RSA Animate ईऐन मैकगिल्च्रिस्ट एक विभाजित मस्तिष्क और पश्चिमी सभ्यता का जनन मस्तिष्क का विभाजन एक ऐसा विषय है जिसके बारे में न्यूरो-साइंटिस्ट्स अब बात करना पसंद नहीं करते थे यह साठ और सत्तर के दशक में काफी लोकप्रिय विषय था पर सबसे पहले मस्तिस्क-विभाजन ऑपरेशन के बाद और यह एक तरह से लोकप्रिय बना जिसको उसके बाद गलत साबित कर दिया गया था ऐसा नहीं है की मस्तिस्क का एक हिस्सा तर्क नहीं करता और दूसरा भावनाएं दोनों गहराई से दोनों काम में शामिल हैं ऐसा नहीं है की भाषा केवल बाएं हिस्से में होती है परन्तु उसके ख़ास पहलु दायें में होते हैं ऐसा नहीं है की दिखने की शमता केवल दायें भाग में होती है बाएं भाग में भी काफी है और इसी वजह से लोगों ने इसके बारे में बातचीत करना बंद कर दिया है परन्तु ऐसा करने से असल समस्या ख़त्म नहीं हो जाएगी क्यूंकि यह अंग [मष्तिस्क] जो की हर तरह से संपर्क बनाने का काम करता है पूरी तरह से विभाजित है यह हम सब के अन्दर है और यह मनुष्य के विकास के साथ साथ और विभाजित होता गया है मस्तिष्क के महासंयोजिका और गोलार्ध के आयतन का अनुपात मनुष्य के विकास के साथ साथ कम होता जा रहा है और यह साजिश और गहरी होती जाती है जब हमको यह समझ में आता ही की महासंयोजिका का अगर सबसे प्रमुख काम नहीं तो महत्पूर्ण काम दुसरे गोलार्ध के सामने बाधा डालना है इससे हमारी यह समझ में आता है की दोनों गोलार्ध को एक दुसरे से अलग रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है और यही नहीं, हमारा मस्तिस्क बहुत ज़यादा असममित है [मस्तिस्क का चित्र - याकोव्लेवियन टार्क - मस्तिस्क नीचे से ] इस्का बायीं तरफ का पिछला भाग और दाई तरफ का आगे का भाग चोडा होता है और यह थोडा आगे और थोडा पीछे की तरफ निकला हुआ होता है यह कुछ इस तरह है की किस्सी ने हमारे मस्तिष्क को नीचे से पकड़ा हो और दक्षिणावर्त दिशा में झटके के साथ मोड़ दिया हो यह सब किस बारे में है? अगर किस्सी को मष्तिष्क में और जगह चाहिए होती तो वह इसको संतुलित रूप से करता। हमारी खोपड़ी संतुलित है। वह डब्बा जिसमे यह सब कुछ है, संतुलित है । फिर क्यूँ हम एक गोलार्ध के कुछ हिस्से को और दुसरे गोलार्ध के कुछ हिस्से को समझने की कोशिश कर रहे हैं... जब तक हमको यह नहीं लगता की वह अलग अलग कार्य कर रहे हैं| वह ऐसा क्या कर रहे हैं ? ऐसा नहीं है की मनुष्य प्रजाति के ही मष्तिष्क विभाजित होते हैं । चिड़िया और जानवरों के भी ऐसे ही विभाजित होते हैं । मुझे लगता है की इस पर विचार करने का सबसे आसन तरीका यही है की हम सोचे एक परिंदा कंकडो के बीच में एक बीज को खाने की कोशिश कर रहा है । उसका ध्यान पूरी तरह से उस छोटे से बीज पर है और वह उसको उन कंकडो के बीच में आराम से खा पा रहा है। परन्तु उसको अगर जिंदा रहना है तो खुद को चोकन्ना रखना होगा कुछ दुसरे काम के लिए । उसको उसके दुश्मन, दोस्त, और उसके आस पास क्या हो रहा है, इन सब बातों पर भी नज़र रखनी होगी। ऐसा लगता है की पक्षी और जानवर अपने बाए गोलार्ध को काफी भरोसे से इस्तेमाल करते है उस चोकंनेपन के लिए जो कितना ज़रूरी है उनको पहले से ही मालूम है। और अपना दांया गोलार्ध बहुत सतर्क रखते हैं जिसको की बिना किस्सी ज़िम्मेदारी के साथ किया जा सकता है । वह अपना दायाँ भाग इस दुनिया से जुड़ने के लिए भी प्रयोग करते हैं । तो वह अपने साथी को खोजते हैं और उनसे सम्बन्ध बनाते हैं, अपना दायाँ गोलार्ध को इस्तेमाल कर के। पर फिर हम इंसानों पर आते हैं । यह सत्य है की मनुष्य में भी इस तरह का ध्यान एक बहुत बड़ा फर्क है | मनुष्य का दायाँ गोलार्ध उनको सतत, व्यापक, खुलापन , सतर्कता देता है और बायाँ गोलार्ध उनको संकीर्ण, तेजी से ध्यान केन्द्रित करता है । जो मनुष्य की अपना दायाँ गोलार्ध खो चुके होते हैं, उनकी ध्यान की खिड़की संकुचित होने का रोग होता है । [यह रोग इतना भीषण हो सकता है की उसको अप्पने बाएं भाग के होने का भी पता नहीं होगा] परन्तु मनुष्य अलग होते हैं । मनुष्य के बारे में सबसे एहम बात उनके ललाट लोब हैं । मस्तिस्क के इस भाग का क्या कार्य हो सकता है ? मस्तिस्क के बाकी हिस्से को रोकना । जो तत्काल हो रहा है उससे रोकने के लिए । तो इस अनुभव की तुरंत्ता को छोड़कर समय और आयाम में अगर थोडा पीछे जाकर देखें । यह हमको दो चीज़े समझने में मदद करेगा। यह हमको उन कामों को करने में मदद करेगा जिनको न्यूरो-वैज्ञानिक बोलते हैं की हम करने में सक्षम हैं... जो की सामने वाले को चित्त कर देना, "उससे ज्यादा चालक होना" है। और यह मेरे लिए बहुत रोचक है क्यूंकि यह एकदम सत्य है। हम लोग दुसरे लोगों के दिमाग और इरादे पढ़ सकते हैं अगर हमारा इरादा उनको धोखा देने का है। पर जो चीज़ हम यहाँ पर बताना भूल गए हैं वह यह की इसके साथ साथ हमारा दिमाग हमको दुसरे के प्रति पहली बार सहानुभूति पैदा करता है, क्यूंकि दुनिया से हमारी कुछ दूरी बनी हुई होती है । अगर हम इसके एकदम खिलाफ है तो हम हर किस्सी को काटते हैं, पर अगर हम थोडा सा यह विचार लायें की सामने वाला भी मेरी तरह ही एक व्यक्ति है, जिसके मेरी तरह कुछ भाव्यन्यें, मूल्य, और इच्छाएं भी हो सकती है, तब हम उससे एक रिश्ता बना सकते हैं। यहाँ पर एक ज़रूरी दूरी है जैसा की पढ़ते समय होती है। बहुत पास और कुछ भी दिखाई नहीं देगा, बहुत दूर और कुछ भी पढने में नहीं आएगा।to तो इस संसार से दूरी, जो की हमको रचनात्मक बनाती है, तब तक ठीक है जब तक, हम दोनों छल पूर्ण इरेस्मस जैसे हैं| अब धूर्त पूर्ण काम करने के लिए, पूरे विश्व में हेर फेर करने के लिए, जो की बहुत ज़रूरी है, हमको संसार से सहभागिता करनी होगी और उसको अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना होगा। हम शुरुआत भोजन से करते हैं। पर तभी हम अपने बाएं गोलार्द की समझ से अपने दायें हाथ से चीज़ों को पकड़ते हैं और उनसे औज़ार बनाते हैं।