चले गये; बस का किराया भी नहीं लगा।
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3:46 - 3:49बिल्कुल मुफ़्त। बिलकुल सटीक अध्ययन-यात्रा।
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3:49 - 3:51असली समस्या ये थी
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3:51 - 3:53कि सातवीं और आठवीं के बच्चों से नरसंहार पर कैसे बात करें
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3:53 - 3:55और कैसे इस विषय से निपटें,
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3:55 - 3:57जिम्मेदारी और सम्मान के साथ,
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3:57 - 3:59जिससे कि बच्चों को भी समझ में आये।
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3:59 - 4:01और इसलिये हमने पौल रुसेसबगिना को
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4:01 - 4:03ऐसे व्यक्ति के उदाहरण के रूप में लिया
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4:03 - 4:07जिन्होंने लीक से हटकर भी अपने जीवन का सकारात्मक इस्तेमाल किया।
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4:07 - 4:09फ़िर मैनें बच्चों से कहा कि
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4:09 - 4:12अपने जीवन से, या उनकी अपनी कहानी और उनकी अपनी दुनिया से ऐसे लोगों
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4:12 - 4:14को ढूँढे जिन्होंने पौल जैसा ही कुछ किया हो।
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4:14 - 4:16मैने उनसे इस विषय पर एक चलचित्र बनाने के लिये कहा।
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4:16 - 4:18हम पहली बार ऐसा कुछ कर रहे थे।
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4:18 - 4:20किसी को नहीं पता था कि कमप्यूटर पर चलचित्र कैसे बनाते हैं।
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4:20 - 4:23मगर बच्चे लगन से काम करने लगे। और मैने उन्हें अपनी खुद की आवाज़ इस्तेमाल करने को कहा।
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4:24 - 4:29ये ऐसा क्षण था जिसने मेरी आँखें खोल दीं
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4:29 - 4:32कि जब आप बच्चों से खुद की आवाज़ इस्तेमाल करने को कहते हो
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4:32 - 4:34और उन्हें अपने मन की बात बोलने को कहते हो,
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4:34 - 4:36वो बहुत ही गजब की बातें बाँटते हैं।
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4:36 - 4:38इस प्रयोग का आखिरी सवाल था:
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4:38 - 4:40कैसे आप अपने जीवन से
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4:40 - 4:42दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे?
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4:42 - 4:44वो बातें जो बच्चे बोलते हैं
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4:44 - 4:47यदि आप उनसे पूछें और समय निकाल कर सुनें,
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4:47 - 4:50असाधारण होती हैं।
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4:50 - 4:53और फ़िर सीधे पेन्सिलवेनिया, जहाँ मैं आजकल हूँ।
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4:53 - 4:55मैं विज्ञान नेतृत्व अकादमी (साइंस लीडरशिप अकादमी) में पढाती हूँ,
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4:55 - 4:58जो कि एक साझेदारी है फ़ैंकलिन संस्थान
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4:58 - 5:00और फ़िलेडेल्फ़िया विद्यालय डिस्ट्रिक्ट के बीच।
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5:00 - 5:03हम पब्लिक स्कूल हैं नवीं से बारहवीं तक,
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5:03 - 5:06मगरह हम थोडा सा अलग हैं।
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5:06 - 5:08मेरे वहाँ जाने का मुख्य कारण था
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5:08 - 5:10ऐसे शिक्षण पर्यावरण का हिस्सा बनना
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5:10 - 5:12जो कि उसी पद्धति को स्थापित करता है, जिससे मेरी समझ से, बच्चे सचमें सीखते हैं
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5:12 - 5:14जो कि पूरी तरह खोजना चाहे
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5:14 - 5:16उसे जो कि संभव है
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5:16 - 5:18तब जब आप तैयार हो
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5:18 - 5:20पुराने नज़रिये को दरकिनार करके सोचने के लिये,
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5:20 - 5:23जानकारी के अभाव के जमाने के नज़रिये, तब के जब मेरी दादी स्कूल में थीं,
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5:23 - 5:26तब के मेरे पिता स्कूल में थे, और तब के भी जब मैं भी स्कूल में थी,
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5:26 - 5:28और सुलभ-जानकारी के ज़माने के नज़रिये को अपना लें।
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5:28 - 5:31तो हमें क्या करना चाहिये जब आसपास जानकारी और ज्ञान पटा पडा हो?
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5:31 - 5:33क्यों आप बच्चों को विद्यालय बुलायेंगे
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5:33 - 5:36जब कि उन्हें जानकारी के लिये आने की ज़रूरत ही नहीं है?
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5:36 - 5:39फ़िलेडेल्फ़िया में हम वन-टू-वन लैपटॉप कार्यक्रम चलाते हैं,
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5:39 - 5:42इसलिये बच्चे अपने साथ हर रोज़ लैपटॉप लाते हैं,
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5:42 - 5:45घर ले जाते हैं, जानकारी प्राप्त करते हैं।
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5:45 - 5:48और आप को इस बात के साथ साम्य अनुभव करना होगा कि
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5:48 - 5:50जब आपने
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5:50 - 5:52बच्चों को ज्ञान पाने का ज़रिया दे दिया है,
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5:52 - 5:54तो आपको इस बात से समझौता करना होगा कि
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5:54 - 5:56बच्चे का असफ़ल होना,
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5:56 - 5:59सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
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5:59 - 6:01हम आजकल ऐसे शिक्षण वातावरण से जूझ रहे हैं
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6:01 - 6:03जो कि ग्रसित है
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6:03 - 6:05'एक ही सही उत्तर है' की संस्कृति से,
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6:05 - 6:08जिससे की किसी उत्तर-पुस्तिका के खानों में चिन्ह लगाया जा सके,
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6:08 - 6:10और मैं आपको ये बताना चाहती हूँ,
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6:10 - 6:12कि ये सीखने की प्रक्रिया नहीं है।
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6:12 - 6:15ये गलत से भी गलत है कि
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6:15 - 6:17हम बच्चों से कभी भी गलती न करने को कहें।
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6:17 - 6:20उन्हें हमेशा केवल सही उत्तर देने के लिये प्रोत्साहित करने
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6:20 - 6:22से उन्हें सीखने का मौका नहीं मिलता है।
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6:22 - 6:24तो हमने एक योजना कार्यान्वित की,
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6:24 - 6:26और ये इस कार्यक्रम में बनी एक कृति है।
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6:26 - 6:28मैं शायद ही कभी इसे दिखाती हूँ
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6:28 - 6:30क्योंकि ये असफ़ल होने से जुडा है।
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6:30 - 6:32मेरे विद्यार्थियों ने इन जानकारियों के चित्रणों को बनाया
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6:32 - 6:35एक कार्यशाला के तहत जो हमने साल के अंत में करने का निर्णय लिया था
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6:35 - 6:37तेल-रिसाव पर प्रतिक्रिया देने के लिये।
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6:37 - 6:40मैनें उनसे उन उदाहरणों को देखने को कहा जो कि
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6:40 - 6:42जानकारी का चित्रण कर रहे थे
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6:42 - 6:44तमाम संपर्क-साधनों में,
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6:44 - 6:47और ये देखने के लिये कि उनके रोचक भाग कौन से हैं,
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6:47 - 6:49और फ़िर खुद कुछ बनाने के लिये
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6:49 - 6:51अमरीकी इतिहास की किसी अलग मानव-निर्मित विपत्ति पर।
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6:51 - 6:53और उनके पास ये करने के लिये एक ढाँचा भी था।
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6:53 - 6:55उन्हें ये थोडा कठिन लग रहा था,
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6:55 - 6:57क्योंकि ऐसा पहले किसी ने नहीं किया था, और उन्हें नहीं पता था कि करना क्या है।
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6:57 - 6:59वो बहुत अच्छा बोलते है - धाराप्रवाह तरीके से,
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6:59 - 7:01और वो लिखते भी बहुत अच्छा हैं - सच में बहुत ही अच्छा,
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7:01 - 7:04पर अपने विचारों को इतने अलग अंदाज़ में बयान करना
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7:04 - 7:07थोडा कठिन था।
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7:07 - 7:10पर मैनें उन्हें मौका दिया बस कर डालने का।
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7:10 - 7:12जाओ, बनाओ। देखो क्या निकलता है।
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7:12 - 7:14देखते हैं कि हम क्या कर सकते हैं।
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7:14 - 7:16और जो विद्यार्थी हमेशा
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7:16 - 7:19सबसे अच्छा चित्र बनाता था, उसने निराश नहीं किया।
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7:19 - 7:21ये करीब दो या तीन दिन में किया गया काम है।
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7:21 - 7:24और ये उस विद्यार्थी का काम है जो हमेशा अच्छा चित्रण करता था।
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7:24 - 7:27और जब मैनें अपने विद्यार्थियों से पूछा, "किसका सबसे अच्छा है?"
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7:27 - 7:29तो एक्दम सबने कहा, "ये वाला।"
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7:29 - 7:31किसी ने कुछ पढा नही। सीधे कहा "ये वाला।"
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7:31 - 7:33और मैने कहा, "ये वाला सबसे अच्छा क्यों है?"
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7:33 - 7:35तो उन्होंने कहा, "इसका डिजाइन बढिया है, इसमें बढिया रँग हैं।
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7:35 - 7:38और इसमें ये है, वो है..." और उन्होंने वो सब कहा जो सामने से दिख रहा था।
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7:38 - 7:40और मैने कहा, "अब जाओ, उसे पढो।"
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7:40 - 7:43तब उन्होंने कहा, "ह्म्म, ये शायद उतना अच्छा नहीं है।"
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7:43 - 7:45और फ़िर हम दूसरे वाले पर गये --
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7:45 - 7:47उसमें चित्रण उतना अच्छा नहीं था, मगर वो बहुत ज्ञानप्रद था --
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7:47 - 7:50और करीब एक घंटा तक हमने सीखने की प्रक्रिया पर बात की,
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7:50 - 7:52क्योंकि बात ये नहीं थी कि कौन सा बेहतर है,
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7:52 - 7:54या मैं क्या बना पाया;
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7:54 - 7:57इस में उन्होंने स्वयं के लिये रचना की।
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7:57 - 7:59और इसने उन्हें असफ़ल होने दिया,
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7:59 - 8:01और उस अनुभव से सीखने दिया।
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8:01 - 8:03और जब हम इस साल फ़िर से मेरी कक्षा में ये करेंगे
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8:03 - 8:05विद्यार्थी बेहतर काम कर पायेंगे।
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8:05 - 8:07शिक्षण-प्रक्रिया में
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8:07 - 8:10असफ़लता का पुट होना अत्यावश्यक है,
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8:10 - 8:12क्योंकि असफ़लता से ही सही निर्देश
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8:12 - 8:14मिल पाते है।
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8:14 - 8:17यहाँ लाखों तस्वीरें है
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8:17 - 8:19जिन्हें मैं दिखा सकती हूँ,
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8:19 - 8:22और मुझे सावधानी से चुनना पडा -- ये मेरी मनपसंद तस्वीर है --
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8:22 - 8:24सीखते हुए बच्चों की,
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8:24 - 8:26और सीखना कैसा हो सकता है
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8:26 - 8:29यदि हम इस दकियानूसी विचार का चोगा उतार फ़ेंके कि
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8:29 - 8:31बच्चों को सीखने के लिये विद्यालय आने की ज़रूरत है,
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8:31 - 8:33और इसके बजाय, उनसे ही पूछें कि उन्हें क्या करना है।
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8:33 - 8:35उनसे रोचक प्रश्न पूछें।
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8:35 - 8:37वो आपको निराश नहीं करेंगे।
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8:37 - 8:39उनसे अलग अलग जगहों पर जाने के लिये कहिये,
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8:39 - 8:41चीज़ों को खुद समझने के लिये कहिये,
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8:41 - 8:43खुद अनुभव करने के लिये कहिये,
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8:43 - 8:46खेलने के लिये, जिज्ञासु होने के लिये कहिये।
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8:46 - 8:48ये भी मेरी सबसे पसंदीदा तस्वीरों में से है,
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8:48 - 8:50क्योंकि ये उस मंगलवार को ली गयी थी,
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8:50 - 8:52जब मैने बच्चों से वोट डालने के लिये कहा।
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8:52 - 8:55ये है रोबी, और ये इसका वोट डालने का पहला मौका है,
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8:55 - 8:57और ये सबको बताना चाहता था और वोट करना चाहता था।
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8:57 - 8:59मगर ये भी तो सीखना ही है,
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8:59 - 9:02क्योंकि हम उन्हें असल जगहों पर जाने के लिये कह रहे हैं।
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9:05 - 9:07असल मुद्दा
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9:07 - 9:10ये है कि, यदि हम शिक्षा का मतलब सिर्फ़
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9:10 - 9:13विद्यालय आना और
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9:13 - 9:15जानकारी प्राप्त करना समझते रहे,
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9:15 - 9:17बजाय अनुभवशील शिक्षा के,
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9:17 - 9:20बजाय विद्यार्थियों को सुनने के, और बजाय असफ़लता को स्वीकार करने के,
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9:20 - 9:22हम बहुत पीछे छूट जायेंगे।
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9:22 - 9:24और वो सब जिसके बारे में आज सबलोग बात कर रहे हैं
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9:24 - 9:27बिल्कुल संभव नहीं होगा यदि हम ऎसी शिक्षा-प्रणाली को पालते रहेंगे
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9:27 - 9:30जो इन गुणों का मूल्य ही नहीं आँक पाती है,
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9:30 - 9:32क्योंकि एक धुरी और मानक पर चलने वाले प्रश्नोत्तरीय तरीके से कुछ नहीं होगा,
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9:32 - 9:34और न ही 'सही उत्तर पर चिन्ह लगाओ' की संस्कृति हमें कुछ देगी।
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9:34 - 9:36हम जानते है कि इस से बेहतर कैसे हो सकता है,
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9:36 - 9:38और अब समय आ गया है बेहतर बनने का।
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9:38 - 9:43(तालियों सहित अभिवादन)
- Title:
- डायना लाफ़ेनबर्ग: कैसे सीखें? गलतियों से।
- Speaker:
- Diana Laufenberg
- Description:
-
डायना लाफ़ेनबर्ग हमारे साथ बाँटेंगी तीन ऐसी आश्चर्यजनक बातें जो उन्होंने पढाने के बारे में सीखीं - जिसमें से एक है गलतियों से सीखने से संबंधित।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 09:45