WEBVTT 00:00:00.112 --> 00:00:05.390 RSA Animate 00:00:05.390 --> 00:00:09.427 ईऐन मैकगिल्च्रिस्ट एक विभाजित मस्तिष्क और पश्चिमी सभ्यता का जनन 00:00:09.427 --> 00:00:14.715 मस्तिष्क का विभाजन एक ऐसा विषय है जिसके बारे में न्यूरो-साइंटिस्ट्स अब बात करना पसंद नहीं करते थे 00:00:14.715 --> 00:00:18.140 यह साठ और सत्तर के दशक में काफी लोकप्रिय विषय था 00:00:18.140 --> 00:00:21.380 पर सबसे पहले मस्तिस्क-विभाजन ऑपरेशन के बाद 00:00:21.380 --> 00:00:24.780 और यह एक तरह से लोकप्रिय बना 00:00:24.780 --> 00:00:28.860 जिसको उसके बाद गलत साबित कर दिया गया था 00:00:28.860 --> 00:00:32.394 ऐसा नहीं है की मस्तिस्क का एक हिस्सा तर्क नहीं करता 00:00:32.394 --> 00:00:35.167 और दूसरा भावनाएं 00:00:35.167 --> 00:00:37.641 दोनों गहराई से दोनों काम में शामिल हैं 00:00:37.641 --> 00:00:41.180 ऐसा नहीं है की भाषा केवल बाएं हिस्से में होती है 00:00:41.180 --> 00:00:44.703 परन्तु उसके ख़ास पहलु दायें में होते हैं 00:00:44.703 --> 00:00:47.783 ऐसा नहीं है की दिखने की शमता केवल दायें भाग में होती है 00:00:47.798 --> 00:00:49.306 बाएं भाग में भी काफी है 00:00:49.321 --> 00:00:52.776 और इसी वजह से लोगों ने इसके बारे में बातचीत करना बंद कर दिया है 00:00:52.776 --> 00:00:55.075 परन्तु ऐसा करने से असल समस्या ख़त्म नहीं हो जाएगी 00:00:55.075 --> 00:00:57.740 क्यूंकि यह अंग [मष्तिस्क] जो की हर तरह से संपर्क बनाने का काम करता है 00:00:57.740 --> 00:01:00.397 पूरी तरह से विभाजित है 00:01:00.397 --> 00:01:02.394 यह हम सब के अन्दर है 00:01:02.394 --> 00:01:06.340 और यह मनुष्य के विकास के साथ साथ और विभाजित होता गया है 00:01:06.340 --> 00:01:12.380 मस्तिष्क के महासंयोजिका और गोलार्ध के आयतन का अनुपात मनुष्य के विकास के साथ साथ कम होता जा रहा है और 00:01:12.380 --> 00:01:19.980 यह साजिश और गहरी होती जाती है जब हमको यह समझ में आता ही की महासंयोजिका का अगर सबसे प्रमुख काम नहीं तो महत्पूर्ण काम 00:01:19.980 --> 00:01:23.580 दुसरे गोलार्ध के सामने बाधा डालना है 00:01:23.580 --> 00:01:28.100 इससे हमारी यह समझ में आता है की दोनों गोलार्ध को एक दुसरे से अलग रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है 00:01:28.100 --> 00:01:32.540 और यही नहीं, हमारा मस्तिस्क बहुत ज़यादा असममित है [मस्तिस्क का चित्र - याकोव्लेवियन टार्क - मस्तिस्क नीचे से ] 00:01:32.540 --> 00:01:38.740 इस्का बायीं तरफ का पिछला भाग और दाई तरफ का आगे का भाग चोडा होता है और यह थोडा आगे और थोडा पीछे की तरफ निकला हुआ होता है 00:01:38.740 --> 00:01:45.026 यह कुछ इस तरह है की किस्सी ने हमारे मस्तिष्क को नीचे से पकड़ा हो और दक्षिणावर्त दिशा में झटके के साथ मोड़ दिया हो 00:01:45.026 --> 00:01:47.232 यह सब किस बारे में है? 00:01:47.232 --> 00:01:51.342 अगर किस्सी को मष्तिष्क में और जगह चाहिए होती तो वह इसको संतुलित रूप से करता। हमारी खोपड़ी संतुलित है। 00:01:51.342 --> 00:01:53.620 वह डब्बा जिसमे यह सब कुछ है, संतुलित है । 00:01:53.620 --> 00:01:58.460 फिर क्यूँ हम एक गोलार्ध के कुछ हिस्से को और दुसरे गोलार्ध के कुछ हिस्से को समझने की कोशिश कर रहे हैं... 00:01:58.460 --> 00:02:00.540 जब तक हमको यह नहीं लगता की वह अलग अलग कार्य कर रहे हैं| 00:02:00.540 --> 00:02:01.660 वह ऐसा क्या कर रहे हैं ? 00:02:01.660 --> 00:02:03.700 ऐसा नहीं है की मनुष्य प्रजाति के ही मष्तिष्क विभाजित होते हैं । 00:02:03.700 --> 00:02:07.620 चिड़िया और जानवरों के भी ऐसे ही विभाजित होते हैं । 00:02:07.620 --> 00:02:09.540 मुझे लगता है की इस पर विचार करने का सबसे आसन तरीका यही है की हम सोचे 00:02:09.540 --> 00:02:15.835 एक परिंदा कंकडो के बीच में एक बीज को खाने की कोशिश कर रहा है । 00:02:15.835 --> 00:02:20.825 उसका ध्यान पूरी तरह से उस छोटे से बीज पर है 00:02:20.825 --> 00:02:25.016 और वह उसको उन कंकडो के बीच में आराम से खा पा रहा है। 00:02:25.016 --> 00:02:27.548 परन्तु उसको अगर जिंदा रहना है तो खुद को चोकन्ना रखना होगा कुछ दुसरे काम के लिए । 00:02:27.548 --> 00:02:37.200 उसको उसके दुश्मन, दोस्त, और उसके आस पास क्या हो रहा है, इन सब बातों पर भी नज़र रखनी होगी। 00:02:37.200 --> 00:02:43.879 ऐसा लगता है की पक्षी और जानवर अपने बाए गोलार्ध को काफी भरोसे से इस्तेमाल करते है 00:02:43.879 --> 00:02:49.936 उस चोकंनेपन के लिए जो कितना ज़रूरी है उनको पहले से ही मालूम है। 00:02:49.936 --> 00:02:53.264 और अपना दांया गोलार्ध बहुत सतर्क रखते हैं 00:02:53.264 --> 00:02:56.422 जिसको की बिना किस्सी ज़िम्मेदारी के साथ किया जा सकता है । 00:02:56.422 --> 00:02:59.780 वह अपना दायाँ भाग इस दुनिया से जुड़ने के लिए भी प्रयोग करते हैं । 00:02:59.780 --> 00:03:04.020 तो वह अपने साथी को खोजते हैं और उनसे सम्बन्ध बनाते हैं, 00:03:04.020 --> 00:03:06.638 अपना दायाँ गोलार्ध को इस्तेमाल कर के। 00:03:06.638 --> 00:03:09.100 पर फिर हम इंसानों पर आते हैं । 00:03:09.100 --> 00:03:14.060 यह सत्य है की मनुष्य में भी इस तरह का ध्यान एक बहुत बड़ा फर्क है | 00:03:14.060 --> 00:03:20.344 मनुष्य का दायाँ गोलार्ध उनको सतत, व्यापक, खुलापन , सतर्कता देता है 00:03:20.344 --> 00:03:25.900 और बायाँ गोलार्ध उनको संकीर्ण, तेजी से ध्यान केन्द्रित करता है । 00:03:25.900 --> 00:03:31.220 जो मनुष्य की अपना दायाँ गोलार्ध खो चुके होते हैं, उनकी ध्यान की खिड़की संकुचित होने का रोग होता है । 00:03:31.220 --> 00:03:33.780 [यह रोग इतना भीषण हो सकता है की उसको अप्पने बाएं भाग के होने का भी पता नहीं होगा] 00:03:33.780 --> 00:03:36.780 परन्तु मनुष्य अलग होते हैं । 00:03:36.780 --> 00:03:38.620 मनुष्य के बारे में सबसे एहम बात उनके ललाट लोब हैं । 00:03:38.620 --> 00:03:44.380 मस्तिस्क के इस भाग का क्या कार्य हो सकता है ? मस्तिस्क के बाकी हिस्से को रोकना । 00:03:44.380 --> 00:03:47.340 जो तत्काल हो रहा है उससे रोकने के लिए । 00:03:47.340 --> 00:03:52.100 तो इस अनुभव की तुरंत्ता को छोड़कर समय और आयाम में अगर थोडा पीछे जाकर देखें । 00:03:52.100 --> 00:03:54.940 यह हमको दो चीज़े समझने में मदद करेगा। 00:03:54.940 --> 00:03:59.020 यह हमको उन कामों को करने में मदद करेगा जिनको न्यूरो-वैज्ञानिक बोलते हैं की हम करने में सक्षम हैं... 00:03:59.020 --> 00:04:03.660 जो की सामने वाले को चित्त कर देना, "उससे ज्यादा चालक होना" है। 00:04:03.660 --> 00:04:07.945 और यह मेरे लिए बहुत रोचक है क्यूंकि यह एकदम सत्य है। 00:04:07.945 --> 00:04:12.020 हम लोग दुसरे लोगों के दिमाग और इरादे पढ़ सकते हैं अगर हमारा इरादा उनको धोखा देने का है। 00:04:12.020 --> 00:04:21.100 पर जो चीज़ हम यहाँ पर बताना भूल गए हैं वह यह की इसके साथ साथ हमारा दिमाग हमको दुसरे के प्रति पहली बार सहानुभूति पैदा करता है, 00:04:21.100 --> 00:04:24.660 क्यूंकि दुनिया से हमारी कुछ दूरी बनी हुई होती है । 00:04:24.660 --> 00:04:26.940 अगर हम इसके एकदम खिलाफ है तो हम हर किस्सी को काटते हैं, 00:04:26.940 --> 00:04:31.380 पर अगर हम थोडा सा यह विचार लायें की सामने वाला भी मेरी तरह ही एक व्यक्ति है, 00:04:31.380 --> 00:04:36.140 जिसके मेरी तरह कुछ भाव्यन्यें, मूल्य, और इच्छाएं भी हो सकती है, 00:04:36.140 --> 00:04:38.820 तब हम उससे एक रिश्ता बना सकते हैं। 00:04:38.820 --> 00:04:40.383 यहाँ पर एक ज़रूरी दूरी है जैसा की पढ़ते समय होती है। 00:04:40.383 --> 00:04:43.935 बहुत पास और कुछ भी दिखाई नहीं देगा, बहुत दूर और कुछ भी पढने में नहीं आएगा।to 00:04:43.935 --> 00:04:51.020 तो इस संसार से दूरी, जो की हमको रचनात्मक बनाती है, तब तक ठीक है जब तक, 00:04:51.020 --> 00:04:53.020 हम दोनों छल पूर्ण 00:04:53.020 --> 00:04:54.420 इरेस्मस जैसे हैं| 00:04:54.420 --> 00:05:00.004 अब धूर्त पूर्ण काम करने के लिए, पूरे विश्व में हेर फेर करने के लिए, जो की बहुत ज़रूरी है, 00:05:00.004 --> 00:05:03.620 हमको संसार से सहभागिता करनी होगी और उसको अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना होगा। 00:05:03.620 --> 00:05:05.832 हम शुरुआत भोजन से करते हैं। 00:05:05.832 --> 00:05:12.300 पर तभी हम अपने बाएं गोलार्द की समझ से अपने दायें हाथ से चीज़ों को पकड़ते हैं और उनसे औज़ार बनाते हैं।