सत्तर हजार साल पहले हमारे पूर्वज
नगणनीय जानवर थे|
एक महत्वपूर्ण बात हमारी
पूर्वजोँ के बारे मे
है की वो लोग महत्वहीन थे|
उन लोगों की दुनिया के ऊपर
मुद्रा जेल्ली मछली
या आग मक्खियो या वुड पेकर
से ज्यादा नहीं था|
आज इसके व्यतिरेक हम
इस ग्रह पर काबू पालिये|
और प्रश्न ये है कि:
हम वहाँ से यहाँ कैसे पहुंच गये?
हम अपने आप को कैसे मोड लिये
ताकी हम आफ्रिका के कोने में
अपने काम देखने वाले
नगणनीय वानर से
इस दुनिया के शासक कैसे बनगये?
आम तौर पर, हम व्यक्तिगतस्तर पर
दूसरे जानवर और हमलोगोँ
मे फर्क देखते है|
हमलोग ये मानना चाह्ते है --
मैँ ये मानना चाह्ता हूँ --
कि मुझ मेँ कुछ खास बात है,
मेरे शरीर मे, मेरे दिमाग मे,
जो मुझे एक कुत्ता, एक सुवर, या एक
चिँपाँजी से कई ज्यादा बेहतर बनाता है|
लेकिन सच तो ये है कि
व्यक्तिगत स्तर पर
मैँ शर्मानक, चिँपाँजी
समान रूप मे हूँ|
और अगर तुम मुझे और एक चिँपाँजी
को एक सुनसान द्वीप मे रखोँगे|
और अगर हम को जीने के लिए सँघर्ष
करना पडा, और कौन बेहतर बचता
मै अपना शर्त निश्चित रूप से चिँपाँजी के
ऊपर, रखूँगा परन्तु मेरे ऊपर नहीँ|
और मुझमें व्यक्तिगत रूप
से कोई कमी नहीँ है|
मुझे लगता है, अगर वेआप में से किसी
एक को लेते और तुमको अकेले
चिँपाँजी के साथ कोई द्वीप मे रखते तो
चिँपाँजी आप से बेहतर काम करेगा|
असली फर्क मनुष्य और
बाकी सारी जानवर के बीच
अंतर व्यक्तिगत स्तर पर नहीँ है;
बल्कि सामजिक स्तर पर है|
मनुष्य धर्ती को काबू मे रख सकते है
क्योँ कि वे सिर्फ ऐसी जानवर है
जो ज्यादा सँख्या मे सहयोग और लचील
ढँग से मदद कर सकते हैँ|
अब, दूसरे जानवर है -
जैसे कि समाजिक कीडे,
मखियाँ, चीटियाँ --
जो ज्यादा सँख्या मे साथ देते हैं,
पर इतना लचीले ढँग से नहीँ करते|
उनका साथ देना कठिन हैं|
मूल्र रूप से एक ही रास्ता है जिस तरीके से
मधु मक्खी काम कर सकती हैँ|
और अगर वहाँ कोई नया अवसर
या नया खतरा हो,
मधु मक्खी समजिक व्यवस्था का
पुन: कल्पना रातोँ रात नहीँ कर सकते|
उदाहरणार्थ, वो अपने राणी
को फासि नहीं देसक्ते
और एक राज्य का
स्थापना नहीं कर सकते
या श्रामिक मक्कियो का तांशाही
साम्यवादी नहीं बना सकते
दूसरे जानवर जैसे सामाजिक स्थनधारियों
भेदियों, हाथियों, दाल्फिंस, चिपांजीस --
वो ज्यादा लचीले ढंग से समर्थन देते हैं|
लेकिन वो ऐसे बहुत कम संख्या मे करते है,
क्योंकि चिन्म्पांजियोँ में साथ देना
उन दोनो को एक दूसरोँ
को समझने पर है|
मै एक चिन्म्पांजी हूँ और
तुम एक चिन्म्पांजी हो,
और मै तुम्हारे साथ मिलकर
काम करना चाहता हूँ|
मुझे तुम्हे व्यक्तिगत
रूप से जानना जरूरी है|
किस तरह के चिम्पांजी हो तुम?
तुम एक अच्छा चिम्पांजी हो?
क्या तुम एक दुष्ट चिम्पांजी हो?
क्या तुम भरोसा के लायक हो?
अगर मै तुम्हे नही जानता मै
तुम्हारे साथ कैसे दे सकता हूँ ?
ऐसे एक हीं जानवर है जो इन
दोनो क्षमतावो को मिला सकता है
और लचीले ढंग से भी और ज्यादा
संख्या मे भी साथ दे सकते है
वो है हम मानव जाती|
एक का एक ,या दस का दस,
चिंपांजी हम से बेहतर हो सकते है|
पर ,अगर तुम १००० लोग को १००० चिंपांजियों
के सामने रखोगे तो,
मानव आसानी से जीत जायेंगे,
इसका कारण सरल है
कि १००० चिंपांजियों एक दूसरे
के साथ नहीं दे सकते|
और अगर तुम १००,०००
चिंपांजियों को एक साथ
ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्र्रीट या वेम्ब्ले स्टेडियम
या टियनानमें स्क्वेअर या व्हेटिकन मे ठूसना
तुम को पूरा अस्थ्व्यस्थता मिलेगि
कल्पना करो १,००,००० चिंपांजियों
से भरा वेम्ब्ले स्टेडियम को
पूरा पागलपन मिलेगा
इसके उलते मे लोग वहाँ हजारोँ
मे इकट्टा होते हैँ,
और हमे आम तौर पर
अस्वस्थता नहीँ मिलेगी|
हमे अत्यन्त सुविग्न और प्रभावी
सहयोगी को नेटवर्क मिलेगा|
मनुष्य चरित्रमे सभी बडे उपलब्धियँ
यदी पिरमिड की निर्माण हो
या चांद की यात्रा हो
व्यक्तिगत सामर्थ्य पर
आधार नहीँ हैं,
पर एक दूसरे की लचीले ढंग से मदद
कर ने की ऊपर आधारित है|
अब मै जो सम्भाषण दे रहा हूँ
उसके बारे मे सोचिये:
मै यहाँ लगबग ३०० या ४००
श्रोताओँ के सामने खडा हूँ,
तुम मे से ज्यादा लोग
मेरे लिये बिलकुल अजनबी हो|
ऐसे ही मै उन लोगोँ को नहीँ जानता
जो इसका इंतेजाम् किया
और इस कार्यक्रम के ऊपर काम किया|
मै पैलट और हवाइ जहाज की
सभ्ययोँ को नहीं जानता
जो मुझे यहाँ लेके आये
और कल लँडन को लेके गये|
मै उन लोगोँ को नहीं जानता जो इस मैक्रोफोन
और केमेरा का आविष्कार किये,
और् बना दिये जो इस वक्त मेरे
बातोँ को रिकॉर्ड कर रहे है|
मै उन लोगोँ को नहीँ जानता जो
सब किताबेँ और लेख लिखे
जो मै इस सँ भाषण के लिये
तैयार होते हुये पढा था|
और मै उन सभी लोगोँ को
बिलकुल भी नहीँ जानता
जो नयी दिल्ली या ब्युनोस ऐरस् से
इन्टरनेट पर ये संभाषण देख रहें होंगे|
फिर भी हम एक दूसरे को
ना जानते हुये भी
हम इस विचारों का अदला बदली
वैश्विक स्तर पे कर सकते है|
ये सब कुच चिंपांजियों
नहीँ कर सकते|
वो बेशक संसूचित करते हैँ,
पर तुम एक चिंपांजी को कोई दूर की बैंड
के लिये हाथियोँ या कोई और चीज
जो चिंपांजियों को दिलचस्प लगे,
उसके बारे मे भाषण देने के लिये
जाते हुये नहीँ देख सकते.
अब साथ देना हमेशा अच्छी बात नहीं होती;
सभी दारूण चीज पूरी चरित्र
मे मनुष्य जो कर रहे है --
और हम जो बहुत हीं गलत चीज
जो हम कर रहे हैँ --
वो सभी चीज भी बड़े पैमाने पर
सहयोग पर आधारित है|
जैल एक तरफ के सहयोग है;
बूचड़खाने भी एक सहयोग की प्रणाली है;
कारा शिविर एक सहयोग की प्रणाली है|
चिंपांजियों के पास बूचड़खाने,
जैल और ,कारा शिविर नहीँ होते|
अब अगर मैने शायद आपको यकीन दिलाया कि
हाँ,हम इस दुनिया को काबू मे कर सकते
क्योँकि हम एक दूसरे का समर्थन लचीले
ढंग से बडी सँख्या मे करते हैँ|
अगला प्रश्न जो तुरंत उठता है
एक कुतूहली श्रोता के मन मे कि
हम ये कैसे करते हैँ?
पूरी जानवरोँ मे क्या है जो सिर्फ हमे योग्य
बनाता है कि हम एक दूसरे की समर्थन कर सकते?
इसकी उत्तर है हमारी कल्पना शक्ती|
हम अनगिनत सँख्या मे
अजनबियोँ की मदद कर सकते हैँ,
क्योँकि इस ग्रह के सारी जानवरोँ
मे सिर्फ हम हैँ,
कुछ बना सकते हैँ, कल्पनावोँ,
और कल्पनात्मक रचनावोँ को मानते हैँ|
और जब तक सभी लोग
उस कल्पना को मानते हैँ,
सब लोग एक ही नियम,एक ही
मानद्न्डोँ, और एक ही मूल्योँ
का अनुसरण करते है|
बाकी सब जानवर सिर्फ वास्तविकता का
वर्णन करने के लिये अपनी संचार व्यवस्था
इस्तेमाल करते हैँ|
एक चिंपांजी कह सकता है
"देखो! वहाँ एक शेर है ,चलो हम भागते हैँ!"
या,"देखो! वहाँ एक केले की पेढ है !
आओ हम चले और केले लाये"
मनुष्य उसके विपरीत ,अपने भाषा
सिर्फ सच का विवरण देने के लिये ही नहीं
बल्कि नया सच ,सच की कल्पना
करने के लिये भी इस्तेमाल करते है|
एक मनुष्य ये बोल सकता
"देखो, बादल के ऊपर वहाँ एक भगवान है"
और मै ने जो बोला
अगर तुम वो नहीं करोगे,
जब तुम मरोगे,भगवान तुम्हे दँड देगा
और नरक मे भेजेगा|
और अगर तुम सब मेरे इस कहाँनी,
जो मै ने बनाया,पर यकीन करोगे
तब तुम मानदंडों और कानूनों
और मूल्यों का पालन करोगे,
और तुम अपना
सहयोग दे सकते|
ये सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है|
तुम एक चिंपांजी को कभी तुम्हे एक केला
देने के लिए नहीँ मना सकते
ये वादा कर्ते हुए कि "तुम जब मरोगे तो
तुम चिँपाँजियोँ का स्वर्ग जाओगे..."
(हँसी)
"... और तुम्हे बहुत सारे केले मिलेँगे
तुम्हारी अच्छे कामोँ के लिए|
इसलिए मुझे अब ये केला दे दो|"
कोई चिंपांजी कभी भी ये कहानी
पर यकीन नहीँ करेग|
सिर्फ़ मनुष्य ही ऐसे कहानियों
पर यकीन करते हैँ|
इसीलिए हम इस दुनिया पर काबू पा लिए
लेकिन चिंपांजी चिडियघरोँ और अनुसंधान
प्रयोगशालाओं मेँ ताले के पीछे है|
अब तुम ये मानलोगे कि हाँ,
आध्यात्मिक क्षेत्र मेँ मनुष्य एक ही कल्पना
मे यकीन कर एक दूसरे की समर्थन करते हैँ|
लाखोँ मे लोग इकट्टे होते है एक बडा गिरजा
या मस्जीद का निर्माण करने के लिए
या जिहाद या धर्मयुद्ध मे लडने के लिए क्योँ
कि वे सबलोग एक ही कहानी मे यकीन करते हैँ|
जो भगवान, स्वर्ग और नरक के बारे मे हैँ|
पर मै जिस पर जोर देना चाह्ता हूँ वह ये
है कि मनुष्य की दूसरे भडी समर्थन मे भी
ये ही काम करता है
ना कि सिर्फ आध्यात्मिक क्षेत्र|
उदाहरणार्थ, न्याय व्यवस्था मेँ देखिए,
ज्यादातर न्याय व्यवस्थाएँ आज दुनिया मेँ
मानव हक मेँ यकीन रखने पर आधारित हैँ|
लेकिन मानव हक क्या हैँ?
मानव हक, सिर्फ एक कहानी है, जो हमने
कल्पना की जैसे कि भगवान और स्वर्ग को.
वह तो वस्तुगत सच्चाई नहीँ हैँ|
ये कुछ होमो सेपियन्स के
बारे मेँ जैविक प्रभाव नहीँ हैँ|
एक मनुष्य को काटो,
खोलो, अंदर देखो,
तुमको दिल, किड्नी, न्यूराँन्स,
हारमोन, डी एन ए,
लेकिन तुम्हेँ कोई हक नहीँ दिखेगा|
ये हक कहानियोँ मेँ ही
खोज कर सकते है
जो हमलोगोँ ने, अविष्कार किया और
पिछले कुछ शताब्दोँ मेँ विस्तार किया|
ओ बहुत सकारात्मक कहानियाँ,
बहुत अच्छे कहानियाँ,
पर ओ भी कल्पनात्मक रचनाएँ
जो हमने आविष्कार किया है|
ये बात राजकीय क्षेत्र मेँ
भी लागू होती है,
आधुनिक राजकीय मेँ राष्ट्र और देश
दो बहुत ही खास कारक है|
पर राष्ट्र और देश क्या हैँ?
ओ वस्तुगत सच्चाई नहीँ है|
ये पर्वत वस्तुगत सच्चाई है|
आप उसको देख सकते, आप उसको छू सकते,
आप उसको कभी सूँघ सकते|
लेकिन एक देश या एक राष्ट्र
जैसे इज्राइल,या इरान,या फ्रांस
या जर्मनी,
ये एक कहानी है जो हम ने आविश्कार किया
और उसके साथ हम अत्यंत जुड गए
आर्थिक क्षेत्र मे भी
समान सूत्र चलता है|
विश्व अर्थव्यवस्था मे
महत्व पूर्ण आज हैँ
कंपनियों और निगमों
आज तुम मे से ज्यादा लोग शायद
कोई निगमोँ के लिये काम करते होंगे
जैसे गूगल,या टोयोटा या मैक डोनाल्ड्स
असल मे ये सब चीज क्या हैँ?
ओ जिन्हे वकील न्याय कल्पना बुलाते हैँ|
ओ कथायेँ शक्तिशाली मेधावी
जिसको हम वकील कहते हैँ
से आविष्कार किया गया और बनाए रखा|
(हँसी)
और निगम क्या करते है ?
ज्यादातर ओ पैसे बनाने की सोचते हैँ|
मगर येपैसे क्या है ?
फिर से,पैसे एक वस्तुगत सच्चाई नही है
,उस्को कोई वस्तुगत मूल्य नही है
एक हरा कागज का तुकडा ,डॉलर बिल लेलो
उस्की तरफ देखो,उसका कोई मूल्य नही है
तुम उसको नही खा सकते
तुम उसको नही पी सकते,
तुम उसको नही
पहन सकते
पर तब आये उसके साथ
ये उस्ताद कहानीकारों
बड़े बैंकरों,
वित्त मंत्रियों,
प्रधान मंत्रियों --
और ओ बहुत ही कायल कहानियाँ बता ते हैँ
"देखो तुम ये कागज़ का टुकडा
देखते हो?
ये असल मे 10 केले के लायक है"
और अगर मै उसको मानता हूँ,
तुम मानते हो,
और सबलोग
इसको मानते हैँ
ये सचमुच काम करेगा
मै इस कागज के बेकार टुकड़ा ले सकता हूँ
सूपर मार्केट जा सकता हूँ,
एक पूरा अजनबी ,जिसे मै इस के पहले
कभी मिला नही को दे सकता हू
और उसके बदले मे मिलेगा असली केले
जिसको मै खा सकता हूँ|
ये कुछ अद्भुत है|
तुम चिन्म्पांजीस के साथ
ये कभी नही कर सकते
चिन्म्पांजीस बेशक लेनदेन करते हैँ
"हाँ,तुम मुझे एक नारियल देदो
,मै तुम्हे एक केला दूंगा"
ओ काम कर सकता है
पर तुम मुझे एक् कागज के बेकार टुकड़ा दो
और तुम मुझे एक केला देने
की आशा करते हो
बिलकुल नहीं!
तुम क्या सोचते हो
मै एक मानव हूँ?
(हँसी)
पैसे असल में अत्यन्त सफल कहानी है
जो कभी मनुष्य द्वारा आविष्कार और कहा गया
क्योंकी ये ही एक कहानी है जिसमे
हर कोई विश्वास रखता है|
हर कोई भगवान मे विश्वास नही रखता,
हर कोई मानव अधिकार मे
विश्वास नही रखता
हर कोई राष्ट्रवाद मे विश्वास नही रखता
पर सबलोग पैसोँ मे,
डालर बिल् मे विश्वास रखते हैँ|
ओसामा बिन लदेन को भी लीजिए,
वे अमेरिकी राजनीति, अमेरिकी धर्म
और अमेरिकी संस्कृति
से नफ़रत करते थे,
पर उनको अमेरिकी डाँलर से
कोई एतराज नहीँ था|
वे उसे सही मे बहुत पसंद कर्ते थे|
(हँसी)
अब बात समाप्त करने के लिए;
हम मनुष्य दुनिया को काबू पाने के लिए
हम दोहरी वास्तविकता मेँ जीते है|
बाकी सब जानवर वस्तुगत
सच्चाई मेँ जीते है|
उनकी सच्चाई मेँ
वस्तुगत संस्थाओं,
जैसे कि नदियाँ और वृक्षों
और शेर और हाथियाँ हैँ|
हम मनुष्य, हम भी वस्तुगत
सच्चाई मेँ जीते हैँ|
हमारी दुनिया मेँ भी नदियाँ और वृक्षों
और शेर और हाथियाँ हैँ|
पर शताब्दों बीतने पर,
इस वस्तुगत सच्चाई के ऊपर कल्पनिक
जगत की दूसरी परत
निर्मण कर ली हैँ जो कि
कल्पनिक संस्थाओं,
जैसे कि दीशों, जैसे भगवान,
जैसे पैसे, जैसे निगमों|
और अद्भुत बात ये है कि
जैसे चरित्र सामने आया,
इस कल्प्निक सच्चाई और
भी शक्तिशाली बनगयी
इसलिए आज इस दुनिया में सबसे
ज्यादा शक्तिशाली बल
ये कल्पनिक वस्तु हैँ|
आज नदियाँ और वृक्षों और शेर और हाथियाँ
जीवित रहना काल्पनिक संस्थाओं
की निर्ण्यों और इच्छाओं पर निर्भर हैं,
जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका,
जैसे गूगल, जैसे वर्ल्ड बैंक --
जो संस्थाओं स्वयं की
कल्पना में ही मौजूद हैं|
धन्यवाद|
(तालियाँ)
ब्रूनो गियुस्सानि: युवल, आपकी
नई किताब बाहर आई|
सपियन्स के बाद, आपने
एक और किताब लिखा,
और वो हेब्रू में प्रकाशन हुई
पर अभीतक अनुवादित नहीं हुई
युवल नो हरारी: मैं अनुवाद कर
रहा हूँ जैसे हम बात कर रहे हैं|
बी जी: उस किताब मे,अगर मैँ सही समझा
आप तर्क कर रहे थे कि अद्भुत सफलताओं
हम अनुभव कर रहे हैँ
और संभावित हमारे जिंदगियोँ
को और बेह्तर बनाने के साथ साथ
उत्पन्न कर सकते हैँ
और मैं आप को दुहराता हूँ
"नया वर्ग और नया वर्ग संघर्ष
,जैसे औद्योगिक क्रांति ने किया"
आप इसका विवरण
दे सकते?
Y.N.H: हाँ औद्योगिक क्रांति में
हम ने एक नई शहरी सर्वहारा का खोज देखा|
और ज्यादतर रजकीय और पिछ्ले
दो सौ साल की सामाजिक चरित्र में
इस वर्ग के साथ क्या करना है और
नये सवाल और सुनहरे अवसर|
अब हम एक नये विशाल वर्ग के
बेकार लोगों को देख सकते है|
(हँसी)
जैसे कंप्यूटर्स कई क्षेत्रों मे ज्यादा
बेहतर और ज्यादा बेहतर होते है,
कंप्यूटर मनुष्य को मात करके उसको
ज्यादातर कार्यों मे
अनावश्यक बनाने की संभावना है|
और इक्कीस्वीं शताब्द की
बडा रजनीतिक और आर्थिक
प्रश्न ये है कि,
"हमें इंसानों की जरूरत क्या हैं?",
या तो कम से कम " हमें इतने सारे
मनुष्यों की जरूरतें क्या हैं?"
BG: आपके पुस्तक में इसका जवाब है?
YNH: अभी, ड्र्ग्स और कंप्यूटर खेलों के
माद्यम से उनको खुशी रखना ही
सबसे अच्छा अनुमान है...
(हँसी)
लेकिन ये आकर्षक भविष्य
जैसा नहीं दिखता है|
BG: ठीक है, महत्वपूर्ण आर्थिक
असमानता प्रक्रिया की बढ़ती
सबूत के बारे मे मूल रूप से
आपने पुस्तक मे और अभी जो
चर्चा की वो
एक शुरुआत ही है|
YNH: फिर, ये भविष्यवाणी नहीं है;
अपने आगे सभी प्रकार की
संभावनाओं को देखना है|
बेकार लोगों का नए वर्ग
का सृजन भी एक संभावना है|
मानव जाति को जैविक जातियों
विभाजन, जैसे कि धनिक
को उन्नत बनाकर आभासी देवताओं
के रूप मे और गरीबों को
अधोगति कड़ाके बेकार लोगों जैसा
दिखाने की भी दूसरी
संभावना है|
BG: मुझे लगता है कि और एक टेड टाक
अगले एक दो सालों मे हो सकत है|
धन्यवाद युवल, यात्रा करने के लिए|
वै एन हेच: धन्यवाद!
(तालियाँ)