1 00:00:01,150 --> 00:00:04,277 अगर मैं आपसे वायु के बारे में सोचने को कहूँ, 2 00:00:05,104 --> 00:00:06,451 तो आप किसकी कल्पना करेंगे? 3 00:00:08,908 --> 00:00:12,398 ज़्यादातर लोग या तो खाली जगह के बारे में सोचते हैं, 4 00:00:12,422 --> 00:00:14,480 या साफ़ नीले आसमान के बारे में, 5 00:00:14,504 --> 00:00:17,063 या कभी कभी तेज़ हवा में झूमते पेड़। 6 00:00:17,849 --> 00:00:21,530 और फिर मुझे ब्लैक बोर्ड पर मेरी हाई स्कूल की केमिस्ट्री(रासायनिक विज्ञान) की 7 00:00:21,554 --> 00:00:22,741 अध्यापिका याद आतीं हैं, 8 00:00:22,765 --> 00:00:26,169 बुलबुले बनाती हुई, उन्हें एक दूसरे से जुड़ा हुआ बनाकर, 9 00:00:26,193 --> 00:00:30,813 ये दर्शाते हुए की वे किस तरह आपस में कांपते हुए, टकराते रहतें हैं 10 00:00:32,209 --> 00:00:35,867 पर वास्तव में हम वायु के विषय में कभी इतनी गहराई से नहीं सोचते। 11 00:00:36,676 --> 00:00:38,363 हम अक्सर उस पर तब ध्यान देतें हैं 12 00:00:38,387 --> 00:00:42,485 जब उसकी दशा में कुछ हलचल हो, 13 00:00:42,509 --> 00:00:47,077 जैसे एक दुर्गन्ध, या कुछ प्रत्यक्ष जैसे धुआँ या धुंद। 14 00:00:48,131 --> 00:00:50,320 लेकिन वायु हमेशा हमारे आस पास होती है। 15 00:00:51,207 --> 00:00:53,687 इस वक़्त भी हम सब उसके स्पर्श में हैं। 16 00:00:53,711 --> 00:00:55,368 वो हमारे भीतर भी है। 17 00:00:57,007 --> 00:01:01,944 हमारी वायु हमारे करीब है, और हमारे लिए आवश्यक है। 18 00:01:03,063 --> 00:01:05,745 इसके बावजूद, हम उसे इतनी आसानी से नज़रंदाज़ कर देतें हैं। 19 00:01:08,009 --> 00:01:09,563 तो आखिर वायु है क्या? 20 00:01:10,103 --> 00:01:13,843 वह पृथ्वी पर मौजूद सभी अदृश्य गैसों का एक मेल है, 21 00:01:13,867 --> 00:01:16,393 जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से पृथ्वी के समीप है। 22 00:01:17,270 --> 00:01:20,696 और हालाँकि मैं दृश्यात्मक कलाकार हूँ, 23 00:01:20,720 --> 00:01:24,006 वायु का अदृश्य होना मुझे रोचक लगता है। 24 00:01:24,627 --> 00:01:27,202 मुझे दिलचस्पी है की हम कैसे वायु की कल्पना करतें हैं, 25 00:01:27,226 --> 00:01:29,274 किस तरह उसे अनुभव करतें हैं 26 00:01:29,298 --> 00:01:33,112 और कैसे हम सब उसके होने की एक सहज समझ रखतें हैं, 27 00:01:33,136 --> 00:01:34,476 श्वास के द्वारा। 28 00:01:36,530 --> 00:01:42,190 पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव वायु में बदलाव लातें हैं, 29 00:01:42,214 --> 00:01:43,975 और इस पल भी हम ऐसा कर रहें हैं। 30 00:01:44,679 --> 00:01:47,647 क्यों न हम सब अभी ही एक साथ 31 00:01:47,671 --> 00:01:50,432 एक गहरी लंबी साँस लें । 32 00:01:50,456 --> 00:01:52,835 क्या आप तैयार हैं? श्वास अंदर। 33 00:01:55,009 --> 00:01:56,807 और श्वास बाहर। 34 00:01:58,782 --> 00:02:01,452 जो श्वास अभी ही आप सबने छोड़ी है, 35 00:02:01,476 --> 00:02:05,160 उससे यहाँ की वायु में सौ गुणा कार्बन डाइआक्साइड बढ़ गयी। 36 00:02:06,358 --> 00:02:12,495 अतः लगभग पाँच लीटर वायु , प्रति श्वास, 17 श्वास प्रति मिनट 37 00:02:12,519 --> 00:02:18,096 जहाँ एक वर्ष में 525,600 मिनट होतें हैं। 38 00:02:18,120 --> 00:02:23,580 इससे हमें मिलती है 450 लाख लीटर वायु, 39 00:02:23,604 --> 00:02:27,598 जिसमें कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा 100 गुणा बढ़ चुकी है , 40 00:02:27,622 --> 00:02:28,928 वह भी सिर्फ आप के लिए। 41 00:02:29,822 --> 00:02:34,084 यह आकलन ओलंपिक खेलों में प्रयोग किये जाने वाले 18 तरण तालों के बराबर है। 42 00:02:36,203 --> 00:02:38,410 मेरे लिए वायु बहुवचन है। 43 00:02:38,434 --> 00:02:41,507 वह एक ही साथ हमारी श्वास जितनी लघु 44 00:02:41,531 --> 00:02:43,451 और हमारी पृथ्वी जितनी विशाल भी है। 45 00:02:44,689 --> 00:02:48,024 हाँ , इसकी कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है। 46 00:02:48,587 --> 00:02:51,509 शायद यह नामुमकिन हो , और शायद इस बात से कोई फ़र्क भी न पड़े। 47 00:02:51,984 --> 00:02:54,593 अपनी दृश्यात्मक कला की तकनीकों से, 48 00:02:54,617 --> 00:02:58,310 मैं वायु को बनाने की कोशिश करती हूँ , न कि उसे चित्रित करने के, 49 00:02:58,334 --> 00:03:02,455 पर उसे स्पर्शनीय बनाने की। 50 00:03:03,177 --> 00:03:07,984 मैं कोशिश करती हूँ की हमारी सौन्दर्यात्मक समझ को बढ़ाया जाए कि चीज़ें कैसी दिखती हैं 51 00:03:08,008 --> 00:03:11,621 ताकि हम यह समझ सकें की वायु हमारी त्वचा पर और हमारे फेफड़ों में 52 00:03:11,645 --> 00:03:13,343 कैसी महसूस होती है 53 00:03:13,367 --> 00:03:16,051 और उसका हमारी आवाज़ पर क्या असर पड़ता है । 54 00:03:18,027 --> 00:03:22,515 मैं वायु के वज़न, उसके गाढ़ेपन और गंध को समझने की कोशिश करती हूँ, पर अधिकतर 55 00:03:22,539 --> 00:03:26,384 मैं वायु से जुडी हम सब की कहानियों के बारे में कईं बार सोचती हूँ। 56 00:03:30,091 --> 00:03:33,944 यह मेरी एक रचना है, जो मैंने 2014 में बनाई थी। 57 00:03:34,872 --> 00:03:37,971 इसे "विभिन्न तरह की वायु: एक पौधे की डायरी" कहा जाता है, 58 00:03:37,995 --> 00:03:41,903 जहाँ मैं पृथ्वी के विकास के अलग अलग युगों की वायु को तर वा ताजा करती हूँ 59 00:03:41,927 --> 00:03:44,927 और दर्शकों को उसका अनुभव लेने का मौका देती हूँ। 60 00:03:44,951 --> 00:03:48,565 यह बहुत ही आश्चर्यजनक था, और साथ ही काफ़ी अलग। 61 00:03:49,845 --> 00:03:51,931 मैं एक वैज्ञानकि नहीं हूँ, 62 00:03:51,955 --> 00:03:54,931 पर वातावरण को समझने वाले वैज्ञानिक वायु से जुड़े निशानों को 63 00:03:54,955 --> 00:03:57,713 भूविज्ञान के नज़रिये से देखतें हैं, 64 00:03:57,737 --> 00:04:00,054 कुछ वैसे ही जैसे चट्टानों का ऑक्सीकरण होता है 65 00:04:00,078 --> 00:04:03,427 और फिर उस जानकारी से वे, 66 00:04:03,451 --> 00:04:06,600 कुछ मायनों में, अलग अलग समय पर वायु की बनावट को लेकर 67 00:04:06,624 --> 00:04:08,304 एक विधि बना लेतें हैं। 68 00:04:08,709 --> 00:04:11,344 फिर मैं, एक कलाकार, उसी विधि को लेकर 69 00:04:11,368 --> 00:04:14,484 उसकी संघटक गैसों को लेकर उसे पुनः बनाती हूँ। 70 00:04:16,016 --> 00:04:19,746 मुझे समय के उन पलों में विशेष दिलचस्पी रही है 71 00:04:19,770 --> 00:04:23,812 जो जीवों के वायु पर प्रभाव का उदहारण हो, 72 00:04:23,836 --> 00:04:27,332 और वे भी जिनमें वायु के कारण जीव के विकास की दिशा निर्धारित हुई, 73 00:04:28,966 --> 00:04:30,770 जैसे कार्बोनिफेरस हवा। 74 00:04:31,579 --> 00:04:34,979 यह 30 से 35 करोड़ साल पहले से पृथ्वी पर मौजूद है। 75 00:04:35,539 --> 00:04:38,514 वह एक ऐसा युग था जिसे विशालकाय जीवों का युग माना गया है। 76 00:04:39,321 --> 00:04:41,785 तो जीवन के इतिहास में पहली बार, 77 00:04:41,809 --> 00:04:43,208 लिग्निन पदार्थ विक्सित हुआ। 78 00:04:43,232 --> 00:04:45,556 ये वो ठोस परत है जिससे पेड़ बनतें हैं। 79 00:04:45,580 --> 00:04:49,110 अतः इस समय तक पेड़ अपने तने का निर्माण खुद ही कर रहें हैं, 80 00:04:49,134 --> 00:04:51,180 और फिर वे बड़े, अत्यधिक बड़े होकर, 81 00:04:51,204 --> 00:04:52,559 पृथ्वी पर फैल जाते हैं, 82 00:04:52,583 --> 00:04:55,876 प्राण वायु का इतना उत्पादन करते हुए, 83 00:04:55,900 --> 00:04:59,514 कि प्राण वायु का स्तर 84 00:04:59,538 --> 00:05:00,935 आज के मुताबिक दुगुना है। 85 00:05:01,601 --> 00:05:05,464 और यह स्वच्छ प्राण वायु तरह तरह के कीड़ों का सहारा देती है -- 86 00:05:05,488 --> 00:05:11,012 विशाल मकड़ियाँ , ड्रैगन-फलाय, जिनके पंखों का विस्तार लगभग 65 सेंटीमीटर का है। 87 00:05:12,369 --> 00:05:16,284 श्वास के लिए , ये हवा बेहद साफ़ और ताज़ा है। 88 00:05:16,308 --> 00:05:17,979 हालांकि इसमें कुछ स्वाद नहीं है, 89 00:05:18,003 --> 00:05:22,475 पर ये आपके शरीर में बेहद सूक्ष्म तरह से ऊर्जा बढ़ा देती है। 90 00:05:22,499 --> 00:05:24,366 ये खुमारी दूर करने के लिए बेहतरीन है। 91 00:05:24,390 --> 00:05:26,595 (हंसी ) 92 00:05:26,619 --> 00:05:29,293 और फिर है "एयर ऑफ़ द ग्रेट डायिंग"-- 93 00:05:29,317 --> 00:05:32,941 करीब 2525 लाख साल पहले की, 94 00:05:32,965 --> 00:05:35,007 डायनासोर के विक्सित होने से ठीक पहले। 95 00:05:35,031 --> 00:05:38,763 भूविज्ञान के नज़रिये से यह एक बहुत ही छोटी समय सीमा है, 96 00:05:38,787 --> 00:05:41,746 20 से 200, 000 साल तक। 97 00:05:41,770 --> 00:05:43,064 बहुत जल्द। 98 00:05:44,175 --> 00:05:46,867 यह पृथ्वी के इतिहास में विलुप्तता की सबसे बड़ी घटना है, 99 00:05:46,891 --> 00:05:49,455 डायनासोर के विलुप्त होने से भी बड़ी। 100 00:05:50,215 --> 00:05:54,172 85 -95 प्रतिशत जीव जंतु इस घटना में विलुप्त हुए, 101 00:05:54,196 --> 00:05:59,373 और इसी के साथ कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में आकस्मिक बढ़ोतरी है, 102 00:05:59,397 --> 00:06:00,990 जिसके लिए बहुत से वैज्ञानिक 103 00:06:01,014 --> 00:06:04,151 साथ साथ फट रहे ज्वालामुखियों और ग्रीनहाउस प्रभाव 104 00:06:04,175 --> 00:06:06,105 को ज़िम्मेदार मानते हैं। 105 00:06:08,982 --> 00:06:12,585 इस समय काल में ऑक्सीजन का स्तर आज की तुलना में आधे से काम तक गिर जाता है, 106 00:06:12,609 --> 00:06:13,904 तो लगभग 10 प्रतिशत। 107 00:06:13,928 --> 00:06:16,809 अतः ये हवा कदापि मनुष्य जीवन के लिए नहीं थी, 108 00:06:16,833 --> 00:06:18,855 पर एक सांस ले लेना ठीक रहेगा। 109 00:06:18,879 --> 00:06:21,915 और असल में सांस लेते हुए, ये विचित्र रूप से आरामदायक है। 110 00:06:21,939 --> 00:06:24,862 ये काफी शांतिदायक और गर्म है 111 00:06:24,886 --> 00:06:29,034 और इसका स्वाद सोडे जैसा है। 112 00:06:29,058 --> 00:06:31,563 इसमें भी उसी तरह की झुनझुनाहट है, कुछ सुहानी सी। 113 00:06:32,925 --> 00:06:35,353 अब इस भूतकाल की हवा के इतने मंथन के बाद, 114 00:06:35,377 --> 00:06:39,008 स्वभाविक है कि हम भविष्य की हवा के बारे में सोचने लगे। 115 00:06:40,142 --> 00:06:42,936 बजाय हवा को लेकर काल्पनिक होने के 116 00:06:42,960 --> 00:06:46,474 और मेरे मनगढंत रूप से हवा को दर्शाने के, 117 00:06:46,498 --> 00:06:49,907 मैंने ये मनुष्य-रचित हवा की खोज की। 118 00:06:50,737 --> 00:06:53,718 इसका मतलब है की यह प्रकृति में कहीं भी नहीं पायी जाती, 119 00:06:53,742 --> 00:06:56,859 पर इसका उत्पादन मनुष्यों द्वारा प्रयोगशाला में ही, 120 00:06:56,883 --> 00:07:00,232 अलग अलग औद्योगिक ज़रूरतों के लिए होता है। 121 00:07:01,585 --> 00:07:02,968 तो ये भविष्य की हवा क्यों है? 122 00:07:03,539 --> 00:07:07,039 खैर, इस हवा का अणु इतना स्थिर है, 123 00:07:07,896 --> 00:07:11,520 कि टूटे जाने तक, उत्पन्न होने के 300-400 साल बाद भी, 124 00:07:11,544 --> 00:07:15,621 यह वायु का हिस्सा बना रहता है। 125 00:07:16,274 --> 00:07:20,059 अतः कुछ 12 से 16 पीढ़ियों तक। 126 00:07:21,433 --> 00:07:24,644 साथ ही इस भविष्य की हवा में कुछ बेहद ग्रहणशील गुण है। 127 00:07:25,811 --> 00:07:27,201 ये अत्यधिक भारी है। 128 00:07:27,779 --> 00:07:31,683 जिस वायु कि हमें श्वास के लिए आदत है, ये उससे 8 गुना अधिक भारी है। 129 00:07:33,429 --> 00:07:36,462 दरअसल यह इतनी भारयुक्त है, कि इसका श्वास भर लेने के बाद 130 00:07:36,486 --> 00:07:39,883 जो शब्द कहे गए हो वे भी कुछ उसी तरह से भारी होते हैं, 131 00:07:39,907 --> 00:07:43,113 जिस कारण वे ठुड्डी से सरक कर ज़मीन पर गिर कर , 132 00:07:43,137 --> 00:07:44,786 दरारों में धंस जातें हैं। 133 00:07:45,223 --> 00:07:48,325 यह एक ऐसी हवा है जो कई मायनों में तरल पदार्थ की तरह है। 134 00:07:50,047 --> 00:07:53,392 इस हवा का एक नैतिक पहलु भी है, 135 00:07:54,226 --> 00:07:55,999 मनुष्य ने इस हवा का निर्माण किया। 136 00:07:56,023 --> 00:08:00,279 पर यह आज तक की परखी गैसों में से, 137 00:08:00,303 --> 00:08:02,049 सबसे प्रबल ग्रीनहाउस गैस भी है। 138 00:08:03,042 --> 00:08:08,777 इसकी गर्माने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड से 24,000 गुणा अधिक है , 139 00:08:08,801 --> 00:08:12,346 और इसकी उम्र लगभग 12 से 16 पीढ़ियों तक की है। 140 00:08:13,235 --> 00:08:18,097 यही नैतिक द्वन्द्व मेरे काम का केंद्र है। 141 00:08:31,560 --> 00:08:35,459 (धीमे स्वर में) इसमें एक और आश्चर्यचकित करने वाला गन है। 142 00:08:35,483 --> 00:08:38,896 यह आपकी आवाज़ की ध्वनि बदल देती है। 143 00:08:38,920 --> 00:08:42,008 (हंसी) 144 00:08:45,145 --> 00:08:48,137 तो जब हम सोचने लगे -- ओह ! अभी भी कुछ बाकि है। 145 00:08:48,161 --> 00:08:49,595 (हंसी ) 146 00:08:49,619 --> 00:08:52,209 जब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचते हैं, 147 00:08:52,233 --> 00:08:58,202 हम संभवतः विशाल कीड़ों और फटते ज्वालमुखियों या हास्यजनक आवाज़ों 148 00:08:58,226 --> 00:08:59,972 के बारे में नहीं सोचते। 149 00:09:01,207 --> 00:09:03,716 जो चित्र विशेष रूप से ध्यान में आतें हैं, 150 00:09:03,740 --> 00:09:08,770 वे पिघलते हिमनदों और हिम-शिलाओं पर तैरते ध्रुवीय भालुओं के होतें हैं। 151 00:09:09,483 --> 00:09:12,339 हम पाई चार्टों और स्तंभ ग्राफों के बारें में, 152 00:09:12,363 --> 00:09:16,319 और असंख्य नेताओं को वैज्ञानिकों से बातचीत करते हुए, सोचतें हैं। 153 00:09:18,081 --> 00:09:22,274 लेकिन शायद अब वक़्त आ चूका है कि हम जलवायु परिवर्तन के बारे में 154 00:09:22,298 --> 00:09:26,141 उसी गहरायी से विचार करना शुरू कर दें, जिस गहरायी से हम वायु का अनुभव करतें हैं। 155 00:09:27,738 --> 00:09:33,178 हवा की भाँती, जलवायु परिवर्तन एक साथ अणु के स्तर पर भी है, 156 00:09:33,202 --> 00:09:35,607 श्वास के भी, और इस गृह के भी। 157 00:09:37,139 --> 00:09:40,618 यह हमारे करीब है, और हमारे लिए आवश्यक है, 158 00:09:40,642 --> 00:09:44,995 साथ ही आकारहीन और दुष्कर भी। 159 00:09:46,451 --> 00:09:49,740 और फिर भी, वह आसानी से भुला दी जाती है। 160 00:09:51,738 --> 00:09:55,624 जलवायु-परिवर्तन मानवता का सामूहिक आत्म-चित्रण है। 161 00:09:55,648 --> 00:09:58,211 यह हमारे निर्णयों को, व्यक्तिगत, 162 00:09:58,235 --> 00:10:00,459 सरकारी और औद्योगिक स्तरों पर दर्शाता है। 163 00:10:01,586 --> 00:10:04,828 और अगर कुछ है जो मैंने वायु को देखते हुए सीखा है, तो वह यह है कि 164 00:10:04,852 --> 00:10:08,111 भले ही वह बदलती रहती है, वह कायम रहती है। 165 00:10:08,785 --> 00:10:12,375 शायद ये उस ज़िन्दगी को समर्थन न दे, जिसे हम समझते हैं 166 00:10:12,399 --> 00:10:14,496 पर किसी तरह की ज़िन्दगी को सहारा देती ही है। 167 00:10:15,127 --> 00:10:18,613 और हम मनुष्य अगर उस बदलाव का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, 168 00:10:18,637 --> 00:10:22,376 तो मुझे लगता है, ये ज़रूरी है कि हम उस विचार-विमर्श को महसूस करें। 169 00:10:23,212 --> 00:10:26,519 हालाँकि ये अदृश्य है, 170 00:10:27,285 --> 00:10:31,977 पर मनुष्य हवा पर एक बेहद जीवंत छाप छोड़ रहें हैं। 171 00:10:32,991 --> 00:10:34,207 शुक्रिया। 172 00:10:34,231 --> 00:10:36,157 (तालियाँ )