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Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha

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    सृष्टि के आरंभ में था लोगोस (नाद/शब्द),
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    महाविस्फोट (बिग बैंग), प्रारंभिक ओम् (ओंकार नाद) ।
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    महाविस्फोटक सिद्धांत के अनुसार भौतिक सर्पिल
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    ब्रह्माण्ड एक अकल्पनीय गर्म और सघन एकल
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    बिंदु से प्रकट हुआ जो विलक्षण कहलाता है- पिन
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    की नोक से करोड़ों गुना सूक्ष्म ।
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    क्यों और कैसे, यह स्पष्ट नहीं । कोई वस्तु
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    जितनी रहस्मयमय हो, हमें लगता है
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    हम उसे जान गए हैं।
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    ऐसा सोचा गया कि अंततोगत्वा गुरुत्वाकर्षण
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    या तो विस्तार को धीमा करेगा
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    या ब्रह्माण्ड के लिए विकट स्थिति पैदा करेगा ।
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    लेकिन हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन की छवियों से
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    पता चलता है कि ब्रह्माण्ड के विस्तार
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    में वास्तव में तेजी आई । ज्यों-ज्यों यह महाविस्फोट से बाहर आया,
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    इसमें तेजी से विस्तार होने लगा । पता नहीं कैसे, पर ब्रह्माण्ड में भौतिकी के पूर्वानुमान से कहीं अधिक
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    द्रव्यमान है। लापता द्रव्यमान की खोज में भौतिकविद मानते हैं कि ब्रह्माण्ड में केवल 4% परमाणु खनिज है,
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    जिसे हम सामान्य खनिज कहते हैं । ब्रह्माण्ड में 23% अविज्ञ पदार्थ है
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    और 73% निष्क्रिय ऊर्जा है – जिस पर पहले हमने रिक्त स्थान के रूप में विचार किया था ।
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    यह अदृश्य तंत्रिका तंत्र की तरह है जो सभी वस्तुओं को संबद्ध करते हुए समग्र
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    ब्रह्माण्ड में संचालित होता है ।
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    प्राचीन वैदिक शिक्षकों ने सिखाया कि नाद
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    ब्रहृम है-ब्रह्माण्ड कंपायमान है ।
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    कंपायमान क्षेत्र समस्त मूल आध्यात्मिक अनुभव
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    और वैज्ञानिक अन्वेषण का आधार है ।
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    यह ऊर्जा का वही क्षेत्र है जिसे संतों,
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    बुद्धजनों, योगियों, मनीषियों, पादरियों, शमन और मठवासियों ने अपने
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    भीतर खोज कर महसूस किया । इसे संपूर्ण इतिहास में आकाश, प्रारंभिक ओम्,
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    इंद्र का रत्नजाल, खगोल का संगीत और
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    न जाने कितने हज़ारों अन्य नाम दिए गए ।
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    यह सभी धर्मों का आधार है ।
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    और यह हमारे भीतरी और बाहरी दुनिया की संपर्क कड़ी है।
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    तीसरी सदी में महायान बौद्ध धर्म में ब्रह्माण्ड-विज्ञान
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    की जो व्याख्या की गई है, वह आज की उन्नत
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    भौतिकी से भिन्न नहीं है ।
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    इंद्र का रत्नजाल अति प्राचीन वैदिक शिक्षा
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    को परिभाषित करने के लिए प्रयुक्त एक उपमा है जो ब्रह्माण्ड
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    की संरचना को स्पष्ट करता है ।
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    देवताओं के राजा इंद्र ने सूर्य को जन्म दिया और
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    वायु एवं जल को गतिशील बनाया ।
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    मकड़ी के जाल की कल्पना कीजिए जो सभी दिशाओं में फैला होता है ।
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    जाला, ओस की बूंदों से बना होता है और प्रत्येक
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    बूंद में जल की अन्य सभी बूंदों का प्रतिबिंब होता
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    है और प्रत्येक प्रतिबिंबित ओस की बूंद में आप
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    अन्य सभी ओस की बूदों का प्रतिबिंब देख सकेंगे ।
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    उस प्रतिबिंब में, इसी प्रकार पूरा जाल अनंत
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    सीमा तक फैला होता है ।
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    इंद्र के जाल को स्वलिखित ब्रह्माण्ड के रूप में वर्णित किया जा
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    सकता है जहां प्रकाश की क्षणिक झलक में
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    भी पूर्णता का एहसास होता है ।
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    सर्बियाई अमेरिकी वैज्ञानिक, निकोला टेस्ला
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    को कभी-कभी "20वीं सदी की खोज करने वाले व्यक्ति"
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    का श्रेय दिया जाता है ।
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    टेस्ला प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की खोज तथा कई
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    अन्य सृजनों के लिए विख्यात थे,
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    जो आज हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं ।
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    प्राचीन वैदिक परंपराओं में अपनी रुचि के कारण,
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    टेस्ला पूर्वी और पश्चिमी मॉडल, दोनों के माध्यम से विज्ञान
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    को समझने की अदि्वतीय स्थिति में था ।
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    सभी महान वैज्ञानिकों की तरह टेस्ला ने न
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    केवल बाहरी संसार के रहस्य को गहराई से देखा,
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    बल्कि अपने भीतर की गहराई में भी झाँका।
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    प्राचीन योगियों की तरह, टेस्ला ने स्वर्गिक अनुभव
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    को वर्णित करने के लिए आकाश शब्द का प्रयोग किया,
    जो सभी वस्तुओं में प्रसरित है ।
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    टेस्ला ने योगी स्वामी विवेकानंद के साथ अध्ययन किया,
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    जिन्होंने भारत की प्राचीन शिक्षा को पश्चिम तक पहुंचाया ।
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    वैदिक शिक्षाओं में आकाश स्वयं में शून्य है;
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    वह शून्य जिसमें अन्य तत्व भरे हैं,
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    जो कंपन सहित उपस्थित रहते हैं ।
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    दोनों अभिन्न हैं । आकाश यिन है और प्राण यांग ।
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    एक आधुनिक संकल्पना जिससे आकाश अथवा प्राथमिक
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    अस्तित्व की अवधारणा का हमें पता चल सकता है, वह है अंश की अद्भुत कल्पना ।
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    1980 के दशक के बाद ही कंप्यूटर के क्षेत्र में प्रगति ने प्रकृति के ढांचे
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    की गणितीय कल्पना कर उसे वास्तविक
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    रूप में पहचानने का हमें अवसर दिया ।
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    `फ्रैक्टल` अर्थात अंश शब्द का गठन 1980
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    में गणितज्ञ बेनॉयट मेंडेलब्रॉट ने किया
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    जब उन्होंने कुछ गणितीय समीकरणों का अध्ययन
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    करने पर पाया कि एक सीमित
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    दायरे में दोहराने पर वे अंतहीन गणितीय
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    अथवा ज्योमितीय रूप में बदलती हैं ।
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    वे सीमित हैं लेकिन साथ ही अनंत भी ।
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    एक अंश एक स्थूल ज्यामितीय आकार है,
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    जिसे अनेक हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है,
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    जिनमें से प्रत्येक लगभग संपूर्ण आकार का संक्षिप्त प्रतिरूप है –
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    एक गुण जिसे “समरूपता“ कहा जाता है
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    मेंडेलब्राट के `अंश` को ईश्वर के अंगूठे
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    की छाप कहा गया है ।
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    आप प्रकृति की स्वयं निर्मित कलाकृति देख रहे हैं ।
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    यदि आप मेंडेलब्राट की आकृति को एक विशिष्ट तरीक़े से
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    घुमाएँ तो यह किसी हिन्दू देवता अथवा बुद्ध के समान दिखाई देगा ।
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    इसे `बुद्धब्राट आकार` नाम दिया गया है ।
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    यदि आप किन्हीं प्राचीन कला और स्थापत्य कला के रूप देखें,
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    आप पाएंगे कि मानवों ने ज़माने से सौंदर्य और
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    पवित्रता को फ़्रैक्टल पैटर्न के साथ जोड़ा है ।
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    अत्यंत जटिल, फिर भी कण-कण में
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    उसकी पूर्णता का बीज है ।
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    फ्रैक्टल्स यानी अंशों ने सृष्टि और इसकी संचालन प्रक्रिया पर
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    गणितज्ञों का दृष्टिकोण बदला है ।
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    आवर्धन के हर नए स्तर के साथ,
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    मूल से भिन्नता उजागर होती हैं ।
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    जब हम फ्रैक्टल के एक स्तर से दूसरे स्तर पर पारगमन करते
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    हैं तो सतत परिवर्धन एवं रूपांतरण घटित होता है ।
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    यह रूपांतरण ब्रह्माण्डीय सर्पिल गति में होता है ।
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    दिक्काल के सांचे में सन्निहित बुद्धिमता ।
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    फ्रैक्टल्स यानी `अंश` सहज रूप से अस्तव्यस्त - शब्द एवं नियम से भरपूर हैं।
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    हमारे मस्तिष्क किसी आकार को जब पहचानते या परिभाषित करते हैं,
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    तो हमारा ध्यान उस पर यूं केन्द्रित होता है मानो वह कोई वस्तु हो ।
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    हम आकारों को देखी गई सुंदरता के अनुरूप ढूंढते हैं,
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    किन अपने मस्तिष्क में इन आकारों को बनाए
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    रखने के क्रम में हमें शेष फ्रैक्टल्स हटा देने चाहिए ।
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    फ्रैक्टल्स को चेतनाओं में समाविष्ट करना,
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    इसका संचालन सीमित करना है ।
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    ब्रह्माण्ड में समस्त ऊर्जा तटस्थ,
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    शाश्वत, आयामहीन है ।
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    हमारी अपनी रचनात्मकता और आकार की पहचान क्षमता,
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    सूक्ष्म जगत एवं ब्रह्माण्ड के बीच की कड़ी है ।
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    लहरों का शाश्वत जगत और ठोस वस्तुओं का जगत ।
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    चिंतन की स्वभाविक सीमाओं में
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    अवलोकन करना एक सृजनात्मकता है ।
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    हम वर्गीकरण द्वारा नाम देकर,
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    चीजों के ठोसपन का भ्रम पैदा करते हैं ।
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    दार्शनिक कीर्केगार्ड ने कहा,
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    "यदि आप मेरा नाम रखते हैं तो आप मुझे नकारते हैं ।
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    मेरा नाम रखकर, वर्गीकरण कर, आप उन सभी
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    अन्य चीजों को नकार देते हैं जिनकी मुझमें होने की संभावना हो सकती है ।
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    आप कण को नाम देकर उसकी वस्तु
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    के रूप में व्याख्या कर देते हैं,
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    आप उसके अस्तित्व को परिभाषित
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    कर उसका सृजन कर देते हैं ।"
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    सृजनात्मकता हमारी सर्वोच्च प्रकृति है ।
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    वस्तुओं के सृजन से, ऐसी स्थिति बनती
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    है जब चीजों में ठोसपन का भ्रम हो ।
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    आइन्सटीन पहला वैज्ञानिक था जिसने महसूस
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    किया कि जिस अंतरिक्ष को हम शून्य मानते हैं,
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    वह ऐसा है नहीं, उसकी विशेषताएं हैं,
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    अंतरिक्ष की प्रकृति अथाह
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    आंतरिक ऊर्जा से भरपूर है ।
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    प्रतिष्ठित भौतिक शास्त्री रिचर्ड फैनमेन ने एक बार कहा,
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    "अंतरिक्ष के अकेले क्यूबिक मीटर में इतनी ऊर्जा है
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    कि विश्व के सभी महासागर उबल सकें ।"
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    गंभीर ध्यानी जानते हैं कि अधिकतम
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    ऊर्जा मौन में है ।
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    बुद्ध के पास इस तात्विक सार के लिए एक और शब्द था
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    जिसे उन्होंने `कल्प` कहा, जो सूक्ष्म कणों या तरंगिकाओं
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    की तरह हैं और प्रति सेकंड खरबों बार उत्पन्न
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    व लुप्त होती हैं । इस अर्थ में वास्तविकता,
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    स्वलिखित फ़िल्म कैमरे में तेज़ी से गतिशील फ़्रेमों की शृंखला
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    द्वारा सातत्य का भ्रम पैदा करने के समान है ।
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    चेतना के पूर्णतया स्थिर होने पर यह भ्रम समझा
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    जा सकता है चूंकि यह चेतना ही है जो
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    भ्रम को संचालित करती है ।
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    पूर्वी प्राचीन परंपराओं में,
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    सदियों से यह समझा गया है कि सब
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    कुछ कंपायमान है ।
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    `नाद ब्रह्म`-ब्रह्माण्ड ध्वनि है ।
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    `नाद` शब्द का अर्थ है ध्वनि या कंपन और
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    `ब्रह्म` ईश्वर का नाम है ।
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    इसके साथ ही ब्रह्मा, ब्रह्माण्ड या ईश है और ईश सृजक है ।
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    कलाकार और कला अभिन्न हैं ।
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    उपनिषदों में,
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    जोकि प्राचीन भारत के प्राचीनतम मानव जाति के अभिलेख हैं,
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    यह कहा गया है "कमल पर बैठे सृजक ब्रह्मा
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    के नेत्र खुलने पर जगत अस्तित्व में आता है ।
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    ब्रहृमा के नेत्र मूंदते ही जगत
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    का अस्तित्व मिट जाता है ।
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    "प्राचीन रहस्यवादियों, योगियों और ॠषियों
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    ने माना कि चेतना का
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    मूल एक आधार है ।
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    आक्षिक क्षेत्र अथवा आक्षिक अभिलेख,
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    जहां विगत, वर्तमान और भविष्य की सभी जानकारियां,
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    सभी अनुभव अस्तित्व में हैं और सदा रहती हैं ।
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    यह वही क्षेत्र अथवा आव्यूह है जहां
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    से सभी वस्तुएं प्रकट होती हैं ।
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    उप-परमाणु अणुओं से लेकर आकाशगंगा,
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    नक्षत्र, सितारे और समस्त जीवन चक्र तक।
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    आप इसे समग्रता में कभी
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    नहीं देख पाते, क्योंकि यह कंपन परत-दर-परत
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    पर बना है और निरंतर
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    परिवर्तनशील है, आकाश से जानकारी का आदान-प्रदान कर रही हैं।
  • 15:05 - 15:17
    वृक्ष जल ग्रहण कर रहा है सूर्य, वायु,
    182
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    वर्षा तथा पृथ्वी से ।
  • 15:17 - 15:19
    वस्तु के भीतर और बाहर ऊर्जा का संसार संचालित
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    है जिसे हम वृक्ष कहते हैं ।
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    जब विचारशील मस्तिष्क शांत हो,
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    तो आप यथार्थ को वास्तविक रूप में देखते हैं ।
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    सभी अवस्थाएं एक साथ ।
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    वृक्ष एवं आकाश और पृथ्वी तथा वर्षा
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    एवं सितारे पृथक नहीं ।
  • 15:36 - 15:41
    जीवन और मृत्यु हमारी अपनी या किसी अन्य की, पृथक नहीं हैं ।
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    ठीक वैसे ही जैसे पर्वत और वादियां अभिन्न हैं ।
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    अमेरिका की आदिवासी तथा अन्य देशज
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    परंपराओं में कहा गया है कि प्रत्येक
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    वस्तु में जीव है जिसे अन्य तरीक़े से कहा
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    जा सकता है कि प्रत्येक वस्तु
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    स्पंदनशील स्रोत से संबद्ध है ।
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    सर्वत्र एक चेतना, एक व्यापकता,
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    एक ऊर्जा विद्यमान है ।
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    यह व्याप्ति आपके आसपास नहीं,
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    बल्कि यह आपके माध्यम से घटित हो रही है और आपके
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    वास्तविक स्वरूप के अनुसार घटित हो रही है ।
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    आप ब्रह्मांड का अंश हैं ।
  • 16:19 - 16:25
    आप नेत्र हैं जिनके माध्यम से सृजक स्वयं को देखता है ।
  • 16:25 - 16:27
    स्वप्न से बाहर आने पर आप महसूस करते हैं कि
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    स्वप्न में सब कुछ आप ही थे ।
  • 16:30 - 16:32
    आप इसे सृजित कर रहे थे।
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    तथाकथित वास्तविक जीवन अलग नहीं है।
  • 16:34 - 16:38
    प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक वस्तु आप हैं।
  • 16:38 - 16:46
    प्रत्येक नेत्र की चेतन दृष्टि, प्रत्येक चट्टान के नीचे छिपे
  • 16:46 - 17:07
    प्रत्येक अणु के भीतर तक देखती है ।
  • 17:07 - 17:09
    सीईआरएन, कण भौतिक शास्त्र की यूरोपियन
  • 17:09 - 17:12
    प्रयोगशाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधानकर्ता
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    इस क्षेत्र के लिए अनुसंधान कर रहे हैं,
  • 17:13 - 17:16
    जो सभी वस्तुओं में विद्यमान हैं ।
  • 17:16 - 17:18
    लेकिन इसके भीतर झांकने की बजाय वे
  • 17:18 - 17:24
    बाहरी भौतिक संसार देखते हैं ।
  • 17:24 - 17:26
    जेनेवा, स्विट्जरलैंड के सीईआरएन की प्रयोगशाला
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    में अनुसंधानकर्ताओं ने घोषित किया कि उन्होंने
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    हिग्स बोसन या ईश्वर कण खोज लिया है ।
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    हिग्स बोसन के प्रयोगों ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया कि
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    अदृश्य ऊर्जा फील्ड अंतरिक्ष का शून्य भर देती है ।
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    सीईआरएन का बड़ा हैडरॉन कोलाईडर
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    (गोलाकार) 17 मील की परिधि में है जिसमें
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    दो किरण पुंज विपरीत दिशाओं में दौड़ते
  • 17:51 - 17:53
    हैं और प्रकाश की गति के निकट एक साथ
  • 17:53 - 17:55
    टकराकर नष्ट हो जाते हैं ।
  • 17:55 - 17:57
    वैज्ञानिकों ने देखकर जाना कि प्रचंड
  • 17:57 - 18:02
    टकराहट से क्या हासिल होता है ।
  • 18:02 - 18:04
    मानक मॉडल यह पता नहीं लगा सकता कि
  • 18:04 - 18:07
    अणुओं का द्रव्यमान कहाँ से आता है।
  • 18:07 - 18:09
    प्रत्येक पदार्थ कंपन से निर्मित दृष्टिगोचर होता है,
  • 18:09 - 18:16
    लेकिन कोई चीज कंपित नहीं हो रही होती ।
  • 18:16 - 18:19
    लगता है मानो कोई अदृश्य नर्तक ब्रह्मांड की
  • 18:19 - 18:23
    नृत्य-नाटिका में छिप कर छाया नर्तन कर रहा हो ।
  • 18:23 - 18:26
    अन्य सभी नर्तक हमेशा इस छिपे
  • 18:26 - 18:29
    नर्तक के आसपास नृत्य करते हैं ।
  • 18:29 - 18:31
    हमने नृत्य की नृत्यकला देखी लेकिन
  • 18:31 - 18:41
    अब तक उस नर्तक को नहीं देख सके ।
  • 18:41 - 18:44
    तथाकथित "ईश्वर कण",
  • 18:44 - 18:47
    ब्रह्माण्ड का आधार तत्व का गुण,
  • 18:47 - 18:49
    सभी पदार्थों का अंत:स्तल है, जो उस रहस्यमय द्रव्यमान
  • 18:49 - 18:56
    एवं ऊर्जा के साथ ब्रह्माण्ड के विस्तार को संचालित करता है ।
  • 18:56 - 18:59
    लेकिन ब्रह्माण्ड की प्रकृति की व्याख्या करना तो दूर की बात,
  • 18:59 - 19:02
    हिग्स बोसन की खोज ने बड़े-बड़े रहस्य साधारण
  • 19:02 - 19:05
    रूप में प्रस्तुत किए, जिसने वह ब्रह्माण्ड उद्घाटित
  • 19:05 - 19:11
    किया जो हमारी कल्पना से कहीं अधिक रहस्यपूर्ण है ।
  • 19:11 - 19:14
    विज्ञान चेतना और पदार्थ के बीच की सीमा-रेखा के
  • 19:14 - 19:15
    सन्निकट है ।
  • 19:15 - 19:19
    वह दृष्टि जिससे हम प्रारंभिक सिद्धांत का क्षेत्र देखते हैं और
  • 19:19 - 19:21
    वह दृष्टि जिससे क्षेत्र हमें देखता है,
  • 19:21 - 19:35
    एक ही है ।
  • 19:35 - 19:38
    जर्मन लेखक और विद्वान वुल्फगेंग वॉन गोयथे ने कहा है,
  • 19:38 - 19:41
    "तरंग आदिकालीन तथ्य है
  • 19:41 - 19:45
    जिससे विश्व उत्पन्न हुआ" ।
  • 19:45 - 19:54
    सिमेटिक दृश्य ध्वनि का अध्ययन है ।
  • 19:54 - 19:57
    सिमेटिक शब्द ग्रीक के मूल शब्द `साईमा`
  • 19:57 - 20:09
    से बना, जिसका अर्थ है - तरंग या कंपन ।
  • 20:09 - 20:11
    तरंगीय तथ्य का गंभीरता से अध्ययन करने वालों
  • 20:11 - 20:13
    में प्रथम पश्चिमी वैज्ञानिक अर्नस्ट श्लाड्नी,
  • 20:13 - 20:16
    अठारहवीं शताब्दी का एक जर्मन
  • 20:16 - 20:18
    संगीतज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी था ।
  • 20:18 - 20:20
    श्लाड्नी ने खोज की कि धातु की प्लेटों पर रेत फैला कर वायलन
  • 20:20 - 20:24
    गज से जब प्लेटों को डुलाया गया,
  • 20:24 - 20:29
    तो रेत स्वत: प्रतिकृतियों में व्यवस्थित हो गई ।
  • 20:29 - 20:31
    उत्पादित कंपन के आधार पर भिन्न-भिन्न
  • 20:31 - 20:38
    ज्यामितिक स्वरूप दृष्टिगोचर हुए ।
  • 20:38 - 20:40
    श्लाड्नी ने इन रूपों की समूची तालिका रिकार्ड
  • 20:40 - 20:43
    की, जिन्हें श्लाड्नी आकृतियों के रूप में उल्लिखित
  • 20:43 - 20:45
    किया जाता है ।
  • 20:45 - 20:47
    इनमें कई प्रतिकृतियों को समग्र प्राकृतिक विश्व में
  • 20:47 - 20:54
    देखा जा सकता है । जैसे कछुए या तेंदुए की
  • 20:54 - 21:04
    चित्तियों की प्रतिकृतियों के निशान ।
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    श्लाड्नी की प्रतिकृतियों या साइमेटिक प्रतिकृतियों का अध्ययन
  • 21:07 - 21:10
    एक गोपनीय विधि है जिसके माध्यम से उन्नत गिटार, वॉयलिन
  • 21:10 - 21:22
    और अन्य वाद्ययंत्रों के निर्माता वाद्ययंत्रों की ध्वनि गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं ।
  • 21:22 - 21:28
    हैंस जेनी ने वर्ष 1960 में श्लाड्नी का कार्य आगे बढ़ाया और ध्वनि
  • 21:28 - 21:31
    नैरंतर्य को विकसित करने के लिए विभिन्न द्रव्य एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धकों का
  • 21:31 - 21:37
    प्रयोग किया एवं `सिमेटिक्स` (तरंग) ध्वनि का सृजन किया ।
  • 21:37 - 21:41
    यदि आप जल में सामान्य तरंगों की ओर दौड़ते
  • 21:41 - 21:44
    हैं तो आप जल में प्रतिकृतियां देख सकते हैं ।
  • 21:44 - 21:46
    तरंग की आवृत्ति के आधार पर विभिन्न
  • 21:46 - 21:47
    तरंगित प्रतिकृतियाँ दृष्टिगोचर होंगी ।
  • 21:47 - 21:52
    आवृत्ति के बढ़ने पर प्रतिकृति जटिल होती जाएगी ।
  • 21:52 - 21:55
    इन स्वरूपों की पुनरावृति होगी, लेकिन ये बेतरतीब नहीं होंगी ।
  • 21:55 - 21:57
    जितना अधिक आप इन पर ध्यान केंद्रित करेंगे,
  • 21:57 - 22:02
    उतना ही आपको इस बात का एहसास होगा कि किस प्रकार तरंग पदार्थ
    को साधारण दुहराव
  • 22:02 - 22:04
    वाले तरंगों से जटिल रूपों में व्यवस्थित करने लगती हैं ।
  • 22:04 - 22:30
    इस जलतरंग की प्रतिकृति सूर्यमुखी फूल के समान है ।
  • 22:30 - 22:32
    मात्र ध्वनि नैरंतर्य के परिवर्तन से हम
  • 22:32 - 22:52
    विभिन्न प्रतिकृतियां पा जाते हैं ।
  • 22:52 - 22:55
    जल अत्यंत रहस्यात्मक द्रव्य है ।
  • 22:55 - 22:57
    यह अत्यंत संवेदनशील है ।
  • 22:57 - 23:01
    अर्थात्, यह कंपन प्राप्त कर सकता है और उसे रोक कर रख सकता है ।
  • 23:01 - 23:03
    अपनी अत्याधिक गुंजायमान क्षमता तथा
  • 23:03 - 23:07
    संवेदनशीलता एवं गूंजने के लिए आंतरिक तत्परता के कारण
  • 23:07 - 23:10
    जल सभी प्रकार की ध्वनि तरंगों
  • 23:10 - 23:13
    के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया देता है ।
  • 23:13 - 23:13
    प्रदोलित जल तथा पृथ्वी से
  • 23:13 - 23:17
    अधिकांश पौधों तथा पशुओं के समूह का निर्माण होता है ।
  • 23:17 - 23:22
    यह देखना सरल है कि जल में किस प्रकार साधारण
  • 23:22 - 23:25
    प्रदोलन, पहचानने योग्य प्राकृतिक प्रतिकृतियों को सृजित कर सकता है,
  • 23:25 - 23:30
    लेकिन जैसे ही हम उसमें ठोस पदार्थ मिलाते हैं और उसके आयाम
  • 23:30 - 23:35
    को बढ़ा देते हैं तो वस्तुएं और भी दिलचस्प हो जाती हैं ।
  • 23:35 - 23:37
    पानी में कार्नस्टार्च (मक्की की मांड) मिलाने से हमें
  • 23:37 - 23:58
    और मिश्रित तत्व हासिल होते हैं ।
  • 23:58 - 24:00
    कदाचित जीवन के सिद्धांतों को भी महसूस किया
  • 24:00 - 24:03
    जा सकता है, चूंकि कंपनों से कार्नस्टार्च चलते-
  • 24:03 - 24:13
    फिरते जीव में परिवर्तित हो जाती है ।
  • 24:13 - 24:15
    ब्रह्माण्ड का जीवंत सिद्धांत उन शब्दों का प्रयोग
  • 24:15 - 24:18
    करते हुए प्रत्येक बड़े धर्म में वर्णित किया
  • 24:18 - 24:20
    गया है जो इतिहास में तत्कालीन
  • 24:20 - 24:26
    समझ को प्रतिबिंबित करता है ।
  • 24:26 - 24:31
    इकांस की भाषा में, कोलंबियन-पूर्व
  • 24:31 - 24:35
    अमेरिका में `मानव शरीर` के लिए `अल्पा कमास्का` शब्द है,
  • 24:35 - 24:41
    जिसका शाब्दिक अर्थ है `जीवंत पृथ्वी` ।
  • 24:41 - 24:43
    कबाला या यहूदी रहस्यवाद में ईश्वर के
  • 24:43 - 24:46
    दिव्य नाम का उल्लेख है ।
  • 24:46 - 24:49
    वह नाम जिसे उच्चारित नहीं किया जा सकता ।
  • 24:49 - 24:51
    इसे इसलिए नहीं बोला जा सकता,
  • 24:51 - 24:56
    चूंकि यह ऐसा कंपन है जो सर्वत्र है । यह सभी शब्दों, सभी पदार्थों में हैं ।
  • 24:56 - 25:00
    पवित्र शब्द ही सब कुछ है ।
  • 25:00 - 25:02
    चतुष्फलक सर्वाधिक सामान्य आकार है,
  • 25:02 - 25:05
    जो तीन आयामों में अस्तित्व में है ।
  • 25:05 - 25:07
    कुछ में भौतिक वास्तविकता के लिए कम
  • 25:07 - 25:09
    से कम चार बिंदु होने चाहिए ।
  • 25:09 - 25:11
    त्रिकोणीय संरचना प्रकृति की केवल
  • 25:11 - 25:14
    स्वनिर्धारित प्रतिकृति है ।
  • 25:14 - 25:17
    पूर्व-विधान में शब्द `चतुर्वर्णी`
  • 25:17 - 25:20
    ईश्वर के कुछेक प्रकटीकरण के लिए प्राय: प्रयुक्त किया जाता है ।
  • 25:20 - 25:24
    इसे तब प्रयोग किया गया था, जब ईश्वर के शब्द या ईश्वर,
  • 25:24 - 25:31
    लोगो या प्रारंभिक शब्द के विशेष नाम से बात की गई थी ।
  • 25:31 - 25:36
    प्राचीन सभ्यता जानती है कि ब्रह्माण्ड की
  • 25:36 - 25:40
    आधारभूत संरचना चतुष्फलक आकार की थी ।
  • 25:40 - 25:43
    इस आकार में प्रकृति साम्य, शिव के लिए
  • 25:43 - 25:48
    आधारभूत प्रमाण प्रदर्शित करती है ।
  • 25:48 - 25:50
    हालांकि इसमें परिवर्तन के लिए आधारभूत प्रमाण,
  • 25:50 - 25:57
    शक्ति भी है ।
  • 25:57 - 25:59
    बाइबल में जॉन सिद्धांत में सामान्यतया
  • 25:59 - 26:02
    `आरंभ में शब्द था़`
  • 26:02 - 26:05
    पठित है लेकिन मूल पाठ में प्रयुक्त शब्द
  • 26:05 - 26:08
    `लोगो` था ।
  • 26:08 - 26:09
    ईसा पूर्व लगभग 500वें वर्ष में विद्यमान
  • 26:09 - 26:13
    ग्रीक दार्शनिक हरक्लीटस ने
  • 26:13 - 26:14
    `लोगो` का उल्लेख कुछ आधारभूत
  • 26:14 - 26:17
    अज्ञात के रूप में किया ।
  • 26:17 - 26:22
    सभी पुनरावृति, पद्धति और स्वरूपों का उद्भव ।
  • 26:22 - 26:24
    हरक्लीटस के उपदेशों का अनुसरण करने वाले
  • 26:24 - 26:27
    निर्लिप्त दार्शनिकों ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिव्य जीवंत
  • 26:27 - 26:36
    सिद्धांत के साथ इस शब्द का पता लगाया ।
  • 26:36 - 26:42
    सूफीवाद में `लोगो` सर्वत्र है और सभी वस्तुओं में है ।
  • 26:42 - 26:53
    यह वह तत्व है जिसमें अव्यक्त, व्यक्त हो जाता है ।
  • 26:53 - 26:57
    हिन्दू परंपरा में शिव नटराज का शाब्दिक अर्थ है
  • 26:57 - 27:00
    `नृत्य सम्राट`।
  • 27:00 - 27:03
    संपूर्ण ब्रह्माण्ड शिव की धुन पर नृत्य करता है ।
  • 27:03 - 27:08
    सभी कुछ स्पंदन से ही ओतप्रोत होता है ।
  • 27:08 - 27:10
    केवल जब तक शिव नृत्य कर रहे हैं तभी तक
  • 27:10 - 27:13
    संसार विकसित और परिवर्तित हो सकता है,
  • 27:13 - 27:19
    अन्यथा सब कुछ समाप्त होकर शून्य हो जाएगा ।
  • 27:19 - 27:21
    यद्यपि शिव हमारी चेतना का साक्ष्य है,
  • 27:21 - 27:26
    शक्ति संसार का सार है ।
  • 27:26 - 27:29
    यद्यपि शिव ध्यानमग्न हैं,
  • 27:29 - 27:32
    शक्ति उन्हें संचालित करने का प्रयत्न करती है,
  • 27:32 - 27:34
    जिससे उन्हें नृत्य में उतारा जा सके ।
  • 27:34 - 27:36
    यिन एवं यांग की तरह नर्तक
  • 27:36 - 27:43
    तथा नृत्य का अस्तित्व एक है ।
  • 27:43 - 27:47
    `लोगो़` का अर्थ है अनावृत सत्य ।
  • 27:47 - 27:52
    जो `लोगो़` को जानता है, वही सत्य को जानता है ।
  • 27:52 - 27:53
    छिपाव की कई परतें आकाश के रूप में मानवीय
  • 27:53 - 27:56
    संसार में अस्तित्व में हैं, जिससे स्वयं
  • 27:56 - 27:59
    के स्रोत को छिपाते हुए
  • 27:59 - 28:02
    वह जटिल संरचनाओं के भंवर में फंस जाता है ।
  • 28:02 - 28:04
    लुकाछिपी के दिव्य खेल की तरह हम हजारों
  • 28:04 - 28:08
    वर्षों से छिपते चले आ रहे हैं और खेल
  • 28:08 - 28:10
    eको पूरी तरह से भूल गए हैं ।
  • 28:10 - 28:18
    हम भूल गए हैं कि कोई ऐसी चीज है जिसकी खोज की जानी है ।
  • 28:18 - 28:21
    बौद्धधर्म में प्रत्येक को अपने `लोगो़` को सीधे महसूस करना,
  • 28:21 - 28:26
    अर्थात् ध्यान के माध्यम से अपने भीतर परिवर्तन या नश्वरता के क्षेत्र का पता
  • 28:26 - 28:28
    लगाना सिखाया जाता है।
  • 28:28 - 28:30
    जब आप अपना आंतरिक संसार देखते
  • 28:30 - 28:34
    हैं तो आप सूक्ष्म संवेदनाओं और ऊर्जा को देखते हैं और
  • 28:34 - 28:39
    मस्तिष्क अधिकाधिक कुशाग्र व आत्मकेन्द्रित होने लगता है ।
  • 28:39 - 28:41
    `अणिका` के प्रत्यक्ष अनुभव या संवेदन के
  • 28:41 - 28:44
    आधारभूत स्तर पर नश्वरता के माध्यम से व्यक्ति
  • 28:44 - 28:51
    मोह से मुक्त हो जाता है ।
  • 28:51 - 28:53
    एक बार हम अनुभव कर लेते
  • 28:53 - 28:56
    हैं कि एक ही क्षेत्र है जो सभी धर्मों का सामान्य रास्ता है,
  • 28:56 - 29:05
    तो हम किस प्रकार कह सकते हैं `मेरा धर्म` या `यह मेरा मौलिक ओम्
  • 29:05 - 29:21
    है`, `मेरा क्वाण्टम क्षेत्र है` ?
  • 29:21 - 29:28
    हमारे संसार में वास्तविक संकट सामाजिक,
  • 29:28 - 29:32
    राजनीतिक या आर्थिक नहीं हैं ।
  • 29:32 - 29:38
    हमारे संकट चेतना के संकट हैं, अपने वास्तविक स्वरूप को प्रत्यक्ष अनुभव कर
  • 29:38 - 29:41
    पाने की असमर्थता ।
  • 29:41 - 29:45
    प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति में इस प्रकृति
  • 29:45 - 29:53
    को पहचानने की असमर्थता ।
  • 29:53 - 29:56
    बौद्ध परंपरा में, `बोधिसत्व`
  • 29:56 - 29:59
    जागृत बुद्ध प्रकृति का व्यक्ति है ।
  • 29:59 - 30:03
    ब्रह्माण्ड में बोधिसत्व हर प्राणी को जागृत करने में
  • 30:03 - 30:09
    सहायता करता है, यह अनुभव करते हुए कि चेतना केवल एक ही है।
  • 30:09 - 30:17
    किसी के वास्तविक स्वरूप को जागृत करने के लिए व्यक्ति को सभी को जागृत करना चाहिए ।
  • 30:17 - 30:24
    “विश्व में असंख्य सचेतन प्राणी हैं, मैं उनकी
  • 30:24 - 30:29
    जागृति में सहायता करना चाहता हूं ।
  • 30:29 - 30:32
    मेरी अपूर्णताएं असंख्य हैं ।
  • 30:32 - 30:34
    मैं उन पर विजय पाना चाहता हूँ।
  • 30:34 - 30:38
    धर्म अज्ञात है।
  • 30:38 - 30:41
    मैं इसे जानना चाहता हूं ।
  • 30:41 - 30:47
    जागृति का मार्ग अप्राप्य है ।
  • 30:47 -
    मैं इसे पाना चाहता हूं ।“
Title:
Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha
Description:

All 4 parts of the film can be found at www.innerworldsmovie.com.

Part one of the film Inner Worlds, Outer Worlds. Akasha is the unmanifested, the "nothing" or emptiness which fills the vacuum of space. As Einstein realized, empty space is not really empty. Saints, sages and yogis who have looked within themselves have also realized that within the emptiness is unfathomable power, a web of information or energy which connects all things. This matrix or web has been called the Logos, the Higgs Field, the Primordial OM and a thousand other names throughout history. In part one of Inner Worlds, we explore the one vibratory source that extends through all things, through the science of cymatics, the concept of the Logos, and the Vedic concept of Nada Brahma (the universe is sound or vibration). Once we realize that there is one vibratory source that is the root of all scientific and spiritual investigation, how can we say "my religion", "my God" or "my discovery".

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Video Language:
American Sign Language
Duration:
31:01
Amara Bot edited Hindi subtitles for Inner Worlds, Outer Worlds - Part 1 - Akasha
Amara Bot added a translation

Hindi subtitles

Revisions