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यौन उत्पीड़न के बारे में हम ऑनलाइन किस तरह बात करते हैं।

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    यह पिछले वर्ष अप्रैल की बात है।
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    मैं एक शाम मित्रों के साथ गयी थी
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    उनमे से एक का जन्मदिन मनाने।
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    हम लोग कुछ हफ़्तों से नहीं मिले थे;
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    वो एक अच्छी शाम थी,
    क्योंकि सब एक बार फिर साथ थे।
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    शाम के अन्त पर,
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    मैंने लन्दन के उस पार जाने वाली
    आख़िरी भूमिगत रेलगाड़ी पकड़ी।
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    मेरा सफर अच्छा था।
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    मैं अपने स्थानीय स्टेशन पहुँची
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    और मैंने घर की ओर १० मिनट चलना शुरू किया।
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    जैसे ही मैंने अपनी गली का मोड़ लिया,
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    मेरा घर मुझे सामने दिख रहा था,
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    मैंने पीछे क़दमों की आहट सुनी
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    जो पता नहीं कहाँ से आ गए
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    और जिनकी गति बढ़ती जा रही थी।
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    इससे पहले कि मैं यह समझ पाती
    कि हो क्या रहा है,
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    एक हाथ ने मेरे मुह को भींच दिया
    मैं साँस भी नहीं ले पा रही थी,
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    और मेरे पीछे खड़े युवक ने
    मुझे ज़मीन की ओर घसीटा,
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    मेरे सर को बार-बार फुटपाथ पर मारा
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    जब तक मेरे चेहरे से खून नहीं निकलने लगा,
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    मेरी पीठ और गरदन पर लाथे मरते हुए
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    उसने मुझ पर हमला करना शुरू किया,
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    मेरे कपड़े फाड़ कर
    मुँह बन्द रखने के लिए कहा, जब मैंने
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    मदद के लिए चीखने का संघर्ष किया।
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    मेरे सर की ठोस ज़मीन के साथ हुई हर टक्कर पर
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    एक प्रश्न मेरे दिमाग में गूँज रहा था
    जो मुझे आज तक डराता है:
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    "क्या यही अन्त है?"
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    मुझे तो यह पता भी नहीं था,
    कि मेरा पूरे रास्ते पीछा हुआ था
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    उस पल से जब मैं स्टेशन से निकली थी।
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    और घंटों बाद,
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    मैं निर्वस्त्र, पुलिस के सामने खड़ी थी,
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    मेरे निर्वस्त्र तन पर लगे घावों
    की फोटो खींचवाते हुए
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    अदालती प्रमाण के लिये।
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    हाँ हैं कुछ शब्द उन गहरी भावनाओं
    का वर्णन करने के लिए,
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    उस आलोचना, अपमान, अशान्ति और
    अन्याय की, जिन में मैं डूबी हुई थी
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    उस क्षण में और आने वाले कई हफ़्तों में।
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    लेकिन इन भावनाओं को कम करने की चाह में,
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    ऐसी व्यवस्था में लाने के लिए
    जिसमें मैं आगे बढ़ूँ,
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    मैंने वो करना तय किया
    जो मुझे प्राकृतिक लगा
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    मैंने उसके बारे में लिखा।
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    यह एक शुद्धिकरण की तरह आरम्भ हुई।
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    मैंने अपने हमलावर को एक पत्र लिखा,
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    उसका मानवीकरण "तुम" से करते हुए,
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    उसको उसी समुदाय से उसकी पहचान देते हुए
    जिसका वो हिस्सा था
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    जिसका उसने क्रूरता से
    उस रात दुष्प्रयोग किया।
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    उसके कर्म से हुए
    लहरदार प्रभाव पर ज़ोर डालते हुए,
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    मैंने लिखा:
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    क्या तुमने कभी अपने नज़दीकी
    लोगों के बारे में सोचा?
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    मैं नहीं जानती
    तुम्हारे जीवन में कौन लोग हैं।
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    मैं तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानती।
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    पर मैं इतना जानती हूँ:
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    उस रात तुमने केवल मुझ पर हमला नहीं किया।
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    मैं एक बेटी हूँ, एक मित्र हूँ,
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    एक बहिन हूँ, एक छात्र हूँ,
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    एक चचेरी बहिन, भान्जी हूँ,
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    एक पड़ोसी हूँ;
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    एक कर्मचारी हूँ
    जिसने सबको कॉफ़ी परोसी है
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    रेल-मार्ग के नीचे वाले कैफ़े में।
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    और वो सब लोग
    जो मुझसे यह रिश्ते बनाते हैं
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    उनसे मेरा समुदाय बनता है।
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    और तुमने उस हर एक व्यक्ति
    पर हमला किया है।
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    तुमने उस सत्य का उल्लंघन किया
    जिसकी लड़ाई मैं नहीं छोडूँगी
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    और जिसका यह सब लोग प्रतिनिधित्व करते हैं
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    कि विश्व में बुरे लोगो से
    अनन्त रूप से ज़्यादा, अच्छे लोग हैं।"
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    पर यह एक हादसा मेरे विश्वास को न हिला पाए,
    इस निश्चय के साथ,
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    मेरे समुदाय की एकजुटता में
    या पूरी इन्सानियत में,
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    मैंने ७ जुलाई २००५ में लन्दन यातायात पर
    हुए आतंकवादी बम विस्फोटों को याद किया,
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    और कैसे उस समय लन्दन के मेयर ने,
    बल्कि मेरे खुद के माता-पिता ने,
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    आग्रह किया था कि हम सब अगले ही दिन
    ट्यूब (रेल) से सफर करें,
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    ताकि हम उनके द्वारा परिभाषित ना हों
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    जिन्होंने हमें असुरक्षित मेहसूस कराया।
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    मैंने अपने हमलावर को बताया,
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    "तुमने अपना हमला पूरा कर लिया,
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    लेकिन अब मैं अपनी ट्यूब पर
    वापस जा रही हूँ।
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    मेरा समुदाय अँधेरे में घर चल कर जाते हुए
    असुरक्षित महसूस नहीं करेगा।
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    हम घर के लिए आखिरी ट्यूब लेंगे,
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    और हम अपनी गलियों में अकेले चलेंगे,
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    क्योंकि हम खुद को इस विचार
    के आधीन नहीं होने देंगे
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    कि हम ऐसा कर के
    खुद को खतरे में डाल रहे हैं।
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    हम एक सेना की तरह एक साथ रहेंगे,
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    जब भी हमारे समुदाय के
    किसी सदस्य को धमकाया जयेगा।
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    और यह एक ऐसी लड़ाई है
    जो तुम कभी नहीं जीतोगे।"
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    इस पत्र को लिखते समय --
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    (वाहवाही)
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    धन्यवाद।
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    (वाहवाही)
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    इस पत्र को लिखते समय,
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    मैं ऑक्सफर्ड में परीक्षा
    के लिए पढ़ती थी
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    और मैं वहाँ के स्थानीय
    छात्र अख़बार पर काम करती थी।
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    इतनी भाग्यशाली होने के बाद भी,
    कि मेरे मित्र और परिवार मेरे साथ थे,
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    यह एक अकेलेपन का समय था।
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    मैं किसी को नहीं जानती थी
    जो ऐसी स्थिति से गुज़रा हो;
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    कम से कम मुझे ऐसा लगता था।
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    मैं खबरें पढ़ती थी, आँकड़े,
    और यह जानती थी कि यौन उत्पीड़न कितना आम था,
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    फ़िर भी एक ऐसे व्यक्ति का
    नाम नहीं बता पाती
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    जिसको मैंने इस तरह के अनुभव
    के बारे में खुल के बोलते हुए सुना हो।
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    तो एक कुछ-कुछ सहेज निर्णय लेते हुए,
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    मैंने अपने पत्र को छात्र अख़बार में
    प्रकाशित करने का फैसला किया,
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    ऑक्सफ़र्ड में औरों तक
    पहुँचने की आशा में
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    जिनके साथ कोई समान घटना घटी हो
    और उन को भी ऐसी ही अनुभूति हो रही हो।
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    पत्र के अन्त में,
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    मैंने औरों को उनके अनुभव
    बारे में लिखने के लिए कहा
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    हैशटैग "#मैंदोषीनहीं" के साथ,
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    ज़ोर देने के लिए कि उत्पीडन
    सहे हुए लोग खुद को अभिव्यक्त पाएं,
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    बिना शर्म या अपराध की भावना के
    अपनी आपबीती बता सकते थे --
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    दिखाते हुए कि हम सब
    यौन उत्पीड़न के खिलाफ खड़े हो सकते है
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    मुझे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था
    कि लगभग रातों-रात,
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    यह प्रकाशित पत्र आग की तरह फैल जायेगा।
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    जल्द ही, हम को सैंकड़ों
    कहानियाँ मिल रही थीं
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    दुनिया भर के स्त्रियों और पुरुषों से,
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    जिन्हें हम मेरी बनायी हुई
    वेबसाइट पर प्रकाशित करने लगे।
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    और वह हैशटैग एक आन्दोलन बन गया।
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    एक ४० से ऊपर की उम्र वाली ऑस्ट्रेलियाई
    माँ थीं जिन्होंने बताया कि कैसे एक शाम,
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    उन का स्नानघर की ओर पीछा किया
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    एक पुरुष ने जो बार बार
    उनकी ऊसन्धि को पकड़ता रहा।
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    एक पुरुष था नीदरलैंड में
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    जिसने बताया कैसे लन्दन
    यात्रा पर उसका भेंट-बलात्कार हुआ
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    और उसने जिसको भी यह घटना बताई,
    किसी ने उसे सच नहीं माना।
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    मुझे भारत और दक्षिण अमेरिका से
    लोगों के व्यक्तिगत फेसबुक सन्देश आये,
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    पूछते हुए कि इस आन्दोंलन का सन्देश
    वहाँ कैसे ला सकते हैं?
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    हमें पहला योगदान एक "निक्की"
    नाम की महिला से मिला,
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    जिसने बताया कि बचपन में उसके पिता ने ही
    उसका यौन शोषण किया।
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    और मेरे मित्र मुझे बताने लगे
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    ऐसी घटनाओं के बारे में जो
    उनके साथ पिछले सप्ताह से लेकर
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    वर्षों पहले हुई थीं,
    जिनके बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं था।
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    और जितने ज़्यादा हमें
    ऐसे सन्देश मिलने लगे,
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    उतने ही ज़्यादा हमें
    आशा भरे सन्देश भी मिले --
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    लोग सशक्त महसूस कर रहे थे
    इन आवाज़ों के समुदाय से जो
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    यौन शोषण व पीड़ित को
    दोष देने के खिलाफ खड़ी हो रही थीं।
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    एक ओलिविया नाम की महिला ने,
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    यह बताने के बाद कि कैसे
    उसका शोषण किया
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    एक ऐसे व्यक्ति ने जिसकी वह
    बहुत समय से परवाह करती थी,
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    लिखा, "मैंने यहाँ लिखी
    बहुत कहानियाँ पढ़ी हैं,
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    और मैं आशावान हूँ कि अगर
    इतनी सारी स्त्रियाँ आगे बढ़ सकती हैं
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    तो मैं भी बढ़ सकती हूँ।
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    मुझे बहुतों से प्रेरणा मिली
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    और मुझे आशा है कि मैं भी
    उनके जितनी सबल बनूँ।
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    मुझे यकीन है, बनूँगी।"
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    दुनिया भर के लोग इस हैशटैग
    के साथ ट्वीट करने लगे,
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    और मेरा पत्र राष्ट्रीय अख़बार ने
    प्रकाशित किया,
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    उसका दुनिया भर की अन्य कई भाषाओं में
    अनुवाद भी किया जा रहा था।
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    पर मुझे मीडिया का दिया जा रहा
    वह महत्व कुछ अलग लगा
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    जिसे यह पत्र आकर्षित कर रहा था।
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    किसी बात को मुख्य-पृष्ठ
    समाचार बनने के लिए,
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    "समाचार" शब्द ही अपने आप में ऐसा है,
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    कि हम सोचते हैं कि कुछ नया
    या कुछ अप्रत्याशित होगा।
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    और फ़िर भी यौन उत्पीड़न
    कोई नयी बात नहीं है।
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    और कई प्रकार के अन्याय की तरह
    यौन उत्पीड़न भी,
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    जनसंचार में हमेशा संवंदित होता है।
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    लेकिन आन्दोलन के ज़रिये,
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    इन अन्यायों को केवल खबर के
    रूप में अँकित नहीं किया गया,
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    यह प्रत्यक्ष अनुभव थे जिन्होंने
    वास्तविक लोगों को प्रभावित किया था,
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    जो दूसरों की सुदृढ़ता से
    वो बना रहे थे,
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    जो चाहिए था लेकिन
    पहले उनके पास नहीं था:
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    अपनी बात खुल कर कहने का मंच,
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    यह आश्वासन के वो अकेले नहीं थे
    या जो उनके साथ हुआ उसका दोष देने के लिए
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    और खुल के ऐसी चर्चा करने के लिए, जो इस
    समस्या के साथ जुड़े कलंक को कम कर सके।
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    इस संवाद में सबसे आगे उनकी आवाज़ें थीं
    जिन पर ऐसी घटनाओं का सीधा प्रभाव पड़ा था-
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    सामाजिक जनसंचार के
    पत्रकारों या समीक्षकों की नहीं।
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    और इसलिए यह एक समाचार बन गया था।
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    हम अविश्वसनीय रूप से
    जुड़े विश्व में रहते हैं,
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    सोशियल मीडिया के
    तेज़ी से बढ़ने के कारण,
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    जो बेशक सामाजिक बदलाव की आग
    जलाने के लिए एक बहुत ही अच्छा माध्यम है।
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    लेकिन इससे हम प्रतिक्रियाशील
    भी होते जा रहे हैं,
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    छोटी-छोटी बातों से लेकर, जैसे,
    "ओह, मेरी रेल देरी से जाएगी,"
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    से लेकर बड़े-बड़े युद्ध, नरसंहार,
    आतंकवादी हमले जैसे अन्यायों के लिए।
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    किसी भी कष्ट पर प्रतिक्रिया करने के लिए
    हम सबसे पहले जल्द से जल्द
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    ट्वीट, फेसबुक, हैशटैग करते हैं--
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    कुछ भी जिससे सबको पता चले
    कि हमने भी प्रतिक्रिया दी है।
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    इस सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया देने में
    समस्या यह है
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    कि कभी-कभी इसका यह अर्थ भी हो सकता है
    कि हम कोई जवाब दें ही न,
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    कम से कम उसके बारे में कुछ करने की
    भावना से तो नहीं।
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    इससे हमें तो अच्छा लग सकता है
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    कि हमने सामूहिक कष्ट
    या ज़ुल्म के विरुद्ध योगदान दिया,
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    पर इससे असल में कुछ नहीं बदलता।
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    और तो और,
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    कभी-कभी यह उनकी ही
    आवाज़ कुचल देता है
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    जिनके ऊपर उस अन्याय का
    सीधा असर पड़ा है,
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    जिनकी ज़रूरतों को सुना जाना चाहिए।
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    चिन्ता की बात यह प्रवृत्ति भी है,
    कि अन्याय के विरुद्ध कुछ प्रतिक्रियाएँ
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    और दीवारें खड़ी करने की होती हैं,
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    जो तुरन्त दूसरों को दोष देती हैं
    जटिल समस्यायों के आसान उपाय देने की
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    आशा के साथ।
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    एक छोटे ब्रिटिश अख़बार ने
    मेरे पत्र को प्रकाशित करके
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    ऐसा शीर्षक लिखा,
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    "ऑक्सफोर्ड छात्रा ने शुरू किया हमलावर को
    शर्मिंदा करने का ऑनलाइन आन्दोलन।"
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    पर वो तो कभी किसी को
    शर्मिंदा करने का था ही नहीं
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    वो तो लोगों को बोलने का और
    दूसरों को सुनने का मौका देने के लिए था।
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    मतभेद पैदा करते ट्विटर ट्रोल
    ने जल्दी से और भी ज़्यादा अन्याय पैदा किया,
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    मेरे हमलावर की जाती
    और दर्जे पर टिप्पणी करके,
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    अपनी ही धारणाओं
    से निमित्त लक्ष्यों के लिए।
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    और कुछ ने तो मुझे एक मनघडंत
    कहानी रचने का भी दोष दिया
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    यह कहकर कि मैं इससे
    पूरा करना चाहती हूँ मेरा,
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    "पुरुष-घृणा का नारीवादी लक्ष्य।"
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    (खिलखिलाहट)
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    सच में, है ना?
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    जैसे मैं कहूँगी,
    "सुनो, मुझे माफ़ करना, मैं नहीं आ पाऊँगी,
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    मैं सारी नर जाती से
    नफरत करने में व्यस्त हूँ,
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    अपने ३० साल के होने तक।"
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    (खिलखिलाहट)
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    अब, मुझे लगभग पूरा विश्वास है
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    कि यह लोग यह बातें
    आमने-सामने नहीं बोलेंगे।
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    पर ऐसा लगता है जैसे क्योंकि
    वो एक पर्दे के पीछे हैं,
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    अपने घर के आराम में,
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    जब सोशियल मीडिया पर हैं,
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    तो लोग भूल जाते हैं कि
    वो एक सार्वजानिक काम कर रहे हैं,
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    कि अन्य लोग उसको पढ़ेंगे
    और उससे प्रभावित होंगे।
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    मेरे रेल पर वापस जाने की
    बात पर फिर से आते हुए,
  • 8:45 - 8:47
    मेरी दूसरी मुख्य चिन्ता
    उस शोर के बारे में है, जो बढ़ता है
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    हमारे अन्याय के लिए
    ऑनलाइन जवाबों से
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    कि यह बहुत ही आसानी से हमें प्रभावित
    व्यक्ति की तरह चित्रित कर सकता है,
  • 8:53 - 8:55
    जिससे हमें हारने की भावना हो सकती है,
  • 8:55 - 8:59
    एक सकारात्मक या बदलाव के मौके को देखने
    से रोकने वाले मानसिक अवरोध की तरह,
  • 8:59 - 9:00
    एक नकारात्मक घटना के बाद।
  • 9:01 - 9:03
    इस आन्दोलन के शुरू होने के कुछ माह पहले
  • 9:03 - 9:05
    या मेरे साथ यह सब होने से पहले
  • 9:05 - 9:07
    मैं ऑक्सफर्ड में
    TEDx में गयी थी
  • 9:07 - 9:09
    वहाँ मैंने ज़ेल्डा ला ग्रान्जे को सुना,
  • 9:09 - 9:11
    जो नेल्सन मंडेला की
    भूतपूर्व निजी सचिव थीं।
  • 9:11 - 9:13
    एक बात उन्होंने बोली
    जो मेरे साथ रह गयी।
  • 9:14 - 9:16
    उन्होंने मंडेला को अदालत
    ले जाने का बताया
  • 9:16 - 9:17
    दक्षिणी अफ्रीका रग्बी संघ द्वारा,
  • 9:17 - 9:20
    उनके खेल जगत की जाँच
    के आदेश देने के बाद।
  • 9:20 - 9:21
    अदालत में,
  • 9:21 - 9:24
    वो दक्षिणी अफ्रीकन रग्बी संघ के
    वकीलों के पास गए,
  • 9:24 - 9:25
    उनसे हाथ मिलाया
  • 9:25 - 9:28
    और हर एक से उसकी
    अपनी भाषा में बात की।
  • 9:28 - 9:29
    ज़ेल्डा विरोध करना चाहती थीं,
  • 9:29 - 9:31
    कह कर कि वो उनके
    आदर के अधिकारी नहीं थे
  • 9:31 - 9:33
    उनके साथ ऐसा अन्याय करने के बाद।
  • 9:34 - 9:36
    वह उनकी तरफ मुड़े और बोले,
  • 9:36 - 9:40
    "तुम्हें कभी शत्रु को युद्ध का मैदान
    तय करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।"
  • 9:42 - 9:44
    यह शब्द सुनने के समय
  • 9:44 - 9:46
    मुझे अंदाज़ा नहीं था
    कि क्यों इनका इतना महत्व था,
  • 9:46 - 9:49
    पर मुझे लगा कि थे, और मैंने उन्हें
    अपने पास एक पुस्तक में लिख लिया।
  • 9:49 - 9:52
    पर मैंने इस कथन के बारे में
    तब से बहुत सोचा है।
  • 9:52 - 9:55
    बदला, या नफरत की अभिव्यक्ति
  • 9:55 - 9:57
    उनकी तरफ जिन्होंने
    हमारे साथ अन्याय किया,
  • 9:57 - 10:00
    उस गलत के विरुद्ध मानवीय प्रवृत्ति
    की तरह लग सकती है,
  • 10:00 - 10:02
    पर हमें इस चक्र से बाहर निकलना पड़ेगा
  • 10:02 - 10:05
    अगर हम अन्याय की नकारात्मक
    घटनाओं को बदलना चाहते हैं
  • 10:05 - 10:07
    सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन में।
  • 10:07 - 10:08
    अन्यथा करना,
  • 10:08 - 10:11
    शत्रु को युद्ध का मैदान
    निर्धारित करते रहने देता है,
  • 10:11 - 10:13
    एक दोहरा प्रभाव बनाता है
  • 10:13 - 10:15
    जहाँ जिन्होंने अन्याय सहा,
    वही प्रभावित बन जाते हैं
  • 10:15 - 10:18
    अपराधी के विरुद्ध खड़े हुए।
  • 10:18 - 10:20
    और जिस तरह हम अपनी रेल पर वापस चले गए,
  • 10:20 - 10:23
    उसी तरह हम अपने सम्बन्धों और
    समुदायों के माध्यमों को
  • 10:23 - 10:25
    हम हार मान जाने वाली
    जगह नहीं बनने दे सकते।
  • 10:27 - 10:31
    पर मैं सोशियल मीडिया पर प्रतिक्रिया
    को हतोत्साहित भी नहीं करना चाहती,
  • 10:31 - 10:33
    क्योंकि मैं #मैंदोषीनहीं
    आन्दोलन के विकास के लिए, ऋणी हूँ
  • 10:33 - 10:35
    लगभग पूरी तरह
    सोशियल मीडिया की ।
  • 10:35 - 10:37
    पर मैं ज़्यादा संवेदनशील
    तरीके को बढ़ावा देना चाहती हूँ
  • 10:37 - 10:40
    जिसका प्रयोग अन्याय पर
    प्रतिक्रिया के लिए हो।
  • 10:40 - 10:42
    शुरुवात के लिए, हमें खुद से
    दो बातें पूछनी चाहियें।
  • 10:42 - 10:45
    पहली: मुझे इस अन्याय
    की भावना क्यों होती है?
  • 10:45 - 10:47
    मेरे लिये इसके कई उत्तर थे।
  • 10:47 - 10:49
    किसीने मुझे व मेरे
    नज़दीकी लोगों को दुख दिया था,
  • 10:49 - 10:52
    इस धारणा के साथ कि उनको
    उसका उत्तरदायी नहीं माना जायेगा,
  • 10:52 - 10:54
    या जो क्षति की
    उसे पहचाना नहीं जायेगा।
  • 10:54 - 10:57
    यही नहीं, हज़ारों स्त्री और पुरुष
    हर रोज़ क्षतिग्रस्त होते हैं
  • 10:57 - 10:59
    यौन उत्पीड़न से, ज़्यादातर चुपचाप।
  • 10:59 - 11:02
    फिर भी, यह आज भी एक ऐसी समस्या है
    जिसकी हम बाकियों जितनी चर्चा नहीं करते।
  • 11:02 - 11:05
    यह आज भी ऐसी समस्या है
    जिसका दोष लोग पीड़ित को देते है।
  • 11:05 - 11:08
    दूसरा, खुद को पूछिये:
    इन कारणों से पहचान करके
  • 11:08 - 11:10
    मैं इन्हें समाप्त कैसे करूँ?
  • 11:10 - 11:14
    हमारे लिए, यह मेरे हमलावर, और कई
    औरों को उत्तरदायी बनाने से था।
  • 11:14 - 11:16
    जो असर उनके कर्म से हुआ,
    उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने में।
  • 11:16 - 11:19
    यौन शोषण की समस्या पर
    खुल कर बातचीत का मौका देने में था,
  • 11:19 - 11:23
    मित्रों, परिवारों, जनसंचार में
    उस चर्चा को शुरू करने में था,
  • 11:23 - 11:24
    जो बहुत ज़्यादा समय से बन्द थी,
  • 11:24 - 11:27
    ज़ोर देते हुए कि पीड़ित
    दोष देने में बुरा न माने,
  • 11:27 - 11:28
    जो उनके साथ हुआ उसके लिए।
  • 11:28 - 11:31
    शायद इस समस्या को सुलझाने के लिए
    अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
  • 11:31 - 11:32
    लेकिन इस तरह से,
  • 11:32 - 11:36
    हम सोशियल मीडिया का प्रयोग सामाजिक
    न्याय के साधन जैसे शुरू कर सकते है,
  • 11:36 - 11:38
    शिक्षा के साधन की तरह,
    संवाद प्रेरित करने के,
  • 11:38 - 11:41
    आधिकारिक लोगों को
    समस्याओं से अवगत कराने के
  • 11:41 - 11:43
    उन लोगों के माध्यम से
    जो उससे सीधा प्रभावित हुए हैं।
  • 11:44 - 11:49
    क्योंकि कभी-कभी इन प्रश्नों
    के उत्तर आसान नहीं होते।
  • 11:49 - 11:50
    बल्कि, बहुत ही कम होते हैं।
  • 11:51 - 11:54
    पर इसका अर्थ फ़िर भी यह नहीं है कि हम
    इनको संवेदनशील उत्तर न दे सकें।
  • 11:54 - 11:57
    ऐसी स्थितियों में जब
    आप ये नहीं सोच पा रहे
  • 11:57 - 11:59
    कि आप इस अन्याय के
    एहसास का अन्त कैसे करें,
  • 11:59 - 12:01
    आप ऐसा ज़रूर सोच सकते हैं,
    शायद ये नहीं कि आप क्या करें,
  • 12:01 - 12:03
    पर ये कि आप क्या नहीं करें।
  • 12:04 - 12:07
    आप और ज़्यादा दीवारें खड़ी नहीं कर सकते,
    और ज़्यादा पक्षपात, और नफरत द्वारा
  • 12:07 - 12:09
    अन्याय से लड़ के।
  • 12:09 - 12:13
    आवाज़ उनसे ऊँची नहीं कर सकते
    जो उस अन्याय से सीधा प्रभावित हुए हैं।
  • 12:13 - 12:17
    और आप अन्याय पर प्रतिक्रिया नहीं कर सकते
    अगर आप उसे अगले दिन भूल जायेंगे,
  • 12:17 - 12:19
    इसलिए क्योंकि ट्विटर पर बाकी सब
    आगे बढ़ चुके हैं।
  • 12:20 - 12:24
    कभी-कभी एकदम प्रतिक्रिया न करना ही,
  • 12:24 - 12:27
    सबसे अच्छा कदम है जो हम उठा सकते हैं।
  • 12:28 - 12:32
    क्योंकि हम अन्याय से क्रोधित,
    दुःखी और उत्तेजित हो सकते हैं,
  • 12:32 - 12:35
    लेकिन सोच-समझ कर
    प्रतिक्रिया करना ज़रूरी है।
  • 12:35 - 12:39
    हमें लोगों को उत्तरदायी बनाना है,
    बिना एक ऐसी संस्कृति बनाकर
  • 12:39 - 12:41
    खुद के साथ अन्याय करे जो औरों
    को शर्मिंदा करने पर जीती हो।
  • 12:42 - 12:44
    हमें यह अन्तर याद रखना है,
  • 12:44 - 12:46
    जो इन्टरनेट पर लोग अकसर भूल जाते हैं,
  • 12:46 - 12:49
    आलोचना और अपमान के बीच का।
  • 12:49 - 12:51
    हम बोलने से पहले सोचना नहीं भूलना है,
  • 12:51 - 12:54
    सिर्फ इसलिए के हमारे
    सामने एक पर्दा हो सकता है।
  • 12:54 - 12:56
    और जब हम सोशियल मीडिया पर शोर मचाएँ,
  • 12:56 - 12:58
    वो प्रभावित लोगों की ही
    ज़रूरतों को ना डुबा दे,
  • 12:58 - 13:01
    बल्कि उनकी आवाज़ों को और बढ़ाये,
  • 13:01 - 13:04
    ताकि इन्टरनेट एक ऐसी जगह बने
    जहाँ आप इसलिए अपवाद न हों,
  • 13:04 - 13:07
    अगर आप किसी ऐसी घटना की बात
    करते हैं जो आपके साथ सच में हुई हो।
  • 13:07 - 13:09
    यह सब अन्याय से लड़ने
    के लिए संवेदनशील तरीके
  • 13:09 - 13:12
    वही सिद्धान्त जागृत करते हैं
    जिन पर इन्टरनेट बना था
  • 13:12 - 13:15
    संपर्क के लिये, सिग्नल
    के लिये, जुड़ने के लिये
  • 13:15 - 13:17
    यह सारे शब्द जिनका अर्थ
    लोगों को साथ लाना है,
  • 13:17 - 13:18
    उनको दूर करना नहीं।
  • 13:19 - 13:23
    क्योंकि अगर आप "अन्याय" शब्द
    को शब्दकोश में खोजेंगे,
  • 13:24 - 13:25
    सज़ा मिलने से पहले,
  • 13:25 - 13:29
    कानून या अदालत के सामने,
  • 13:30 - 13:31
    तो आप यह पाएंगे:
  • 13:31 - 13:33
    "जो सही है उसका संरक्षण।"
  • 13:34 - 13:38
    और मुझे लगता है कि दुनिया में थोड़ी ही
    चीज़ें है जो ज़्यादा "सही" हैं,
  • 13:38 - 13:39
    लोगों को साथ लाने से,
  • 13:39 - 13:41
    संघो से।
  • 13:41 - 13:44
    और अगर हम सोशियल मीडिया
    को ऐसा करने दें,
  • 13:44 - 13:48
    तो वह निस्संदेह, न्याय का एक बहुत ही
    शक्तिशाली रूप प्रदान कर सकता है।
  • 13:48 - 13:50
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
  • 13:50 - 13:57
    (वाहवाही)
Title:
यौन उत्पीड़न के बारे में हम ऑनलाइन किस तरह बात करते हैं।
Speaker:
इयोन वेल्स
Description:

लेखक और कर्मठ कार्यकर्ता बताती हैं, कैसे हमें सामाजिक जनसंचार (सोशियल मीडिया) को सामाजिक न्याय के लिए प्रयोग करने के लिए, एक अधिक संवेदनशील तरीके की ज़रूरत है। लन्दन में एक बार यौन उत्पीड़न का शिकार होने के बाद, वेल्स ने अपने हमलावर के लिए एक पत्र एक छात्र अख़बार में प्रकाशित किया जो आग की तरह फैल गया और जिससे यौन हिंसा और पीड़ित को दोष देने के विरुद्ध #मैंदोषीनहीं (#NotGuilty) आन्दोलन आरम्भ हुआ। भावुक कर देने वाले इस भाषण में, वो बताती हैं कैसे अपनी निजी कहानी लोगों को बताने से दूसरों को आशा मिली और ऑनलाइन शर्मिंदा करने की संस्कृति के विरुद्ध एक शक्तिशाली सन्देश देती हैं।

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Video Language:
English
Team:
closed TED
Project:
TEDTalks
Duration:
13:56

Hindi subtitles

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