यौन उत्पीड़न के बारे में हम ऑनलाइन किस तरह बात करते हैं।
-
0:01 - 0:03यह पिछले वर्ष अप्रैल की बात है।
-
0:04 - 0:05मैं एक शाम मित्रों के साथ गयी थी
-
0:05 - 0:07उनमे से एक का जन्मदिन मनाने।
-
0:08 - 0:10हम लोग कुछ हफ़्तों से नहीं मिले थे;
-
0:10 - 0:12वो एक अच्छी शाम थी,
क्योंकि सब एक बार फिर साथ थे। -
0:13 - 0:14शाम के अन्त पर,
-
0:14 - 0:18मैंने लन्दन के उस पार जाने वाली
आख़िरी भूमिगत रेलगाड़ी पकड़ी। -
0:19 - 0:20मेरा सफर अच्छा था।
-
0:20 - 0:22मैं अपने स्थानीय स्टेशन पहुँची
-
0:22 - 0:24और मैंने घर की ओर १० मिनट चलना शुरू किया।
-
0:25 - 0:28जैसे ही मैंने अपनी गली का मोड़ लिया,
-
0:28 - 0:29मेरा घर मुझे सामने दिख रहा था,
-
0:30 - 0:31मैंने पीछे क़दमों की आहट सुनी
-
0:31 - 0:33जो पता नहीं कहाँ से आ गए
-
0:33 - 0:35और जिनकी गति बढ़ती जा रही थी।
-
0:36 - 0:38इससे पहले कि मैं यह समझ पाती
कि हो क्या रहा है, -
0:38 - 0:41एक हाथ ने मेरे मुह को भींच दिया
मैं साँस भी नहीं ले पा रही थी, -
0:41 - 0:44और मेरे पीछे खड़े युवक ने
मुझे ज़मीन की ओर घसीटा, -
0:44 - 0:46मेरे सर को बार-बार फुटपाथ पर मारा
-
0:46 - 0:48जब तक मेरे चेहरे से खून नहीं निकलने लगा,
-
0:48 - 0:51मेरी पीठ और गरदन पर लाथे मरते हुए
-
0:51 - 0:52उसने मुझ पर हमला करना शुरू किया,
-
0:52 - 0:55मेरे कपड़े फाड़ कर
मुँह बन्द रखने के लिए कहा, जब मैंने -
0:55 - 0:56मदद के लिए चीखने का संघर्ष किया।
-
0:57 - 1:00मेरे सर की ठोस ज़मीन के साथ हुई हर टक्कर पर
-
1:00 - 1:03एक प्रश्न मेरे दिमाग में गूँज रहा था
जो मुझे आज तक डराता है: -
1:03 - 1:05"क्या यही अन्त है?"
-
1:07 - 1:10मुझे तो यह पता भी नहीं था,
कि मेरा पूरे रास्ते पीछा हुआ था -
1:10 - 1:12उस पल से जब मैं स्टेशन से निकली थी।
-
1:12 - 1:13और घंटों बाद,
-
1:13 - 1:17मैं निर्वस्त्र, पुलिस के सामने खड़ी थी,
-
1:17 - 1:19मेरे निर्वस्त्र तन पर लगे घावों
की फोटो खींचवाते हुए -
1:19 - 1:21अदालती प्रमाण के लिये।
-
1:22 - 1:25हाँ हैं कुछ शब्द उन गहरी भावनाओं
का वर्णन करने के लिए, -
1:25 - 1:28उस आलोचना, अपमान, अशान्ति और
अन्याय की, जिन में मैं डूबी हुई थी -
1:28 - 1:31उस क्षण में और आने वाले कई हफ़्तों में।
-
1:32 - 1:34लेकिन इन भावनाओं को कम करने की चाह में,
-
1:35 - 1:37ऐसी व्यवस्था में लाने के लिए
जिसमें मैं आगे बढ़ूँ, -
1:37 - 1:39मैंने वो करना तय किया
जो मुझे प्राकृतिक लगा -
1:39 - 1:41मैंने उसके बारे में लिखा।
-
1:41 - 1:44यह एक शुद्धिकरण की तरह आरम्भ हुई।
-
1:44 - 1:47मैंने अपने हमलावर को एक पत्र लिखा,
-
1:47 - 1:49उसका मानवीकरण "तुम" से करते हुए,
-
1:49 - 1:52उसको उसी समुदाय से उसकी पहचान देते हुए
जिसका वो हिस्सा था -
1:52 - 1:54जिसका उसने क्रूरता से
उस रात दुष्प्रयोग किया। -
1:55 - 1:57उसके कर्म से हुए
लहरदार प्रभाव पर ज़ोर डालते हुए, -
1:57 - 1:59मैंने लिखा:
-
1:59 - 2:01क्या तुमने कभी अपने नज़दीकी
लोगों के बारे में सोचा? -
2:02 - 2:04मैं नहीं जानती
तुम्हारे जीवन में कौन लोग हैं। -
2:04 - 2:06मैं तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानती।
-
2:06 - 2:08पर मैं इतना जानती हूँ:
-
2:08 - 2:10उस रात तुमने केवल मुझ पर हमला नहीं किया।
-
2:10 - 2:12मैं एक बेटी हूँ, एक मित्र हूँ,
-
2:12 - 2:14एक बहिन हूँ, एक छात्र हूँ,
-
2:14 - 2:15एक चचेरी बहिन, भान्जी हूँ,
-
2:15 - 2:16एक पड़ोसी हूँ;
-
2:16 - 2:18एक कर्मचारी हूँ
जिसने सबको कॉफ़ी परोसी है -
2:18 - 2:20रेल-मार्ग के नीचे वाले कैफ़े में।
-
2:20 - 2:23और वो सब लोग
जो मुझसे यह रिश्ते बनाते हैं -
2:23 - 2:25उनसे मेरा समुदाय बनता है।
-
2:25 - 2:27और तुमने उस हर एक व्यक्ति
पर हमला किया है। -
2:27 - 2:30तुमने उस सत्य का उल्लंघन किया
जिसकी लड़ाई मैं नहीं छोडूँगी -
2:30 - 2:32और जिसका यह सब लोग प्रतिनिधित्व करते हैं
-
2:32 - 2:36कि विश्व में बुरे लोगो से
अनन्त रूप से ज़्यादा, अच्छे लोग हैं।" -
2:37 - 2:40पर यह एक हादसा मेरे विश्वास को न हिला पाए,
इस निश्चय के साथ, -
2:40 - 2:43मेरे समुदाय की एकजुटता में
या पूरी इन्सानियत में, -
2:43 - 2:47मैंने ७ जुलाई २००५ में लन्दन यातायात पर
हुए आतंकवादी बम विस्फोटों को याद किया, -
2:47 - 2:50और कैसे उस समय लन्दन के मेयर ने,
बल्कि मेरे खुद के माता-पिता ने, -
2:50 - 2:53आग्रह किया था कि हम सब अगले ही दिन
ट्यूब (रेल) से सफर करें, -
2:53 - 2:55ताकि हम उनके द्वारा परिभाषित ना हों
-
2:55 - 2:57जिन्होंने हमें असुरक्षित मेहसूस कराया।
-
2:57 - 2:59मैंने अपने हमलावर को बताया,
-
3:00 - 3:01"तुमने अपना हमला पूरा कर लिया,
-
3:01 - 3:03लेकिन अब मैं अपनी ट्यूब पर
वापस जा रही हूँ। -
3:04 - 3:07मेरा समुदाय अँधेरे में घर चल कर जाते हुए
असुरक्षित महसूस नहीं करेगा। -
3:07 - 3:09हम घर के लिए आखिरी ट्यूब लेंगे,
-
3:09 - 3:11और हम अपनी गलियों में अकेले चलेंगे,
-
3:11 - 3:13क्योंकि हम खुद को इस विचार
के आधीन नहीं होने देंगे -
3:13 - 3:16कि हम ऐसा कर के
खुद को खतरे में डाल रहे हैं। -
3:16 - 3:19हम एक सेना की तरह एक साथ रहेंगे,
-
3:19 - 3:22जब भी हमारे समुदाय के
किसी सदस्य को धमकाया जयेगा। -
3:22 - 3:24और यह एक ऐसी लड़ाई है
जो तुम कभी नहीं जीतोगे।" -
3:26 - 3:27इस पत्र को लिखते समय --
-
3:27 - 3:29(वाहवाही)
-
3:29 - 3:30धन्यवाद।
-
3:30 - 3:32(वाहवाही)
-
3:33 - 3:34इस पत्र को लिखते समय,
-
3:34 - 3:36मैं ऑक्सफर्ड में परीक्षा
के लिए पढ़ती थी -
3:36 - 3:39और मैं वहाँ के स्थानीय
छात्र अख़बार पर काम करती थी। -
3:39 - 3:42इतनी भाग्यशाली होने के बाद भी,
कि मेरे मित्र और परिवार मेरे साथ थे, -
3:42 - 3:43यह एक अकेलेपन का समय था।
-
3:43 - 3:46मैं किसी को नहीं जानती थी
जो ऐसी स्थिति से गुज़रा हो; -
3:46 - 3:47कम से कम मुझे ऐसा लगता था।
-
3:47 - 3:51मैं खबरें पढ़ती थी, आँकड़े,
और यह जानती थी कि यौन उत्पीड़न कितना आम था, -
3:51 - 3:53फ़िर भी एक ऐसे व्यक्ति का
नाम नहीं बता पाती -
3:53 - 3:56जिसको मैंने इस तरह के अनुभव
के बारे में खुल के बोलते हुए सुना हो। -
3:56 - 3:58तो एक कुछ-कुछ सहेज निर्णय लेते हुए,
-
3:58 - 4:01मैंने अपने पत्र को छात्र अख़बार में
प्रकाशित करने का फैसला किया, -
4:01 - 4:03ऑक्सफ़र्ड में औरों तक
पहुँचने की आशा में -
4:03 - 4:06जिनके साथ कोई समान घटना घटी हो
और उन को भी ऐसी ही अनुभूति हो रही हो। -
4:06 - 4:08पत्र के अन्त में,
-
4:08 - 4:10मैंने औरों को उनके अनुभव
बारे में लिखने के लिए कहा -
4:10 - 4:12हैशटैग "#मैंदोषीनहीं" के साथ,
-
4:12 - 4:15ज़ोर देने के लिए कि उत्पीडन
सहे हुए लोग खुद को अभिव्यक्त पाएं, -
4:15 - 4:18बिना शर्म या अपराध की भावना के
अपनी आपबीती बता सकते थे -- -
4:18 - 4:20दिखाते हुए कि हम सब
यौन उत्पीड़न के खिलाफ खड़े हो सकते है -
4:20 - 4:23मुझे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था
कि लगभग रातों-रात, -
4:23 - 4:25यह प्रकाशित पत्र आग की तरह फैल जायेगा।
-
4:26 - 4:28जल्द ही, हम को सैंकड़ों
कहानियाँ मिल रही थीं -
4:28 - 4:30दुनिया भर के स्त्रियों और पुरुषों से,
-
4:30 - 4:33जिन्हें हम मेरी बनायी हुई
वेबसाइट पर प्रकाशित करने लगे। -
4:33 - 4:35और वह हैशटैग एक आन्दोलन बन गया।
-
4:36 - 4:39एक ४० से ऊपर की उम्र वाली ऑस्ट्रेलियाई
माँ थीं जिन्होंने बताया कि कैसे एक शाम, -
4:39 - 4:41उन का स्नानघर की ओर पीछा किया
-
4:41 - 4:43एक पुरुष ने जो बार बार
उनकी ऊसन्धि को पकड़ता रहा। -
4:43 - 4:45एक पुरुष था नीदरलैंड में
-
4:45 - 4:48जिसने बताया कैसे लन्दन
यात्रा पर उसका भेंट-बलात्कार हुआ -
4:48 - 4:51और उसने जिसको भी यह घटना बताई,
किसी ने उसे सच नहीं माना। -
4:51 - 4:54मुझे भारत और दक्षिण अमेरिका से
लोगों के व्यक्तिगत फेसबुक सन्देश आये, -
4:54 - 4:57पूछते हुए कि इस आन्दोंलन का सन्देश
वहाँ कैसे ला सकते हैं? -
4:57 - 5:00हमें पहला योगदान एक "निक्की"
नाम की महिला से मिला, -
5:00 - 5:03जिसने बताया कि बचपन में उसके पिता ने ही
उसका यौन शोषण किया। -
5:03 - 5:04और मेरे मित्र मुझे बताने लगे
-
5:04 - 5:07ऐसी घटनाओं के बारे में जो
उनके साथ पिछले सप्ताह से लेकर -
5:07 - 5:11वर्षों पहले हुई थीं,
जिनके बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं था। -
5:11 - 5:14और जितने ज़्यादा हमें
ऐसे सन्देश मिलने लगे, -
5:14 - 5:16उतने ही ज़्यादा हमें
आशा भरे सन्देश भी मिले -- -
5:16 - 5:19लोग सशक्त महसूस कर रहे थे
इन आवाज़ों के समुदाय से जो -
5:19 - 5:21यौन शोषण व पीड़ित को
दोष देने के खिलाफ खड़ी हो रही थीं। -
5:21 - 5:23एक ओलिविया नाम की महिला ने,
-
5:23 - 5:24यह बताने के बाद कि कैसे
उसका शोषण किया -
5:24 - 5:27एक ऐसे व्यक्ति ने जिसकी वह
बहुत समय से परवाह करती थी, -
5:27 - 5:30लिखा, "मैंने यहाँ लिखी
बहुत कहानियाँ पढ़ी हैं, -
5:30 - 5:33और मैं आशावान हूँ कि अगर
इतनी सारी स्त्रियाँ आगे बढ़ सकती हैं -
5:33 - 5:34तो मैं भी बढ़ सकती हूँ।
-
5:34 - 5:35मुझे बहुतों से प्रेरणा मिली
-
5:35 - 5:37और मुझे आशा है कि मैं भी
उनके जितनी सबल बनूँ। -
5:38 - 5:39मुझे यकीन है, बनूँगी।"
-
5:39 - 5:42दुनिया भर के लोग इस हैशटैग
के साथ ट्वीट करने लगे, -
5:42 - 5:45और मेरा पत्र राष्ट्रीय अख़बार ने
प्रकाशित किया, -
5:45 - 5:48उसका दुनिया भर की अन्य कई भाषाओं में
अनुवाद भी किया जा रहा था। -
5:49 - 5:51पर मुझे मीडिया का दिया जा रहा
वह महत्व कुछ अलग लगा -
5:51 - 5:53जिसे यह पत्र आकर्षित कर रहा था।
-
5:53 - 5:55किसी बात को मुख्य-पृष्ठ
समाचार बनने के लिए, -
5:55 - 5:58"समाचार" शब्द ही अपने आप में ऐसा है,
-
5:58 - 6:01कि हम सोचते हैं कि कुछ नया
या कुछ अप्रत्याशित होगा। -
6:01 - 6:03और फ़िर भी यौन उत्पीड़न
कोई नयी बात नहीं है। -
6:04 - 6:07और कई प्रकार के अन्याय की तरह
यौन उत्पीड़न भी, -
6:07 - 6:09जनसंचार में हमेशा संवंदित होता है।
-
6:09 - 6:10लेकिन आन्दोलन के ज़रिये,
-
6:10 - 6:13इन अन्यायों को केवल खबर के
रूप में अँकित नहीं किया गया, -
6:13 - 6:16यह प्रत्यक्ष अनुभव थे जिन्होंने
वास्तविक लोगों को प्रभावित किया था, -
6:16 - 6:19जो दूसरों की सुदृढ़ता से
वो बना रहे थे, -
6:19 - 6:21जो चाहिए था लेकिन
पहले उनके पास नहीं था: -
6:21 - 6:22अपनी बात खुल कर कहने का मंच,
-
6:22 - 6:26यह आश्वासन के वो अकेले नहीं थे
या जो उनके साथ हुआ उसका दोष देने के लिए -
6:26 - 6:29और खुल के ऐसी चर्चा करने के लिए, जो इस
समस्या के साथ जुड़े कलंक को कम कर सके। -
6:29 - 6:33इस संवाद में सबसे आगे उनकी आवाज़ें थीं
जिन पर ऐसी घटनाओं का सीधा प्रभाव पड़ा था- -
6:33 - 6:36सामाजिक जनसंचार के
पत्रकारों या समीक्षकों की नहीं। -
6:37 - 6:39और इसलिए यह एक समाचार बन गया था।
-
6:40 - 6:42हम अविश्वसनीय रूप से
जुड़े विश्व में रहते हैं, -
6:42 - 6:44सोशियल मीडिया के
तेज़ी से बढ़ने के कारण, -
6:44 - 6:48जो बेशक सामाजिक बदलाव की आग
जलाने के लिए एक बहुत ही अच्छा माध्यम है। -
6:48 - 6:51लेकिन इससे हम प्रतिक्रियाशील
भी होते जा रहे हैं, -
6:51 - 6:54छोटी-छोटी बातों से लेकर, जैसे,
"ओह, मेरी रेल देरी से जाएगी," -
6:54 - 6:58से लेकर बड़े-बड़े युद्ध, नरसंहार,
आतंकवादी हमले जैसे अन्यायों के लिए। -
6:59 - 7:02किसी भी कष्ट पर प्रतिक्रिया करने के लिए
हम सबसे पहले जल्द से जल्द -
7:02 - 7:04ट्वीट, फेसबुक, हैशटैग करते हैं--
-
7:04 - 7:07कुछ भी जिससे सबको पता चले
कि हमने भी प्रतिक्रिया दी है। -
7:08 - 7:10इस सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया देने में
समस्या यह है -
7:10 - 7:13कि कभी-कभी इसका यह अर्थ भी हो सकता है
कि हम कोई जवाब दें ही न, -
7:13 - 7:16कम से कम उसके बारे में कुछ करने की
भावना से तो नहीं। -
7:16 - 7:17
इससे हमें तो अच्छा लग सकता है -
7:17 - 7:20कि हमने सामूहिक कष्ट
या ज़ुल्म के विरुद्ध योगदान दिया, -
7:20 - 7:22पर इससे असल में कुछ नहीं बदलता।
-
7:22 - 7:23और तो और,
-
7:23 - 7:25कभी-कभी यह उनकी ही
आवाज़ कुचल देता है -
7:25 - 7:27जिनके ऊपर उस अन्याय का
सीधा असर पड़ा है, -
7:27 - 7:29जिनकी ज़रूरतों को सुना जाना चाहिए।
-
7:30 - 7:34चिन्ता की बात यह प्रवृत्ति भी है,
कि अन्याय के विरुद्ध कुछ प्रतिक्रियाएँ -
7:34 - 7:35और दीवारें खड़ी करने की होती हैं,
-
7:35 - 7:39जो तुरन्त दूसरों को दोष देती हैं
जटिल समस्यायों के आसान उपाय देने की -
7:39 - 7:40आशा के साथ।
-
7:40 - 7:43एक छोटे ब्रिटिश अख़बार ने
मेरे पत्र को प्रकाशित करके -
7:43 - 7:44ऐसा शीर्षक लिखा,
-
7:44 - 7:48"ऑक्सफोर्ड छात्रा ने शुरू किया हमलावर को
शर्मिंदा करने का ऑनलाइन आन्दोलन।" -
7:50 - 7:52पर वो तो कभी किसी को
शर्मिंदा करने का था ही नहीं -
7:52 - 7:55वो तो लोगों को बोलने का और
दूसरों को सुनने का मौका देने के लिए था। -
7:56 - 8:00मतभेद पैदा करते ट्विटर ट्रोल
ने जल्दी से और भी ज़्यादा अन्याय पैदा किया, -
8:00 - 8:03मेरे हमलावर की जाती
और दर्जे पर टिप्पणी करके, -
8:03 - 8:05अपनी ही धारणाओं
से निमित्त लक्ष्यों के लिए। -
8:05 - 8:09और कुछ ने तो मुझे एक मनघडंत
कहानी रचने का भी दोष दिया -
8:09 - 8:11यह कहकर कि मैं इससे
पूरा करना चाहती हूँ मेरा, -
8:11 - 8:15"पुरुष-घृणा का नारीवादी लक्ष्य।"
-
8:15 - 8:16(खिलखिलाहट)
-
8:16 - 8:17सच में, है ना?
-
8:17 - 8:20जैसे मैं कहूँगी,
"सुनो, मुझे माफ़ करना, मैं नहीं आ पाऊँगी, -
8:20 - 8:22मैं सारी नर जाती से
नफरत करने में व्यस्त हूँ, -
8:22 - 8:24अपने ३० साल के होने तक।"
-
8:24 - 8:25(खिलखिलाहट)
-
8:25 - 8:27अब, मुझे लगभग पूरा विश्वास है
-
8:27 - 8:30कि यह लोग यह बातें
आमने-सामने नहीं बोलेंगे। -
8:30 - 8:33पर ऐसा लगता है जैसे क्योंकि
वो एक पर्दे के पीछे हैं, -
8:33 - 8:34अपने घर के आराम में,
-
8:34 - 8:36जब सोशियल मीडिया पर हैं,
-
8:36 - 8:38तो लोग भूल जाते हैं कि
वो एक सार्वजानिक काम कर रहे हैं, -
8:38 - 8:41कि अन्य लोग उसको पढ़ेंगे
और उससे प्रभावित होंगे। -
8:41 - 8:44मेरे रेल पर वापस जाने की
बात पर फिर से आते हुए, -
8:45 - 8:47मेरी दूसरी मुख्य चिन्ता
उस शोर के बारे में है, जो बढ़ता है -
8:47 - 8:49हमारे अन्याय के लिए
ऑनलाइन जवाबों से -
8:49 - 8:53कि यह बहुत ही आसानी से हमें प्रभावित
व्यक्ति की तरह चित्रित कर सकता है, -
8:53 - 8:55जिससे हमें हारने की भावना हो सकती है,
-
8:55 - 8:59एक सकारात्मक या बदलाव के मौके को देखने
से रोकने वाले मानसिक अवरोध की तरह, -
8:59 - 9:00एक नकारात्मक घटना के बाद।
-
9:01 - 9:03इस आन्दोलन के शुरू होने के कुछ माह पहले
-
9:03 - 9:05या मेरे साथ यह सब होने से पहले
-
9:05 - 9:07मैं ऑक्सफर्ड में
TEDx में गयी थी -
9:07 - 9:09वहाँ मैंने ज़ेल्डा ला ग्रान्जे को सुना,
-
9:09 - 9:11जो नेल्सन मंडेला की
भूतपूर्व निजी सचिव थीं। -
9:11 - 9:13एक बात उन्होंने बोली
जो मेरे साथ रह गयी। -
9:14 - 9:16उन्होंने मंडेला को अदालत
ले जाने का बताया -
9:16 - 9:17दक्षिणी अफ्रीका रग्बी संघ द्वारा,
-
9:17 - 9:20उनके खेल जगत की जाँच
के आदेश देने के बाद। -
9:20 - 9:21अदालत में,
-
9:21 - 9:24वो दक्षिणी अफ्रीकन रग्बी संघ के
वकीलों के पास गए, -
9:24 - 9:25उनसे हाथ मिलाया
-
9:25 - 9:28और हर एक से उसकी
अपनी भाषा में बात की। -
9:28 - 9:29ज़ेल्डा विरोध करना चाहती थीं,
-
9:29 - 9:31कह कर कि वो उनके
आदर के अधिकारी नहीं थे -
9:31 - 9:33उनके साथ ऐसा अन्याय करने के बाद।
-
9:34 - 9:36वह उनकी तरफ मुड़े और बोले,
-
9:36 - 9:40"तुम्हें कभी शत्रु को युद्ध का मैदान
तय करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।" -
9:42 - 9:44यह शब्द सुनने के समय
-
9:44 - 9:46मुझे अंदाज़ा नहीं था
कि क्यों इनका इतना महत्व था, -
9:46 - 9:49पर मुझे लगा कि थे, और मैंने उन्हें
अपने पास एक पुस्तक में लिख लिया। -
9:49 - 9:52पर मैंने इस कथन के बारे में
तब से बहुत सोचा है। -
9:52 - 9:55बदला, या नफरत की अभिव्यक्ति
-
9:55 - 9:57उनकी तरफ जिन्होंने
हमारे साथ अन्याय किया, -
9:57 - 10:00उस गलत के विरुद्ध मानवीय प्रवृत्ति
की तरह लग सकती है, -
10:00 - 10:02पर हमें इस चक्र से बाहर निकलना पड़ेगा
-
10:02 - 10:05अगर हम अन्याय की नकारात्मक
घटनाओं को बदलना चाहते हैं -
10:05 - 10:07सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन में।
-
10:07 - 10:08अन्यथा करना,
-
10:08 - 10:11शत्रु को युद्ध का मैदान
निर्धारित करते रहने देता है, -
10:11 - 10:13एक दोहरा प्रभाव बनाता है
-
10:13 - 10:15जहाँ जिन्होंने अन्याय सहा,
वही प्रभावित बन जाते हैं -
10:15 - 10:18अपराधी के विरुद्ध खड़े हुए।
-
10:18 - 10:20और जिस तरह हम अपनी रेल पर वापस चले गए,
-
10:20 - 10:23उसी तरह हम अपने सम्बन्धों और
समुदायों के माध्यमों को -
10:23 - 10:25हम हार मान जाने वाली
जगह नहीं बनने दे सकते। -
10:27 - 10:31पर मैं सोशियल मीडिया पर प्रतिक्रिया
को हतोत्साहित भी नहीं करना चाहती, -
10:31 - 10:33क्योंकि मैं #मैंदोषीनहीं
आन्दोलन के विकास के लिए, ऋणी हूँ -
10:33 - 10:35लगभग पूरी तरह
सोशियल मीडिया की । -
10:35 - 10:37पर मैं ज़्यादा संवेदनशील
तरीके को बढ़ावा देना चाहती हूँ -
10:37 - 10:40जिसका प्रयोग अन्याय पर
प्रतिक्रिया के लिए हो। -
10:40 - 10:42शुरुवात के लिए, हमें खुद से
दो बातें पूछनी चाहियें। -
10:42 - 10:45पहली: मुझे इस अन्याय
की भावना क्यों होती है? -
10:45 - 10:47मेरे लिये इसके कई उत्तर थे।
-
10:47 - 10:49किसीने मुझे व मेरे
नज़दीकी लोगों को दुख दिया था, -
10:49 - 10:52इस धारणा के साथ कि उनको
उसका उत्तरदायी नहीं माना जायेगा, -
10:52 - 10:54या जो क्षति की
उसे पहचाना नहीं जायेगा। -
10:54 - 10:57यही नहीं, हज़ारों स्त्री और पुरुष
हर रोज़ क्षतिग्रस्त होते हैं -
10:57 - 10:59यौन उत्पीड़न से, ज़्यादातर चुपचाप।
-
10:59 - 11:02फिर भी, यह आज भी एक ऐसी समस्या है
जिसकी हम बाकियों जितनी चर्चा नहीं करते। -
11:02 - 11:05यह आज भी ऐसी समस्या है
जिसका दोष लोग पीड़ित को देते है। -
11:05 - 11:08दूसरा, खुद को पूछिये:
इन कारणों से पहचान करके -
11:08 - 11:10मैं इन्हें समाप्त कैसे करूँ?
-
11:10 - 11:14हमारे लिए, यह मेरे हमलावर, और कई
औरों को उत्तरदायी बनाने से था। -
11:14 - 11:16जो असर उनके कर्म से हुआ,
उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने में। -
11:16 - 11:19यौन शोषण की समस्या पर
खुल कर बातचीत का मौका देने में था, -
11:19 - 11:23मित्रों, परिवारों, जनसंचार में
उस चर्चा को शुरू करने में था, -
11:23 - 11:24जो बहुत ज़्यादा समय से बन्द थी,
-
11:24 - 11:27ज़ोर देते हुए कि पीड़ित
दोष देने में बुरा न माने, -
11:27 - 11:28जो उनके साथ हुआ उसके लिए।
-
11:28 - 11:31शायद इस समस्या को सुलझाने के लिए
अभी बहुत कुछ करना बाकी है। -
11:31 - 11:32लेकिन इस तरह से,
-
11:32 - 11:36हम सोशियल मीडिया का प्रयोग सामाजिक
न्याय के साधन जैसे शुरू कर सकते है, -
11:36 - 11:38शिक्षा के साधन की तरह,
संवाद प्रेरित करने के, -
11:38 - 11:41आधिकारिक लोगों को
समस्याओं से अवगत कराने के -
11:41 - 11:43उन लोगों के माध्यम से
जो उससे सीधा प्रभावित हुए हैं। -
11:44 - 11:49क्योंकि कभी-कभी इन प्रश्नों
के उत्तर आसान नहीं होते। -
11:49 - 11:50बल्कि, बहुत ही कम होते हैं।
-
11:51 - 11:54पर इसका अर्थ फ़िर भी यह नहीं है कि हम
इनको संवेदनशील उत्तर न दे सकें। -
11:54 - 11:57ऐसी स्थितियों में जब
आप ये नहीं सोच पा रहे -
11:57 - 11:59कि आप इस अन्याय के
एहसास का अन्त कैसे करें, -
11:59 - 12:01आप ऐसा ज़रूर सोच सकते हैं,
शायद ये नहीं कि आप क्या करें, -
12:01 - 12:03पर ये कि आप क्या नहीं करें।
-
12:04 - 12:07आप और ज़्यादा दीवारें खड़ी नहीं कर सकते,
और ज़्यादा पक्षपात, और नफरत द्वारा -
12:07 - 12:09अन्याय से लड़ के।
-
12:09 - 12:13आवाज़ उनसे ऊँची नहीं कर सकते
जो उस अन्याय से सीधा प्रभावित हुए हैं। -
12:13 - 12:17और आप अन्याय पर प्रतिक्रिया नहीं कर सकते
अगर आप उसे अगले दिन भूल जायेंगे, -
12:17 - 12:19इसलिए क्योंकि ट्विटर पर बाकी सब
आगे बढ़ चुके हैं। -
12:20 - 12:24कभी-कभी एकदम प्रतिक्रिया न करना ही,
-
12:24 - 12:27सबसे अच्छा कदम है जो हम उठा सकते हैं।
-
12:28 - 12:32क्योंकि हम अन्याय से क्रोधित,
दुःखी और उत्तेजित हो सकते हैं, -
12:32 - 12:35लेकिन सोच-समझ कर
प्रतिक्रिया करना ज़रूरी है। -
12:35 - 12:39हमें लोगों को उत्तरदायी बनाना है,
बिना एक ऐसी संस्कृति बनाकर -
12:39 - 12:41खुद के साथ अन्याय करे जो औरों
को शर्मिंदा करने पर जीती हो। -
12:42 - 12:44हमें यह अन्तर याद रखना है,
-
12:44 - 12:46जो इन्टरनेट पर लोग अकसर भूल जाते हैं,
-
12:46 - 12:49आलोचना और अपमान के बीच का।
-
12:49 - 12:51हम बोलने से पहले सोचना नहीं भूलना है,
-
12:51 - 12:54सिर्फ इसलिए के हमारे
सामने एक पर्दा हो सकता है। -
12:54 - 12:56और जब हम सोशियल मीडिया पर शोर मचाएँ,
-
12:56 - 12:58वो प्रभावित लोगों की ही
ज़रूरतों को ना डुबा दे, -
12:58 - 13:01बल्कि उनकी आवाज़ों को और बढ़ाये,
-
13:01 - 13:04ताकि इन्टरनेट एक ऐसी जगह बने
जहाँ आप इसलिए अपवाद न हों, -
13:04 - 13:07अगर आप किसी ऐसी घटना की बात
करते हैं जो आपके साथ सच में हुई हो। -
13:07 - 13:09यह सब अन्याय से लड़ने
के लिए संवेदनशील तरीके -
13:09 - 13:12वही सिद्धान्त जागृत करते हैं
जिन पर इन्टरनेट बना था -
13:12 - 13:15संपर्क के लिये, सिग्नल
के लिये, जुड़ने के लिये -
13:15 - 13:17यह सारे शब्द जिनका अर्थ
लोगों को साथ लाना है, -
13:17 - 13:18उनको दूर करना नहीं।
-
13:19 - 13:23क्योंकि अगर आप "अन्याय" शब्द
को शब्दकोश में खोजेंगे, -
13:24 - 13:25सज़ा मिलने से पहले,
-
13:25 - 13:29कानून या अदालत के सामने,
-
13:30 - 13:31तो आप यह पाएंगे:
-
13:31 - 13:33"जो सही है उसका संरक्षण।"
-
13:34 - 13:38और मुझे लगता है कि दुनिया में थोड़ी ही
चीज़ें है जो ज़्यादा "सही" हैं, -
13:38 - 13:39लोगों को साथ लाने से,
-
13:39 - 13:41संघो से।
-
13:41 - 13:44और अगर हम सोशियल मीडिया
को ऐसा करने दें, -
13:44 - 13:48तो वह निस्संदेह, न्याय का एक बहुत ही
शक्तिशाली रूप प्रदान कर सकता है। -
13:48 - 13:50आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
-
13:50 - 13:57(वाहवाही)
- Title:
- यौन उत्पीड़न के बारे में हम ऑनलाइन किस तरह बात करते हैं।
- Speaker:
- इयोन वेल्स
- Description:
-
लेखक और कर्मठ कार्यकर्ता बताती हैं, कैसे हमें सामाजिक जनसंचार (सोशियल मीडिया) को सामाजिक न्याय के लिए प्रयोग करने के लिए, एक अधिक संवेदनशील तरीके की ज़रूरत है। लन्दन में एक बार यौन उत्पीड़न का शिकार होने के बाद, वेल्स ने अपने हमलावर के लिए एक पत्र एक छात्र अख़बार में प्रकाशित किया जो आग की तरह फैल गया और जिससे यौन हिंसा और पीड़ित को दोष देने के विरुद्ध #मैंदोषीनहीं (#NotGuilty) आन्दोलन आरम्भ हुआ। भावुक कर देने वाले इस भाषण में, वो बताती हैं कैसे अपनी निजी कहानी लोगों को बताने से दूसरों को आशा मिली और ऑनलाइन शर्मिंदा करने की संस्कृति के विरुद्ध एक शक्तिशाली सन्देश देती हैं।
- Video Language:
- English
- Team:
- closed TED
- Project:
- TEDTalks
- Duration:
- 13:56
Abhinav Garule approved Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Abhinav Garule accepted Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Abhinav Garule edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Adisha Aggarwal edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Adisha Aggarwal edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Adisha Aggarwal edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Adisha Aggarwal edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online | ||
Adisha Aggarwal edited Hindi subtitles for How we talk about sexual assault online |