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केवल शरणार्थी का बचाव ना करे अच्छी जिंदगी भी दे|

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    मैंने शरणार्थियों के साथ
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    काम करना शुरू किया क्यूंकि मैं
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    कुछ कर दिखाना चाहती थी,
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    और कुछ अलग करना शुरू किया
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    उनकी कहानियां सुनाकर।
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    जब मैं शरणार्थियों
    को मिलती हूँ,
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    मैं हमेशा उन्हें सवाल पूछती हूँ।
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    तुम्हारे घर पर बम किसने फेंका?
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    तुम्हारे बेटे को किसने मारा?
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    क्या तुम्हारे परिवार के बाकी सदस्य
    जीवित बच पाए?
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    तुम कैसे सामना कर रहे हो
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    देशसे निष्कासित की इस ज़िन्दगी का?
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    किन्तु एक प्रश्न है जो मुझे सबसे ज़्यादा
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    सारगर्भित लगता है, और वह है:
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    तुम अपने साथ क्या ले कर आए?
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    जब तुम्हारे शहर में बम
    विस्फोटित हो रहे थे,
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    और शस्त्रधारियों की टोली
    तुम्हारे घर के नज़दीक आ रही थी,
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    वह कौन सी सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी
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    जो तुम्हे अपने साथ लेनी थी।
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    एक सीरियाई शरणार्थी लड़का है
    जिसे मैं जानती हूँ,
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    उसने मुझे बताया कि उसने कोई
    हिचकिचाहट नहीं दिखाई
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    जब उसका जीवन खतरे में था।
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    उसने अपना उच्च विद्यालय
    का प्रमाणपत्र उठाया
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    और बाद में उसने मुझे बताया कि
    उसने ऐसा क्यों किया।
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    वह बोला,"मैंने अपना
    उच्च विद्यालय प्रमाणपत्र
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    इसलिए उठाया क्यूंकि मेरी पूरी ज़िन्दगी
    उसपर निर्भर थी।"
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    और उस प्रमाणपत्र को पाने के लिए वह अपनी
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    ज़िन्दगी को भी जोखिम में डाल सकता था।
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    स्कूल के रास्ते में वह छिप कर गोली
    चलाने वालों को चकमा दे कर निकल जाता था।
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    उसकी कक्षा कभी हिल जाती थी
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    गोलाबारी और बम की आवाज़ से,
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    और उसकी माता ने मुझे बताया,
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    "मैं हर रोज़ उसको यह कहती थी,
    प्रत्येक सुबह,
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    "प्यारे, कृपया स्कूल मत जाओ,"
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    और जब वह दृढ रहता, वह बोली,
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    "मैं उसे सीने से लगा लेती जैसे
    वह आखरी बार हो। "
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    परन्तु वह अपनी माँ से बोला,
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    "हम सब डरे हुए हैं,
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    किन्तु हमारा परीक्षा पास करने का निश्चय
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    डर से अधिक शक्तिशाली है। "
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    किन्तु एक दिन, परिवार को
    बहुत बुरी खबर मिली।
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    हैनी की चाची, उसके चाचा और उसके चचेरे भाई
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    का क़त्ल कर दिया गया क्यूंकि वह
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    घर छोड़ने को तैयार नहीं थे।
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    उनकी गर्दनें काट दी गईं।
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    पलायन का वक़्त आ गया था
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    वे उसी दिन,उसी समय,
    अपनी कार में बैठ कर चल दिए,
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    हैनी पीछे छुपा हुआ था
    क्यूंकि उन्हें चौकियों
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    पर डरावने सैनिकों का सामना करना था।
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    और वह सीमा पार करके लेबनान पहुँच जाते
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    जहां उन्हें शान्ति मिलती।
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    किन्तु वह उनके लिए भीषण कष्ट और नीरसता
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    भरी ज़िन्दगी का आरम्भ होता।
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    उनके पास कोई चारा नहीं था, इसलिए उन्होंने
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    कीचड भरे खेत के पास
    एक झोंपड़ी बनाई,
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    और यह है हैनी का भाई अशरफ,
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    जो बाहर खेल रहा है।
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    और उस दिन वह संसार की सबसे बड़ी
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    शरणार्थियों की जनसँख्या के साथ जुड़ गए,
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    लेबनान के छोटे से देश में।
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    उसके केवल चालीस लाख नागरिक हैं,
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    और वहां दस लाख सीरियाई शरणार्थी
    निवास कर रहे हैं।
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    कोई ऐसा क़स्बा, शहर या गाँव नहीं है वहां
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    जहां सीरियाई शरणार्थोयों को
    सहारा न मिला हो।
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    यह है उल्लेखनीय उदारता
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    और मानवता।
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    इसके बारे में ऐसे सोचिये, अनुपात में।
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    यह कुछ ऐसा होगा जैसे
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    जर्मनी की सारी जनसँख्या,
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    ८ करोड़ व्यक्ति,
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    तीन वर्षों में संयुक्त राज्य
    की ओर पलायन कर दे।
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    सीरिया की आधी जनसँख्या
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    अब अवरोपित हो चुकी है,
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    अधिकतर देश के अंदर ही।
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    साठ लाख से भी ज्यादा लोग
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    अपनी जान बचने के लिए भाग रहे हैं।
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    तीस लाख से ज्यादा लोग
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    सीमा पार कर
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    और पडोसी देशों में शरण पाचुके हैं
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    और केवल एक छोटे अनुपात में
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    लोग यूरोप की तरफ जा रहे हैं।
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    मुझे सबसे चिंताजनक विषय यह लगता है कि
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    आधे से ज़्यादा सीरियाई शरणार्थी बच्चे हैं।
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    मैंने इस नन्ही बच्ची की तस्वीर ली थी।
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    जब केवल दो घंटे पहले वह सीरिया से
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    लम्बा सफर करके जॉर्डन पहुंची थी।
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    और सबसे दुखदाई है कि
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    इनमें से केवल २० फीसदी शरणार्थी बच्चे
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    लेबनान में स्कूल जा रहे हैं।
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    और फिर भी, सीरियाई शरणार्थी बच्चे,
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    सभी शरणार्थी बच्चे हमें बताते हैं
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    कि शिक्षा ही उनकी ज़िन्दगी की
    सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है।
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    क्यों? क्यूंकि वह उन्हें भविष्य
    की ओर ले जाती है
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    न कि भूतकाल के डरावने सपने की ओर।
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    वह उन्हें आशा की किरण दिखाती है,
    न कि नफरत।
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    मुझे याद आ रहा है मेरा उत्तरी इराक में
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    एक सीरियाई शरणार्थी कैंप
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    में इस लड़की से मिलना,
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    और मैंने सोचा, "यह खूबसूरत है,"
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    और मैंने उसके पास जाकर पुछा,
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    'क्या मैं तुम्हारी तस्वीर ले सकती हूँ?"
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    और उसने कहा हाँ,
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    परन्तु उसने हंसने से मना कर दिया।
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    मुझे लगता है की वह हंस ही नहीं पाती
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    क्यूंकि उसे मालूम है कि
    वह सीरियाई शरणार्थी
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    बच्चों की एक खोई हुई पीढ़ी
    का प्रतिनिधित्व करती है,
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    एक पीढ़ी जो अलग थलग और निराश हो चुकी है।
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    और फिर भी, वह किससे भागे:
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    पूर्ण तबाही,
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    इमारतें, उद्योग, स्कूल, सड़कें, घर।
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    हनी का घर भी नष्ट हो गया था।
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    इस सब का पुनर्निर्माण होना होगा
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    वास्तुकारों, अभियंताओं,
    विद्युत्कारों द्वारा।
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    समुदायों को आवश्यकता होगी
    अध्यापकों और वकीलों की
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    और राजनीतोज्ञों की जो पुनर्मिलप
    में रूचि लेने वाले हों
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    न कि बदले में।
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    क्या इसका पुनर्निर्माण
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    नही किया जाना चाहिए
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    उन लोगों के द्वारा जिनका

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    इसमें सब कुछ दांव पर लगा है
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    निर्वासन में रह रहे यह शरणार्थी?
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    शरणार्थियों के पास बहुत समय है
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    अपनी वापसी की तैयारी करने का।
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    आपको लगता होगा की एक शरणार्थी होना
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    एक अस्थायी स्थिति है।
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    यह उससे बहुत दूर है।
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    एक शरणार्थी औसत रूप से
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    १७ वर्ष निर्वासन में बिता देता है
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    क्यूंकि युद्ध तो चलते ही रहते हैं।
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    हैनी को आधार में लटके दो साल हो चुके थे
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    जब मैं हाल ही में उसको मिलने गयी,
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    और हमने अपना सारा वार्तालाप
    अंग्रेजी में किया जो
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    उसने मुझे बताया की उसने
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    डॅन ब्राउन के नॉवेल पढ़ कर सीखी
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    और अमरीकी रैप सुनकर।
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    हमने कुछ अच्छे हंसी और
    मस्ती के पल भी बिताए
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    उसके प्यारे छोटे भाई अशरफ के साथ।
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    पर मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी
    जो उसने मुझे बताया
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    जब हमने अपना वार्तालाप समाप्त किया उस दिन
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    उसने मुझसे कहा,
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    "यदि मैं विद्यार्थी नहीं,
    तो मैं कुछ भी नहीं।"
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    हनी संसार के उन ५० करोड़ लोगों में से है
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    जो आज अपनी जड़ों से उखड चुके हैं
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    दुसरे विश्व युद्ध के बाद
    यह पहली बार है कि इतने
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    सारे लोग ज़बरदस्ती बेपनाह कर दिए गए हैं।
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    जहां हम मानव स्वास्थ्य में बहुत
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    तरक्की कर रहे हैं ,
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    और तकनीक में, शिक्षा में और प्रारूप में,
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    हम पीड़ितों के लिए
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    बहुत कम कर रहे हैं
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    और उस से भी कम उन युद्धों
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    को रोकने के लिए जो इन्हें
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    अपने घरों से भागने पर मजबूर कर रहे हैं।
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    और पीड़ितों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।
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    प्रत्येक दिन, औसतन रूप से
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    इस दिन के अंत तक
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    ३२,००० लोग मजबूरन अपने घरों से
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    विस्थापित हो जायेंगे-
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    ३२,००० लोग
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    वे सीमाओं के पार जाते हैं,
    बिलकुल इसकी तरह।
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    हमने सीरियाई सीमा पर
    जॉर्डन जाते हुए यह पकड़ा,
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    और यह एक आम दिन है।
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    या फिर वे समुद्री यात्रा के अयोग्य,
    भीड़ से भरी नावों पर सवार हो जाते हैं,
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    अपनी ज़िन्दगी को जोखिम में डालते हुए
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    केवल यूरोप में सुरक्षित पहुँचने के लिए।
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    यह सीरियाई नव युवक
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    उन नावों से बच गया जो उलट गयी थीं----
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    ज्यादातर लोग डूब गए थे----
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    और इसने हमें बताया,
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    "सीरियाई लोग केवल एक शांत जगह
    की तलाश में हैं
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    जहाँ आपको कोई तंग नहीं करेगा
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    कोई आपकी बेइज़्ज़ती नहीं करेगा
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    और जहां कोई आपको मारेगा नहीं। "
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    मेरे हिसाब से यह न्यूनतम है।
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    एक ऐसी जगह के बारे में क्या विचार है
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    जो स्वास्थयप्रद हो, जहां विद्या हो,
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    और अवसर भी?
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    अमरीकियों और यूरोपीयों
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    का यह मत है
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    कि अधिकतम शरणार्थी
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    उनके देश में आ रहे हैं,
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    किन्तु सच्चाई कुछ और है।
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    शरणार्थियों की अधिकांश संख्या, ८६ प्रतिशत,
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    विकासशील देशों में रह रही है,
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    उन देशों में जो अपनी ही
    असुरक्षा से जूझ रहे हैं,
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    अपनी ही जनसँख्या के मुद्दे
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    और गरीबी के साथ।
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    तो संसार के धनी देशों को पहचानना चाहिए
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    उन देशों की मानवता और उदारता को
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    जो इतने सारे शरणार्थियों के मेज़बान हैं।
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    और सभी देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए
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    कि युद्ध और उत्पीड़न से भाग रहे किसी
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    व्यक्ति को भी बंद सीमाओं
    का सामना न करना पड़े।
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    (तालियां)
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    धन्यवाद।
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    केवल शरणार्थियों को जीवित रखने के आलावा
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    कुछ और भी कर सकते हैं।
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    हम उन्हें फलने फूलने दे सकते हैं।
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    हमें शरणार्थी कैंपों और समुदायों
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    को केवल ऐसे अस्थायी जनसँख्या केंद्र
    नहीं समझना चाहिए
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    जहाँ लोग युद्ध के अंत होने तक
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    दिन काट रहे हैं।
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    बल्कि, श्रेष्ठता के केंद्र के रूप में,
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    जहां शरणार्थी अपने मानसिक क्षति को भूल कर
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    उस दिन के लिए तैयार हो सकें जब वह घर जाकर
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    सामाजिक सुधार और
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    सकारात्मक परिवर्तन के कर्ता बन सकें।
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    यह सब समझ में आता है,
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    किन्तु मुझे सोमालिया में घट रहे
    भयानक युद्ध की याद आती है
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    जो पिछले २२ वर्षों से चला आ रहा है।
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    और सोचिये इस कैंप में रहना।
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    मैं इस कैंप में गयी थी।
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    यह जिबूती में है, सोमालिया के पास,
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    और यह इतना दूर था कि हमें
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    वहां पहुँचने के लिए
    हेलीकॉप्टर में जाना पड़ा।
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    वहां बहुत गर्मी और धूल थी।
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    हम एक स्कूल में गए
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    और बच्चों से बात करने लगे,
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    और फिर मैंने कमरे के उस पार
    एक लड़की को देखा
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    जो मुझे मेरी बेटी की उम्र की लगी
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    और मैं उसके पास बात करने गयी।
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    और मैंने उसे वह प्रशन पूछे
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    जो आम लोग बच्चों से पूछते हैं,
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    जैसे, "आपका पसंदीदा विषय कौन सा है?"
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    और, "आप बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो?"
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    और यह सुनकर वह हक़्क़ी बक्की रह गयी,
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    और मुझे बोली,
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    "मेरा कोई भविष्य नहीं है।
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    मेरे स्कूल के दिन खत्म।"
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    और मैंने सोचा कि ज़रूर
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    कोई गलतफहमी है,
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    मैंने अपने सहयोगी से पूछा
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    और उसने इस बात की पुष्टि की
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    कि इस कैंप में माध्यमिक शिक्षा के लिए
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    कोई फण्ड नहीं हैं।
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    और मेरा मन किया की काश मैं
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    इस बच्ची को बोल सकती,
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    "हम तुम्हारे लिए स्कूल बनाएंगे। "
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    और मैंने यह भी सोचा की कैसा क्षय।
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    वह सोमालिया का भविष्य है
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    और उसे होना भी चाहिए।
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    जैकब आतम नाम के एक लड़के
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    के पास एक और मौका था, किन्तु एक भयानक
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    त्रासदी के बाद।
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    उसने देखा --यह सूडान में है ---
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    वह केवल सात वर्ष का था -- उसका गाँव ---
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    जला दिया गया, और उसे पता चला
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    कि उसके माता पिता
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    और उसका पूरा परिवार
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    उस दिन मार दिए गए।
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    केवल उसका एक चचेरा भाई बचा,
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    और वह दोनों
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    सात महीने चलते रहे --
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    यह उसके जैसे लड़के हैं ---
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    जिनका पीछा जंगली जानवर और
    शस्त्रधारी गिरोह करते रहे,
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    और वह अंत में शरणार्थी कैंप पहुंचे
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    जहां उन्हें सुरक्षा मिली,
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    और उसने अगले सात वर्ष
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    केनिया के शरणार्थी कैंप में बिताए।
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    किन्तु उसका जीवन बदल गया जब उसे
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    अमेरिका में
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    दोबारा बसने का मौका मिला,
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    और उसे पालक परिवार से प्यार मिला
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    और वह स्कूल जाने लगा,
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    जब उसे विश्विद्यालय से
    स्नातक की उपाधि मिली,
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    वह चाहता था कि मैं
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    आपको यह गर्व की बात बताऊँ।
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    (तालियां)
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    मैंने एक दिन उसके साथ स्काइप पर बात की,
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    वह फ्लोरिडा में अपने
    नए विश्विद्यालय में था
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    सार्वजनिक स्वास्थ्य में
    पी एच डी कर रहा था,
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    और उसने गर्व से मुझे बताया कि
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    कैसे उसने अपने गाँव में
    क्लिनिक खोलने के लिए
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    अमरीकी जनता से
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    काफी धन एकत्रित किया।
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    तो मैं आपको वापिस
    हनी के पास ले जाना चाहती हूँ।
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    जब मैंने उसे बताया कि मुझे आपके सामने
  • 13:33 - 13:36
    TED प्रदर्शन मंच पर बोलने का मौका मिलेगा,
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    उसने मुझे एक कविता पढ़ने की इजाज़त दी
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    जो उसने मुझे ईमेल में भेजी थी।
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    उसने लिखा था:
  • 13:45 - 13:48
    "मुझे कमी महसूस होती है अपनी,
  • 13:48 - 13:50
    मेरे दोस्तों की,
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    किताबें पढ़ने और कवितायेँ लिखने
    में बिताए समय की,
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    पक्षियों और सुबह की चाय की।
  • 14:00 - 14:04
    मेरा कमरा, मेरी किताबें, मैं स्वयं,
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    और वह सब जो मुझे खुश कर देता था।
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    ओह, ओह, मेरे कितना सारे सपने थे
  • 14:14 - 14:19
    जो साकार होने वाले थे। "
  • 14:19 - 14:22
    तो मेरा कहना है:
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    शरणार्थियों में निवेश नहीं करके
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    हम एक बहुत बड़ा अवसर खो रहे हैं।
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    उनका परित्याग कर दो,
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    तो वे शोषण और दुर्व्यवहार से पीड़ित होंगे,
  • 14:36 - 14:40
    उन्हें अशिक्षित और अकुशल छोड़ दें,
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    और उनके देश में शांति और समृद्धि
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    को कई वर्षों पीछे धकेल देंगे।
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    मैं यह मानती हूँ कि जिस तरह हम
    अवरोपितों के साथ बर्ताव करते हैं
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    वैसे ही हम संसार के भविष्य
    को रूप दे सकेंगे।
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    युद्ध से पीड़ित लोग
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    स्थायी शांति की कुंजी हैं,
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    और यह शरणार्थी ही
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    हिंसा के चक्र को रोक सकते हैं।
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    हैनी एक ऐसे मोड़ पर है

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    जहां एक छोटा सा परिवर्तन
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    उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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    हम उसे विशवविद्यालय जाने में और
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    इंजीनियर बनने में मदद करना चाहते हैं,
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    किन्तु हमारी निधि जीवन की
    मूलभूत आवश्यकताओं के लिए हैं:
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    तम्बू, कम्बल, और गद्दे और रसोई का सामान,
  • 15:23 - 15:28
    खाने का राशन और कुछ दवाईयें।
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    विष्वविद्यालय विलासिता है।
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    किन्तु मिटटी के मैदान में छोड़ दिया गया,
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    वह एक खोयी हुई पीढ़ी
  • 15:37 - 15:41
    का सदस्य बनकर रह जायेगा।
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    हैनी की कहानी एक त्रासदी है,
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    किन्तु ज़रूरी नहीं की
    उसका अंत भी वैसा ही हो।
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    धन्यवाद।
  • 15:51 - 15:55
    (तालियां)
Title:
केवल शरणार्थी का बचाव ना करे अच्छी जिंदगी भी दे|
Speaker:
मेलिस्सा फ्लेमिंग
Description:

आज संसार में ५० लाख लोग अपने घरों से जबरदस्ती विस्थापित किये जा रहे हैं ---दुसरे विश्व युद के बाद यह पहली बार हो रहां है। अभी ३० लाख से भी ज्यादा सीरियाई शरणार्थी पडोसी देशों में शरण ले रहे हैं। लेबनॉन में आधे से ज्यादा ऐसे शरणार्थी बच्चे हैं; केवल २०% स्कूल जाते हैं। यू एन की शरणार्थी संस्था की मेलिस्सा फ्लेमिंग हमें आह्वाहन करती हैं कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शरणार्थी कैंप उपचार के ऐसे केंद्र बनें जहाँ लोग अपने कौशल विकसित कर सकें जो उन्हें अपने स्वस्थल के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक हों।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
16:08

Hindi subtitles

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