त्रिमंत्र तो आता है न सबको ? आता है | नमो अरिहंताणम यानि अरिहंत यानि कौन ? अरि मतलब दुश्मन | दुश्मनों का जिसने नाश कर दिया है ऐसे पुरुष, उन्हें नमस्कार करता हूँ | लेकिन कौन से दुश्मन ? व्यक्ति रूपी नहीं | षड् रिपु | क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष | व्यक्तियों को मारकर वे तो बहुत बार जीते लेकिन फिर भी हारे के हारे | इन षड् रिपु को जिसने मार दिया वह जीता | बड़े से बड़े दुश्मन यही है, अंदर बैठे हुए | आपकी दुश्मनी है क्या इनके साथ ? नहीं है क्या ? पहले थी ? हाँ, अभी भी है थोड़ी थोड़ी | अभी नहीं ? नहीं ? हाँ, थोड़ी रही है | इन्हें जीते तो हो गया | ऐसे लोगों को नमस्कार करता हूँ | फिर दूसरा नमो सिद्धाणम | जिन्होने षड रिपु जीत लिए, और जो देह मे भी नहीं है आज और सिद्धगति में विराजमान है सम्पूर्णरूप से, उन्हें नमस्कार करता हूँ | तब कहेंगे सबमें बड़े से बड़े तो यही कहलाता है | क्यों उनको नमस्कार नहीं किए ? तो केहता है, ये हमारे, कुछ काम नहीं आएगे | जो प्रत्यक्ष है वे ही काम आयेंगे | वे हमारा सब काम कर देते है और भूल हो तो दिखाते है | इसलिए पहला उपकार उनका | ये ज्यादा उपकारी है | इसलिए पहले उन्हें रखा | समझ में आया न ? तो कितने अरिहंत है ? छ: | क्या ? छ: | चौबीस | चौबीस | हाँ, अब इन चौबीस को जगत के सभी जैनो और साधु अरिहंत कहते है | अब इन लोगों को समझाता हूँ, कि ये चौबीस अभी अरिहंत है या सिद्ध है ? तो कहते है, ये तो सिद्ध कहलाते है | तब मैंने कहा मुए अरिहंत किसलिए कहते हो जो सिद्ध हो गये उन बेचारों को ? हाँ , एक बार प्रधानमंत्री बन गये, फिर उन्हें गवर्नर किसलिए कहते हो ? क्या कहा ? हाँ, हाँ, ठीक है | फिर बुरा नहीं लगेगा प्रधानमंत्री को | गवर्नर थे फिर प्रधानमंत्री बने, फिर हम उन्हें गवर्नर कहेंगे, तो उन्हें बुरा नहीं लगेगा ? उनको अरिहंत कहतें है, इसलिए उन्हें बुरा लगता है | जबकि खराब किसी को नहीं लगता लेकिन उसका नुकसान इनको होता है | इन्हें अरिहंत दिखते नहीं, और अरिहंत के लिए बोला हुआ व्यर्थ जाता है, इसलिए नवकार मंत्र, पूरा फल नहीं देता | यह तो मैंने भूल दिखाई, मैंने कहा क्या भूल ? यह, यह तो सिद्धगति में है | वे सिद्ध को हमें अरिहंत नहीं कहना चाहिए | अभी कौन अरिहंत है ? अरिहंत यानि देहधारी होने चाहिए | और केवलज्ञान सहित होने चाहिए, और लोगों का कल्याण करतें होंगें वे अरिहंत | तो कहते है, अभी तो ऐसा कोई है नहीं | मैंने कहा, यह महावीर आखरी थे वे बताकर गये कि सीमंधर स्वामी को नमस्कार करना | क्या कहते है ? वह आपके अरिहंत कहलाते है | दूसरे, वहां पर है, लेकिन आपको दूसरे का नाम लेना हो तो लेना, नहीं तो फिर यह एक तो करना | क्या गलत है ? क्या, गलत बात है यह कोई ? नहीं | तो यह सीमंधर स्वामी आपके अरिहंत | नमो अरिहंताणम | नमो सिद्धाणं | इसलिए यह देरासर बनवाना है, इन लोगों की गलतियाँ तोड़ने के लिए करना पड़ता है न | हाँ | गलतियों से निकालना पड़ेगा न जब-तब ? नही तो लोग मिस यूज़ करेंगे | साधुओ के कषाय खमत नहीं होते है | संसारियो के कषाय खमत नहीं होते है ऐसी क्या भूल है ? तो कहते है वही की वही भूलें, हर प्रकार की भूले | अरिहंत पूरा उड़ा दिया, मुए ! छोटे-छोटे बच्चे समझते है ऐसी बात !!! तो कहता है मुझे कौन दिखाएगा यह भूल ? भूल दिखी, तो आपको समझ मे आया कि नहीं आया ? हाँ, समझ में आया | वे साधु, आचार्य कहते है न, कि आपने समझा दिया तो मुझें समझ में आया | अब हम नहीं, अब हम नहीं भूलेंगे | तो मुए! पर पहले समझ क्यों नहीं पडी | तो कहता है, हमारा दिमाग इतना बड़ा कहाँ से होगा जो पीछे का भी देख सके ? हमे तो सामने का ही नहीं दिखता तो यह कहाँ ? यह तो विज्ञानी हो, उनका काम है | वे तो सामने का भी देख सकते है, पीछे का भी देख सकते है, पूरे द्रष्टिकोण को देख सकते है | सब कुछ देख सकते है | ठीक है | यह उनका काम है | नमो सिद्धाणं आपको समझ में आया न ?