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एक आसान तरीका बुरी आदत को तोड़ने का

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    जब मैं ध्यान करना सीख रहा था,
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    उपदेश सिर्फ अपनी सांस पर ध्यान देने का था,
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    और मन को वापस लेकर आना
    जब वो भ्रमित हो जाये|
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    सुनने में आसान लगा|
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    फिर भी इन शांत जगहों में
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    ठण्ड के दिनों में, मेरा पसीना बहता था |
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    जब भी मौका मिलता मैं नींद निकल लेता था,
    क्यूंकि यह बेहद मुश्किल था|
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    वास्तव में यह बहुत थकाने वाला काम है|
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    सुचनाये काफी आसान थी
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    लेकिन मैं कुछ बहुत ज़रूरी बात
    से चूक रहा था|
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    तो ध्यान देना इतना मुश्किल क्यों है?
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    अभ्यास बताता है
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    अगर हम सच में भी किसी चीज़ पर
    ध्यान देने की कोशिश कर रहे हैं--
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    जैसे यह व्याख्यान--
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    किसी एक समय पर,
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    आधे लोगों का ध्यान
    दिन के सपनो में लग जाएगा.
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    या फिर ट्विटर पर खबर
    पढ़ने का मंन करेगा
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    तो यहाँ क्या हो रहा है ?
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    ऐसा पता चलता है की हम
    एक बहुत ही विकासवादी-संरक्षित
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    विज्ञान की सीखने की
    प्रक्रिया से लड़ रहे हैं,
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    जो इंसान के
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    नसों के सिस्टम में संरक्षित है |
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    यह इनाम आधारित सीखने की प्रक्रिया
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    को पोसिटिव और नेगेटिव
    रेंफोर्सेमेंट कहते है
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    और मूल रूप से इस तरह चलता है।
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    हम कुछ अच्छे खाने को देखते हैं,
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    हमारे दिमाग कहता है,
    " कैलरी! ... जीवन रक्षा !"
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    हम खाना कहते हैं, चखते हैं --
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    वो स्वादिष्ट लगता है |
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    और खासकर चीनी के साथ ,
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    हमारा शरीर दिमाग को संकेत भेजता है,
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    "याद रहे कि आप क्या खा रहे हैं
    और यह कहाँ मिला है|"
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    हम इस संदर्भ-निर्भर
    स्मृति को सोचते हैं
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    और प्रक्रिया को दोहराने
    के लिए सीख लेते हैं.
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    समुद्री खाना,
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    खाना खाएं, अच्छा महसूस करें,
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    और दोहराएं|
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    शुरू करें, गतिविधि दिखाएँ, इनाम पाएं|
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    आसान, नहीं?
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    फिर कुछ देर बाद,
    हमारा क्रिएटिव दिमाग
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    कहता हैं, "पता है?
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    आप इसे और भी चीज़ें याद रखने के लिए
    इस्तेमाल कर सकते हैं|
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    अगली बार, जब आप बुरा महसूस करें,
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    क्यों न आप कुछ अच्छा खाएं
    जिससे आपको अच्छा महसूस हो?"
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    इस महान विचार के लिए
    दिमाग का शुक्र है,
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    कोशिश कीजिये और जल्दी सीखिये
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    की जब हम नाराज़ या उदास हों,
    चॉकलेट या आइसक्रीम खा कर
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    अच्छा महसूस करते हैं.
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    एक ही प्रक्रिया.
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    सिर्फ एक अलग कारण|
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    बजायते की भूख के संकेत पेट में से आएं
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    यह इमोशनल संकेत -- बुरा लगना--
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    कुछ खाने के मंन का कारण बनता है|
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    शायद हम अपने बचपन में,
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    हम बहुत पढ़ाकू थे,
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    और हम बिगड़े हुए बच्चों को
    स्मोक करते देख सोचते थे,
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    "हे, मुझे
    कूल बनना है|"
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    और हम धुम्रपान करते हैं|
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    मार्लबोरो मैन, एक बेवकूफ नहीं था,
    और वह कोई अॅक्सीडेंट नहीं था
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    कूल इंसानों को देखो,
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    धुम्रपान करो कुल बनो .
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    अच्छा महसूस करो और दोहराओ |
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    शुरू करें, गतिविधि दिखाएँ, इनाम पाएं |
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    और जब हम इसे करते हैं,
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    प्रक्रिया दोहराना सीखते हैं
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    और यह एक आदत बन जाती है |
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    बाद में,
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    बाद में बहुत थकान से स्मोक करने की
    तीव्र इच्छा होती है
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    या कुछ मीठा खाने की |
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    अब, इन्ही समान दिमागी प्रक्रियायों से,
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    हम सीख से जीवित रहने से
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    अपने आप को मारने वाली
    आदतों पर आ चुके हैं |
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    मोटापा और धुम्रपान
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    यह दुनिया प्रमुख रोके जा सकने वाले,
    रोगसंख्या और मृत्युसंख्या के कारण हैं |
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    तो मेरी सांस पर
    वापस आते हैं
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    कैसा हो, अगर हम अपने
    दिमागों से लड़ने के जगह,
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    या अपने आप को ध्यान देने के लिए
    मजबूर करने की जगह,
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    हम साधारण, इनाम आधारित
    सीखने की प्रक्रिया अपनाएं
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    लेकिन एक बदलाओ के साथ?
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    कैसा हो अगर हम उस समय के अनुभव
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    के बारे में सिर्फ उत्सुक हो जाएं?
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    मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ|
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    मेरे प्रयोगशालामे जांच की
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    क्या हम सावधानी बरतने वाली ट्रेनिंग से
    धूम्रपान छुड़वा सकते हैं|
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    अब जैसे मैं अपने आप को, अपनी सांस पे
    ध्यान लगाने के लिए ज़ोर लगता हूँ
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    वैसे वे लोग भी धूम्रपान
    छोड़ने पे ज़ोर दे सकते हैं|
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    बहुत से लोगों ने इससे आज़माया
    और असफल रहें हैं--
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    सामान्य रूप में, ६ बार|
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    हमने, सावधानी भरी ट्रेनिंग में
  • 3:33 - 3:37
    ज़ोर देने को छोड़,
    उत्सुक रहने पर ध्यान केंद्रित किया|
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    असल में, हमने उन्हें धूम्रपान करने को कहा
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    क्या? जी हाँ, हमने कहा,
    "धूम्रपान करें,
  • 3:43 - 3:46
    सिर्फ करते वक़्त उत्सुक रहे|"
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    और उन्होंने तब क्या देखा?
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    खैर , हमारे एक धूम्रपान
    करने का उदाहरण सुनाता हूँ|
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    उसने कहा, " सावधानी से करने वाला धूम्रपान:
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    बद्बुदार चीज़ के जैसे लगता है
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    और केमिकल्स के जैसा स्वाद,
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    छि|"
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    अब वह जानती है की धूम्रपान
    उसके लिए हानिकारक है,
  • 4:01 - 4:03
    इसलिए वह हमारे प्रोग्राम
    से जुड़ गयी|
  • 4:04 - 4:08
    जब वह जिज्ञासु हो कर धूम्रपान कर रहीं थीं
    तब उन्होंने यह खोज किया की
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    धूम्रपान का स्वाद बहुत ही गन्दा है|
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    (हास्य)
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    अब उन्होंने अपने ज्ञान को
    बुद्धिमता के ओर परिवर्तित किया
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    धूम्रपान उनके लिए खराब है,
    अपने दिमाग में जानने के बाद
  • 4:22 - 4:24
    अब उनकी नस-नस जानती हैं,
  • 4:24 - 4:26
    और वह सम्मोहन अब खत्म हो चूका है|
  • 4:26 - 4:30
    वह अपने व्यवहार के साथ
    मोह भांग होने लगी हैं|
  • 4:31 - 4:33
    अब, प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स,
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    जो हमारे दिमाग का सबसे छोटा हिस्सा है,
    विकासवादी नज़रिये से
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    अब वह ज्ञान के नज़रिये से समझता है
    की हमने धूम्रपान नहीं करना चाहिए|
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    हमनेऔर वह पूरी कोशिश करता है
    हमारा व्यव्हार बदलने की,
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    धूम्रपान न करने के लिए मदद करता है,
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    मदद करता है वह दूसरी,
    तीसरी या चौथी कुकी न खाने में|
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    यह मानसिक नियंत्रण हैं|
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    हम यह ज्ञान का इस्तेमाल कर रहे हैं
    व्यवहार बदलने में|
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    बदकिस्मती से,
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    यह भी दिमाग का पहला हिसा ही है
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    जो बंद हो जाता है
    जब हम चिंतित होते हैं
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    जो बहुत उपयोगी नहीं है|
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    अब हम सब इसे अपने
    अनुभवों के साथ जोड़ सकते हैं|
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    जब हम चिन्तित् होते
    या थके हुए होते हैं,
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    हम बच्चों या साथी
    पर चिल्लाते हैं,
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    पता होते हुए भी कि वह हमारे
    काम का नहीं होगा
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    हम अपनी मदद
    कर ही नहीं पाते|
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    जब प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स बंद हो जाता है,
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    हम अपनी पुरानी आदतों से घिर जाते हैं,
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    इसीलिए मोहभंग होना बेहद ज़रूरी है|
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    हमें अपनी आदतों से क्या मिलता है,
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    उन्हें गहरायी से समझने में
    मदद करता है--
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    नस-नस को समझने के लिए,
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    ताकि हमें अपने आप को रोकना न पड़े
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    या सीमित न करने पड़े उस व्यव्हार से|
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    हम बस उससे करने में थोड़े कम इच्छित हैं|
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    और यही सावधानी बरतना
    या मिंडफुल्नेस होता है:
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    साफ़ साफ़ देख पाना कि हमें
    अपने व्यवहारों से क्या मिलता है
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    अपने अंदर के भावनाओं से मोह भांग हो जाना
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    और उसे सरलता से अपने आप अलग होने देना |
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    इसका मतलब यह नहीं की किसी जादू से
    धूम्रपान करना छोड़ देंगे|
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    लेकिन जैसे समय बीतता है,
    हम अपने आदतों के परिणाम,
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    साफ़ देखना सीख जाते हैं,
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    हम पुरानी आदतें छोड़,
    नयी आदतें निर्माण करते हैं|
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    यहाँ विरोधाभास यह है की
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    अपने शरीर और दिमाग में
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    पल पल होने वाली चीज़ों
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    को करीब से जानने की
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    दिलचस्पी, सावधानी बरतना है
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    यह अप्रिय लालसा से अनुभव के तरफ
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    मोड़ने की स्वेच्छा है|
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    और यह स्वेच्छा को अनुभव के तरफ मोड़ने में
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    सहारा देती है हमारी जिज्ञासा,
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    जो स्वाभाविक रूप से फायदेमंद है।
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    जिज्ञासा कैसी लगती है ?
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    अच्छी लगती है|
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    और क्या होता है जब हम उत्सुक हो जाते हैं ?
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    हम जानते हैं की लालसा सिर्फ
    शरीर उत्तेजना से बानी हुई हैं--
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    जहाँ तंगी हैं, जहाँ तनाव हैं,
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    जहाँ बेचैनी है--
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    और यह की शरीर उत्तेजना
    आती और जाती रहती हैं|
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    यह छोटे छोटे अनुभव हैं
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    जिन्हे हम हर पल
    संचालित से कर सकते हैं
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    बजाय उस विशाल लालसा के
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    जिसमे हम घुटते हैं|
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    दूसरे शब्दों में, जब हम उत्सुक होते हैं,
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    हम अपने पुराने डर आधारित,
    प्रतिक्रियाशील आदतों से बाहर आते हैं
  • 6:58 - 7:00
    और हम अस्तित्व में कदम रखते हैं|
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    हम ध्यानी वैज्ञानिक बन जाते है
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    जहाँ हम अगले डाटा पॉइंट के लिए
    उत्साहसे रुके रहते है|
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    अभी, यह वर्तन में बदलाव लाने के लिए
    आसान लगेगा|
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    लेकिन एक अभ्यास में हमने पाया की,
    ध्यानसे प्रशिक्षण
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    स्टैण्डर्ड थेरपी से धुम्रपान बंद करने में
    दो गुना बेहतर था|
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    तोह सच में यह काम करता है|
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    जब ध्यान लगा के प्राणायाम
    करनेवालो का अभ्यास किया,
  • 7:23 - 7:26
    तब मस्तिष्क के न्युरोंस के जाले
    खुद ही इसके सन्दर्भ कि खोज करते है|
  • 7:26 - 7:28
    जो की मस्तिष्क की मुलभुत अवस्था है|
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    इसको एक प्रकार का खेल ही समझिए|
  • 7:29 - 7:32
    इस जाल के बारे में एक अनुमान है,
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    मस्तिष्क की पोस्तेरिअर सिंग्युलेट कॉर्टेक्स,
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    यह सिर्फ आदतों की वजह से
    क्रियान्वित नहीं होती पर
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    लेकिन हम जब आदतो की आस में अटक ते है
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    तब भी यह क्रियान्वित होता है
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    हम जब इस दौर से
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    गुजर रहे होते है
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    उस समय क्या हुआ इसकी जागरूकता
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    अपने मस्तिष्क को शांत करती है|
  • 7:51 - 7:55
    हम इसपर एक अॅप बना रहे है|
    जो ऑनलाईन वैचारिक ज्ञान देगा|
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    इस यंत्रणा को केन्द्रित कर के|
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    अपना लक्ष अन्य जगह करने के तंत्र का
    इधर इस्तेमाल किया गया है|
  • 8:03 - 8:06
    जिससे हम बुरे अनारोगी बुरी आदतों से
    बाहर आ सकते है|
  • 8:06 - 8:10
    धुम्रपान, ज्यादा तनाव, व्यसन इस सबसे|
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    ध्यान में रखे सन्दर्भ आधारित स्मृति
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    यह साधन लोगों के पास आसानी से
    पोहोचा सकते है
  • 8:15 - 8:17
    महत्वपूर्ण संबंध होने पर ,
  • 8:18 - 8:19
    उनको मदत कर सकते है|
  • 8:19 - 8:22
    उनकी अनुवांशिक क्षमता को
    चौकस होने के लिए उत्तेजित करे|
  • 8:22 - 8:26
    जब धुम्रपान करने की इच्छा होगी या
    तनाव के निचे खाने की या अन्य इच्छा होगी
  • 8:27 - 8:28
    आपने अगर ये नहीं किया
  • 8:28 - 8:32
    आपकी इच्छा होगी ई मेल देखने की
    तलफ दूर करने के लिए,
  • 8:32 - 8:34
    या आपके काम के बीच का ध्यान
    अन्यत्र हो जाएगा.
  • 8:34 - 8:38
    या फिर गाडी चलते हुए मेसेज भेजेंगे
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    आपकी नैसर्गिक क्षमता को आजमाए|
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    थोडा सजग और चौकस हो जाइए
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    अपने मन में इस समय क्या होता है
    यह आजमाने के लिए|
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    यह दूसरा मौका होगा
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    अपनी आदतों का दुष्टचक्र तोड़ने के लिए
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    उससे बहर पड़ने में|
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    इस बार मेसेज देखने के अलावा लिखिए
  • 8:57 - 8:59
    उससे थोडा अच्छा लगेगा
  • 8:59 - 9:00
    इस तीव्र इच्छा की नोंद कर ले|
  • 9:00 - 9:02
    चौकस हो जाइए|
  • 9:02 - 9:04
    मुक्त होने का आनंद ले|
  • 9:04 - 9:05
    फिरसे करे|
  • 9:05 - 9:07
    धन्यवाद|
  • 9:07 - 9:09
    (तालियाँ)
Title:
एक आसान तरीका बुरी आदत को तोड़ने का
Speaker:
जडसन ब्रुअर
Description:

क्या हम बुरी आदतों के बारे में उत्सुक हो के उन्हें तोड़ सकते हैं ? व्यसन और सावधानी बरतने के बीच की कड़ी को समझते हैं -- धूम्रपान से ले कर अत्यधिक खाने तक, वो सभी चीज़ें जो हम जानते हुए भी की वे हमारे लिए ठीक नहीं हैं हम करते हैं| आदतों के विकास के मैकेनिज्म को जानिए और एक आसान युक्ति जो शायद अगले धूम्रपान या गाडी चलते समय मैसेज चेक करने की तीव्र इच्छा को मारने में आपकी मदद करेगा| जडसन ब्रुअर

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
09:24

Hindi subtitles

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