मेरी सारी उम्र बीती है
या तो स्कूल में, या स्कूल आते-जाते
या फिर स्कूल के बारे में बात करते हुए।
मेरे माता-पिता : दोनो शिक्षक थे,
मेरे नाना-नानी भी शिक्षक थे,
और पिछले ४० सालों से मैने भी यही किया है।
तो जैसा कि ज़ाहिर है, कि इतने सालों में
मैने तमाम सारी शिक्षा नीतियों को देखा है
अलग अलग नज़रियों से।
उनमें कुछ अच्छे रहे।
कुछ उतने अच्छे नहीं रहे।
और हमें पता है कि बच्चे क्यों पढाई छोड देते हैं।
हमें पता है कि बच्चे क्यों नहीं सीखते हैं।
या तो गरीबी, या स्कूल नहीं आ पाना,
नकारात्मक संगी, साथी। ये सब पता है हमें।
मगर एक चीज पर या तो हम कभी बात नहीं करते
या बहुत ही कम करते हैं
इंसानी जुडाव के महत्व की,
रिश्तों की।
जेम्स कोमर कहते है कि कुछ सीखा ही नहीं जा सकता
जब तक कि एक रिश्ता न हो।
जार्ज वाशिंगटन कार्वर कहते है कि सारी सिखाई पढाई
रिश्तों को समझना भर है।
इस कमरे में बैठे सब लोगों पर असर डाला है
किसी शिक्षक या बडे व्यक्ति ने।
कई सालो तक, मैने लोगों को पढाते देखा है।
मैने अच्छे से अच्छे और खराब से खराब शिक्षकों को देखा है।
मेरे एक सह-कर्मी ने मुझसे कहा,
"मुझे बच्चों को पसंद करने के लिये पैसे नहीं मिलते।
मुझे पढाने के पैसे मिलते हैं।
बच्चों को सीखना चाहिये।
मुझे पढाना चाहिये। उन्हें पढना चाहिये। बात खत्म।"
मैने उस से कहा,
"पता है, बच्चे उन लोगों से नहीं सीखते जिन्हें वो पसंद नहीं करते।"
ठहाका तालियाँ
उसने कहा, "ये कोरी बकवास है।"
और मैने उस से कहा, "ह्म्म्म,, , तुम्हारा साल काफ़ी लम्बा
और कठिन होने वाल है।"
और वैसा ही हुआ। कुछ लोगों को लगता है कि
तुम या तो रिश्ते बना सकते हो
या नहीं बना सकते।
मेरे ख्याल से स्टीफ़न कोवी का कहना सही है।
उन्होंने कहा था कि बस कुछ चीजें करनी होंगी,
जैसे पहले दूसरों को समझो
बजाय दूसरों द्वार समझे जाने के,
छोटी छोटी बातें जैसे माफ़ी माँग लेना।
कभी सोचा आपने इस के बारे में?
किसी बच्चे से सॉरी बोल दो, बिचारे झटका खा जाते हैं।
एक बार मैने अनुपात का एक पाठ पढाया।
मेरी गणित कुछ खास नही है, पर मैं सीख रही थी।
और मैने वापस जा कर उस का शिक्षक-संस्करण देखा।
मैने पूरा पाठ गलत पढा दिया था। (ठहाका)
तो मै अगले दिन क्लास में गयी, और मैने कहा,
"देखो, मुझे माफ़ी माँगनी है।
मैने पूरा पाठ गलत पढा दिया। आय एम सॉरी।"
उन्होने कहा, "कोई बात नही, मिस पियरसन।
आप इतनी खुश थीं, तो हमने आप को रोका नहीं।"
ठहाका तालियाँ
मुझे ऐसी क्लासे पढाने को मिली हैं,
इतनी पिछडी हुई कि मुझे रोना आ गया।
मै सोचती थी, कि इस वर्ग को कैसे ले जाऊँगी
नौ महीनों में
यहाँ से जहाँ इन्हें होना चाहिये?
और ये बहुत कठिन था। बेहद कठिन।
किसी बच्चे का स्वाभिमान बढाना
और उसकी पढाई सुधारना एक ही साथ कैसे होगा?
एक साल मुझे एक विचार आया।
मैने अपने सारे विद्यार्थीयों से कहा,
"तुम्हें मेरी क्लास के लिये खास चुना गया है
क्योंकि मैं सबसे अच्छी शिक्षक हूँ
और तुम सब से अच्छे विद्यार्थी,
उन्होंने हमें साथ रख दिया है
जिस से हम सब को दिखा सकें कि पढाई कैसे होती है।"
एक विद्यार्थी ने कहा, "सच मे?"
ठहाका
मैने कहा, "हाँ, हमें दूसरी क्लासों को दिखाना है
कि कैसे पढते है, तो जब हम हॉल से गुज़रें,
तो लोग हमें देखें, और इसलिये तुम लोग हल्ला गुल्ला नहीं कर सकते।
तुम्हें अकड के चलना होगा।"
और मैने उन्हें एक नारा दिया: "मुझमें कुछ बात है।
मुझमे कुछ बात थी जब मैं आया था।
और मैं बेहतर हो कर ही जाऊँगा।
मैं ताकतवर हूँ, मजबूत हूँ।
मुझे इस पढाई का हक है जो मुझे यहाँ मिले रही है।
मुझे काम करना है, लोगों पर अपनी छाप छोडनी है,
और आगे बढना है।"
और उन्होने कहा, "हाँ!"
अगर आप बार बार कहें,
तो वो आपका हिस्सा बनन जाता है।
और फ़िर -- तालियाँ
मैनें एक टेस्ट लिया, २० सवालों का।
एक बच्चे ने १८ गलत जवाब दिये।
मैने उस के पेपेर पर +२ लिखा और एक बडा सा स्माइली बनाया।
उसने कहा, "मिस पियरसन, मैं फ़ेल हुआ हूँ न?"
मैने कहा, "हाँ।"
उसने कहा, "तो आपने ये मुस्कराता चेहरा क्यों बनाया?"
मैने कहा, "क्योकि तुम बहुत बढिया कर रहे हो।
तुम्हारे पूरे दो सवाल सही है। सारे के सारे गलत नहीं है।"
मैने कहा, "और जब हम इसे दोबारा करेंगे,
तो तुम बेहतर करोगे न?"
उसने कहा, "हाँ मैम, बिल्कुल मैं बेहतर करूँगा।"
देखिये, "- १८" देख कर आपकी सारी हिम्मत ख्त्म हो जायेगी।
"+२" आपसे कहता है, "इतना भी बुरा नहीं है।"
ठहाका तालियाँ
कई साल तक मैने अपनी माँ
को इंटरवेल में काम करते देखा,
दोपहर में घरों मे विज़िट करते देखा,
कंघी और ब्रश और पीनट बटर और बिस्कुट खरीदते देखा
अपने डेस्क में रखते हुए उन बच्चों के लिये जिन्हें ज़रूरत होती,
और एक तौलिया और कुछ साबुन उन के लिये जिनसे बदबू आ रही होती थी।
आखिर, बदबू फ़ैलाते बच्चों को पढाना आसान नहीं।
और बच्चे बहुत क्रूर हो सकते हैं।
तो इसलिये वो ये सारी चीजें अपने डेस्क में रखती थीं,
और कई साल बाद, उनके रेटायरमेंट के बाद,
मैने उन मे से कुछ बच्चों को वापस आ कर
उनसे कहते सुना, "आपको पता नहीं, मिस वाकर,
आप ने मेरे जीवन में कितना बडा बदलाव लाया।
आपके चलते ही मेरा कुछ हो सका।
आपने मुझे जताया कि मैं भी कुछ था,
जबकि मुझे अंदर अंदर यकीन था कि, मैं कुछ भी नही था।
और मैं चाहता हूँ कि आप देखें कि मैं क्या बन गया हूँ।"
और ९२ वर्ष की उम्र में, दो साल पहले, जब माँ गुज़री,
तो उनके बहुत सारे विद्यार्थी उनके अंतिम संस्कार पर पहुँचे,
मेरी आँखों मे आँसू थे इसलिये नहीं कि वो चली गयी थीं,
मगर इसलिये कि रिश्तों का इतना बडी विरासत वो छोड गयी थीं
जो कभी ख्त्म नहीं होगी।
क्या हम रिश्तों पर और ध्यान दे सकते हैं? बिल्कुल।
क्या आपको अपने सारे विद्यार्थी पसंद आयेंगे? बिल्कुल भी नहीं।
और सबसे बिगडैल विद्यार्थी कभी एब्सेंट भी नहीं होते।
ठहाका
कभी भी नहीं। और आप उन सब को पसंद भी नहीं करेंगे
और बिगडैल वाले आते ही खास वजह से हैं।
रिश्ते ही सब हैं। जुडाव से ही सब है।
और जब कि आप उन्हें नापसंद करेंगे,
अंदर की बात ये है कि उन्हें कभी ये पता नहीं लगेगा।
तो शिक्षकों महान एक्टर भी बन जाते हैं
और हम तब भी क्लास जाते हैं जब हमारा बिल्कुल मन नहीं होता,
और हम ऐसी नीतियों से जूझते हैं जो बिल्कुल ही निरर्थक होती हैं,
मगर हम फिर भी पढाते हैं।
हम फिर भी पढाते रहते हैं, क्योंकि हमारा वही काम है।
पढना-पढाना खुशी देने वाला होना चाहिये।
हमारी दुनिया कितनी बेहतर हो सकती है
अगर हमारे बच्चे जोखिम से न डरें,
सोचने से पीछे न हटें,
और जिन के पास कोई ध्यान देने वाला हो?
हर बच्चे को इसका हक है,
ऐसा कोई जो कभी उन्हें अकेला न छोडे,
जो रिश्तों की अहमियत समझे,
और उन्हें आगे बढने और बेहतर होने के लिये प्रोत्साहित करे।
क्या ये कठिन काम है? बिल्कुल, हे भगवान, बहुत कठिन!
मगर ये असंभव नहीं है।
हम ये कर सकते हैं। हम शिक्षक हैं।
हम दुनिया को बदलने के लिये ही जन्मे हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद।
तालियाँ