२००८ और २०१२ के बीच,
पुरातत्त्वज्ञों ने इंग्लैंड के
एक अस्पताल के मलवे को खोदा।
इस प्रक्रिया में उन्हें कई कंकाल मिले।
एक विशेष कंकाल एक ऐसे धनी व्यक्ति का था
जो ११वीं या १२वीं सदी से था,
और १८ से २५ वर्ष की उम्र के बीच
कुष्ठ रोग से मरा।
लेकिन यह सब हमें पता कैसे चला?
मात्र कुछ पुरानी, मिट्टी से लथपथ
हड्डियों का परीक्षण करने से?
मृत्यु के सदियों बाद भी,
कंकालो मे अद्वितीय विशेषताएं होती है,
जो हमें उनकी पहचान के बारे में बताती हैं।
और आधुनिक उपकरण और तकनीकों का प्रयोग कर हम
उन विशेषताओं को सुराग की तरह पढ़ सकते हैं।
विज्ञान की इस शाखा को
जैविक नृविज्ञान कहते हैं।
यह शोधकर्ताओं को प्राचीन लोगों के
बारे में विस्तृत जानकारी पाने और ऐतिहासिक
घटनाओं की पहचान करने में सक्षम करती है,
जिन्होंने पूरी जनसंख्या को प्रभावित किया।
जब शोधकर्ताओं को कोई कंकाल मिलता है,
कुछ पहले मिलने वाले सुराग,
जैसे आयु और लिंग,
उसके आकृति-विज्ञान से मिलते हैं,
जो कि उस कंकाल की संरचना,
दिखावट, और आकार होते हैं।
हड्डियाँ, जैसे कंठास्थि का विकास,
२५ वर्ष की आयु में रुक जाता है।
तो एक ऐसा कंकाल,
जिसकी कंठास्थि पूरी तरह विकसित नहीं है,
२५ वर्ष से छोटे व्यक्ति का होना चाहिए।
इसी तरह, खोपड़ी के अन्दर की प्लेटें ४० वर्ष
की आयु तक सम्मिश्रित होती रह सकती हैं,
और कभी-कभी उसके बाद भी।
इनको कुछ अति सूक्ष्म
कंकालीय सुरागों से मिलाने पर,
भौतिक नृविज्ञान मृत्यु की अनुमानित
आयु का आकलन कर सकता है।
इसी के साथ, श्रोणि की हड्डियों से
लिंग का पता चलता है।
जैविक रूप से स्त्री की श्रोणि
अधिक चौड़ी होती है, ताकि वो जन्म दे सकें,
जबकि पुरुषों की संकीर्ण होती है।
हड्डियाँ प्राचीन रोगों के
चिन्ह भी प्रकट करती हैं।
रक्तक्षय जैसे विकार
अपने निशान हड्डियों पर छोड़ते हैं।
और दांतों की अवस्था आहार और
कुपोषण जैसे कारकों के
सुराग प्रकट कर सकते हैं,
जो कभी-कभी अमीरी और गरीबी से
सम्बन्धित हो सकते हैं।
एक कोलेजन (मज्जा) कहलाने वाला प्रोटीन
हमें और अधिक गंभीर जानकारी दे सकता है।
जो हम साँस लेते हैं,
जो पानी पीते हैं,
और जो खाना खाते हैं,
वह रासायनिक यौगिक के रूप में,
हमारी हड्डियों और दांतों पर
स्थायी चिन्ह छोड़ता है।
इन यौगिक में समस्थानिक कहलाने वाली
नापने योग्य मात्रा होती है।
हड्डी की मज्जा और दांतों की परतों के स्थिर
समस्थानिक, स्तनधारियों में भिन्न होते हैं
और इस पर निर्भर करते हैं
कि वह कहाँ रहते थे और क्या खाते थे।
तो इन समस्थानिकों का
विश्लेषण करने से,
हम ऐतिहासिक लोगों के आहार और स्थान
के बारे में सीधे निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
यही नहीं, बल्कि जीवन के दौरान,
हड्डियाँ पुनर्निर्माण के निरन्तर चक्र से
गुज़रती रहती हैं।
इसलिए अगर कोई एक जगह से दूसरी
जगह चला जाए, तो
जिन हड्डियों का संश्लेषण
जाने के बाद हुआ
वो आस-पास के वातावरण के
नए समस्थानिक हस्ताक्षर भी प्रकट करेंगी।
इसका मतलब है कि कंकालों को प्रवासी
नक्शों की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, १ - ६५० ईस्वी के बीच,
मेक्सिकौ में टियोतिहुआकन का महान शहर
हज़ारों लोगों से जगमगाता था।
शोधकर्ताओं ने कंकालों के दाँतों की परतो
के समस्थानिक अनुपातों का परीक्षण किया
जिनमें उनके युवावस्था के
आहार की विस्तृत जानकारी थी।
उनको उस शहर में हुए प्रवास के प्रमाण मिले।
ज़्यादातर लोगों का जन्म कहीं और हुआ था।
थोड़े और भूवैज्ञानिक
और कंकालीय विश्लेषण से,
शायद वो यह भी जान पाएँ
कि वह लोग कहाँ से आये थे।
टियोतिहुआकन में किया गया यह कार्य,
इसका भी उदाहरण है कि जैव मानवविज्ञानी
कब्रिस्तानों और सामूहिक कब्रों के
कंकालों को कैसे पढ़ते हैं
फ़िर उनकी समानताओं और
असमानताओं का विश्लेषण करते हैं।
उस जानकारी से वह उनकी
सांस्कृतिक मान्यताओं,
सामाजिक मानदंडो
युद्धों,
और उनकी मृत्यु के कारणो
के बारे मे जान सकते है।
आज हम इन उपकरणों का प्रयोग ऐसे बड़े
प्रश्नों का उत्तर करने में करते हैं जो
प्रवास और रोग जैसी शक्तियों
के आधुनिक दुनिया को
आकार देने से जुड़े है।
अपेक्षाकृत अच्छी तरह संरक्षित कुछ प्राचीन
अवशेषो मे डीएनए विश्लेषण भी सम्भव होता है।
जो हमें यह समझने में सहायता कर रहा है
कि क्षय जैसी बिमारियों का
सदियों में क्रम-विकास कैसे हुआ है,
ताकि हम आज के लोगों के लिए
बेहतर उपचार का निर्माण कर सकें।
प्राचीन कंकाल हमें विस्मयकारी रूप से
अतीत के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं।
तो अगर आपके अवशेष
किसी दिन अक्षत दफन किये गए,
तो दूरस्थ भविष्य के पुरातत्त्वज्ञ
उनसे क्या जान पाएँगे?