1 00:00:19,133 --> 00:00:21,533 सृष्टि के आरंभ में था लोगोस (नाद/शब्द), 2 00:00:21,533 --> 00:00:25,267 महाविस्फोट (बिग बैंग), प्रारंभिक ओम् (ओंकार नाद) । 3 00:00:25,267 --> 00:00:29,267 महाविस्फोटक सिद्धांत के अनुसार भौतिक सर्पिल 4 00:00:29,267 --> 00:00:31,733 ब्रह्माण्ड एक अकल्पनीय गर्म और सघन एकल 5 00:00:31,733 --> 00:00:34,933 बिंदु से प्रकट हुआ जो विलक्षण कहलाता है- पिन 6 00:00:34,933 --> 00:00:39,133 की नोक से करोड़ों गुना सूक्ष्म । 7 00:00:39,133 --> 00:00:44,001 क्यों और कैसे, यह स्पष्ट नहीं । कोई वस्तु 8 00:00:44,001 --> 00:00:47,433 जितनी रहस्मयमय हो, हमें लगता है 9 00:00:47,433 --> 00:00:54,467 हम उसे जान गए हैं। 10 00:00:54,467 --> 00:01:03,033 ऐसा सोचा गया कि अंततोगत्वा गुरुत्वाकर्षण 11 00:01:03,033 --> 00:01:08,009 या तो विस्तार को धीमा करेगा 12 00:01:08,009 --> 00:01:12,005 या ब्रह्माण्ड के लिए विकट स्थिति पैदा करेगा । 13 00:01:12,005 --> 00:01:16,167 लेकिन हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन की छवियों से 14 00:01:16,167 --> 00:01:20,833 पता चलता है कि ब्रह्माण्ड के विस्तार 15 00:01:20,833 --> 00:01:26,007 में वास्तव में तेजी आई । ज्यों-ज्यों यह महाविस्फोट से बाहर आया, 16 00:01:26,007 --> 00:01:33,433 इसमें तेजी से विस्तार होने लगा । पता नहीं कैसे, पर ब्रह्माण्ड में भौतिकी के पूर्वानुमान से कहीं अधिक 17 00:01:33,433 --> 00:01:37,533 द्रव्यमान है। लापता द्रव्यमान की खोज में भौतिकविद मानते हैं कि ब्रह्माण्ड में केवल 4% परमाणु खनिज है, 18 00:01:37,533 --> 00:01:47,133 जिसे हम सामान्य खनिज कहते हैं । ब्रह्माण्ड में 23% अविज्ञ पदार्थ है 19 00:01:47,133 --> 00:01:55,007 और 73% निष्क्रिय ऊर्जा है – जिस पर पहले हमने रिक्त स्थान के रूप में विचार किया था । 20 00:01:55,007 --> 00:02:00,467 यह अदृश्य तंत्रिका तंत्र की तरह है जो सभी वस्तुओं को संबद्ध करते हुए समग्र 21 00:02:00,467 --> 00:02:08,133 ब्रह्माण्ड में संचालित होता है । 22 00:02:08,133 --> 00:02:11,003 प्राचीन वैदिक शिक्षकों ने सिखाया कि नाद 23 00:02:11,003 --> 00:02:13,967 ब्रहृम है-ब्रह्माण्ड कंपायमान है । 24 00:02:13,967 --> 00:02:17,533 कंपायमान क्षेत्र समस्त मूल आध्यात्मिक अनुभव 25 00:02:17,533 --> 00:02:20,008 और वैज्ञानिक अन्वेषण का आधार है । 26 00:02:20,008 --> 00:02:25,867 यह ऊर्जा का वही क्षेत्र है जिसे संतों, 27 00:02:25,867 --> 00:02:31,433 बुद्धजनों, योगियों, मनीषियों, पादरियों, शमन और मठवासियों ने अपने 28 00:02:31,433 --> 00:02:42,006 भीतर खोज कर महसूस किया । इसे संपूर्ण इतिहास में आकाश, प्रारंभिक ओम्, 29 00:02:42,006 --> 00:02:47,367 इंद्र का रत्नजाल, खगोल का संगीत और 30 00:02:47,367 --> 00:02:55,233 न जाने कितने हज़ारों अन्य नाम दिए गए । 31 00:02:55,233 --> 00:03:05,133 यह सभी धर्मों का आधार है । 32 00:03:05,133 --> 00:03:34,233 और यह हमारे भीतरी और बाहरी दुनिया की संपर्क कड़ी है। 33 00:03:34,233 --> 00:03:36,008 तीसरी सदी में महायान बौद्ध धर्म में ब्रह्माण्ड-विज्ञान 34 00:03:36,008 --> 00:03:39,007 की जो व्याख्या की गई है, वह आज की उन्नत 35 00:03:39,007 --> 00:03:42,006 भौतिकी से भिन्न नहीं है । 36 00:03:42,006 --> 00:03:45,567 इंद्र का रत्नजाल अति प्राचीन वैदिक शिक्षा 37 00:03:45,567 --> 00:03:49,733 को परिभाषित करने के लिए प्रयुक्त एक उपमा है जो ब्रह्माण्ड 38 00:03:49,733 --> 00:03:51,008 की संरचना को स्पष्ट करता है । 39 00:03:51,008 --> 00:03:55,433 देवताओं के राजा इंद्र ने सूर्य को जन्म दिया और 40 00:03:55,433 --> 00:04:04,333 वायु एवं जल को गतिशील बनाया । 41 00:04:04,333 --> 00:04:09,233 मकड़ी के जाल की कल्पना कीजिए जो सभी दिशाओं में फैला होता है । 42 00:04:09,233 --> 00:04:10,008 जाला, ओस की बूंदों से बना होता है और प्रत्येक 43 00:04:10,008 --> 00:04:15,233 बूंद में जल की अन्य सभी बूंदों का प्रतिबिंब होता 44 00:04:15,233 --> 00:04:19,007 है और प्रत्येक प्रतिबिंबित ओस की बूंद में आप 45 00:04:19,007 --> 00:04:23,033 अन्य सभी ओस की बूदों का प्रतिबिंब देख सकेंगे । 46 00:04:23,033 --> 00:04:27,000 उस प्रतिबिंब में, इसी प्रकार पूरा जाल अनंत 47 00:04:27,000 --> 00:04:29,002 सीमा तक फैला होता है । 48 00:04:29,002 --> 00:04:32,004 इंद्र के जाल को स्वलिखित ब्रह्माण्ड के रूप में वर्णित किया जा 49 00:04:32,004 --> 00:04:35,000 सकता है जहां प्रकाश की क्षणिक झलक में 50 00:04:35,000 --> 00:04:42,007 भी पूर्णता का एहसास होता है । 51 00:04:42,007 --> 00:04:46,033 सर्बियाई अमेरिकी वैज्ञानिक, निकोला टेस्ला 52 00:04:46,033 --> 00:04:49,003 को कभी-कभी "20वीं सदी की खोज करने वाले व्यक्ति" 53 00:04:49,003 --> 00:04:50,008 का श्रेय दिया जाता है । 54 00:04:50,008 --> 00:04:53,004 टेस्ला प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की खोज तथा कई 55 00:04:53,004 --> 00:04:55,008 अन्य सृजनों के लिए विख्यात थे, 56 00:04:55,008 --> 00:04:59,004 जो आज हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं । 57 00:04:59,004 --> 00:05:02,005 प्राचीन वैदिक परंपराओं में अपनी रुचि के कारण, 58 00:05:02,005 --> 00:05:05,633 टेस्ला पूर्वी और पश्चिमी मॉडल, दोनों के माध्यम से विज्ञान 59 00:05:05,633 --> 00:05:10,233 को समझने की अदि्वतीय स्थिति में था । 60 00:05:10,233 --> 00:05:13,067 सभी महान वैज्ञानिकों की तरह टेस्ला ने न 61 00:05:13,067 --> 00:05:15,003 केवल बाहरी संसार के रहस्य को गहराई से देखा, 62 00:05:15,003 --> 00:05:19,633 बल्कि अपने भीतर की गहराई में भी झाँका। 63 00:05:19,633 --> 00:05:23,006 प्राचीन योगियों की तरह, टेस्ला ने स्वर्गिक अनुभव 64 00:05:23,006 --> 00:05:31,833 को वर्णित करने के लिए आकाश शब्द का प्रयोग किया, जो सभी वस्तुओं में प्रसरित है । 65 00:05:31,833 --> 00:05:36,000 टेस्ला ने योगी स्वामी विवेकानंद के साथ अध्ययन किया, 66 00:05:36,000 --> 00:05:38,007 जिन्होंने भारत की प्राचीन शिक्षा को पश्चिम तक पहुंचाया । 67 00:05:38,007 --> 00:05:42,667 वैदिक शिक्षाओं में आकाश स्वयं में शून्य है; 68 00:05:42,667 --> 00:05:45,002 वह शून्य जिसमें अन्य तत्व भरे हैं, 69 00:05:45,002 --> 00:05:49,167 जो कंपन सहित उपस्थित रहते हैं । 70 00:05:49,167 --> 00:05:59,933 दोनों अभिन्न हैं । आकाश यिन है और प्राण यांग । 71 00:05:59,933 --> 00:06:09,033 एक आधुनिक संकल्पना जिससे आकाश अथवा प्राथमिक 72 00:06:09,033 --> 00:06:16,000 अस्तित्व की अवधारणा का हमें पता चल सकता है, वह है अंश की अद्भुत कल्पना । 73 00:06:16,000 --> 00:06:20,233 1980 के दशक के बाद ही कंप्यूटर के क्षेत्र में प्रगति ने प्रकृति के ढांचे 74 00:06:20,233 --> 00:06:23,433 की गणितीय कल्पना कर उसे वास्तविक 75 00:06:23,433 --> 00:06:26,467 रूप में पहचानने का हमें अवसर दिया । 76 00:06:26,467 --> 00:06:29,000 `फ्रैक्टल` अर्थात अंश शब्द का गठन 1980 77 00:06:29,000 --> 00:06:31,467 में गणितज्ञ बेनॉयट मेंडेलब्रॉट ने किया 78 00:06:31,467 --> 00:06:34,667 जब उन्होंने कुछ गणितीय समीकरणों का अध्ययन 79 00:06:34,667 --> 00:06:36,867 करने पर पाया कि एक सीमित 80 00:06:36,867 --> 00:06:40,233 दायरे में दोहराने पर वे अंतहीन गणितीय 81 00:06:40,233 --> 00:06:41,933 अथवा ज्योमितीय रूप में बदलती हैं । 82 00:06:41,933 --> 00:06:48,133 वे सीमित हैं लेकिन साथ ही अनंत भी । 83 00:06:48,133 --> 00:06:51,633 एक अंश एक स्थूल ज्यामितीय आकार है, 84 00:06:51,633 --> 00:06:56,033 जिसे अनेक हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है, 85 00:06:56,033 --> 00:06:58,633 जिनमें से प्रत्येक लगभग संपूर्ण आकार का संक्षिप्त प्रतिरूप है – 86 00:06:58,633 --> 00:07:05,767 एक गुण जिसे “समरूपता“ कहा जाता है 87 00:07:05,767 --> 00:07:06,967 मेंडेलब्राट के `अंश` को ईश्वर के अंगूठे 88 00:07:06,967 --> 00:07:22,867 की छाप कहा गया है । 89 00:07:22,867 --> 00:07:26,833 आप प्रकृति की स्वयं निर्मित कलाकृति देख रहे हैं । 90 00:07:26,833 --> 00:07:29,533 यदि आप मेंडेलब्राट की आकृति को एक विशिष्ट तरीक़े से 91 00:07:29,533 --> 00:07:33,733 घुमाएँ तो यह किसी हिन्दू देवता अथवा बुद्ध के समान दिखाई देगा । 92 00:07:33,733 --> 00:07:53,267 इसे `बुद्धब्राट आकार` नाम दिया गया है । 93 00:07:53,267 --> 00:08:01,001 यदि आप किन्हीं प्राचीन कला और स्थापत्य कला के रूप देखें, 94 00:08:01,001 --> 00:08:03,006 आप पाएंगे कि मानवों ने ज़माने से सौंदर्य और 95 00:08:03,006 --> 00:08:18,000 पवित्रता को फ़्रैक्टल पैटर्न के साथ जोड़ा है । 96 00:08:18,000 --> 00:08:21,467 अत्यंत जटिल, फिर भी कण-कण में 97 00:08:21,467 --> 00:08:24,467 उसकी पूर्णता का बीज है । 98 00:08:24,467 --> 00:08:26,967 फ्रैक्टल्स यानी अंशों ने सृष्टि और इसकी संचालन प्रक्रिया पर 99 00:08:26,967 --> 00:08:29,767 गणितज्ञों का दृष्टिकोण बदला है । 100 00:08:29,767 --> 00:08:32,533 आवर्धन के हर नए स्तर के साथ, 101 00:08:32,533 --> 00:08:35,933 मूल से भिन्नता उजागर होती हैं । 102 00:08:35,933 --> 00:08:38,533 जब हम फ्रैक्टल के एक स्तर से दूसरे स्तर पर पारगमन करते 103 00:08:38,533 --> 00:08:42,633 हैं तो सतत परिवर्धन एवं रूपांतरण घटित होता है । 104 00:08:42,633 --> 00:08:46,233 यह रूपांतरण ब्रह्माण्डीय सर्पिल गति में होता है । 105 00:08:46,233 --> 00:09:14,667 दिक्काल के सांचे में सन्निहित बुद्धिमता । 106 00:09:14,667 --> 00:09:19,033 फ्रैक्टल्स यानी `अंश` सहज रूप से अस्तव्यस्त - शब्द एवं नियम से भरपूर हैं। 107 00:09:19,033 --> 00:09:22,733 हमारे मस्तिष्क किसी आकार को जब पहचानते या परिभाषित करते हैं, 108 00:09:22,733 --> 00:09:26,008 तो हमारा ध्यान उस पर यूं केन्द्रित होता है मानो वह कोई वस्तु हो । 109 00:09:26,008 --> 00:09:29,933 हम आकारों को देखी गई सुंदरता के अनुरूप ढूंढते हैं, 110 00:09:29,933 --> 00:09:32,008 किन अपने मस्तिष्क में इन आकारों को बनाए 111 00:09:32,008 --> 00:09:53,267 रखने के क्रम में हमें शेष फ्रैक्टल्स हटा देने चाहिए । 112 00:09:53,267 --> 00:09:55,009 फ्रैक्टल्स को चेतनाओं में समाविष्ट करना, 113 00:09:55,009 --> 00:10:01,167 इसका संचालन सीमित करना है । 114 00:10:01,167 --> 00:10:05,167 ब्रह्माण्ड में समस्त ऊर्जा तटस्थ, 115 00:10:05,167 --> 00:10:10,167 शाश्वत, आयामहीन है । 116 00:10:10,167 --> 00:10:13,667 हमारी अपनी रचनात्मकता और आकार की पहचान क्षमता, 117 00:10:13,667 --> 00:10:17,633 सूक्ष्म जगत एवं ब्रह्माण्ड के बीच की कड़ी है । 118 00:10:17,633 --> 00:10:24,067 लहरों का शाश्वत जगत और ठोस वस्तुओं का जगत । 119 00:10:24,067 --> 00:10:29,003 चिंतन की स्वभाविक सीमाओं में 120 00:10:29,003 --> 00:10:31,567 अवलोकन करना एक सृजनात्मकता है । 121 00:10:31,567 --> 00:10:34,133 हम वर्गीकरण द्वारा नाम देकर, 122 00:10:34,133 --> 00:10:37,004 चीजों के ठोसपन का भ्रम पैदा करते हैं । 123 00:10:37,004 --> 00:10:39,633 दार्शनिक कीर्केगार्ड ने कहा, 124 00:10:39,633 --> 00:10:43,267 "यदि आप मेरा नाम रखते हैं तो आप मुझे नकारते हैं । 125 00:10:43,267 --> 00:10:46,433 मेरा नाम रखकर, वर्गीकरण कर, आप उन सभी 126 00:10:46,433 --> 00:10:49,967 अन्य चीजों को नकार देते हैं जिनकी मुझमें होने की संभावना हो सकती है । 127 00:10:49,967 --> 00:10:52,667 आप कण को नाम देकर उसकी वस्तु 128 00:10:52,667 --> 00:10:55,733 के रूप में व्याख्या कर देते हैं, 129 00:10:55,733 --> 00:10:57,433 आप उसके अस्तित्व को परिभाषित 130 00:10:57,433 --> 00:11:03,005 कर उसका सृजन कर देते हैं ।" 131 00:11:03,005 --> 00:11:06,467 सृजनात्मकता हमारी सर्वोच्च प्रकृति है । 132 00:11:06,467 --> 00:11:10,000 वस्तुओं के सृजन से, ऐसी स्थिति बनती 133 00:11:10,000 --> 00:11:16,567 है जब चीजों में ठोसपन का भ्रम हो । 134 00:11:16,567 --> 00:11:22,008 आइन्सटीन पहला वैज्ञानिक था जिसने महसूस 135 00:11:22,008 --> 00:11:26,005 किया कि जिस अंतरिक्ष को हम शून्य मानते हैं, 136 00:11:26,005 --> 00:11:28,533 वह ऐसा है नहीं, उसकी विशेषताएं हैं, 137 00:11:28,533 --> 00:11:30,333 अंतरिक्ष की प्रकृति अथाह 138 00:11:30,333 --> 00:11:35,167 आंतरिक ऊर्जा से भरपूर है । 139 00:11:35,167 --> 00:11:38,367 प्रतिष्ठित भौतिक शास्त्री रिचर्ड फैनमेन ने एक बार कहा, 140 00:11:38,367 --> 00:11:41,000 "अंतरिक्ष के अकेले क्यूबिक मीटर में इतनी ऊर्जा है 141 00:11:41,000 --> 00:11:48,006 कि विश्व के सभी महासागर उबल सकें ।" 142 00:11:48,006 --> 00:11:51,167 गंभीर ध्यानी जानते हैं कि अधिकतम 143 00:11:51,167 --> 00:11:54,003 ऊर्जा मौन में है । 144 00:11:54,003 --> 00:11:59,267 बुद्ध के पास इस तात्विक सार के लिए एक और शब्द था 145 00:11:59,267 --> 00:12:03,467 जिसे उन्होंने `कल्प` कहा, जो सूक्ष्म कणों या तरंगिकाओं 146 00:12:03,467 --> 00:12:07,633 की तरह हैं और प्रति सेकंड खरबों बार उत्पन्न 147 00:12:07,633 --> 00:12:17,867 व लुप्त होती हैं । इस अर्थ में वास्तविकता, 148 00:12:17,867 --> 00:12:21,333 स्वलिखित फ़िल्म कैमरे में तेज़ी से गतिशील फ़्रेमों की शृंखला 149 00:12:21,333 --> 00:12:27,467 द्वारा सातत्य का भ्रम पैदा करने के समान है । 150 00:12:27,467 --> 00:12:30,233 चेतना के पूर्णतया स्थिर होने पर यह भ्रम समझा 151 00:12:30,233 --> 00:12:32,133 जा सकता है चूंकि यह चेतना ही है जो 152 00:12:32,133 --> 00:13:18,067 भ्रम को संचालित करती है । 153 00:13:18,067 --> 00:13:20,167 पूर्वी प्राचीन परंपराओं में, 154 00:13:20,167 --> 00:13:22,006 सदियों से यह समझा गया है कि सब 155 00:13:22,006 --> 00:13:25,567 कुछ कंपायमान है । 156 00:13:25,567 --> 00:13:30,867 `नाद ब्रह्म`-ब्रह्माण्ड ध्वनि है । 157 00:13:30,867 --> 00:13:35,367 `नाद` शब्द का अर्थ है ध्वनि या कंपन और 158 00:13:35,367 --> 00:13:37,867 `ब्रह्म` ईश्वर का नाम है । 159 00:13:37,867 --> 00:13:43,006 इसके साथ ही ब्रह्मा, ब्रह्माण्ड या ईश है और ईश सृजक है । 160 00:13:43,006 --> 00:13:48,967 कलाकार और कला अभिन्न हैं । 161 00:13:48,967 --> 00:13:50,767 उपनिषदों में, 162 00:13:50,767 --> 00:13:54,000 जोकि प्राचीन भारत के प्राचीनतम मानव जाति के अभिलेख हैं, 163 00:13:54,000 --> 00:13:58,633 यह कहा गया है "कमल पर बैठे सृजक ब्रह्मा 164 00:13:58,633 --> 00:14:05,733 के नेत्र खुलने पर जगत अस्तित्व में आता है । 165 00:14:05,733 --> 00:14:07,333 ब्रहृमा के नेत्र मूंदते ही जगत 166 00:14:07,333 --> 00:14:14,133 का अस्तित्व मिट जाता है । 167 00:14:14,133 --> 00:14:16,000 "प्राचीन रहस्यवादियों, योगियों और ॠषियों 168 00:14:16,000 --> 00:14:17,667 ने माना कि चेतना का 169 00:14:17,667 --> 00:14:20,007 मूल एक आधार है । 170 00:14:20,007 --> 00:14:24,433 आक्षिक क्षेत्र अथवा आक्षिक अभिलेख, 171 00:14:24,433 --> 00:14:28,233 जहां विगत, वर्तमान और भविष्य की सभी जानकारियां, 172 00:14:28,233 --> 00:14:31,833 सभी अनुभव अस्तित्व में हैं और सदा रहती हैं । 173 00:14:31,833 --> 00:14:33,008 यह वही क्षेत्र अथवा आव्यूह है जहां 174 00:14:33,008 --> 00:14:36,333 से सभी वस्तुएं प्रकट होती हैं । 175 00:14:36,333 --> 00:14:40,133 उप-परमाणु अणुओं से लेकर आकाशगंगा, 176 00:14:40,133 --> 00:14:51,233 नक्षत्र, सितारे और समस्त जीवन चक्र तक। 177 00:14:51,233 --> 00:14:53,267 आप इसे समग्रता में कभी 178 00:14:53,267 --> 00:14:56,167 नहीं देख पाते, क्योंकि यह कंपन परत-दर-परत 179 00:14:56,167 --> 00:14:59,433 पर बना है और निरंतर 180 00:14:59,433 --> 00:15:05,033 परिवर्तनशील है, आकाश से जानकारी का आदान-प्रदान कर रही हैं। 181 00:15:05,033 --> 00:15:16,833 वृक्ष जल ग्रहण कर रहा है सूर्य, वायु, 182 00:15:10,000 --> 00:15:16,833 वर्षा तथा पृथ्वी से । 182 00:15:16,833 --> 00:15:18,833 वस्तु के भीतर और बाहर ऊर्जा का संसार संचालित 183 00:15:18,833 --> 00:15:22,003 है जिसे हम वृक्ष कहते हैं । 184 00:15:22,003 --> 00:15:23,933 जब विचारशील मस्तिष्क शांत हो, 185 00:15:23,933 --> 00:15:27,433 तो आप यथार्थ को वास्तविक रूप में देखते हैं । 186 00:15:27,433 --> 00:15:30,367 सभी अवस्थाएं एक साथ । 187 00:15:30,367 --> 00:15:33,133 वृक्ष एवं आकाश और पृथ्वी तथा वर्षा 188 00:15:33,133 --> 00:15:36,433 एवं सितारे पृथक नहीं । 189 00:15:36,433 --> 00:15:41,033 जीवन और मृत्यु हमारी अपनी या किसी अन्य की, पृथक नहीं हैं । 190 00:15:41,033 --> 00:15:45,967 ठीक वैसे ही जैसे पर्वत और वादियां अभिन्न हैं । 191 00:15:45,967 --> 00:15:47,067 अमेरिका की आदिवासी तथा अन्य देशज 192 00:15:47,067 --> 00:15:49,004 परंपराओं में कहा गया है कि प्रत्येक 193 00:15:49,004 --> 00:15:52,233 वस्तु में जीव है जिसे अन्य तरीक़े से कहा 194 00:15:52,233 --> 00:15:54,003 जा सकता है कि प्रत्येक वस्तु 195 00:15:54,003 --> 00:15:58,008 स्पंदनशील स्रोत से संबद्ध है । 196 00:15:58,008 --> 00:16:02,367 सर्वत्र एक चेतना, एक व्यापकता, 197 00:16:02,367 --> 00:16:05,367 एक ऊर्जा विद्यमान है । 198 00:16:05,367 --> 00:16:07,733 यह व्याप्ति आपके आसपास नहीं, 199 00:16:07,733 --> 00:16:10,233 बल्कि यह आपके माध्यम से घटित हो रही है और आपके 200 00:16:10,233 --> 00:16:15,267 वास्तविक स्वरूप के अनुसार घटित हो रही है । 201 00:16:15,267 --> 00:16:18,733 आप ब्रह्मांड का अंश हैं । 202 00:16:18,733 --> 00:16:24,667 आप नेत्र हैं जिनके माध्यम से सृजक स्वयं को देखता है । 203 00:16:24,667 --> 00:16:27,067 स्वप्न से बाहर आने पर आप महसूस करते हैं कि 204 00:16:27,067 --> 00:16:30,003 स्वप्न में सब कुछ आप ही थे । 205 00:16:30,003 --> 00:16:32,006 आप इसे सृजित कर रहे थे। 206 00:16:32,006 --> 00:16:34,007 तथाकथित वास्तविक जीवन अलग नहीं है। 207 00:16:34,007 --> 00:16:38,008 प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक वस्तु आप हैं। 208 00:16:38,008 --> 00:16:46,067 प्रत्येक नेत्र की चेतन दृष्टि, प्रत्येक चट्टान के नीचे छिपे 209 00:16:46,067 --> 00:17:06,767 प्रत्येक अणु के भीतर तक देखती है । 210 00:17:06,767 --> 00:17:09,004 सीईआरएन, कण भौतिक शास्त्र की यूरोपियन 211 00:17:09,004 --> 00:17:12,133 प्रयोगशाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधानकर्ता 212 00:17:12,133 --> 00:17:13,433 इस क्षेत्र के लिए अनुसंधान कर रहे हैं, 213 00:17:13,433 --> 00:17:16,001 जो सभी वस्तुओं में विद्यमान हैं । 214 00:17:16,001 --> 00:17:17,567 लेकिन इसके भीतर झांकने की बजाय वे 215 00:17:17,567 --> 00:17:23,733 बाहरी भौतिक संसार देखते हैं । 216 00:17:23,733 --> 00:17:25,833 जेनेवा, स्विट्जरलैंड के सीईआरएन की प्रयोगशाला 217 00:17:25,833 --> 00:17:28,001 में अनुसंधानकर्ताओं ने घोषित किया कि उन्होंने 218 00:17:28,001 --> 00:17:32,000 हिग्स बोसन या ईश्वर कण खोज लिया है । 219 00:17:32,000 --> 00:17:35,233 हिग्स बोसन के प्रयोगों ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया कि 220 00:17:35,233 --> 00:17:41,433 अदृश्य ऊर्जा फील्ड अंतरिक्ष का शून्य भर देती है । 221 00:17:41,433 --> 00:17:44,333 सीईआरएन का बड़ा हैडरॉन कोलाईडर 222 00:17:44,333 --> 00:17:47,967 (गोलाकार) 17 मील की परिधि में है जिसमें 223 00:17:47,967 --> 00:17:50,933 दो किरण पुंज विपरीत दिशाओं में दौड़ते 224 00:17:50,933 --> 00:17:53,133 हैं और प्रकाश की गति के निकट एक साथ 225 00:17:53,133 --> 00:17:55,004 टकराकर नष्ट हो जाते हैं । 226 00:17:55,004 --> 00:17:56,567 वैज्ञानिकों ने देखकर जाना कि प्रचंड 227 00:17:56,567 --> 00:18:02,233 टकराहट से क्या हासिल होता है । 228 00:18:02,233 --> 00:18:04,033 मानक मॉडल यह पता नहीं लगा सकता कि 229 00:18:04,033 --> 00:18:06,933 अणुओं का द्रव्यमान कहाँ से आता है। 230 00:18:06,933 --> 00:18:09,267 प्रत्येक पदार्थ कंपन से निर्मित दृष्टिगोचर होता है, 231 00:18:09,267 --> 00:18:16,133 लेकिन कोई चीज कंपित नहीं हो रही होती । 232 00:18:16,133 --> 00:18:18,633 लगता है मानो कोई अदृश्य नर्तक ब्रह्मांड की 233 00:18:18,633 --> 00:18:23,233 नृत्य-नाटिका में छिप कर छाया नर्तन कर रहा हो । 234 00:18:23,233 --> 00:18:26,133 अन्य सभी नर्तक हमेशा इस छिपे 235 00:18:26,133 --> 00:18:28,833 नर्तक के आसपास नृत्य करते हैं । 236 00:18:28,833 --> 00:18:30,533 हमने नृत्य की नृत्यकला देखी लेकिन 237 00:18:30,533 --> 00:18:41,167 अब तक उस नर्तक को नहीं देख सके । 238 00:18:41,167 --> 00:18:44,001 तथाकथित "ईश्वर कण", 239 00:18:44,001 --> 00:18:47,067 ब्रह्माण्ड का आधार तत्व का गुण, 240 00:18:47,067 --> 00:18:49,167 सभी पदार्थों का अंत:स्तल है, जो उस रहस्यमय द्रव्यमान 241 00:18:49,167 --> 00:18:56,067 एवं ऊर्जा के साथ ब्रह्माण्ड के विस्तार को संचालित करता है । 242 00:18:56,067 --> 00:18:59,033 लेकिन ब्रह्माण्ड की प्रकृति की व्याख्या करना तो दूर की बात, 243 00:18:59,033 --> 00:19:01,833 हिग्स बोसन की खोज ने बड़े-बड़े रहस्य साधारण 244 00:19:01,833 --> 00:19:05,001 रूप में प्रस्तुत किए, जिसने वह ब्रह्माण्ड उद्घाटित 245 00:19:05,001 --> 00:19:10,933 किया जो हमारी कल्पना से कहीं अधिक रहस्यपूर्ण है । 246 00:19:10,933 --> 00:19:13,733 विज्ञान चेतना और पदार्थ के बीच की सीमा-रेखा के 247 00:19:13,733 --> 00:19:15,433 सन्निकट है । 248 00:19:15,433 --> 00:19:18,533 वह दृष्टि जिससे हम प्रारंभिक सिद्धांत का क्षेत्र देखते हैं और 249 00:19:18,533 --> 00:19:21,004 वह दृष्टि जिससे क्षेत्र हमें देखता है, 250 00:19:21,004 --> 00:19:35,000 एक ही है । 251 00:19:35,000 --> 00:19:38,367 जर्मन लेखक और विद्वान वुल्फगेंग वॉन गोयथे ने कहा है, 252 00:19:38,367 --> 00:19:40,967 "तरंग आदिकालीन तथ्य है 253 00:19:40,967 --> 00:19:45,004 जिससे विश्व उत्पन्न हुआ" । 254 00:19:45,004 --> 00:19:53,633 सिमेटिक दृश्य ध्वनि का अध्ययन है । 255 00:19:53,633 --> 00:19:57,008 सिमेटिक शब्द ग्रीक के मूल शब्द `साईमा` 256 00:19:57,008 --> 00:20:08,733 से बना, जिसका अर्थ है - तरंग या कंपन । 257 00:20:08,733 --> 00:20:11,001 तरंगीय तथ्य का गंभीरता से अध्ययन करने वालों 258 00:20:11,001 --> 00:20:13,005 में प्रथम पश्चिमी वैज्ञानिक अर्नस्ट श्लाड्नी, 259 00:20:13,005 --> 00:20:15,733 अठारहवीं शताब्दी का एक जर्मन 260 00:20:15,733 --> 00:20:18,000 संगीतज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी था । 261 00:20:18,000 --> 00:20:20,004 श्लाड्नी ने खोज की कि धातु की प्लेटों पर रेत फैला कर वायलन 262 00:20:20,004 --> 00:20:23,767 गज से जब प्लेटों को डुलाया गया, 263 00:20:23,767 --> 00:20:29,167 तो रेत स्वत: प्रतिकृतियों में व्यवस्थित हो गई । 264 00:20:29,167 --> 00:20:30,667 उत्पादित कंपन के आधार पर भिन्न-भिन्न 265 00:20:30,667 --> 00:20:38,333 ज्यामितिक स्वरूप दृष्टिगोचर हुए । 266 00:20:38,333 --> 00:20:40,033 श्लाड्नी ने इन रूपों की समूची तालिका रिकार्ड 267 00:20:40,033 --> 00:20:42,933 की, जिन्हें श्लाड्नी आकृतियों के रूप में उल्लिखित 268 00:20:42,933 --> 00:20:45,367 किया जाता है । 269 00:20:45,367 --> 00:20:47,133 इनमें कई प्रतिकृतियों को समग्र प्राकृतिक विश्व में 270 00:20:47,133 --> 00:20:54,167 देखा जा सकता है । जैसे कछुए या तेंदुए की 271 00:20:54,167 --> 00:21:03,967 चित्तियों की प्रतिकृतियों के निशान । 272 00:21:03,967 --> 00:21:06,933 श्लाड्नी की प्रतिकृतियों या साइमेटिक प्रतिकृतियों का अध्ययन 273 00:21:06,933 --> 00:21:09,967 एक गोपनीय विधि है जिसके माध्यम से उन्नत गिटार, वॉयलिन 274 00:21:09,967 --> 00:21:21,833 और अन्य वाद्ययंत्रों के निर्माता वाद्ययंत्रों की ध्वनि गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं । 275 00:21:21,833 --> 00:21:27,567 हैंस जेनी ने वर्ष 1960 में श्लाड्नी का कार्य आगे बढ़ाया और ध्वनि 276 00:21:27,567 --> 00:21:30,767 नैरंतर्य को विकसित करने के लिए विभिन्न द्रव्य एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धकों का 277 00:21:30,767 --> 00:21:37,333 प्रयोग किया एवं `सिमेटिक्स` (तरंग) ध्वनि का सृजन किया । 278 00:21:37,333 --> 00:21:40,533 यदि आप जल में सामान्य तरंगों की ओर दौड़ते 279 00:21:40,533 --> 00:21:43,633 हैं तो आप जल में प्रतिकृतियां देख सकते हैं । 280 00:21:43,633 --> 00:21:45,733 तरंग की आवृत्ति के आधार पर विभिन्न 281 00:21:45,733 --> 00:21:47,008 तरंगित प्रतिकृतियाँ दृष्टिगोचर होंगी । 282 00:21:47,008 --> 00:21:52,001 आवृत्ति के बढ़ने पर प्रतिकृति जटिल होती जाएगी । 283 00:21:52,001 --> 00:21:55,008 इन स्वरूपों की पुनरावृति होगी, लेकिन ये बेतरतीब नहीं होंगी । 284 00:21:55,008 --> 00:21:57,467 जितना अधिक आप इन पर ध्यान केंद्रित करेंगे, 285 00:21:57,467 --> 00:22:01,867 उतना ही आपको इस बात का एहसास होगा कि किस प्रकार तरंग पदार्थ को साधारण दुहराव 286 00:22:01,867 --> 00:22:04,007 वाले तरंगों से जटिल रूपों में व्यवस्थित करने लगती हैं । 287 00:22:04,007 --> 00:22:29,867 इस जलतरंग की प्रतिकृति सूर्यमुखी फूल के समान है । 288 00:22:29,867 --> 00:22:32,133 मात्र ध्वनि नैरंतर्य के परिवर्तन से हम 289 00:22:32,133 --> 00:22:52,004 विभिन्न प्रतिकृतियां पा जाते हैं । 290 00:22:52,004 --> 00:22:55,367 जल अत्यंत रहस्यात्मक द्रव्य है । 291 00:22:55,367 --> 00:22:57,008 यह अत्यंत संवेदनशील है । 292 00:22:57,008 --> 00:23:00,833 अर्थात्, यह कंपन प्राप्त कर सकता है और उसे रोक कर रख सकता है । 293 00:23:00,833 --> 00:23:03,067 अपनी अत्याधिक गुंजायमान क्षमता तथा 294 00:23:03,067 --> 00:23:07,233 संवेदनशीलता एवं गूंजने के लिए आंतरिक तत्परता के कारण 295 00:23:07,233 --> 00:23:09,533 जल सभी प्रकार की ध्वनि तरंगों 296 00:23:09,533 --> 00:23:12,567 के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया देता है । 297 00:23:12,567 --> 00:23:13,006 प्रदोलित जल तथा पृथ्वी से 298 00:23:13,006 --> 00:23:17,433 अधिकांश पौधों तथा पशुओं के समूह का निर्माण होता है । 299 00:23:17,433 --> 00:23:21,933 यह देखना सरल है कि जल में किस प्रकार साधारण 300 00:23:21,933 --> 00:23:25,000 प्रदोलन, पहचानने योग्य प्राकृतिक प्रतिकृतियों को सृजित कर सकता है, 301 00:23:25,000 --> 00:23:30,067 लेकिन जैसे ही हम उसमें ठोस पदार्थ मिलाते हैं और उसके आयाम 302 00:23:30,067 --> 00:23:35,133 को बढ़ा देते हैं तो वस्तुएं और भी दिलचस्प हो जाती हैं । 303 00:23:35,133 --> 00:23:36,933 पानी में कार्नस्टार्च (मक्की की मांड) मिलाने से हमें 304 00:23:36,933 --> 00:23:58,433 और मिश्रित तत्व हासिल होते हैं । 305 00:23:58,433 --> 00:24:00,009 कदाचित जीवन के सिद्धांतों को भी महसूस किया 306 00:24:00,009 --> 00:24:03,009 जा सकता है, चूंकि कंपनों से कार्नस्टार्च चलते- 307 00:24:03,009 --> 00:24:12,733 फिरते जीव में परिवर्तित हो जाती है । 308 00:24:12,733 --> 00:24:15,233 ब्रह्माण्ड का जीवंत सिद्धांत उन शब्दों का प्रयोग 309 00:24:15,233 --> 00:24:18,001 करते हुए प्रत्येक बड़े धर्म में वर्णित किया 310 00:24:18,001 --> 00:24:20,267 गया है जो इतिहास में तत्कालीन 311 00:24:20,267 --> 00:24:26,033 समझ को प्रतिबिंबित करता है । 312 00:24:26,033 --> 00:24:31,333 इकांस की भाषा में, कोलंबियन-पूर्व 313 00:24:31,333 --> 00:24:34,933 अमेरिका में `मानव शरीर` के लिए `अल्पा कमास्का` शब्द है, 314 00:24:34,933 --> 00:24:41,001 जिसका शाब्दिक अर्थ है `जीवंत पृथ्वी` । 315 00:24:41,001 --> 00:24:43,005 कबाला या यहूदी रहस्यवाद में ईश्वर के 316 00:24:43,005 --> 00:24:46,067 दिव्य नाम का उल्लेख है । 317 00:24:46,067 --> 00:24:49,003 वह नाम जिसे उच्चारित नहीं किया जा सकता । 318 00:24:49,003 --> 00:24:51,003 इसे इसलिए नहीं बोला जा सकता, 319 00:24:51,003 --> 00:24:56,007 चूंकि यह ऐसा कंपन है जो सर्वत्र है । यह सभी शब्दों, सभी पदार्थों में हैं । 320 00:24:56,007 --> 00:25:00,233 पवित्र शब्द ही सब कुछ है । 321 00:25:00,233 --> 00:25:02,001 चतुष्फलक सर्वाधिक सामान्य आकार है, 322 00:25:02,001 --> 00:25:05,333 जो तीन आयामों में अस्तित्व में है । 323 00:25:05,333 --> 00:25:06,767 कुछ में भौतिक वास्तविकता के लिए कम 324 00:25:06,767 --> 00:25:09,267 से कम चार बिंदु होने चाहिए । 325 00:25:09,267 --> 00:25:11,333 त्रिकोणीय संरचना प्रकृति की केवल 326 00:25:11,333 --> 00:25:13,933 स्वनिर्धारित प्रतिकृति है । 327 00:25:13,933 --> 00:25:17,033 पूर्व-विधान में शब्द `चतुर्वर्णी` 328 00:25:17,033 --> 00:25:20,267 ईश्वर के कुछेक प्रकटीकरण के लिए प्राय: प्रयुक्त किया जाता है । 329 00:25:20,267 --> 00:25:23,733 इसे तब प्रयोग किया गया था, जब ईश्वर के शब्द या ईश्वर, 330 00:25:23,733 --> 00:25:30,867 लोगो या प्रारंभिक शब्द के विशेष नाम से बात की गई थी । 331 00:25:30,867 --> 00:25:36,233 प्राचीन सभ्यता जानती है कि ब्रह्माण्ड की 332 00:25:36,233 --> 00:25:40,467 आधारभूत संरचना चतुष्फलक आकार की थी । 333 00:25:40,467 --> 00:25:43,009 इस आकार में प्रकृति साम्य, शिव के लिए 334 00:25:43,009 --> 00:25:47,533 आधारभूत प्रमाण प्रदर्शित करती है । 335 00:25:47,533 --> 00:25:50,002 हालांकि इसमें परिवर्तन के लिए आधारभूत प्रमाण, 336 00:25:50,002 --> 00:25:56,867 शक्ति भी है । 337 00:25:56,867 --> 00:25:59,333 बाइबल में जॉन सिद्धांत में सामान्यतया 338 00:25:59,333 --> 00:26:01,667 `आरंभ में शब्द था़` 339 00:26:01,667 --> 00:26:04,667 पठित है लेकिन मूल पाठ में प्रयुक्त शब्द 340 00:26:04,667 --> 00:26:07,733 `लोगो` था । 341 00:26:07,733 --> 00:26:09,009 ईसा पूर्व लगभग 500वें वर्ष में विद्यमान 342 00:26:09,009 --> 00:26:13,002 ग्रीक दार्शनिक हरक्लीटस ने 343 00:26:13,002 --> 00:26:14,005 `लोगो` का उल्लेख कुछ आधारभूत 344 00:26:14,005 --> 00:26:16,733 अज्ञात के रूप में किया । 345 00:26:16,733 --> 00:26:22,003 सभी पुनरावृति, पद्धति और स्वरूपों का उद्भव । 346 00:26:22,003 --> 00:26:24,233 हरक्लीटस के उपदेशों का अनुसरण करने वाले 347 00:26:24,233 --> 00:26:27,004 निर्लिप्त दार्शनिकों ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिव्य जीवंत 348 00:26:27,004 --> 00:26:36,004 सिद्धांत के साथ इस शब्द का पता लगाया । 349 00:26:36,004 --> 00:26:42,002 सूफीवाद में `लोगो` सर्वत्र है और सभी वस्तुओं में है । 350 00:26:42,002 --> 00:26:52,833 यह वह तत्व है जिसमें अव्यक्त, व्यक्त हो जाता है । 351 00:26:52,833 --> 00:26:57,267 हिन्दू परंपरा में शिव नटराज का शाब्दिक अर्थ है 352 00:26:57,267 --> 00:26:59,933 `नृत्य सम्राट`। 353 00:26:59,933 --> 00:27:03,433 संपूर्ण ब्रह्माण्ड शिव की धुन पर नृत्य करता है । 354 00:27:03,433 --> 00:27:08,000 सभी कुछ स्पंदन से ही ओतप्रोत होता है । 355 00:27:08,000 --> 00:27:10,002 केवल जब तक शिव नृत्य कर रहे हैं तभी तक 356 00:27:10,002 --> 00:27:13,005 संसार विकसित और परिवर्तित हो सकता है, 357 00:27:13,005 --> 00:27:19,233 अन्यथा सब कुछ समाप्त होकर शून्य हो जाएगा । 358 00:27:19,233 --> 00:27:21,033 यद्यपि शिव हमारी चेतना का साक्ष्य है, 359 00:27:21,033 --> 00:27:26,009 शक्ति संसार का सार है । 360 00:27:26,009 --> 00:27:29,007 यद्यपि शिव ध्यानमग्न हैं, 361 00:27:29,007 --> 00:27:31,967 शक्ति उन्हें संचालित करने का प्रयत्न करती है, 362 00:27:31,967 --> 00:27:34,006 जिससे उन्हें नृत्य में उतारा जा सके । 363 00:27:34,006 --> 00:27:36,001 यिन एवं यांग की तरह नर्तक 364 00:27:36,001 --> 00:27:42,867 तथा नृत्य का अस्तित्व एक है । 365 00:27:42,867 --> 00:27:47,167 `लोगो़` का अर्थ है अनावृत सत्य । 366 00:27:47,167 --> 00:27:51,567 जो `लोगो़` को जानता है, वही सत्य को जानता है । 367 00:27:51,567 --> 00:27:53,367 छिपाव की कई परतें आकाश के रूप में मानवीय 368 00:27:53,367 --> 00:27:56,367 संसार में अस्तित्व में हैं, जिससे स्वयं 369 00:27:56,367 --> 00:27:59,033 के स्रोत को छिपाते हुए 370 00:27:59,033 --> 00:28:01,533 वह जटिल संरचनाओं के भंवर में फंस जाता है । 371 00:28:01,533 --> 00:28:04,467 लुकाछिपी के दिव्य खेल की तरह हम हजारों 372 00:28:04,467 --> 00:28:07,567 वर्षों से छिपते चले आ रहे हैं और खेल 373 00:28:07,567 --> 00:28:10,008 eको पूरी तरह से भूल गए हैं । 374 00:28:10,008 --> 00:28:17,633 हम भूल गए हैं कि कोई ऐसी चीज है जिसकी खोज की जानी है । 375 00:28:17,633 --> 00:28:21,009 बौद्धधर्म में प्रत्येक को अपने `लोगो़` को सीधे महसूस करना, 376 00:28:21,009 --> 00:28:25,933 अर्थात् ध्यान के माध्यम से अपने भीतर परिवर्तन या नश्वरता के क्षेत्र का पता 377 00:28:25,933 --> 00:28:28,167 लगाना सिखाया जाता है। 378 00:28:28,167 --> 00:28:30,333 जब आप अपना आंतरिक संसार देखते 379 00:28:30,333 --> 00:28:34,167 हैं तो आप सूक्ष्म संवेदनाओं और ऊर्जा को देखते हैं और 380 00:28:34,167 --> 00:28:38,633 मस्तिष्क अधिकाधिक कुशाग्र व आत्मकेन्द्रित होने लगता है । 381 00:28:38,633 --> 00:28:41,267 `अणिका` के प्रत्यक्ष अनुभव या संवेदन के 382 00:28:41,267 --> 00:28:44,008 आधारभूत स्तर पर नश्वरता के माध्यम से व्यक्ति 383 00:28:44,008 --> 00:28:50,967 मोह से मुक्त हो जाता है । 384 00:28:50,967 --> 00:28:53,433 एक बार हम अनुभव कर लेते 385 00:28:53,433 --> 00:28:55,867 हैं कि एक ही क्षेत्र है जो सभी धर्मों का सामान्य रास्ता है, 386 00:28:55,867 --> 00:29:05,008 तो हम किस प्रकार कह सकते हैं `मेरा धर्म` या `यह मेरा मौलिक ओम् 387 00:29:05,008 --> 00:29:20,833 है`, `मेरा क्वाण्टम क्षेत्र है` ? 388 00:29:20,833 --> 00:29:28,007 हमारे संसार में वास्तविक संकट सामाजिक, 389 00:29:28,007 --> 00:29:32,333 राजनीतिक या आर्थिक नहीं हैं । 390 00:29:32,333 --> 00:29:38,003 हमारे संकट चेतना के संकट हैं, अपने वास्तविक स्वरूप को प्रत्यक्ष अनुभव कर 391 00:29:38,003 --> 00:29:41,008 पाने की असमर्थता । 392 00:29:41,008 --> 00:29:44,867 प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति में इस प्रकृति 393 00:29:44,867 --> 00:29:53,006 को पहचानने की असमर्थता । 394 00:29:53,006 --> 00:29:56,333 बौद्ध परंपरा में, `बोधिसत्व` 395 00:29:56,333 --> 00:29:59,003 जागृत बुद्ध प्रकृति का व्यक्ति है । 396 00:29:59,003 --> 00:30:03,002 ब्रह्माण्ड में बोधिसत्व हर प्राणी को जागृत करने में 397 00:30:03,002 --> 00:30:09,003 सहायता करता है, यह अनुभव करते हुए कि चेतना केवल एक ही है। 398 00:30:09,003 --> 00:30:16,633 किसी के वास्तविक स्वरूप को जागृत करने के लिए व्यक्ति को सभी को जागृत करना चाहिए । 399 00:30:16,633 --> 00:30:24,005 “विश्व में असंख्य सचेतन प्राणी हैं, मैं उनकी 400 00:30:24,005 --> 00:30:28,567 जागृति में सहायता करना चाहता हूं । 401 00:30:28,567 --> 00:30:31,867 मेरी अपूर्णताएं असंख्य हैं । 402 00:30:31,867 --> 00:30:34,467 मैं उन पर विजय पाना चाहता हूँ। 403 00:30:34,467 --> 00:30:37,967 धर्म अज्ञात है। 404 00:30:37,967 --> 00:30:41,001 मैं इसे जानना चाहता हूं । 405 00:30:41,001 --> 00:30:46,733 जागृति का मार्ग अप्राप्य है । 406 00:30:46,733 --> 99:59:59,999 मैं इसे पाना चाहता हूं ।“ �