1 00:00:04,914 --> 00:00:14,672 दया - करुणा (पर्युषण–2001) 2 00:00:17,691 --> 00:00:19,826 आज का अपना सत्संग का विषय है 3 00:00:19,826 --> 00:00:20,456 दया 4 00:00:21,612 --> 00:00:22,981 और करुणा। 5 00:00:26,802 --> 00:00:28,225 सामान्य तौर पर सभी को 6 00:00:28,225 --> 00:00:31,502 दया और करुणा मतलब दोनों समान ही लगता है 7 00:00:33,162 --> 00:00:34,369 उसमें कुछ अलग है 8 00:00:34,369 --> 00:00:35,391 ऐसा लगता ही नहीं है। 9 00:00:35,391 --> 00:00:37,160 दया और करुणा 10 00:00:37,820 --> 00:00:41,071 लेकिन अध्यात्म में इन दोनों में बहुत फर्क है 11 00:00:41,071 --> 00:00:43,131 आसमान-ज़मीन का 12 00:00:46,199 --> 00:00:49,009 इतना ज़्यादा फर्क है। 13 00:00:49,009 --> 00:00:51,103 जितना फर्क ज्ञान और अज्ञान के बीच है 14 00:00:51,103 --> 00:00:54,718 उतना ही फर्क दया और करुणा के बीच में है। 15 00:00:54,718 --> 00:00:56,595 अज्ञानता में दया होती है 16 00:00:56,595 --> 00:00:59,800 और ज्ञान के बाद करुणा होती है। 17 00:00:59,800 --> 00:01:01,669 दया को अहंकारी गुण कहा है 18 00:01:01,669 --> 00:01:05,916 और करुणा अहंकार जाने के बाद शुरू होती है। 19 00:01:07,788 --> 00:01:10,679 अब सामान्य तौर पर सभी लोगों को आश्चर्य होता है 20 00:01:10,679 --> 00:01:12,746 कि हमने दया को 21 00:01:12,746 --> 00:01:14,598 अहंकार कहा है 22 00:01:14,598 --> 00:01:18,903 अज्ञानदशा में दया को सब से ऊँचा सदगुण कहा है क्या? 23 00:01:21,458 --> 00:01:22,604 और यह बात भी सही है 24 00:01:22,604 --> 00:01:27,074 दया धर्म का मूल है, ऐसा कहा है। 25 00:01:27,074 --> 00:01:29,343 लेकिन धर्म का मूल कहा है 26 00:01:30,373 --> 00:01:33,119 अध्यात्म का मूल नहीं कहा है। 27 00:01:33,119 --> 00:01:36,035 मोक्षमार्ग का मूल नहीं कहा है। 28 00:01:36,035 --> 00:01:38,303 आत्मा प्राप्त करने का मूल नहीं कहा है। 29 00:01:38,303 --> 00:01:41,290 दया से धर्म की शुरूआत होती है 30 00:01:41,290 --> 00:01:43,635 ऐसे करते-करते बहुत समय के बाद 31 00:01:43,635 --> 00:01:44,781 जब आत्मा प्राप्त होता है 32 00:01:44,781 --> 00:01:47,941 तब उसके बाद करुणा आती है। 33 00:01:47,941 --> 00:01:50,294 सिर्फ दया से आत्मा प्राप्त नहीं हो जाता 34 00:01:50,294 --> 00:01:52,404 आत्मा की प्राप्ति तो अलग ही बात है। 35 00:01:52,404 --> 00:01:57,257 अनेक सदगुणों में से दया भी एक सदगुण है। 36 00:01:59,272 --> 00:02:02,347 धर्म में आगे बढ़ने के लिए 37 00:02:02,347 --> 00:02:03,862 पात्रता तैयार करने के लिए 38 00:02:03,862 --> 00:02:05,485 सारे जो सद्व्यवहार हैं 39 00:02:05,485 --> 00:02:09,742 उनमें दया भी एक सद्व्यवहार है। 40 00:02:09,742 --> 00:02:12,320 काफी सारी चीज़ें साथ में चाहिए 41 00:02:14,642 --> 00:02:18,584 उनमें से दया भी एक बड़ी चीज़ है। 42 00:02:18,584 --> 00:02:19,437 लेकिन 43 00:02:20,767 --> 00:02:21,789 ज्ञानियों में 44 00:02:21,789 --> 00:02:22,842 तीर्थंकरों में 45 00:02:22,842 --> 00:02:25,728 दया नहीं होती बल्कि करुणा होती है। 46 00:02:25,728 --> 00:02:28,316 नाम मात्र भी दया नहीं होती। 47 00:02:37,553 --> 00:02:38,583 क्यों? 48 00:02:38,836 --> 00:02:41,540 तब कहे उनके अंदर अहंकार ही नहीं होता है। 49 00:02:43,556 --> 00:02:44,856 दया तो अहंकार हो.. 50 00:02:44,856 --> 00:02:49,211 अहंकार की बुनियाद पर ही दया टिक सकती है। 51 00:02:49,211 --> 00:02:52,500 यदि अहंकार नहीं हो तो दया रख ही नहीं सकते 52 00:02:52,500 --> 00:02:54,795 वहाँ तो फिर करुणा ही होती है। 53 00:02:54,795 --> 00:02:56,756 दोनों में फर्क कहाँ है 54 00:03:01,880 --> 00:03:03,306 कि दया को 55 00:03:06,017 --> 00:03:07,563 द्वंद्व गुण कहा है 56 00:03:07,563 --> 00:03:09,247 द्वंद्व गुण 57 00:03:09,247 --> 00:03:13,695 और करुणा में द्वंद्व नहीं है क्या? 58 00:03:13,695 --> 00:03:15,361 द्वंद्व गुण यानी क्या 59 00:03:15,361 --> 00:03:19,469 कि जहाँ दया होती है वहाँ निर्दयता होती ही है। 60 00:03:19,469 --> 00:03:20,507 एक तरफ दया होती है 61 00:03:20,507 --> 00:03:22,732 तो दूसरी ओर निर्दयता होती ही है 62 00:03:25,333 --> 00:03:26,233 दोनों साथ ही होते हैं। 63 00:03:26,233 --> 00:03:28,295 द्वंद्व यानी दोनों साथ ही होते हैं। 64 00:03:28,295 --> 00:03:29,518 जैसे कि सुख और दुःख 65 00:03:29,518 --> 00:03:31,283 वह द्वंद्व कहलाता है, 66 00:03:31,283 --> 00:03:33,800 अच्छा और बुरा द्वंद्व गुण कहलाता है 67 00:03:33,800 --> 00:03:37,513 दोनों साथ में हो वह द्वंद्व गुण कहलाते हैं। 68 00:03:37,513 --> 00:03:39,502 ड्यूआलिटी। 69 00:03:39,502 --> 00:03:41,941 द्वंद्व मतलब ड्यूआलिटी। 70 00:03:45,684 --> 00:03:48,028 इसलिए जहाँ दया होगी वहाँ निर्दयता होगी ही। 71 00:03:48,028 --> 00:03:49,900 ऐसा कहा जाता है। 72 00:03:53,225 --> 00:03:54,471 किस तरह? 73 00:03:58,121 --> 00:03:59,501 उदाहरण के तौर पर 74 00:04:00,372 --> 00:04:02,965 दया कहाँ होती है ? 75 00:04:03,796 --> 00:04:05,807 तब कहे जहाँ पर 76 00:04:09,824 --> 00:04:11,963 अहंकार होता है। 77 00:04:12,827 --> 00:04:18,073 सामनेवाले का दुःख देखा नहीं जाता 78 00:04:18,073 --> 00:04:21,333 सामनेवाले के दुःख से आप दुःखी हो जाते हो 79 00:04:21,333 --> 00:04:22,848 वह दुःख लगता है 80 00:04:22,848 --> 00:04:25,907 सामनेवाले के दुःख से आपको दुःख लगता है। 81 00:04:25,907 --> 00:04:29,174 यह दुःख लगनेवाले हिस्सा कौनसा है? 82 00:04:29,174 --> 00:04:31,113 वह अहंकार है, क्या? 83 00:04:39,535 --> 00:04:41,913 इसलिए तीर्थंकरों में अहंकार नहीं होता 84 00:04:41,913 --> 00:04:46,608 वे किसी के दुःख से वे दुःखी नहीं हो जाते। 85 00:04:46,608 --> 00:04:51,063 दयावान हमेशा सभी की मदद करता है 86 00:04:51,063 --> 00:04:53,293 किसलिए करता है 87 00:04:53,293 --> 00:04:55,400 तो सामनेवाले का दुःख उससे देखा नहीं जाता 88 00:04:55,400 --> 00:04:58,726 सहन नहीं हो पाता 89 00:04:58,726 --> 00:04:59,856 इसलिए उसके दुःख से 90 00:04:59,856 --> 00:05:02,361 खुद भी इतना असह्य दुःख भुगतता है। 91 00:05:02,361 --> 00:05:03,876 उसे वेदना होती है 92 00:05:03,876 --> 00:05:05,622 इसलिए खुद का दुःख दूर करने के लिए 93 00:05:05,622 --> 00:05:06,660 वह सामनेवाले की हेल्प करेगा ही। 94 00:05:06,660 --> 00:05:08,067 करनी ही पड़ेगी 95 00:05:08,067 --> 00:05:10,398 वह रह ही नही सकता। 96 00:05:10,398 --> 00:05:13,503 इस तरह सूक्ष्म में यह सब कार्य करते हैं 97 00:05:13,503 --> 00:05:15,079 मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार की 98 00:05:15,079 --> 00:05:18,468 ये सारी प्रक्रियाएँ सूक्ष्म में होती हैं, क्या? 99 00:05:22,379 --> 00:05:24,155 जबकि ज्ञानियों में 100 00:05:24,155 --> 00:05:25,254 आत्म ज्ञानियों में 101 00:05:25,254 --> 00:05:28,347 तीर्थंकरों में दया नहीं होती। 102 00:05:28,347 --> 00:05:29,985 दुःख भी नहीं लगता 103 00:05:29,985 --> 00:05:32,309 करुणा होती है। 104 00:05:32,309 --> 00:05:33,547 कोई चुहा जा रहा हो 105 00:05:33,547 --> 00:05:34,723 छोटा चुहा जा रहा हो 106 00:05:34,723 --> 00:05:37,861 और बिल्ली उसे पकड़ने दौड़े 107 00:05:37,861 --> 00:05:39,910 चुहे को मारनेकेलिए 108 00:05:42,454 --> 00:05:43,477 तब सभी दयावान तो 109 00:05:43,477 --> 00:05:45,984 वहीं पर ऊँचे-नीचे हो जाएँगे 110 00:05:46,738 --> 00:05:48,938 और बिल्ली पर क्रोधित हो जाएँगे। 111 00:05:50,713 --> 00:05:51,766 चुहे को बचाने के लिए 112 00:05:51,766 --> 00:05:54,491 बिल्ली को मार देते हैं। 113 00:05:54,491 --> 00:05:56,706 संड़सी लेकर फेंकते हैं 114 00:05:56,706 --> 00:05:59,054 और बिल्ली का पैर तोड़ देते हैं 115 00:06:00,789 --> 00:06:04,881 और चुहे को बचाने की अंदर खुशी होती है 116 00:06:04,881 --> 00:06:05,442 आनंद 117 00:06:05,442 --> 00:06:07,861 और गर्वरस लेते हैं 118 00:06:07,861 --> 00:06:10,388 कि मैंने बचा लिया 119 00:06:10,388 --> 00:06:12,622 चुहे को बचा लिया 120 00:06:12,622 --> 00:06:16,107 और बिल्ली पर तिरस्कार आ जाता है। 121 00:06:16,107 --> 00:06:17,407 मतलब इन दोनों में 122 00:06:17,407 --> 00:06:18,553 एक पर दया हुई 123 00:06:18,553 --> 00:06:20,353 और एक पर निर्दयता हुई 124 00:06:20,353 --> 00:06:22,691 यानी द्वंद्व हुआ। 125 00:06:22,691 --> 00:06:24,591 मतलब दया होगी तो दूसरी तरफ 126 00:06:24,591 --> 00:06:28,827 कहीं न कहीं किसी कोने में निर्दयता होगी ही, होती ही है। 127 00:06:30,775 --> 00:06:33,876 सभी दयावानों को ऐसा ही होता है क्या? 128 00:06:35,812 --> 00:06:36,850 एक को बचाने जाते हैं 129 00:06:36,850 --> 00:06:40,417 तो दूसरे को मार देते हैं 130 00:06:44,233 --> 00:06:45,586 समझ में आता है न? 131 00:06:48,799 --> 00:06:50,435 यह, दयावान। 132 00:06:52,761 --> 00:06:54,451 जबकि ज्ञानियों में दया नहीं होती। 133 00:06:54,451 --> 00:06:55,962 दादाजी कहते हैं हमें नाम मात्र की भी दया नहीं होती। 134 00:06:55,962 --> 00:06:58,521 किसी के दुःख से हम दुःखी नहीं हो जाते 135 00:06:59,573 --> 00:07:01,520 करुणा आती है। 136 00:07:01,520 --> 00:07:03,714 करुणा अर्थात् दोनों पर समान (भाव) ही रहता है। 137 00:07:03,714 --> 00:07:05,383 चुहे पर भी करुणा . 138 00:07:05,383 --> 00:07:07,940 और बिल्ली पर भी करुणा होती है 139 00:07:08,637 --> 00:07:09,660 इसलिए तिरस्कार नहीं आता 140 00:07:09,660 --> 00:07:11,267 और उसे मारने का भी मन नहीं होता 141 00:07:11,267 --> 00:07:14,327 कुछ भी नहीं होता, क्या? 142 00:07:15,502 --> 00:07:18,844 अब दोनों के लिए करुणाभाव आता है 143 00:07:18,844 --> 00:07:21,437 चुहे पर करुणा कैसे आती होगी? 144 00:07:21,437 --> 00:07:23,262 और बिल्ली पर भी कैसे करुणा आएगी? 145 00:07:23,262 --> 00:07:25,775 ज्ञानियों के अंदर ऐसा क्या रहता होगा? 146 00:07:25,775 --> 00:07:26,967 ज्ञानियों में ऐसा तो अंदर क्या रहता होगा 147 00:07:26,967 --> 00:07:30,321 कि दोनों पर समान भाव रह सकता है। 148 00:07:31,215 --> 00:07:34,086 तब कहे उन्हें ज्ञान में दिखता है, क्या? 149 00:07:39,769 --> 00:07:40,807 दोनों का दिखता है। 150 00:07:40,807 --> 00:07:41,799 बिल्ली का भी दिखता है 151 00:07:41,799 --> 00:07:42,637 और चुहे का भी दिखता है। 152 00:07:42,637 --> 00:07:45,971 वैसे तो बिल्ली नया कर्म चार्ज नहीं करती 153 00:07:45,971 --> 00:07:48,819 लेकिन अभी उसके डिस्चार्ज में जो मारने का आया है 154 00:07:48,819 --> 00:07:52,776 उस डिस्चार्ज का डिस्चार्ज तो आएगा ही। 155 00:07:52,776 --> 00:07:56,675 डिसचार्ज के डिस्चार्ज में भी कुछ हिसाब तो आएगा ही छोड़ेगा नहीं। 156 00:07:59,788 --> 00:08:01,072 इसलिए उस पर करुणा आती है 157 00:08:01,072 --> 00:08:03,245 कि यह बेचारी क्या कर रही है 158 00:08:03,245 --> 00:08:04,189 इसका परिणाम क्या आएगा 159 00:08:04,189 --> 00:08:05,863 वह इसे पता नहीं है 160 00:08:06,840 --> 00:08:09,966 और दूसरी ओर चुहे पर भी उन्हें करुणा आती है 161 00:08:12,422 --> 00:08:16,416 कि इस बेचारे को अभी ऐसा हिसाब भुगतने को आया। 162 00:08:16,416 --> 00:08:17,900 लेकिन परिणाम स्वरूप तो 163 00:08:17,900 --> 00:08:22,556 वह ऊर्ध्वगामी हो रहा है 164 00:08:27,082 --> 00:08:30,569 लेकिन इसका इस तरह मरने का हिसाब आया 165 00:08:30,569 --> 00:08:33,735 ऐसा सोचकर उस पर करुणा आती है। 166 00:08:34,504 --> 00:08:37,226 मतलब दया या निर्दयता उत्पन्न नहीं होती, क्या? 167 00:08:37,226 --> 00:08:39,978 बल्कि दोनों के लिए एक एकसमान रहता है 168 00:08:41,514 --> 00:08:43,306 ज्ञानी दखलंदाज़ी नहीं करते 169 00:08:43,306 --> 00:08:45,866 और तीर्थंकर भी दखलंदाज़ी नहीं करते 170 00:08:46,805 --> 00:08:50,325 इसलिए तो तीर्थंकर 171 00:08:51,804 --> 00:08:53,828 करुणा की मूर्ति कहलाते हैं 172 00:08:53,828 --> 00:08:57,593 करुणा के सागर कहलाते हैं, क्या? 173 00:09:01,260 --> 00:09:04,250 उनमें निरंतर करुणा रहती है क्या? 174 00:09:06,808 --> 00:09:10,359 पूरे जगत् के जीवमात्र के प्रति करुणा रहती है। 175 00:09:11,815 --> 00:09:13,662 इसके सिवा और कुछ नहीं होता। 176 00:09:16,239 --> 00:09:18,655 किसी से कुछ नहीं चाहिए। 177 00:09:19,763 --> 00:09:21,649 अहंकार ही नहीं होता। 178 00:09:21,649 --> 00:09:23,827 लेना-छोड़ना ऐसा भाव ही नहीं होता। 179 00:09:23,827 --> 00:09:27,280 बचाने का, मारने का कोई भाव नहीं होता। 180 00:09:29,173 --> 00:09:30,687 मारना है वह भी अहंकार है 181 00:09:30,687 --> 00:09:32,792 और बचाना है वह भी अहंकार है। 182 00:09:33,473 --> 00:09:34,665 अहंकार तो रहा ही 183 00:09:34,665 --> 00:09:37,129 जबकि यहाँ अहंकार ही नहीं होता 184 00:09:38,471 --> 00:09:40,252 लेकिन यह बात समझाने से समझ में नहीं आती। 185 00:09:40,252 --> 00:09:43,306 सामान्य तौर पर लोगों में बचाने का भाव बहुत होता है 186 00:09:43,306 --> 00:09:44,159 और होना भी चाहिए 187 00:09:44,159 --> 00:09:45,120 क्योंकि संसार में हैं 188 00:09:45,120 --> 00:09:46,404 और अहंकार भी है। 189 00:09:46,404 --> 00:09:48,788 मतलब यह पॉज़िटिव अहंकार है। 190 00:09:49,344 --> 00:09:51,543 हम इसे गलत नहीं कहते 191 00:09:51,543 --> 00:09:54,753 लेकिन जिसे आत्मा प्राप्त करके मोक्ष में जाना है 192 00:09:54,753 --> 00:09:57,612 उसे अहंकार रहित होना ही पड़ता है 193 00:09:57,612 --> 00:10:00,008 क्योंकि उसने अलग दिशा पकड़ी है। 194 00:10:00,628 --> 00:10:01,835 जिनका डेस्टिनेशन अलग है 195 00:10:01,835 --> 00:10:04,468 उनके लिए यह बात है, क्या? 196 00:10:05,562 --> 00:10:06,754 सामान्य लोगों के लिए नहीं है। 197 00:10:06,754 --> 00:10:10,828 सामान्य लोगों को दया आए वह ठीक ही है। 198 00:10:10,828 --> 00:10:12,297 ऐसा नहीं होगा तो फिर गलत रास्ते पर चले जाएँगे 199 00:10:12,297 --> 00:10:13,750 क्योंकि आत्मा प्राप्त हुआ नहीं है 200 00:10:13,750 --> 00:10:15,499 और अंहकार गया नहीं है 201 00:10:15,499 --> 00:10:18,475 तो बचाने नहीं जाएँगे तो मारने की सोचेंगे 202 00:10:18,475 --> 00:10:21,512 क्योंकि एक द्वंद्व में तो रहेगा ही। 203 00:10:24,935 --> 00:10:26,627 समझ में आता है न? 204 00:10:27,821 --> 00:10:28,566 यह बहुत सूक्ष्म बात है 205 00:10:28,566 --> 00:10:31,854 बहुत सूक्ष्म डिर्माकेशन है, क्या? 206 00:10:31,854 --> 00:10:34,614 एकदम सूक्ष्म डिर्माकेशन है 207 00:10:37,786 --> 00:10:39,602 दया और करुणा का। 208 00:10:41,550 --> 00:10:43,491 आपको तो धंधे में भी 209 00:10:45,495 --> 00:10:47,095 ऐसा हो ही जाता है 210 00:10:47,730 --> 00:10:49,576 कि अपने और पराए। 211 00:10:50,826 --> 00:10:53,123 अपने लोग और पराये लोग। 212 00:10:53,720 --> 00:10:55,821 धर्म में भी ऐसा ही हो जाता है। 213 00:10:55,821 --> 00:10:58,580 धंधे में भी हो जाता है। 214 00:10:58,580 --> 00:11:00,988 हम तो किसी में भी नहीं पड़ते। 215 00:11:02,483 --> 00:11:04,750 सभी आत्मरूप ही दिखते हैं 216 00:11:04,750 --> 00:11:07,005 अपना ही स्वरूप दिखता है। 217 00:11:08,214 --> 00:11:09,190 यह दृष्टि होगी 218 00:11:09,190 --> 00:11:10,674 जब आत्म दृष्टि होगी 219 00:11:10,674 --> 00:11:13,857 तभी करुणा उत्पन्न हो सकती है। 220 00:11:14,692 --> 00:11:16,960 वर्ना ज़रा सी भी पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) दृष्टि उत्पन्न हुई 221 00:11:16,960 --> 00:11:19,464 तो करुणा नहीं आएगी। 222 00:11:20,215 --> 00:11:24,333 दया या निर्दयता आए बगैर रहेगी ही नहीं। 223 00:11:26,694 --> 00:11:28,915 इसका अनुभव करना, क्या? 224 00:11:30,587 --> 00:11:32,813 फिर अंदर असर हो जाता है, क्या? 225 00:11:32,813 --> 00:11:34,891 वही का वही दिखता रहता है। 226 00:11:39,568 --> 00:11:40,775 चित्त में से जाता ही नहीं 227 00:11:40,775 --> 00:11:42,902 उसका फोटो ले लेते है। 228 00:11:50,593 --> 00:11:52,734 कँपकँपी हो जाती है। 229 00:11:54,293 --> 00:11:55,685 सामनेवाले का दुःख देखा नहीं जाता 230 00:11:55,685 --> 00:11:57,753 और अंदर भोगवटा (सुख या दुःख का असर भुगतना) आता है। 231 00:11:57,753 --> 00:11:59,114 इसलिए सामायिक में 232 00:11:59,114 --> 00:12:01,608 इसलिए आज की सामायिक में यह देखना है कि 233 00:12:01,608 --> 00:12:04,659 अपना दयावाला भाग कितना है उसे भी देखो 234 00:12:04,659 --> 00:12:06,597 प्रकृति का दया भाग है। 235 00:12:07,031 --> 00:12:08,761 और उसमें से बाहर निकलकर 236 00:12:08,761 --> 00:12:13,758 जहाँ-जहाँ दया आई उसके पीछे जो अहंकार है उसे देखना है। 237 00:12:13,758 --> 00:12:16,807 अहंकार में से निकलकर आपको करुणा की ओर जाना है। 238 00:12:17,253 --> 00:12:19,970 जय सच्चिदानंद